Monday 24 June 2024

गुलाबजामुन : ©️नीरजा कृष्णा, पटना


आज रवि की पत्नी मधु की मुँह दिखाई की रस्म होने जा रही है। पास- पड़ोस की महिलाऐं तथा घर की सब बड़ी-बुजुर्ग महिलाऐं एकत्रित हो गई थी। अद्वितीय रूप की मालकिन मधु की सब बलैया ले रही थी। वो सबको बहुत पसंद आई थी। मालती जी मोहित होकर अपनी बहू को निहारे जा रही थी, तभी जो़र का शंखनाद हुआ। सबने चौंक कर दादी जी की ओर देखा, सबके मन में था ...बाप रे ! इस शुभ घड़ी में कौन सा बम फूटेगा? मालती मिन्नत भरी निगाहों से उन्हें देखने लगीं, मानों कह रही हों आज कोई कड़ी बात ना बोलें पर दादी तो दादी है। उन्होंने मालती जी को ही ललकार डाला, “देख बहू! तू तो भोली-भाली है पर ये आजकल की बहुएं बहुत चोखी होशियार होती हैं। तू! बहू, को समझा दे कि हमारे घर में बड़े बुजुर्गों का नाम नहीं लिया जाता है। ये आजकल की छोरियाँ कितनी शान से अपने मरद का नाम भी लेती है। तू  इसे समझा दे.. यहाँ हर टाइम रवि, रवि न चलेगा।"

सब चुप पर रवि की बड़ी दीदी रंजना को मजा़ आने लगा.."दादी! ऐलान भी किया तो अधूरी बात का। अरे पूरी तरह नई बहू को समझाओ 'क्या बोलना है रवि की जगह?"

"हट निगोड़ी! मुझसे ठिठोली कर रही है। आजकल छोरियाँ सब सीखी-पढ़ी हैं! हम लोग तो 'एजी, ओजी, सुनोजी तो' करते थे, सब सुनकर मधु लोटपोट हो गई।

उसी दिन शाम को मधु से रसोई में कुछ बनवाकर रस्म करवाई जानी थी, बुआजी ने बड़े चाव से पूछा ..."मधु ! क्या बना रही हो बेटा?"

"सब तो मम्मी जी ने बनवा ही लिया है ,मैं तो केवल पापा और ताऊजी को चीनी के रस में डुबोने जा रही हूँ। दोनों के ऊपर  आपको सजा दूँगी...।"

बुआजी और दादीजी तो अवाक् देखने लगी..."ये तू क्या अंट-संट बक रही है बेटा! पापा और ताऊ जी के लिए क्या बोल रही है? और उनके ऊपर मुझे सजाएगी, तेरा मतलब क्या है..?"

"बुआजी! इसमें ना समझने वाली क्या बात है?  दादी जी की आज्ञा का पालन ही तो कर रही हूँ। मैं गुलाबजामुन बना रही हूँ, ऊपर से केसर डालूँगी...।"

तब सबको समझ में आया कि पापाजी का नाम गुलाबचंद, ताऊजी का नाम जमुना प्रसाद तथा प्यारी बुआजी का नाम केसर देवी है।

©️नीरजा कृष्णा, पटना

गुलाबजामुन : लहालोट

—विभा रानी श्रीवास्तव, पटना

 “शानदार—मज़ेदार—धारदार नीरजा कृष्णा, पटना की लिखी रचना, लेकिन : लेकिन, शीर्षक उस मुक़ाबले में थोड़ा पिछड़ गया! आदरणीया क्या इस रचना का शीर्षक बदलकर और गुलाबजामुन की रेसपी के संग पुस्तक ‘बिहारी व्यंजन : स्वाद कथा’ में शामिल करना चाहेंगी?”

“विभा रानी श्रीवास्तव! कुछ मार्गदर्शन करिए न।”

“नीरजा कृष्णा आदरणीया! : नहले पर दहला : बीस पर बाईस…!”

“विभा रानी श्रीवास्तव! वाह वाह: : ‘बीस पर बाईस’ में नवीनता है, उपयुक्त है! इसे ही रहने दें।”

जी! दादी सास, सास से बीस थी तो पोता बहू को बाईस हो जाना स्वाभाविक था!

सर्दियों में अक्सर कुछ मीठा और गर्मागर्म खाने की लालसा/तीव्र इच्छा होती है। ऐसे में हलवाई की दुकान पर जाने की बजाय आप घर पर ही ये गुलाबजामुन बनाकर मिलावट से बच सकते हैं। आइए बिना देर किए जान लीजिए ये आसान (पाँच लोगों के लिए) रेसिपी।

गुलाबजामुन बनाने के लिए सामग्री :- 

खोया (मावा) - 1 कप

मैदा (आटा) - 1/4 कप

देसी घी - 1/4 चम्मच

इलायची पाउडर - 1 चम्मच

बेकिंग पाउडर - 1/4 चम्मच

चीनी - 1 कप

पानी - 1/4 कप

केसर - 1 चुटकी

गुलाबजामुन बनाने की विधि :- सबसे पहले एक कढ़ाई में घी गरम करें और उसमें मावा डालकर अच्छी तरह भून लें, इसके बाद इसमें बेकिंग पाउडर डाल दें। इसे धीरे-धीरे मिक्स करते हुए गूंथ लें, इसमें आधा चम्मच इलायची पाउडर भी डाल दें। इसके बाद अगर गोल आकार में गुलाबजामुन बनाने हैं तो इनकी छोटी-छोटी गोली बना लें। अब एक तरफ चाशनी तैयार करनी शुरू कर दें। इसमें सबसे पहले कढ़ाई गैस पर रखें और इसमें चीनी और पानी डालें और उबालने दें, इसमें बाकि आधा चम्मच बचा हुआ इलायची पाउडर भी डाल दें और उबलने दें। जब इसमें एक तार बनने लगे तो गैस बंद कर दें। अब तैयार की हुईं गोली से गुलाबजामुन तलने हैं। इसके लिए एक कढ़ाई में घी गर्म कर लें। जब ये अच्छी तरह गर्म हो जाए तो इसमें गुलाबजामुन को डालकर भूरा-कत्थई रंग आने तक तल लें। ध्यान रहे, इस वक्त गैस की लौ माध्यम ही होनी चाहिए। जब ये सब तल जाएं तो इन्हें गर्म चाशनी में डाल दें। इन्हें 1 घंटा इसी चाशनी में भीगने के लिए छोड़ देंगे तो ये खाने के लिए तैयार हो जाएंगे। इन्हें गर्मागर्म ही सर्व करें।

एक विशेष बात ध्यान रखने योग्य :- तलने के पहले गुलाबजामुन के बॉल में एक-एक इलायची दाना भर दिया जाये तो बढ़िया बनता है…। इलायची के दाने पर चीनी की परत होती है जो बाद में गरम होने पर पिघल जाती है और गुलाबजामुन के बीच में गुलठी भी नहीं हो पाती है…।

