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प्रकृति-ललित-जाल में उलझा लोचन
रिमझिम मेघ बरिसत ऋतु दुखमोचन
सरि-आईने में निहारे सजे चन्द्र मुखरा
हुआ चकित चकोर देख दृश्य मन रोचन
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एक औरत दूसरी औरत को समझने में चूक जाती है
लगता है मुझे हमेशा बीच की कड़ी ही कमजोर होती है
सबकीबात नहीं जहाँ चूक हो जाती है वहाँ की कर रहे हैं
बहुतों सास-बहु बहु-सास ननद-भौजाई में नहीं बनती है
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बीच की कड़ी = भाई बेटा पति यानि पुरुष
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteदीदी! दो शब्दचित्र.. दोनों इतने वास्तविक कि मन में बस जाते हैं और दिल को छू जाते हैं!!
ReplyDeleteस्नेहाशीष ..... शुक्रिया भाई
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-08-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1698 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
शुभ प्रभात
Deleteआभारी हूँ .... बहुत बहुत धन्यवाद आपका
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
सुन्दर चित्रण शब्दों से.
ReplyDeleteउम्दा मुक्तक।
ReplyDeleteआदरणीय आभारी हूँ आपके टिप्पणी से
Deletesundr hai ....
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