सुत को सुता
बांधे एक सूत से
सुलग्न जो था
माँ हो गई हर्षित
छलछलाई आँखें
~~
ये मेरा सपना था
~~
जब चारो ओर रक्षा-बंधन का शोर था
उसी दिन एक तेरह साल की बच्ची
अपने दो छोटे-छोटे भाइयों के साथ माँ को भी मुखाग्नि दी
उस पर क्या गुजरा होगा ....
शब्दों में ब्यान करना नामुमकिन है ....
बहुत सालो के बाद इस बार मैं किसी भाई को राखी न बांध पाई ....
लेकिन उस बच्ची के दुख को समझने का दावा नहीं कर सकती ...
20 अगस्त को राखी के दिन ही मेरी माँ की पुण्य-तिथि थी
मन विचलित था
लेकिन उस बच्ची के बारे में सोच कर देखि
मेरा दुख उसकी तुलना में क्या था
कुछ भी तो नहीं
अपने अश्रु रोके हुये गगन को रोते देख रही थी
तभी मेरा साथ देने आए
एक अपने साथी से विछुड़ा अकेला भी था .....
दूसरे के आँसू अनुभव कर देखिये अपने कम लगेंगे .....
awesome post......
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteआँखें भी बरसती हैं, अम्बर भी बरसता है... दुःख भीतर तक पैठता चला जाता है!
अपना दुःख सचमुच औरों के दुःख के समक्ष बौना प्रतीत होता है...
वो गीत है न, दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है...
बहुत मार्मिक !!
ReplyDeleteओह, पीड़ादायी
ReplyDeleteisi tarah to sambal milta hai
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी....
ReplyDeleteबादलों की तरह आँखें भी बरस गयीं दी....
ReplyDeleteसादर
अनु
सही कहीं दूसरों के सामने अपना दुःख कम महसूस होता है.. मर्म स्पर्सी रचना .....
ReplyDeleteसच में मन की गहराई तक छू गयी
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना.....
ReplyDeleteमर्म को छू गयी यह पोस्ट
ReplyDeleteRomanchak rachna!
ReplyDeleteकाफी दुख हुआ बच्ची के बारे में जानकार.
ReplyDeletekya kahu didi ....aaj ye lines yaad aa gayi....."Duniya mey kitna gum hai mera gum kitna kam hai "
ReplyDeleteRomanchak rachna!
ReplyDeleteदिल भर आया विभा जी। …इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा दुःख कैसे झेलेगी वो ?
ReplyDeleteमेरा दुख उसकी तुलना में क्या था
ReplyDeleteकुछ भी तो नहीं
बहुत मर्मस्पर्शी... रचना ताई जी