Friday, 28 March 2014

क्यूँ ??


facebook में थोडा थोडा लिखती हूँ …....
ब्लॉग डायरी में फिर जमा करती हूँ
किसी को पसंद आये या ना आये
क्या फर्क पड़ना चाहिए तो क्यूँ

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मिली ज़िंदगी कोरे कागज की तरह 
कुछ लिख भी न सकूँ ..... जला भी न सकूँ 
चाहत की कश्ती पर हूँ सवार 
डूब भी न सकूँ ..... तैर भी न सकूँ

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कमजोर को ही दबाया जा सकता है ना 
मजबूत से पंगा लिए तो 
चंगा नहीं रह पाते ना .....

खुदगर्ज नकाब 
चेहरे पर चढ़ा 
हितैषी का नाटक 
करने मे माहिर
ये दुनिया 
मरने से पहले 
रोज मरने पर 
विवश करती

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ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
शिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
लहुलुहान को नोखरती कब तक है
इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई

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कुछ हाइकु भी हो साथ
तो बनती है कुछ बात

1

द्विअर्थी सारे 
शब्द वस्त्र उतारे
पर कतरे ।
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2

पहाडी धान्य
चलारू से बनता 
काला सोना है।
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3

सफेद पन्ना
घाम खबरें पढे
पीलिया ग्रस्त ।

 पन्ना(पत्र)
घाम{धूप} पीली करती

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4

फूलों के गुच्छे
सुंदर बच्ची पौधे
बालो मे गुथे ।

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5

बधिकशाला
अपने रह लेते
ईर्ष्या में जीते ।

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6

चेष्टा कपट
अक्स घाघ सुंदर
फँसते लोग ।

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12 comments:

  1. ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
    शिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
    लहुलुहान को नोखरती कब तक है
    इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई.... वाह वाह क्या बात हुई.

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  2. बहुत सुंदर शब्द संयोजन .

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  3. बहुत अच्छा प्रस्तुतीकरण !

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद आपका
    आपकी आभारी हूँ

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  5. जीवन का फलसफा भी पसंद आया और हाइकु भी !
    लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !

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  6. kya bat hai bhiva jee dil ke saare dard udel diya aapne kaga ke pannon pe .....bahut sundar ,,,,,bahut acchha laga ....

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  7. दर्द भी जरूरी है खुशियों को देखने के लिये.
    संसार विरोधाभास ही है.
    कभी इन्में से ही किरणें फूटेंगी.

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  8. ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
    शिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
    लहुलुहान को नोखरती कब तक है
    इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई....

    वाह ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
    RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )

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  9. लिखना ही तो बस अपना होता है
    लिखिये जो मन में आये
    इमर्जैंसी में भी लिखना जो
    क्या छोड़ दिया जाता है :)

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  10. सुन्दर रचना

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  11. ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
    अपने जख्मों से ढेर सारी बात हुई ...

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