तथा बिना कुछ और साझा किए, इस कहानी का समापन नहीं हो सकता है…! मेरे घर में अक्सर गुलाबजामुन (मिठाई! फल नहीं! आपको पता होगा गुलाबजामुन फल भी होता है। इस फल का नाम गुलाबजामुन इसलिए रखा गया क्योंकि बताया जाता है कि इसका स्वाद बिलकुल गुलाबजामुन की तरह ही होता है। यह अमरूद की तरह हल्का पीले-हरे रंग का होता है। यह फल पेड़ पर फरवरी में लगना शुरू हो जाता है और अप्रैल- मई तक खाने लायक हो जाता है। इसमें एक बड़ा बीज भी होता है।फल के बीज का सेवन शरीर में नए सेल्स बनाने का काम करता है। इस फल के बीज का पाउडर ब्लड शुगर स्तर को कंट्रोल कर डायबिटीज़ में फायदा पहुँचाता है। जामुन के बीज की तरह। गुलाबजामुन फल के पत्ते के गुण किसी भी तरह की डायबिटीज़ में फायदा पहुँचा सकते हैं। पत्तियों को सुखाना है और फिर इनका पाउडर तैयार कर गुनगुने पानी के साथ पी लेना है। मुख्यत: उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बंगाल, राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में भी कहीं-कहीं मिल जाते हैं।) रहता था। मेरे पति (डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव) और बेटे (महबूब श्रीवास्तव) को बहुत ही पसन्द था! (था इसलिए कि समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है…) बेटा को जब गुलाबजामुन मिठाई खाने की इच्छा होती, फ्रीज खोलता डिब्बा/बर्त्तन निकालता और पहले गिनती करता। उपयुक्त संख्या को तीन भाग करता, मान लीजिए, , गुलाबजामुन मिठाई संख्या में सोलह है तो तीन हिस्सा करने पर पाँच-पाँच-पाँच और एक अधिक तो झट से वो खा लेता फिर थोड़ी-थोड़ी देर अपने हिस्से का पाँच मिठाई खा लेता। अगर यह बँटवारा सुबह के समय हुआ है तो उसके पिता कार्यालय जा चुके होते और मुझे खाने की इच्छा नहीं तो हमदोनों के हिस्से का दस मिठाई फ्रिज में रखा जाता। दोपहर-शाम में फिर दस का तीन हिस्सा लगता, तीन-तीन-तीन और शेष एक बेटे के हिस्से… यानी बेटे के फिर से चार गुलाबजामुन मिठाई खाने के बाद , रात में ६ बच जाता तो हमतीनों कभी-कभी दो-दो-दो के भागीदार हो जा सकते थे…। नहीं तो…,

Saturday 22 June 2024

लड्डू : फूटना मन का!

जॉर्ज बर्नाड शॉ ने कहा है, “दुनिया में दो ही तरह के दु:ख हैं —एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाए!”

हमलोग कामख्या मन्दिर बहुत बार गये हैं : बहुत पहले जब गये तो गोहाटी मेरे पति अपने सरकारी दौरे पर थे तो वहाँ के लोगों ने आराम से दर्शन की व्यवस्था करवा दी। : दूसरी-तीसरी बार गये तो भी पंक्ति में लगकर बहुत परेशानी नहीं उठानी पड़ी। पिछले साल (सन् २०२३) गये तो भीड़ देखकर भाग चलने की इच्छा हुई, लेकिन हमारे साथ जो लोग थे उनकी पहली यात्रा थी बिना दर्शन मायूस हो रहे थे : एक पण्डित जी मिले बोले पाँच सौ लेंगे चार व्यक्ति का : सौदा बुरा नहीं लगा एक बार और चित्र उतारने का मौका मिल रहा था। मन में लड्डू फूटना स्वाभाविक था। मन्दिर में प्रवेश के कई दरवाज़े बन गये हैं : दो दरवाजे के पहले ही पण्डित जी बोले कि हो गया दर्शन, अब बाहर निकल लेते हैं और आपलोग मेरी तय राशि दे दीजिए।

“अरे। वाह! हमलोग गोहाटी रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डा से ही नहीं मान लेते कि दर्शन हो गये? बिना दर्शन के राशि तो नहीं देने वाले।”

कुछ देर बकझक के बाद पण्डित जी बिना राशि लिए ग़ायब हो गए…। पता नहीं उनके मन के लड्डू का क्या हुआ होगा…! लड्डू यानी चूड़ा, मूढ़ी (मुरमुरा), गोंद, तिल, तीसी, बेसन इत्यादि के लड्डू : आमतौर पर सर्दियों के मौसम में लड्डू बनाये जाते हैं। लोहड़ी और संक्रांति के त्योहार के मौके पर भी तिल के लड्डू बनाएं जाते हैं। भूने तिल, गुड़ और केसर के साथ आप भी इन्हें आसानी से घर पर बना सकते हैं। तिल के लड्डू बनाने के लिए सामग्री: आप चाहे तो इन्हें अन्य किसी मौके पर भी बना सकते हैं। इन्हें बनाने के लिए आपको तिल, गुड़, केसर और फुल क्रीम दूध की जरूरत होती है।

चार लोगों के लिए : मध्यम आकार : तिल के लड्डू की सामग्री :- एक कप सफेद तिल

आधा कप खोया

आधा कप गुड़

एक चुटकी केसर

दो बड़ा चम्मच फुल क्रीम दूध

तिल के लड्डू बनाने की वि​धि

एक पैन लें उसमें थोड़ा घी डालें फिर इसमें तिल डालें।इसे लगातर चलाते रहे जब तक तिल हल्के गोल्डन ब्राउन न हो जाएं। पैन को आंच से हटा लें और भूने हुए तिल को एक प्लेट में निकाल लें।

केसर को गर्म दूध में भिगों दें। जिस पैन में तिल भूनें थे उसमें गुड़ को डालकर पिघला लें इसे लगातर तब तक चलाते रहे जब तक वह आधा न रह जाए। इसे आंच से हटा लें।

इसके सख्त होने से पहले इसमें केसर वाला दूध डालें और मिलाएं। फिर इसमें मुलायम खोया और तिल डालकर चम्मच की मदद से अच्छी तरह मिला लें।

अब अपने हाथ में थोड़ा सा घी/पानी लगाएं और तैयार किए गए मिश्रण से मध्यम आकार के लडूड बनाएं।इसे सर्व करें और घर पर होने वाली पार्टी के दौरान आप इसे स्वीट स्नैक के रूप में भी सर्व कर सकते हैं।

आप चाहें तो इसमें सूखे मेवा जैसे बादाम काजू और अखरोट पिस्ता भी डाल सकते हैं। लेकिन इन्हें हल्का भून लें और बारीक करके मिश्रण में डालें। इसके बाद आप लड्डू बना सकते हैं।

चूड़ा का लड्डू (बिहारी लाई) बनाने में ठंढ के मौसम में भी पसीना छूट जाता है। पड़ोसन चाची रात में सभी के सो जाने के बाद में बनाती थीं। देर रात बाहर से किसी के आने की उम्मीद भी नहीं रहती थी। उनका कहना था कि “नज़र लग जाने पर बिखरता है। उनका मानें तो नज़र लगाने से गुँथें रिश्ते भी बिखर जाते हैं…! सबसे आसान है तिल का लड्डू बनाना! टूटता-फूटता नहीं है…! वैसे भी टूटना-फूटना तो विश्वास और मन का होता है! ना जाने किस पदार्थ से गढ़ा गया तथा कच्चा-पक्का पकाया गया…! उस ज़माने की बात है मॉल संस्कृति अपना पैर अंगद सा जमायी नहीं थी! लड़कियाँ चौके में समय बिता लिया करती थीं। उनमें यह स्पर्द्धा करने का साहस नहीं था कि मैं भी बाहर से आयी हूँ, मैं ही चौके में क्यों जाऊँ! मेरी ननद को भी पाक-कला में निपुण होने का शौक़ था। नया व्यंजन आज़माती रहती थीं। उन्हें अपनी सहेली के घर से गोंद का लड्डू चखने का मौक़ा मिल गया था। 

गोंद! माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं।गोंद हिन्दी में ‘खाद्य गोंद’ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो एक पौधे का गोंद है जो विभिन्न पेड़ों के रस से प्राप्त होता है। एशियाई खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले सबसे आम खाद्य गोंद बबूल गोंद (अरबी गोंद) और ट्रैगैकैंथ गोंद हैं। इन दोनों के गुण और पोषक तत्व अलग-अलग होते हैं, इसलिए ये व्यंजनों में और यहाँ तक ​​कि सेवन के बाद शरीर पर भी अलग-अलग तरीके से काम करते हैं। बबूल का कीकर इस पेड़ का हिन्दी नाम है।गोंद के लड्डू बनाने में बबूल/कीकर के पेड़ का सूखा हुआ रस इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल गोंद पंजीरी बनाने में भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बबूल का गोंद शरीर को गर्म रखता है, इसलिए इसका प्रयोग सर्दियों के दौरान व्यापक रूप से किया जाता है तथा गर्मियों के दौरान इसका प्रयोग नहीं किया जाता, क्योंकि इसकी प्रकृति गर्म होती है। दूसरे प्रकार का खाद्य गोंद है ट्रागाकैंथ गोंद। इसे भारतीय भाषा में ‘गोंद कतीरा’ या ‘बादाम पिसिन’ के नाम से जाना जाता है। यह मूल रूप से बेस्वाद होता है और पानी में डालने पर फूल जाता है और जेली की तरह नरम हो जाता है। गोंद कतीरा का व्यावसायिक रूप से खाद्य पदार्थों को गाढ़ा करने, स्थिर करने और पायसीकारी बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे जिगरथंडा, फालूदा जैसे पेय पदार्थों और यहाँ तक ​​कि शेक, स्मूदी और शर्बत में भी मिलाया जाता है। ट्रागाकैंथ गम की प्रकृति बेहद ठंडी होती है और इसे गर्मियों के दौरान इस्तेमाल करना फायदेमंद माना जाता है।

