Sunday, 9 March 2014

हाइकु {5 / 7 / 5 }


=======
1

धूल की होली 
बवंडर बनाती 
हवा खेलती ।

=======
2

नीड़ पक्षी का 
दवानल जलाती 
हवा लगाती । 

=======
3

प्रेम की पाती
पत्तों पर लिखी थी 
हवा ले उडी ।

=======
4

चिंतन बाती 
रंगों से लिखी पाती
आँसू धो देती । 

=======
5
मेरे ससुराल की प्रथा
जिस दिन होलिका जलनी होती है ,
उस दिन परिवार के सभी सदस्य चाहे औरत हो या मर्द .....
बच्चा हो या बूढ़ा ...बेसन +हल्दी का उबटन लगाते हैं .....
शरीर से जो झिल्ली(मैल) निकलता है उसे जमा किया जाता है .....
शाम में नमक डाले बिना बेसन की बड़ी बनाई जाती है ,
जिसमें से पाँच बड़ी और उबटन की झिल्ली ...
जली होलिका में चढ़ाया जाता है .....
तथा नए अनाज गेंहू बालिया और
चने के फली भूने जाते हैं ..... जिन्हें होरहा या होला कहते हैं .....
.उसे सब बहुत चाव से खाते हैं ...............


नवान्नेष्टि = नए अन्न को भूनना

यजन = यज्ञ करना 



========
6






14 comments:

  1. बहुत सुन्दर हाइकू, होली पर हमारे यहाँ भी यहीं प्रथा है। होली अग्रिम की शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  2. विभा जी बचपन में मेरी दादी भी झिल्ली निकालती थी लेकिन अब ये प्रथा भी लुप्त होती जा रही है ,,,,,,,,,

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर ..नमस्ते दी

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर सारे हाइकू.....

    ReplyDelete
  5. बह्हुत सुन्दर हैं सभी हाइकू ...

    ReplyDelete
  6. बड़े ही अर्थपूर्ण हाइकू।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर और प्रभावी हाइकु....

    ReplyDelete
  8. सुन्दर, अर्थपूर्ण हाइकु, रंग भरे हाइगा...बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  9. वाह !!
    कामयाब हायकू !

    ReplyDelete
  10. सुन्दर हाइकू और उम्दा जानकारी

    ReplyDelete
  11. होली मनाने की सुंदर प्रथा..रंगों का यह त्योहार आप सभी के लिए मंगलमय हो..

    ReplyDelete
  12. होली की शुभकामनायें....:)

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...