हदों से ज़्यादा , अपना जिन्हें कहते निकले
शक की बेडियों से खुद को जकडते निकले
उन्होंने जब अपनी हया की चादर उतार दी
हर दिन नया जख्म हम सम्भालते निकले
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1
सूखती नमी
मौत से मिलवाती
जल की कमी ।
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2
धरा पुकारे
फसल लगी प्यास
कृपण मेघ ।
कृपण = ऐसा व्यक्ति जो रुपया-पैसा जोड़ता
चलता हो, परन्तु खर्च न करता हो = कंजूस।
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3
विकट झाँझ
छायाकृति मिटती
जीवन सांझ ।
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4
भू हिय चीरा
मौसम चंगेज़ खाँ
विनाश न्यौता ।
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5
उदास कुआँ
हतादर रहट
अंबु हीन भू ।
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6
दिल न सिल
कटु वचन तीर
सेंध दे हिय ।
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7
झुलसे सृष्टि
छाँहों चाहति छाँह
तृष्णा निग्रह
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8
चाँदनी हँसे
चाँद-चाँदी झलके
नदी आईना ।
चाँदी = बाल विहीन सर
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बहुत सुन्दर दी
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर !
ReplyDeleteवाह ! विविध रंगी भावनाओं से सजी पोस्ट !
ReplyDeleteसभी हाइकू एक से बढ़ कर एक ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहदों से ज़्यादा , अपना जिन्हें कहते निकले
ReplyDeleteशक की बेडियों से खुद को जकडते निकले
उन्होंने जब अपनी हया की चादर उतार दी
हर दिन नया जख्म हम सम्भालते निकले
...लाज़वाब और मर्मस्पर्शी...सभी हाइकु बहुत सुन्दर और सार्थक...
बहुत सुंदर हायकू.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...!
ReplyDeleteRECENT POST - प्यार में दर्द है.
बहुत कुछ कहते हाइकू।
ReplyDeleteदिल न सिल
ReplyDeleteकटु वचन तीर
सेंध दे हिय ।
बहुत बहुत सुन्दर हाइकू।
उदास कुआँ
ReplyDeleteहतादर रहट
अंबु हीन भू
...बहुत कुछ कहते हाइकू आपके द्वारा रचे हुए ।
गजब की लेखनी है आपकी... मैं अब तक इससे वंचित कैसे रह गया ?
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