मेरी ननद में अब उतावलापन था ख़ुद से गोंद का लड्डू बनाकर निपुणता हासिल करने का। सहेली को सिखलाने के लिए कहा गया तो पता चला उनकी माँ बनाती हैं। उनसे सामग्री लिखवाकर ला दी :- 

(कप = 240 मिलीलीटर)

▢1¼ कप गेहूं का आटा

▢¾ से 1 कप गुड़ पाउडर (मैंने ¾ का इस्तेमाल किया) या पाउडर चीनी

▢½ कप घी (गोंद के लिए 5 बड़े चम्मच + आटे के लिए 3 बड़े चम्मच) (आवश्यकतानुसार अधिक)

▢⅓ कप गोंद लगभग 65 ग्राम खाने योग्य गोंद/अंटू

▢2 बड़े चम्मच सूखा नारियल (खोपरा - वैकल्पिक)

▢¼ कप बादाम और काजू (कटे हुए या मिक्सर ग्राइंडर में पिसे हुए)

▢1 बड़ा चम्मच चिरौंजी (वैकल्पिक या सफेद खसखस)

▢¼ से ½ चम्मच इलायची पाउडर या इलायची

गोंद के लड्डू स्वादिष्ट, पौष्टिक और समृद्ध पारंपरिक मीठे गोले हैं जो खाने योग्य गोंद, गुड़, पूरे गेहूं के आटे, मेवे, बीज और घी से बनाए जाते हैं। ये पारंपरिक मेवेदार गोंद के लड्डू स्वाद से भरपूर होते हैं, इनकी बनावट बहुत अच्छी होती है और माना जाता है कि ये तुरंत ऊर्जा बढ़ाते हैं। प्रतिरक्षा बढ़ाने और शरीर को गर्म रखने वाले गुणों के लिए प्रसिद्ध, ये गोंद के लड्डू और पिन्नी पारंपरिक रूप से भारत में सर्दियों के दौरान बनाए और खाए जाते हैं।

गोंद के लड्डू बनाने की सारी सामग्री तो तुरन्त ख़रीद कर बाज़ार से आ गयी। सहेली के द्वारा उनकी माँ तक सूचना भेज दी गयी। उनकी माँ हमारे घर पर ही आकर महाविद्यालय के किसी छुट्टी वाले दिन बताने और बनवाने की सहमति भी भेजवा दीं। किसी रविवार को भी आ सकती थीं लेकिन वो लोग मारवाड़ी थीं और रविवार उन लोगों के लिए ज़्यादा व्यस्तता वाला दिन होता था। जिस दिन ननद की सहेली की माँ गोंद का लड्डू बताने-बनवाने हमारे घर पधारीं उस दिन मेरी ननद और सास घर में अनुपस्थित थीं। मेरे सामने दुविधा थी कि मैं क्या करूँ? सीखना तो ननद को था। सहेली की माँ के सामने मुझे जाना भी है कि नहीं! आज का ज़माना होता तो मोबाइल खटखटा दिया जाता। आज कितनी आसान ज़िन्दगी है! ख़ैर! घूँघट हटा ली उन्हें सादर चरण-स्पर्श कर बैठने के लिए कहा और उनके ज़िद पर कि उनके अगली बार आने तक गोंद ख़राब ना हो जाये तथा ननद सीखे भी तो बनाना भाभी को ही होगा सदा। बनाने की विधि शुरू हुई

नट्स तलें

1. एक भारी तले वाले पैन में। बड़ा चम्मच घी गरम करें। इस काम के लिए नॉन-स्टिक पैन का इस्तेमाल न करें क्योंकि मेवे और गोंद आसानी से पैन को खरोंच सकते हैं।

2. गरम घी में ¼ कप कटे हुए बादाम और काजू डालें। उन्हें हल्का सुनहरा होने तक तलें। वैकल्पिक रूप से आप तलने से पहले नट्स को ग्राइंडर में पीस सकते हैं या पूरे नट्स को तलकर ठंडा कर लें और ब्लेंडर में दरदरा पीस लें। ये सभी तरी

3. जब मेवे हल्के सुनहरे हो जाएं, तो 2 बड़े चम्मच सूखा नारियल (वैकल्पिक) डालें और हल्का सा भूनें। आप और भी डाल सकते हैं या इसे छोड़ भी सकते हैं। सूखा नारियल कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है। ताज़ा नारियल का उपयोग न करें क्योंकि इससे शेल्फ़ लाइफ़ कम हो जाती है। खुशबू आने तक एक मिनट तक भूनें।

यदि आप भोजन के शौकीन हैं और भारतीय भोजन के प्रति नए हैं, तो मुझे यकीन है कि आप गोंद के बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक होंगे।

गोंद क्या है?


गोंद एक प्रकार का पौधा है जो खाने योग्य गोंद है, जिसका पारंपरिक भारतीय भोजन में उपयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं।


गोंद हिंदी में ‘खाद्य गोंद’ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो एक पौधे का गोंद है जो विभिन्न पेड़ों के रस से प्राप्त होता है। एशियाई खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले 2 सबसे आम खाद्य गोंद बबूल गोंद (अरबी गोंद) और ट्रैगैकैंथ गोंद हैं।

गोंद के लड्डू बनाने में बबूल/कीकर के पेड़ का सूखा हुआ रस इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल गोंद पंजीरी बनाने में भी किया जाता है।

गोंद के लड्डू का मतलब है खाने योग्य गोंद की मीठी गेंदें। इन लड्डू को बनाने के कई तरीके हैं। गोंद के लड्डू मूल रूप से उत्तर भारतीय संस्करण हैं और इन्हें ज़्यादातर गेहूं के आटे, गोंद, चीनी, सूखे अदरक, मेवे और घी से बनाया जाता है।

इसका एक अन्य प्रकार कर्नाटक के व्यंजन अंतिना उंडे है, जिसमें आटे का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि इसकी जगह बड़ी मात्रा में सूखे नारियल (खोपरा) का उपयोग किया जाता है।

डिंक लड्डू के नाम से जाना जाने वाला एक प्रकार का लड्डू महाराष्ट्रीयन भोजन में बनाया जाता है और इसमें सूखे खजूर (खारिक/खजूर पाउडर) मिलाया जाता है।

गोंद के लड्डू अक्सर प्रसव पीड़ा से उबरने वाली महिलाओं को दिए जाते हैं। हालाँकि गोंद के लड्डू सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए अच्छे होते हैं, जिनमें बच्चे और शिशु भी शामिल हैं। गोंद के लड्डू आयरन, प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर होते हैं।

कहा जाता है कि कई सप्ताह तक गोंद के लड्डू का नियमित सेवन करने से हड्डियाँ मजबूत होती हैं, प्रतिरक्षा और पाचन में सुधार होता है, जिससे पूरे शरीर में स्फूर्ति आती है।

गेहूं का आटा, गोंद और मेवे शरीर को गर्म रखने वाले तत्व हैं। इसलिए ये गठिया के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द से राहत दिला सकते हैं और न केवल बच्चों में बल्कि बड़ों में भी मौसमी सर्दी से बचाव कर सकते हैं।

आप इन लड्डुओं में खसखस, खजूर, सूखे छुहारे, तिल, मखाना आदि डालकर कई प्रकार के बदलाव कर सकते हैं।

