"आज वह आई ए. एस. बन गयी है। अब तो उसकी अपनी भी एक स्वतंत्र पहचान बन गई है... और नामी गिरामी पिता की बेटी तो पहले से ही है... समझ में नहीं आ रहा है कि शादी क्यों नहीं कर लेती है!" सुरूचि ने कहा.. उसकी आवाज में चिंता और अफसोस घुलनशील था।
"अच्छी-खासी नौकरी हो गयी है... अब तो और उसे पैसों की कमी नहीं...।" सुरूचि की सखी रोमा ने कहा।"
"हद है! क्या पैसा ही सबकुछ है...? मैं शादी की बात कर रही हूँ.., हवाई-जहाज खरीदने की नहीं..।
"शादी की जरूरत नहीं होगी... सब पूरा हो जाता होगा..! उसे किसी सहारे की क्या ज़रूरत है ?" कुटिल मुस्कान चेहरे पर बिखरते हुए रोमा ने बुदबुदाया।
"ज़रूरत तो स्त्री हो या पुरुष दोनों को होती है.. दोनों एक दुसरे के पूरक हैं... सृष्टि तो दोनों के मिलने से ही चलेगी न?" सुरुचि ने और अधिक चिन्तित स्वर में कहा।
"ज़रा अपनी सोच में बदलाव लाओ!"
"हद है! तुम अपने दोचित्ते सोच पर लगाम लगाओ...!"
"अरे! इसमें मेरे दोचित्ते सोच की बात कहाँ से आ गई?"
"कल की ही बात है..., जब मैं बोली कि किरण को सुरेश, तुम्हारे पति की रखैल बोला जा रहा है तो तुम कैसे तमक कर बोली थी...कि यह सब बेबुनियाद बात है... तुम औरत और मर्द के लिए दो अलग-अलग दृष्टियाँ रखती हो.."
"मैं भी अक्सर समझाते रहती हूँ कि नारी को हमेशा नारी के पक्ष में खड़ा रहना चाहिए पर यह गिरगिट समझे तो न.. शायद आज यह संकल्प ले...!" कमरे में आती रोमा की सास ने कहा।
"नहीं! नारी को नारी या पुरुष को पुरुष के पक्ष में खड़े होने की बात नहीं होनी चाहिए, घर और संसार प्रेम पूर्वक चलाने की बात होनी चाहिए। पक्षपात नहीं... सदैव न्याय के पक्ष में खड़ा होना चाहिए।"
"तुम सही बोल रही हो! इन्हीं गलत सोचों ने तो पुरुष सत्ता को मजबूत कर रखी है..। और मम्मी आपने कहा था कि पापा के जाने से सारा घर बर्बाद हो गया... वो थे तो किसी की मजाल नहीं थी कि कोई इस घर की और टेढ़ी नजर कर के देखे... ।" रोमा की बात सुनकर उसकी सास फफक पड़ी...।
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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