Wednesday, 6 August 2014

मुक्तक



1

प्रकृति-ललित-जाल में उलझा लोचन
रिमझिम मेघ बरिसत ऋतु दुखमोचन
सरि-आईने में निहारे सजे चन्द्र मुखरा 
हुआ चकित चकोर देख दृश्य मन रोचन



2

एक औरत दूसरी औरत को समझने में चूक जाती है 
लगता है मुझे हमेशा बीच की कड़ी ही कमजोर होती है
सबकीबात नहीं जहाँ चूक हो जाती है वहाँ की कर रहे हैं
बहुतों सास-बहु बहु-सास ननद-भौजाई में नहीं बनती है

==
बीच की कड़ी = भाई बेटा पति यानि पुरुष



11 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

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  2. दीदी! दो शब्दचित्र.. दोनों इतने वास्तविक कि मन में बस जाते हैं और दिल को छू जाते हैं!!

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-08-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1698 में दिया गया है
    आभार

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    1. शुभ प्रभात
      आभारी हूँ .... बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  4. सुन्दर चित्रण शब्दों से.

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  5. Replies
    1. आदरणीय आभारी हूँ आपके टिप्पणी से

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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