इस कथा में मैंने केवल उन सामग्रियों का इस्तेमाल किया है जो बुनियादी हैं और जिन्हें महिलाएं प्रसव के बाद खा सकती हैं। बहुत से लोग इसमें सूखी पिसी हुई अदरक (सौंत) और सौंफ के बीज जैसी सामग्री भी मिलाते हैं।

गोंद के लड्डू कैसे बनाएं 

1. एक भारी तले वाले पैन में 1 बड़ा चम्मच घी गरम करें। इस काम के लिए नॉन-स्टिक पैन का इस्तेमाल न करें क्योंकि मेवे और गोंद आसानी से पैन को खरोंच सकते हैं।

2. गरम घी में ¼ कप कटे हुए बादाम और काजू डालें। उन्हें हल्का सुनहरा होने तक तलें। वैकल्पिक रूप से आप तलने से पहले नट्स को ग्राइंडर में पीस सकते हैं या पूरे नट्स को तलकर ठंडा कर लें और ब्लेंडर में दरदरा पीस लें। ये सभी तरीके कारगर हैं, जो आपके लिए आसान हो, वही करें।

3. जब मेवे हल्के सुनहरे हो जाएं, तो 2 बड़े चम्मच सूखा नारियल (वैकल्पिक) डालें और हल्का सा भूनें। आप और भी डाल सकते हैं या इसे छोड़ भी सकते हैं। सूखा नारियल कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है। ताज़ा नारियल का उपयोग न करें क्योंकि इससे शेल्फ़ लाइफ़ कम हो जाती है। खुशबू आने तक एक मिनट तक भूनें।

5. इन सभी को एक प्लेट में निकाल लें। अगर आप खसखस ​​का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उन्हें भी डाल दें और सुनहरा और कुरकुरा होने तक तल लें।

तलें गोंद

6. गोंद को एक प्लेट में डालें और अगर वह साफ न हो तो उसे साफ कर लें। आपको गोंद में छाल या पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े चिपके हुए मिल सकते हैं, बस उन्हें हटा दें।

7. गोंद तलने के लिए एक पैन में ¼ कप घी डालें। अगर अच्छी मात्रा में घी डाला जाए और मध्यम तेज़ आंच पर अच्छी तरह से तला जाए तो गोंद अच्छे से फूलेगा। बिना फूला हुआ गोंद पेट की समस्या पैदा कर सकता है और खाते समय दांतों से चिपक सकता है।

8. जब घी गरम हो जाए तो उसमें 1 छोटा टुकड़ा गोंद डालकर चेक करें कि वह ठीक से गरम हुआ है या नहीं। उसे अच्छे से फूलना चाहिए। फिर उसमें 1/3 कप (65 ग्राम) गोंद डालें। गोंद को घी में पूरी तरह से डूबा होना चाहिए, नहीं तो वह फूलेगा नहीं। बहुत ज़्यादा गरम घी में तलने से उसका स्वाद कड़वा हो सकता है।

9. इसे तब तक चलाते रहें जब तक कि यह अच्छी तरह से फूल न जाए। सारा घी गोंद में समा जाएगा।

गोंद सारा घी सोख लेगा। इसे कप के तले से अच्छी तरह से पीस लें या मिक्सर ग्राइंडर में पीस लें या बेलन का इस्तेमाल करें। मैं ग्राइंडर में पीसना ज़्यादा पसंद करता हूँ।

आटा तलें

11. अगर आपको लगता है कि आपका गोंद बहुत साफ नहीं है, तो पैन को टिशू से साफ करें। आपको पैन में छाल के छोटे-छोटे टुकड़े जैसे कुछ गंदे कण मिल सकते हैं। 3 बड़े चम्मच और घी डालें और गर्म करें। 1¼ कप आटा/गेहूं का आटा डालें।

12. मध्यम से धीमी आंच पर तब तक भूनें जब तक कि यह गहरा सुनहरा और खुशबूदार न हो जाए। आटे में कोई कच्चा स्वाद नहीं होना चाहिए। चखकर देखें कि यह कच्चा नहीं है और इसका स्वाद कड़वा भी नहीं है।

13. स्टोव बंद कर दें। आप इसमें पिसा हुआ गोंद भी डाल सकते हैं या फिर इसे मिक्सर में पीस सकते हैं। मैंने इसमें कुछ मेवे भी मिलाए क्योंकि मेरे बच्चों को पिसा हुआ गोंद पसंद नहीं है।

गोंद के लड्डू बनाएं

14. पैन को स्टोव से उतार लें। इसमें तले हुए मेवे, ¼ चम्मच इलायची पाउडर और पिसी हुई गोंद डालें। सभी चीजों को अच्छे से मिला लें।

15. ¾ से 1 कप पिसा हुआ गुड़ या पिसी चीनी डालें। अगर कद्दूकस किया हुआ गुड़ इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उसे बारीक़ कद्दूकस करें। ¾ कप से शुरू करें।

16. गोंद में मौजूद घी को बाकी मिश्रण के साथ अच्छी तरह मिलाने के लिए अपने हाथ या स्पैटुला से अच्छी तरह मिलाएँ। स्वाद के लिए थोड़ा गुड़ पाउडर या इलायची मिलाएँ।

17. इस अवस्था में सुनिश्चित करें कि आपका मिश्रण हल्का गरम हो। इस मिश्रण के छोटे-छोटे हिस्से अपने हाथ में लें और मिश्रण को मुट्ठी में दबाते हुए बॉल्स बनाएं। अगर आपको उन्हें बांधने में परेशानी हो रही है तो ज़रूरत पड़ने पर थोड़ा गरम घी डालें। मैंने कोई अतिरिक्त घी नहीं डाला।

गोंद के लड्डू को एयर टाइट जार में भरकर रख लें और एक महीने में इस्तेमाल कर लें। सर्दियों/ठंडे तापमान में घी जमने के कारण इनका थोड़ा सख्त हो जाना सामान्य बात है। इन्हें कुकर या स्टीमर में भाप में पका लें। लड्डू को एक छोटे कंटेनर में रखें और ढक्कन से बंद कर दें ताकि पानी कटोरे में न जाए। इस कटोरे को कुकर या स्टीमर में रैक/ट्राईवेट पर रखें। लड्डू के गर्म होने तक भाप में पकाएँ।

ननद की सहेली की माँ मुझे तो गुणवती बनाकर चली गयीं! मैं सपने संजोने लगी जब मायके जाऊँगी तो अपनों को कैसे-कैसे बताऊँगी! अनजान थी ननद-सास के वापस आने के बाद के परिणाम से। ननद के मन के लड्डू की हत्यारी मैं-

किस-दर्जा दिलशिकन थे मुहब्बत के हादिसे 

हम जिंदगी में फिर कोई अरमां न कर सके।-साहिर

Thursday 20 June 2024

धोखा : चोखा : नज़रिए का फेर

“आस्तीन का साँप कह देना कुछ ज़रूरत से ज़्यादा नहीं हो गया?”

“कार्यक्रम के दो दिन पहले बीस दिन के मेहनत पर पानी फिर जाता है…! संदेश आता है बहुत बीमार हैं। अस्पताल में हैं। दवा पानी चढ़ रहा है।अपने सहयोग के लिए दूसरे को तैयार कर लीजिए! ठीक कार्यक्रम के दूसरे दिन अन्य दूसरे कार्यक्रम में शामिल की तस्वीरों से जलाने का प्रयास किया जाता है। तस्वीरों को देखकर लगता ही नहीं कि यही व्यक्ति दो दिन पहले अस्पताल में भर्ती होगा। जितना संसाधन (प्राकृतिक और सांस्कृतिक) उपलब्ध है और बूते से बाहर अत्यधिक समय, श्रम, साधना लगाकर कोई योजना बनाया जाता है उसको नेस्तनाबूत कर देने का प्रयास कर लेना, हालाँकि मेरे रहते ऐसा कर पाना असंभव नहीं तो कठिन तो है ही।”

“नेस्तनाबूत कैसे कोई करेगा? आप कहती हैं मन संचालक को समय नहीं खाने को! ऐसा मंच संचालन तो आकस्मिक भी किसी पर आए तो कोई भी कर लेगा!”

