Saturday 22 March 2014

बहुत पुरानी बात रिस्ते



हदों से ज़्यादा , अपना जिन्हें कहते निकले 
शक की बेडियों से खुद को जकडते निकले
उन्होंने जब अपनी हया की चादर उतार दी
हर दिन नया जख्म हम सम्भालते निकले

==========

1

सूखती नमी 
मौत से मिलवाती 
जल की कमी ।

===

2

धरा पुकारे 
फसल लगी प्यास 
कृपण मेघ ।

कृपण = ऐसा व्यक्ति जो रुपया-पैसा जोड़ता 
चलता हो, परन्तु खर्च न करता हो = कंजूस।

==

3

विकट झाँझ
छायाकृति मिटती
जीवन सांझ ।

==

4

भू हिय चीरा
मौसम चंगेज़ खाँ
विनाश न्यौता ।

==

5

उदास कुआँ 
हतादर रहट 
अंबु हीन भू ।

==

6

दिल न सिल
कटु वचन तीर 
सेंध दे हिय ।

==


झुलसे सृष्टि 
छाँहों चाहति छाँह 
तृष्णा निग्रह 

==


चाँदनी हँसे 
चाँद-चाँदी झलके 
नदी आईना ।

चाँदी = बाल विहीन सर

=====


11 comments:

  1. वाह ! विविध रंगी भावनाओं से सजी पोस्ट !

    ReplyDelete
  2. सभी हाइकू एक से बढ़ कर एक ! बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  3. हदों से ज़्यादा , अपना जिन्हें कहते निकले
    शक की बेडियों से खुद को जकडते निकले
    उन्होंने जब अपनी हया की चादर उतार दी
    हर दिन नया जख्म हम सम्भालते निकले
    ...लाज़वाब और मर्मस्पर्शी...सभी हाइकु बहुत सुन्दर और सार्थक...

    ReplyDelete
  4. बहुत कुछ कहते हाइकू।

    ReplyDelete
  5. दिल न सिल
    कटु वचन तीर
    सेंध दे हिय ।

    बहुत बहुत सुन्दर हाइकू।

    ReplyDelete
  6. उदास कुआँ
    हतादर रहट
    अंबु हीन भू
    ...बहुत कुछ कहते हाइकू आपके द्वारा रचे हुए ।

    ReplyDelete
  7. गजब की लेखनी है आपकी... मैं अब तक इससे वंचित कैसे रह गया ?

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

अनुभव के क्षण : हाइकु —

मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च स...