"सुबह-सुबह मैराथन में हिस्सा लेने जा रही हैं क्या?" तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरती हुई विमला को देखकर उसकी पड़ोसन कमला ने चुटकी ली! अन्य किसी दिन सा विमला ने चुटकी का जबाब चुटकी से नहीं देते हुए अखबार बाँटने वाले से सभी प्रसिद्ध अखबार खरीद अपने घर में घुस गई। कल उसकी संस्था में आई नामचीन क्लब की सदस्याओं द्वारा अनेक प्रस्तावित बातों की खबरें जानने की उत्सुक सारे अखबारों को बार-बार पढ़ रही थी... खबरें विस्तार से तो थीं लेकिन ना तो उसका नाम और ना तो उसकी संस्था के नाम का जिक्र भी था...
क्रोध के तिलमिलाहट में क्लब के अध्यक्ष को फोन किया, हेलो की आवाज सुनते फट पड़ी मानों बरसात में बादल फटा हो और सैलाब लाया,-"आपने मेरे साथ धोखाधड़ी किया, आपलोगों के वश में नहीं था कि स्लम के बच्चों को जुटाकर विद्यालय खोल सकें और उन बच्चों की देख-भाल कर सकें तो मेरे संस्थान को सहायता करने के नाम पर , संस्थान को गोद लेने का नाटक कर लिया और मेरे संस्थान के नाम का जिक्र भी नहीं किया कहीं भी...! मूसलाधार बारिश में पौधे सींचती हैं आपलोग..., इस कार्य के नाम पर जो फंड का जुगाड़ होगा उससे आपलोग मौज-मस्ती ऐश करेंगी...! संस्थान के विद्यार्थियों को स्लम के बच्चे- स्लम के बच्चे का प्रचार कर आपलोग महादेवी बन रही हैं...,"
"अरे! अरे! पहले मेरी बात तो सुन लीजिए थोड़ी धैर्य से..,"
"नहीं सुनना आपकी बात, अब क्या होगा सुनकर आपकी खोखली बातों को।"
"हमारा क्लब इस तरह के बीस-इक्कीस विद्यालयों को गोद लिया है ,जिनके विद्यार्थियों को हमारी ओर से सहायता की जाएगी। अधिक से अधिक विद्यार्थियों में उत्साह पैदा होगा ,विद्यालय आने और विद्यालय में टिके रहने के लिए तो सभी विद्यालय का अलग-अलग नामों का जिक्र ना तो उचित है और ना तो संभव... हमारा आपका उद्देश्य एक है, हमारी मंजिल एक है .. हाथों में हाथ ले मजबूत जंजीर बन,संग-संग चलने में समाज को लाभ ज्यादा है! हम मुट्ठी बने रहें!" पूरी तरह संतुष्टि नहीं मिलने पर भी सोचने का समय लेते हुए विमला ने फोन कट किया।
भड़ास...
ReplyDeleteसंस्थान को गोद लेने का नाटक कर लिया और मेरे संस्थान के नाम का जिक्र भी नहीं किया कहीं भी...!
सादर नमन
गलतफहमी क्रोध के हड़बड़ी में
Deleteसस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteइसे ही खबर कहते हैं।
ReplyDeleteआज का सच।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति दी
ReplyDeleteमतलब है कि कुछ करो का सीधा तात्पर्य है कि नाम तो हो भाई.. थूक लगा के कोढ़िया थोड़े ही बनना है।
ReplyDeleteशानदार ।
नाम की फिक्र रहती है आजकल ....काम तो बाद में देखा जायेगा...
ReplyDeleteबहुत खूब।
यही होता है आजकल.., लाजवाब सृजन दी !!
ReplyDelete