“अत्यधिक खाने के लिए मना करते हैं, भूखे रहने के लिए तो थोड़े न कहते हैं, ह न त! काव्य-पाठ, मुशायरा में मंच संचालक प्रतिभागी को बुलाने के पहले चार पंक्ति और पाठ का बाद विदा करने में चार पंक्ति, कुछ अपनी, कुछ भानुमति के पिटारे से यानी आयोजन सत्र का आधा नहीं तो दो तिहाई समय अपने को प्रदर्शित करने में खाते रहते हैं-खाते-खाते मंच पर छाये रहने का प्रयास करते हैं…! लेकिन किसी परिसंवाद, परिचर्चा, पुस्तक पर चर्चा में समय खाने के लिए मंच संचालक को विषय का ज्ञाता, पुस्तक पढ़ा होना होगा जो आकस्मिक नहीं किया जा सकता।”

“स्वास्थ्यप्रद है अधिक ग़म खाना -कम खाना खाना। लेकिन फिर भी…, हो सकता है वो किसी अन्य के बहकावे में हो?”

“अच्छा! दूध पीता बच्चा है! फिर भी क्या! इसी से न कहे आस्तीन का साँप—नियत समझने में देरी कैसी! बिना प्रमाण कुछ नहीं कहा जाता।”

“हाँ! एक-दो बार ऐसा हो तो शक नहीं होता है। अनेक बार हो जाता है तो शक कर लेना स्वाभाविक है।”

“ऐसे धोखा करने वाले का कीमा बना देने का जी करता है। कूट-कूट कर बुकनी बना दिया जाये। भूसा भरके किसी कोने में खड़ा कर दिया जाये, बतौर उदाहरण!”

“कीमा कि चोखा? चोखा खा के धोखा मत करिह कहा जाता है! बिहारी चोखा बनाने में माहिर भी होते हैं। खिचड़ी के संग चोखा, लिट्टी के संग चोखा।”

“बिहारियों का क्या हुनर चोखा बनाने में। आलू उबाल लो टमाटर, बैंगन भून लो। जी भर मसल-मसल कर उसमें कच्चा प्याज, हरी मिर्च-लहसुन (बैंगन के पेट में घुसाकर पकाया सोंधा-सोंधा स्वाद लगता है) थोड़ा सा सरसों का तेल स्वादानुसार नमक मिला लो।”

“छौंक-बघार कर सभी चीज को भून-भानकर भी तो चोखा बनाया जाता है।”

“बिलकुल! लेकिन जो जीभ को रुचता है वह पेट को नहीं जँचता है। रूचना, पचना, जुड़ना-एक साथ नहीं होता है! जानते हो मेरे एक परिचित हैं। बैंगन की सब्ज़ी को चलाये छोलनी से अगर चावल या अन्य दूसरी सब्जी चला दिया जाये तो वे उस चावल या अन्य दूसरी सब्जी नहीं खा सकते हैं…! बैंगन की सब्जी तो नहीं ही खाते हैं। किसी भी सब्जी में टमाटर पड़ जाये तो सब्जी नहीं खाते हैं। आज के दौर में किसी होटल की किसी तरह की सब्जी उनके घर के लोगों का साथ नहीं दे सकते हैं। शायद स्वाद अच्छे नहीं लगते हों या स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से…! लेकिन-लेकिन सिर्फ बैंगन का चोखा, बैंगन-आलू-टमाटर का मिश्रित चोखा, टमाटर की मीठी चटनी बड़े शौक़ से चाट-चाट /चाट-पोंछकर खाते हैं…! 

गुड़ खाए गुलगुले से परहेज करें!

गुलगुले की सामग्री

2 1/2 कप आटा

1 1/4 कप गुड़1”

1 बड़ा चम्मच सौंफ

3 बड़ा चम्मच घी 

स्वादानुसार नमक

आधा छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

तलने के लिए घी

गुलगुले बनाने की वि​धि

1.गर्म पानी में गुड़ डाले और उसे पूरी तरह घुल तक हिलाएं।

2.एक दूसरे बाउल में आटा, घी, नमक और बेकिंग पाउडर डालें।

3.तैयार किए गए मिश्रण में अब गुड़ वाला पानी डालें और एक बैटर तैयार कर लें।4.इसमें सौंफ डालें।

5.एक पैन में तेल गर्म करें और एक बड़े चम्मच से बराबर मात्रा में बैटर डालें, आंच को तेज रखें।

6.आंच को धीमा कर दें और गुलगुले को मीडियम आंच पर पकाएं।

7.छलनी वाले चम्मच से जले हुए टुकड़े निकाल लें।

8.फिर से आंच तेज करें और इसमें बैटर डालें इससे सभी गुलगले एक-दूसरे चिपकेंगे नहीं।

9.आंच धीमी करें और पकाएं, गुलगुलों को एक-दो बार पलटें ताकि वे ब्राउन हो जाए।

10.बचें हुए बैटर से इसी तरह गुलगुले बना लें।“

“इसे क्या कहेंगी? विरोध में कशीदे कढ़े जाते हैं। लम्बे-लम्बे लेख लिखे जाते हैं और ऐसा क्या मिलने वाला होता है कि विरोध का स्वर फेंके गये आकर्षक दाने चुगने लगता है?”

“खुलकर स्पष्ट कहो तो बात समझकर उचित उत्तर देने का प्रयास कर सकूँ!”

“बाबा गुरु लघुकथा दिवस सितम्बर में मनाने की बात करते थे और उनके सामने उनके कहे को मानने वाले जून में ही अलग राग में शामिल हो जा रहे हैं?”

“चलो! छल-धोखा-चोखा पर पहले ही बहुत बात हो चुकी है आगे मटन-करी पर बात करते हैं!

चंपारण मटन करी की सामग्री

 एक किलो मीट

पौन किलो प्याज,

कटा हुआ2 लहसुन

छ बड़ा चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट

एक बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

एक बड़ा चम्मच हल्दी पाउडर

दो बड़ा चम्मच देगी मिर्च

दो बड़ा चम्मच कश्मीरी मिर्च

दो बड़ा चम्मच नींबू का रस150 gms दही

आधा कप सरसों का तेल

एक छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

एक छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर10 लौंग8 काली मिर्च2 इंच की दालचीनी छड़ें1 तेज पत्ता4 छोटा चम्मच जीरा1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, साना हुआ गेहूँ का आटा (बर्तन को सील करने के लिए) स्वादानुसार नमक

चंपारण मटन करी बनाने की वि​धि

1.तीन या चौथाई कप सरसों के तेल और बाकी बची सामग्री के साथ मिलाएं मटन को मैरिनेट करें. इसे 20 मिनट के लिए एक तरफ रख दें।

2.एक बड़े मिट्टी के बर्तन या एक भारी तली वाला सॉस पैन लें, बचा हुआ तेल और मैरीनेट किया हुआ मटन डालें। ढक्कन रखें, और किनारों को आटे से सील करें।

3.धीमी आंच पर पकाएं। फिर धीरे-धीरे आंच को मध्यम तक बढ़ाएं और मटन को 45-50 मिनट तक पकने दें।

4.सील को 45 मिनट के बाद बाहर निकालें, देखें कि तेल ऊपर आ गया है या नहीं।

5.धनिया पत्ती से गार्निश करें और गर्मागर्म सर्व करें।

और कम्बल ओढ़ के घी पीने वालों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं…!”

“लगे हाथ बिहार में बनने वाले ‘मीट का ताश’ को बनाने की भी सामग्री और विधा बता देतीं।”

“ज़िन्दगी बस आज भर नहीं न है!”

Monday 17 June 2024

भरवा करेला

 करैला ज़्यादा कडुवा या स्त्रियों पर लगी पाबन्दी

कारण पर इल्ज़ाम लगाया जाता है कुंदन को बेकार ही तपाया जाता है परेशानी का कोई आकार नहीं होता.. यानी परेशानी छोटी/बड़ी/मंझली/सझली नहीं होती। परेशानी सिर्फ और सिर्फ परेशानी होती है! 

