चित्र प्रदर्शनी के दर्शक-दीर्घा में आगुन्तकों की नजर एक विशेष चित्र पर अटक जाती और वह वाहः कर उठते हैं... अद्वितीय चित्र, चित्रकार को खोजने पर सभी को विवश कर रहा था... चित्रकार श्यामा और उसका भाई सतीश विह्वल थे..., शीशे में अपनी शक्ल देख बिल्ली एक तस्वीर बनाती है जो शेरनी की हो जाती है... अलौकिक तस्वीर जीवंत कहानी होती है...
"भैया आपसे एक बात कहनी है..,"
"हाँ! हाँ... कहो! छोटी बहन को बड़े भाई से कुछ कहने में हिचक क्यों होने लगा... बेटियाँ पराई होती हैं, मैं नहीं मानता..।"
"शादी के बहुत वर्षों के बाद कुछ कहना थोड़ा अटपटा लग सकता है... आप मेरे घर आया कीजिये...!"
"अरे! ऐसी क्या बात हो गई.. ? बेहिचक स्पष्ट बात बताओ..!"
"कुछ खास नहीं... बस.. आप मेरे घर आया कीजिये!"
"यह कौन सी बड़ी बात है.. मैं तो संकोचवश नहीं आ पाता था...।
भाई का बहन के शहर में अक्सर आना-जाना होता ही था.. जहाँ पहले अन्य रिश्तेदारों के घर ठहरता वहाँ अब बहन के घर ठहरने लगा... भाई व्यापारी और साहित्यकार था... लेन-देन और साहित्यिक गोष्ठियों में अपने बहनोई को भी शामिल रखता... अपने ही घर में दाई की हैसियत से रहने वाली बहन की स्थिति बदलती गई...
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भैया
Deleteआँखें भर आईं दीदी! मन न जाने कैसा हो गया!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष भाई
Deleteगहरे भाव....
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