सैलाब ,प्रलय ,प्रकृति आपदा या दैविक प्रकोप जो रहा हो ....
मैं मूक थी ....
मेरी लेखनी को शब्द नहीं मिल रहे थे ....
कल ये प्रसाद मेरे हांथों में आया ....
मैं स्तब्ध हूँ ....
इस प्रसाद के लोभ में
आकांक्षा के प्रलोभन में
कितनों की बलि चढ़ गई ....
मैं अब स्तब्ध हूँ
इस चाँदी के सिक्के को देख करजो भोले-भण्डारी
धतूर कनेल भांग से खुश हो जाते हैं
उनके प्रसाद में ..............
बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteदुखद हादसा
ReplyDeleteसरकार द्वारा
विगत वर्षों
प्रकृति से
छेड़-छाड़
को भुगता
जन-मानस
सरकार का
क्या गया
खोया तो
अपनों को
अपने ही ने
कहते हैं अब
स्वर्ग यहीं
और नर्क भी
यहीं.....
यही तो है
नारकीय यातना
जो भोगा
अपनों नें
सादर
sach kaha didi....vaise bhi bhagwan tho bass bhakti say hi khush ho jate hain.....
ReplyDeleteईश्वर भक्ति-भाव ही चाहते हैं ...वही तो आज लुप्त हो गया है ...!!क्या कहा जाये ...!!
ReplyDeleteदुर्भाग्य की प्रबलता सौभाग्य पर कई बार भारी पड़ती है .....
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteउनके लिए भावनाओं से बढ़कर कुछ नहीं ..... जो अब हमारे विचारों में ही नहीं हैं
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-06-2013) के चर्चा मंच -1285 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल रविवार (23 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteक्या यह त्रासदी भोलानाथ की यह संकेत है कि"पापियों अब कभी यहाँ मत आना मैं यह स्थान छोड़कर जा रहा हूँ "?
ReplyDeleteईश्वर तो मन में हैं. मन के एकांत की शान्ति में सबसे गहरा संपर्क बनता है उनके साथ. बहुत विचारणीय शब्द.
ReplyDeleteहम सभी स्तब्ध हैं , मौसम खुलने के बाद तस्वीरें और जिन्दा लौटे लोगों के अनुभवों ने रोंगटे खड़े कर दिए हैं !!
ReplyDeleteविचारणीय .....!!!
ReplyDeleteआकांक्षा का प्रलोभन कभी काल के गाल में भी ले जाता है.
ReplyDeleteह्र्दयविदारक. सोचने पर विवश करती प्रस्तुति.
मर्मस्पर्शी चिंतन ....
ReplyDeleteढ़ोंगी-पाखंडी हिंदूवाद ही जिम्मेदार है इस त्रासदी के लिए। जैसी करनी वैसी भरनी जो मानवता को लाट मार कर पत्थर पूजने गए थे उनको प्रकृति ने सही लात मारी है।
ReplyDeletehttp://vijaimathur.blogspot.in/2013/06/blog-post_23.html
दुखभरी घटना, स्तब्ध सभी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.सच कहा
ReplyDeleteऐसे में खुश कोई कैसे रह सकता है ...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी प्रस्तुति ..
gahan chintan .....shayad dono dukhi hi honge ....
ReplyDeleteसोचने पर विवश करती ......मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
ReplyDeleteआस्था पे भी दिखावा हावी होता जा रहा है ...
ReplyDeleteसटीक और मार्मिक रचना |
ReplyDeleteहम सभी स्तब्ध हैं, और प्रकृति का प्रलय रूप देखकर व्याकुल भी ,.... अगर अब भी नहीं जागे हम अपनी प्रकृति की रक्षा के लिए तो शायद ऐसा निरंतर होगा।
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