भतीजे के बारात में भतीजी को नाचते (डान्स करते) देख ; मैं सोच रही थी, समय कितना बदल गया या भैया कितने बदल गए…! मेरी शादी के पहले मेरी कोई सहेली ; हमारे घर मिलने आ जाती थी तो मैं उसके जाते समय, दरवाजे तक छोड़ने नहीं जा पाती थी क्योंकि भैया की नजरें टेढ़ी हो जाती थी….। अभी कुछ साल पहले तक उनका किसी लड़की/औरत का बरात में जाना पसन्द नहीं था क्यों कि लड़की वालों ने अगर इंतजाम बढ़िया नहीं किया हो तो फजीहत हो जायेगी…। बरात में हुड़दंग होता ही है।

 एक तो रूढ़िवादिता का युग और दूसरे भैया की सोच : एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा : करेला से याद आया, जब मेरी माँ-पापा की शादी हुई थी तो माँ को करेला बिलकुल ही पसन्द नहीं था और मेरे पापा को करेला बेहद पसन्द था। मेरी माँ का करेला खाना शुरू करना स्त्री विमर्श का मुद्दा हो सकता था? काश! हम तब स्त्री विमर्श समझने का मादा रखते। मेरा बेटा जब छोटा था तब उसे भी करेला खाना पसंद नहीं था। अरे! उसे तो भिंडी छोड़कर कुछ भी खाना पसंद नहीं था! संयुक्त परिवार था, मीठी से ज़्यादा कड़वी बातें पचानी पड़ती थी! मेरा बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो भरवा करेला खाने लगा…

 सामग्री : मध्यम आकार का गोल-मटोल (गुलाबी शिशु सा जिसे चिकुटी काटने को जी चाहे) करेला -४ बड़ा प्याज -२ बारीक छोटे-छोटे काटा हुआ लहसुन अदरक पीसा हुआ -२ छोटे चम्मच धनिया, काली मिर्च, जीरा बारीक पीसा हुआ -दो छोटा चम्मच हल्दी पाउडर -एक चौथाई छोटी चम्मच धनियाँ पाउडर -एकछोटी चम्मच सोंफ पाउडर — 2 छोटी चम्मच अमचूर पाउडर — 1 छोटी चम्मच (लाल मिर्च पाउडर -आधा छोटी चम्मच या हरी मिर्च एक-दो -स्वादानुसार : मेरे घर में तीखा स्वाद में नहीं पसन्द तो मैं प्रयोग नहीं करती हूँ!) नमक -स्वादानुसार तलने-भूनने के लिए सरसों का तेल

करेलों को अच्छी तरह धो लीजिये। चाकू की सहायता से हल्का खुरच कर छील लीजिये तब करेले में कुछ ज़्यादा मात्रा में नमक डालकर आधा घण्टे के लिये रख दीजिये। आधा घण्टे के बाद पुनः करेले को अच्छे से धोकर उबाल लेना है। थोड़ा ठंढा होने पर करेले को एक तरफ से काटें लेकिन उसका दूसरा साइड जुड़ा रहे। अब चाकू की सहायता से करेले के अन्दर से बीज और गूदा प्लेट में निकाल लें। बीज को हटा देना है (करेले का बीज हो, नीबू का बीज हो पेट के लिए हानिकारक होता है) गूदा को भूनते मसाले में मिला लेना है।

 तेज गरम कढ़ाई में तलने लायक तेल डाल कर गरम करिये और उसने बीज-गूदा निकाला करेला तलकर निकाल लेना है।बचे गरम तेल में हींग (मुझे नहीं पचता) और जीरा डालिये, जीरा भुनने के बाद ,हल्दी पाउडर, धनियाँ पाउडर सोंफ पाउडर इत्यादि संग सभी सामग्री डालिये. 2 - 3 बार चमचे से चलाकर भूनिये, इस मसाले में करेले से निकला हुआ गूदा, अमचूर पाउडर (चाहें तो अमचूर के बदले नींबू का रस प्रयोग किया जा सकता है। मुझे खटापन से परहेज़ है तो मैं नीबू का भी प्रयोग कम करती हूँ) नमक डाल दीजिये। मसाले को चमचे से चलाकर 6-7 मिनिट तक भूनिये। यह भुना हुआ मसाला करेलों में भरने के लिये तैयार है। तले करेले में भरिए और ख़ुद स्वाद लीजिए पहले : अचानक की परिस्थिति में ना मिले तो : खिलखिलाकर रहिए! —चूँकि कुछ तलने के लिए एक बार तेल को गरम कर लिया जाये तो उसे पुनः दोबारा अन्य कुछ तलने के लिए के प्रयोग करना वर्जित है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। यूँ भी करेला तले वाले तेल में दोबारा करेला भी नहीं तला जा सकता है। 

सन् 1980 की बात है : बात का रुख़ नहीं बदलने के लिए मुख्य कहानी…

हमारे घर में दूध देने वाले की बेटी की शादी थी। भाभी का मन था जब बरात लगेगा तो हम दूल्हे को देख आयेंगे । पड़ोस की चाची, उनकी बेटी कुमुद, मैं और भाभी दिनभर तैयारी में समय गुजारे। शाम में तैयार होने जा ही रहे थे कि भैया आ गए ; भैया अकेले नौकरी पर रक्सौल रहते थे , माँ की मृत्यु हो जाने से भाभी मेरे साथ पापा की नौकरी पर सीवान में रहती थीं। हमारी तैयारी दूल्हे को देखने की नष्ट होती नजर आई लेकिन मेरी भी जिद हो गई कि हम कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं , हम दूल्हे को देखने जाएंगे ही तो जाएंगे। सही होने का एहसास विरोधी तो बना दिया लेकिन मुझे मुखर कौन बनाता। शाम में पड़ोस की चाची हमारे घर थर्मामीटर मांगने आईं कि कुमुद को बुख़ार हो गया है ; कुमुद को देखने के लिए मैं और भाभी चाची के घर गए। बारात से दूल्हे को देख कर लौटते समय जैसे मुड़े भैया सामने खड़े थे और हमारी योजना पकड़ी गई कि कुमुद को झूठा बुखार था क्यों कि कुमुद हमारे साथ थी ।हमें जो डांट पड़ी उसका बयान क्या करना…! लेकिन भैया को समय के साथ बदलते देख अच्छा लगा.. : सुखद! –बस! समय समझ-समझ का फेर होता है... कर्म, श्रम, शर्म पर आधारित! करेले अपने कड़वेपन के कारण कुछ लोगों को पसन्द नहीं आते, लेकिन भरवा करेले बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। मेरे बड़े भैया हमलोगों के लिये हमेशा हमारे पिता के समान रहे! समाज मजबूर करता रहा कि स्त्रियों पर पाबन्दी लगायी जाये।

