"यह क्या है दादी.., देवी सातों बहिनी भाई भैरव के साथ नीम के छाँव तले और महात्मा गाँधी जी मंदिर में..। एक ही स्थान पर... ऐसा क्यों?" दादी गाँधी जी की मूर्ति के आगे भी पुड़ी-गुड़-चना चढ़ा रही थी जिसे देखकर कौतुहलवश पुष्प ने पूछा..।
"देवी-स्थान को मंदिर के अंदर कोई नहीं कर सकता है बच्चे! शापित है यह स्थान... जिसने कभी भी मंदिर बनवाने का शुरू किया , वह जिंदा नहीं रह सका... और गाँधी बाबा देव-पुरुष रहे...! आजादी दिलवाने में सहयोगी रहे, इसलिए उनको मंदिर में स्थापित किया गया... उस समय तो पुष्प मुस्कुराता चुप्प रह गया.. क्योंकि गाँव के अनपढ़ सरल-सहज इंसानों को क्या समझाता... बच्चे की बात समझता भी कौन... लेकिन आज करीब पचास सालों के बाद उसी स्थिति में जनता को पाकर पुरानी बातें याद कर रहा है... और समझ रहा है , "क्या फर्क पड़ रहा है, निर्भया के माता-पिता मतदान नहीं करने वाले हैं..!"
हार्दिक आभार आपका सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दीदी!!
ReplyDeleteअद्भुत प्रस्तुति आदरणीय दी।
ReplyDeleteकहते हैं देर का न्याय अन्याय से भी बढ़कर है | जिस मामले ने समस्त राष्ट्र को हिलाकर रख दिया था उसी में न्याय नहीं तो आम आदमी इंसाफ की गुँहार लेकर कहाँ जाए ? अद्भुत लेखन थोड़े शब्दों में== आदरणीय दीदी | सादर अभिवादन और शुभकामनायें |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सारगर्भित रचना....
ReplyDeleteनिर्भया के माता-पिता मतदान न करें तो क्या वोट बेचने वालों की कमी थोड़े ही है...
सुन्दर सारगर्भित
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