एक बार .... एक अदालत में तीन खूनी पकड़ कर लाये गये .... उनमें से एक को बरी कर दिया गया .... दूसरे को पाँच साल की सज़ा मिली .... तीसरे को फांसी की सज़ा मिली ....
जिसे बरी किया गया ,वो मकान बनाने वाला एक मजदूर था .... ,छत पर काम करते वक़्त एक बड़ा पत्थर उसके हांथ से अचानक छुट कर गिर गया और वो पत्थर नीचे चलते एक राहगीर के सिर पर लगा और उससे उस राहगीर की मृत्यु हो गई .... हत्या तो हुई लेकिन मजदूर ने वो जान-बुझ कर पत्थर नहीं फेंका था उसकी नियत गलत नहीं थी इसलिए उसे बरी कर दिया गया ....
दूसरा मुजरिम एक किसान था .... उसके खेत में लगे फसल को एक चोर काट रहा था ,उस चोर को किसान ने ऐसी लाठी मारी कि चोर मर गया .... चोरी गलत काम है ,किसान का नुकसान भी हो रहा था .... लेकिन ऐसा अपराध नहीं था कि उसकी हत्या कर दी जाये .... इस लिए उस मुजरिम किसान को 5 साल की सज़ा हुई ....
तीसरा मुजरिम एक मशहूर डाकू था .... एक धनी इंसान के घर में रात को डकैती के नियत से गया और धनी पुरुष की हत्या कर के घर का सारा धन चुरा लिया .... उस डकैत का अपराध जघन्य था ,इसलिए उसे फांसी की सज़ा दी गई ....
तीनों ही अपराधी ने खून किया था .... जुर्म का बाहरी रूप एक सा था .... सतही सोच के आधार पर सज़ा एक ही होनी चाहिए थी .... ??
ऊपर के न्यायलय में भी ऐसा ही न्याय होता होगा ना .... ??
हम सभी को भी अपने अन्तर्मन के सत्यनिष्ठ जज के फैसले के अनुसार न्याय का साथ देना चाहिए .... ??
अन्तर्मन कोई काट -छांट नहीं करता .... लोभ - लालच ,भय - स्वार्थ उसे प्रभावित नहीं करता .... अन्तर्मन तो बस विश्वास पर निर्णय (जजमेंट) देता है ....
i guesss saja sahi mili
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
न्याय तो यही कहता है।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteन्याय तो होना चाहिए , उत्तराखंड की त्रासदी में देश की दुर्दशा ,चैनलों पर नेताओं की चीख पुकार , कभी कभी शक होता है , क्या यह इश्वर का न्याय है :(
ReplyDeleteसज़ा में अंतर होना ही चाहिये !
ReplyDeleteसही है...
ReplyDeleteन्यायसंगत बात कहती पोस्ट....
ReplyDeleteसच कहा है आपने .. अंतरमन गलत नहीं कहता ... सोच के फैंसला लेना चाहिए ...
ReplyDeleteअपने अंतर्मन की आवाज़ सुनें, वह कभी गलत नहीं होती...
ReplyDeleteसच्चा न्याय... :)
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कहानी .सच ही कहा चाची जी आपने व्यक्ति का अन्तर्मन सच्चा न्याय करता है ।
ReplyDeletebaat to aapne bahut sahi khai hai
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने.." हम सभी को भी अपने अन्तर्मन के सत्यनिष्ठ जज के
ReplyDeleteफैसले के अनुसार न्याय का साथ
देना चाहिए".. क्योंकि हमारे अन्तर्मन का फैसला कभी गलत नहीं हो सकता है।..
बात तो बिलकुल सही है विभा मौसी, गुनाहों से ज्यादा उनके परिपेक्ष्य महत्वपूर्ण हैं।
ReplyDeleteलेकिन अफ़सोस कि हमारी न्याय प्रणाली बस सबूतों के आधार पर चलती है, और परिपेक्ष्य कुछ का कुछ प्रस्तुत कर दिया जाता है ..जो ज्यादा अमीर है, काबिल वकील रख सकता है, उसे परिपेक्ष्य बदलने का पूरा सुयोजन मिलता है ...
Vibhaji,
ReplyDeleteYou have presented story in a very nice manner,we all should listen to inner voice.
Please visit my blog"Unwarat.com" & give your comments.
Vinnie
aaj is soch ki jarooratha.bat saheekahi
ReplyDelete