Thursday 13 June 2024

खाजा — दूरदर्शिता

 6×1=6, 6×2=12, 6×4=24 / १२ : ०६ : २४ —एक दर्जन : आधा दर्जन : दो दर्जन


 “आप नहीं न मानीं! सभी के मना करने के बाद भी आप अपनी बात कह ही डालीं! क्या फ़ायदा हुआ? कोई कुछ भी पहने उससे आपको क्या? क्या वो आपकी बातों का मान रखीं?”
 “चलो ठीक है! कोई कुछ भी पहने! लेकिन वो कोई अपरिचित न…! वो कोई अपने परिचित में हो तो? दायित्व पहले टोक देने का होगा ही! परिणाम भुगतने के बाद अफ़सोस नहीं होता कि टोकना चाहिए था! वैसे भी वो टोकना ख़ुद के लिए था : मेरी माँ कहा करती थीं ‘भला संग रहिए : खहिये बीड़ा पान, बुरा संग रहिए : कटाहिये दुनू कान’ पिछली शाम पथप्रदर्शक/गाइड(guide) बताया था कि मन्दिर में जाने के लिए पोशाक सही होनी चाहिए। विदेशी धरती का मन्दिर था! ‘जैसा देश, वैसा वेश।’ कोई बात हो जाती तो क्या हम किनारा कर सकते थे! पहचानने से इंकार किया जा सकता था क्या…! दूसरों की उठती नज़रों के सामने ख़ुद की नज़रों को झुकानी क्यों…!” 
“मन्दिर जाना और धूप स्नान का अन्तर नहीं पता हो किसी को तो?”
  “कटी पतंग का हश्र तो पता होगा। कैसे अन्य राज्य के गाँव और गोवा में का भेद ना पता हो!” 
“ऐसे कुछ लोग दूसरों को टोपी पहनाने में माहिर होते हैं…”
“जवाहरलाल वाली टोपी न! टोपी की चर्चा क्या चली मुझे टोपी जैसी मिठाई की चाह जग गई” 
“मिठाई और टोपी का क्या सम्बन्ध?” 
“एक किवदंती के अनुसार तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचार्य शीलभद्र ने सिलाव को खाजा (दूकान में खाजा सुनते ही जी भर खा जाओ-खाते जाओ बिना रोकड़ा दिए) नगरी के रूप में विकसित किया था। इस स्थल पर ही भगवान बुद्ध, महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन और प्राचार्य शीलभद्र की प्रथम भेंट हुई थी। उस समय शीलभद्र ने भगवान बुद्ध का स्वागत खाजा खिलाकर किया था। तब भगवान बुद्ध ने पुछा था यह क्या है ? इसके जबाव में शीलभद्र ने कहा था कि खा-जा, भगवान बुद्ध ने खाने के बाद काफी प्रशंसा की। उसी समय से इस मिठाई का नाम खाजा प्रचलित हो गया। देश के अलावे विदेशों में भी हुआ था खाजे का प्रदर्शन सिलाव मे बनाये गये खाजा का प्रदर्शन सबसे पहले वर्ष 1986 में अपना महोत्सव नई दिल्ली में हुआ था। कालीसाह के वंशज संजय कुमार को वर्ष 1987 मे मारीशस जाने का मौका मिला। मारीशस में आयोजित सांग महोत्सव में मिठाई में खाजा को सर्वश्रेष्ठ मिठाई का दर्जा मिला। 1990 में दूरदर्शन के लोकप्रिय सांस्कृतिक सीरियल सुरभि, वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व व्यापार मेला नई दिल्ली के अलावे अन्य कई मौके पर खाजे ने धूम मचाई।
जिसको बनाने के लिए सामग्री :- 200 ग्राम मैदा, 100 ग्राम चीनी, 50 ग्राम पिसी हुई चीनी, 2 हरी इलायची आवश्यकतानुसार घी (मोयन के लिए) आवश्यकतानुसार घी तलने के लिए आवश्यकतानुसार पानी
 पकाने की विधि (कुकिंग निर्देश) 1 सबसे पहले मैदा में मोयन का घी इतना डालें कि मुठ्ठी बन जाए। फिर आवश्यकतानुसार गुनगुने पानी से गूंथ लें। 15 मिनट तक ढक कर रख दें।
2. 1 बड़े चम्मच मैदा में थोड़ा सा पिघला घी मिलाकर पतला सा घोल बना लें।
3. अब गूंथे हुए मैदा को एक बार अच्छे से मसलकर बड़ी सी एकदम पतली-लम्बी रोटी बनाकर मैदा का घोल पूरी रोटी पर फैला दें।
4. अब रोटी को मोड़ें (रोल/फोल्ड) करें और एक आकार के कट करें 
5. चीनी में 1/2 कप पानी और इलायची डालकर 7-8 मिनट उबाल लें। जब चिपचिपी चाशनी बन जाए तब गैस बन्द करें। 
6. अब तेल गरम करें। एक एक लोई को हल्का सा बेलें और मध्यम आंच पर सुनहरा तल लें।
7. अब कुछ खाजा चाशनी में लपेट-लपेट कर 2-3 मिनट बाद निकाल लें और कुछ पिसी हुई चीनी में लपेट कर निकाल लें।
8. बहुत ही स्वादिष्ट खाजा मिठाई तैयार है।
“आपकी इन्हीं अदाओं पर मर मिटने का जी करता है! आपसे मोह बढ़ता जाता है! सुनिए न मुझे आपसे और कुछ पूछना है…!”
“हाँ! हाँ! सुन रहे हैं! बिहार की एक परतदार, त्यौहारी मिठाई है सिलाव का खाजा! 
जिसकी सामग्री : 4 कप मैदा और अतिरिक्त आटा छिड़कने के लिए 
2 बड़े चम्मच घी और 2 बड़े चम्मच पिघला हुआ घी
 2 चम्मच इलायची पाउडर
 2 चम्मच काली मिर्च पाउडर
 1 चम्मच दालचीनी पाउडर (वैकल्पिक) 
तलने के लिए घी
 ठंडा पानी
चीनी चाशनी (सिरप) के लिए 2 कप चीनी
1 कप पानी
बनाने की विधि : आटा और पिघला हुआ घी डालें और अच्छी तरह मिलाएँ। चिकना लेकिन सख्त आटा गूंथने के लिए ठंडा पानी डालें। आटे को ढककर कम से कम 15 से 20 मिनिट के लिये रख दीजिये. आटे का पेस्ट बनाने के लिए 2 बड़े चम्मच घी और 2 बड़े चम्मच मैदा मिलाकर पेस्ट बना लीजिए. आटे को आठ बराबर भागों में बाँट लें।
एक गेंद लें और इसे एक आयताकार आकार की शीट में रोल करें। इसी तरह एक और बेल लें. - तैयार आटे के पेस्ट को एक शीट पर फैलाएं और उसके ऊपर दूसरी शीट रखें. दूसरी शीट के ऊपर आटे का पेस्ट फैलाएं और दोनों शीटों को एक साथ कसकर एक लट्ठे की तरह रोल करें। इस आटे की लोई को 1-1 इंच के बराबर आकार के टुकड़ों में काट लीजिये. प्रत्येक टुकड़े को लंबवत रोल करें। एक गहरे फ्राइंग पैन में पर्याप्त तेल गरम करें और उन्हें बैचों में मध्यम आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा भूरा होने तक तलें। इन्हें पूरी तरह ठंडा कर लें. 
- इसी बीच एक सॉस पैन में 1 कप पानी में 2 कप चीनी डालकर चाशनी तैयार कर लें. उबाल आने दें और चिपचिपा होने तक पकाएं। - इसमें इलायची पाउडर, काली मिर्च और दालचीनी पाउडर मिलाएं. (मसालों का यह मिश्रण वैकल्पिक है।) एक बड़ी प्लेट में थोड़ा सा मक्खन या घी लगाकर चिकना कर लीजिये. तले हुए खाजा को गर्म होने पर ही तैयार चाशनी में डुबोएं और तुरंत एक चिकनी प्लेट में निकाल लें। तुरंत परोसें या ज़रूरत पड़ने तक किसी एयरटाइट डिब्बे में रखें!”
 “ठीक है! ठीक है! मिठाई बनेगी भी और एयरटाइट डिब्बे में रखी भी जायेगी आगे एक जिज्ञासा है मन में! उसका निदान करें! क्या आपको ऐसी पोशाक पहनने का मन नहीं करता है?”
“पहले का ज़माना था कि बदलते ऋतु-मौसम की तरह पोशाक बदलते थे। जैसे कि कुछ-कुछ दिनों-महीनों के लिए एक पोशाक अनारकली, बैलवॉटम, चूड़ीदार, खालता सलवार, स्लैक्स, सरारा-गरारा इत्यादि चलते थे। मैंने भी जलवा बिखेरे हैं! लेकिन तन उघाड़ू पोशाक कभी पसन्द नहीं आये!

