जितना दिखता है उतना ही सच नहीं होता है
"सोमवार 16 जुलाई 2019 आकांक्षा सेवा का वार्षिकोत्सव आ रहा है दीदी आपको सबके साथ आना है! उस दिन के लिए अपना, लेख्य-मंजूषा तथा अन्य संस्थाओं का समय बचा कर रखियेगा..," मनोज जी (आकांक्षा सेवा संस्थान के सहयोगी) 16 जुलाई से पाँच-छ: दिन पहले बोले मुझसे बोले।
14-15 जुलाई को भेंट हुई जब तो बोले ,–"एक दो दिन बाद देखता हूँ ..."
–"क्यों भाई ? एक दो दिन के बाद क्यों देखोगे?"
"है कुछ बात ऐसी!"
"चलो ठीक है..,"
16 जुलाई को सुबह में मनोज भाई फोन किये कि "ममता शर्मा जी (आकांक्षा सेवा संस्थान की संस्थापिका) को बुखार हो गया है अतः वे बोल रही हैं कि एक दो दिन के बाद वार्षिकोत्सव मनाया जाएगा...,"
"जो बीड़ा उठाया है समाज का बुखार उतारने का वो खुद के लिये साधारण बुखार का बहाना कैसे बना सकता है या समाज सेवा का बुखार उतर गया ?"
"ना दीदी! ना! हरारत बरसात का असर है... एक भोरे से रात तक खड़े रहना , सब काम करना..,"
"सुनो! ज्यादा पैरवी नहीं करो...! जोखिम काम का बीड़ा उठाई हैं तो इतना करना ही पड़ेगा... और अभी बिना सहयोगी का कर रही हैं तो झेलना ही पड़ेगा.. स्व को त्याग कर ही समाज और साहित्य के लिए कार्य किया जा सकता है.. अस्वस्थ्यता को क्रॉसिन या कोई अन्य दवा से दूर करें और थोड़ी देर के लिए ही आएं.. मैं कुछ लोगों को लेकर आ रही हूँ.. 'बस बच्चों के संग वृक्षारोपण करेंगे...' वार्षिकोत्सव आज है तो आज ही मनेगा...! कल से चतुर्थ में प्रवेश कर जाएगा और हम पंचम शोर शराबे के साथ समारोह करेंगे...!"
"जी दीदी! ठीक है आइये...!"
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 18 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार बहना
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