जैसे सावन के अंधे को हरा हरा दिखता है
वैसे ही इस माह में लोग मुझे बौराये दिखते हैं
बौराई तो मैं जो खुद हूँ …
सिंदूरी साँझ
क्षितिज चित्रपट
टेसू चितेरा।
रिश्ता जलाता
ध्रूमपान करता
शक का कीड़ा ।
“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...
सुन्दर चित्र सुन्दर हाईगा
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर और प्रभावी हाइगा..
ReplyDeleteसुन्दर चित्र गीत..
ReplyDeletetesu chitera ke sath tesu ke fool hote to sone men suhaga ho jata
ReplyDeleteरिश्ता जलाता
ReplyDeleteध्रूमपान करता
शक का कीड़ा ।
बहुत गहन हाइकु है ...!!
मनोहारी और सार्थक
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
ReplyDeletechitrmay hayku , bahut bahut manohari
ReplyDeleteati sundar haiga evam haiku di shubhkamnaye :)
ReplyDeleteलाजबाब,बेहतरीन हईगा ...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
वाह ...बेहतरीन
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeleteसुंदर चित्रावली से सजी पोस्ट !
ReplyDeleteशायद पहली बार आपका लिखा हाइगा पढ़ रहा हूँ. अति उत्तम.
ReplyDeleteकल 13/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
शुक्रिया और आभार आपका
Deleteहार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुंदर हाइगा ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र भी पंक्तियाँ भी
ReplyDeleteसुंदर हाइगा
ReplyDeleteसुन्दर
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