Monday 3 June 2024

दूध पिट्ठी : कीमियागिरी


“तहरआ रफू करे आवेला काआ?” सास के पूछे जाने का जवाब चार दिन की आई बहू दे ही पाती कि उसके पहले

“अरे! अइसन काअ रफू करे के हो गइल?” ससुर की सीली आवाज निकली।
“मेरा पतलून! छोटा सा कट लग गया है।” बड़ा देवर भी आजमाइश करने की पंक्ति में अपनी माँ के संग खड़ा था।
“जी लाइए पतलून प्रयास करती हूँ रफ़ू कर देने की।” बहू के लिए परीक्षा की घड़ी, उसके घबराहट का पसीना रीढ़ पर, पिंडली में स्केटिंग कर रहा था।
“अरे वाह! बहुत ही सुन्दर। पता ही नहीं चल रहा है कि पतलून पर कट भी था। इतनी सुगढ़ता!” लेकिन ससुर जी की वाणी का असर सासु जी पर नहीं दिखलायी पड़ रहा था। वे एक साड़ी बहू को थमाते हुए बोलीं कि “एकेरा के सुधार त जानीं (इसे सुधार दो तो जानें!)” चुनौती इस कदर दीं कि बहू की हार सुनिश्चित!
“ई त ज़ुलूम बा! एकेरा त कोई महारथ भी ना सुधार सके!” अब ससुर जी तपना शुरू कर दिए थे।
“ईहे त इनकर परीक्षा के घड़ी बा! बड़ बहू के राउर पसंद पिट्ठी गढ़े में धीरज के ज़रूरत पड़ी नु?”
“रफ़ू और अउरी पिट्ठी के काअ कनेक्शन? ई हमरा त बुझाते नइखे!”
बहू के सास-ससुर दूध पीठी की बात कर रहे थे
इस मीठी, मलाईदार मिठाई का एक चम्मच आपको पुरानी यादों की गलियों में ले जाएगा, आपके लापरवाह बचपन के दिनों में। स्वतंत्रता-पूर्व काल में दूध पिठी एक लोकप्रिय मिठाई थी। माताओं के लिए अपने विस्तारित परिवारों को खिलाने के लिए बड़ी मात्रा में दूध आधारित व्यंजन पकाना आम बात थी, जहाँ अकेले बच्चे आसानी से पूरी फुटबॉल टीम पर भारी पड़ सकते थे।
समय के साथ, इलायची और बादाम जैसे स्वादों को शामिल करके इस व्यंजन में सुधार किया गया, लेकिन आज भी, इसका सार छोटे हाथ से बने आटे के गोले ही हैं, जिन्हें बाद में गाढ़े दूध /दूध के मिश्रण में पकाया जाता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि दूध पीठी, दाल पीठा का एक मीठा संस्करण है, जो मॉरीशस का एक प्रसिद्ध मुख्य व्यंजन है, जहाँ आटे के आकार को काटा जाता है और दाल और मसालों की गाढ़ी ग्रेवी में भिगोया जाता है। दोनों इस नीरस सर्दी के मौसम में पुरानी यादों की एक चुटकी के साथ आरामदायक भोजन विकल्प प्रदान करते हैं। लेकिन बिहार की दूध पीठी में महीन गढ़ने की कुशलता शामिल है...
सामग्री :-

1 कप मैदा

5-6 बड़े चम्मच ठंडा पानी

(पसन्द होने पर : 1/4 कप साबूदाना)

1/3 कप कैस्टर शुगर

4 कप फुल क्रीम दूध

5 इलायची की फली

1/4 कप सूखा नारियल

2 बड़े चम्मच किशमिश, भीगी हुई

2 बड़े चम्मच बादाम के टुकड़े

1 चम्मच वेनिला अर्क

एक मिक्सिंग बाउल में आटा छान लें.. धीरे-धीरे ठंडा पानी मिलाएं और मुलायम गूँथना है।

आटे के मटर के आकार के हिस्से को चुटकी में लें और उन्हें उंगलियों के बीच रोल करके छोटी बारीक अंडाकार आकार की बना लें।

आकार को एक साथ चिपकने से रोकने के लिए हल्के आटे या ग्रीसप्रूफ सतह पर रखें।

एक बड़े सॉस पैन में, दूध को धीमी आंच पर तब तक उबालें जब तक कि यह अपनी मूल मात्रा के 2/3 तक कम न हो जाए।

गर्म तरल मिश्रण को फैलने से रोकने का ध्यान रखते हुए धीरे-धीरे आटे की गोलियां और साबूदाना (अगर पसंद हो) डालें।

किशमिश, बादाम के टुकड़े, सूखा नारियल और वेनिला अर्क डालने से पहले लगभग 15 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं।

मिश्रण के गाढ़ा होने तक 5 मिनट और पकाएं। चम्मच से कटोरे में डालें और ऊपर से अतिरिक्त नारियल डालें। अब आगे बढ़ाते हुए परोसना है।

“पीठी गढ़े अउरी रफ़ू इ दुनु के अपने आप में कवनों कनेक्शन नइखे! लेकिन दुनु काम में जवन धीरज चाहीं उ ई साड़ी सुधर जाए के बाद तय हो जाई!”
“ई ज़बरदस्ती के ही ज़िद बा तहार मालिकाइन!”
“चलीं राउवा ई बुझात बा त इहे सही!”
शादी में एक रस्म होती है इमली घोटाना लेकिन इमली का प्रयोग नहीं होता है। आम के पल्लव का प्रयोग होता है। उस रस्म में मामा माँ को साड़ी देते हैं। रस्म में मिली साड़ी को सासु जी ऐसी जगह रख देती हैं जहाँ चूहा का भोजन बन जाती है साड़ी। नयी साड़ी और भाई का मान। शुभ-अशुभ मानने की विवशता अलग से परेशान किए हुए। ना रखने योग्य रह गयी थी और ना फेकना बन रहा था सासु जी से। बहू को हराने का एक मौक़ा अलग से हाथ लग गया था! बिहार की सास भी महारथ हासिल किए होती हैं।
बहू के लिए ग़नीमत यह था कि पूरी साड़ी में एक लकीर में छेद मिला था। बहू आँचल के विपरीत हिस्से से साड़ी का टुकड़ा काट लेती है और सारे छेद पर बेहद खूबसूरत से पैच वर्क कर देती है।
तैयार साड़ी देखकर ससुर के चेहरे पर अपने जीत की ख़ुशी दिखलायी पड़ती है तो सास के चेहरे पर हार की रंगत देखने की उम्मीद भी नहीं थी, जो देखकर सीली आवाज़ तपी आवाज़ में बदल जाती है!
“जिओ बहुरिया जिओ! कइसन लागल हे मलकाइन! कइसन!”
“हम त ई जाँचत रहनी हा कि बहुरिया केतना रिश्ता रफ़ू कईके चले में निपुण बाड़ी! रउवा भी त इ कहावत सुनले होखेम “आवते बहुरिया जनमते लईकवा जवन लौ लगावे तवन लौ लागे!”
कालांतर में बहू दूध पीठी के लिये जीरे के समान आटे की पीठी गढ़ती है और दूध पीठी बनाती है तो सभी बेहद खुश होते हैं और सास भी खुले दिल से प्रशंसा करती है। इसी बढ़ते क्रम की ख़ुशी में एक दिन बहू कहती है “चलिए आप मेरी कुशलता ही जाँच रही थीं तो एक और मीठा व्यंजन बनाने का प्रयास करती हूँ! वो बनाती है:-
चावल की बुजबुजी
चावल के आटे का घोल (ना बहुत गाढ़ा और ना बहुत पतला)
चूल्हा के मध्यम आँच पर मिट्टी के गरम बर्तन में छोटी रोटी के आकार का पकाकर (एकतरफा सेंका जाता है रोटी में चलनी सा बड़ा-बड़ा छेद-छेद बन जाता है) 
 गाढ़े दूध में चीनी इलायची मिलाकर रखा रहता है, उसी में एक-एक कर डालते जाना है.. 
 रफ़ूगिरी से सारे रिश्ते निभाते-निभाते ननद की शादी तय हो जाती है! शादी का सारा खर्च बड़े बेटे पर डालकर पितृऋण उतारने का मौक़ा दिया जाता है… एक ही स्टेशन पर खड़ी रह जाने वाली गाड़ी जीवन नहीं होता है..।

काली घटा

“ क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा! कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनो...