Friday, 12 July 2019

"का बरसा जब कृषि सुखाने"




"रमुआ! रे रमुआ!" बाहर से ही शोर मचाते रतनप्रसाद घर में प्रवेश किये।
"क्या हुआ ? इतना गुस्सा में क्यों फनफना रहे हैं?" पत्नी रत्ना का सवाल धीमी आवाज में पूछे गये को अनसुना करते हुए फिर जोर से चिल्लाए..
"रे रमुआ! जिंदा भी है कि कहीं मर-मरा गया...,"
"जी मालिक आ गया बताइये क्या काम करना है?"
"चल, छोटी-छोटी कांटी और हथौड़ी लेकर बाहर चल..!"
"मुझे भी तो बताने का कष्ट करें कि क्या बात हुई है जिसके कारण आप इतने गुस्से में हैं...," रत्ना ने पूछा।
"अभी मैं अपने उच्च पदाधिकारी के साथ आ रहा था तो बहू के कमरे की खिड़की से पर्दा उड़ रहा था और बहू बिना सर पर आँचल रखे पलंग पर बैठी नजर आ रही थी। पदाधिकारी महोदय ने कहा भी प्रसाद जी वो आपकी बहू है ? खिड़की के पर्दे पर कांटी ठोकवा देता हूँ ! तुम कितने साल घूँघट में रही हो...।"
"आपके अक्ल पर पर्दा पड़ गया है... कल आपका वृद्धाश्रम जाना आज ही तय कर रहे हैं और आपकी खुद की बेटी अभी जो उड़ाने भर रही है ब्याहनी बाकी है! दुनिया में शोर है ज़माना बदल गया है... इक्कीसवीं सदी की महिलाएं फौज में और फ्लाइट उड़ा रही है... यहाँ उड़ते पर्दे में कांटी ठोका जा रहा है.. !! अक्सर देखा गया है जब मिसालें बनने का मौका मिलता है तो लोग अँधेरा चयन करते हैं मशालें बुझाकर.., कर्म खोटा चाहिए भजनानन्द..!"
स्तब्धता में रतनप्रसाद धम्म से कुर्सी पर गिर पड़े।

15 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13 -07-2019) को "बहते चिनाब " (चर्चा अंक- 3395) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. अपूर्व¡ आपकी कल्पना शक्ति को नमन हर रोजमर्रा की घटना से एक सार्थक चिंतन निकल आता है।

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  4. वाह ! रोचक लघुकथा

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  5. रोचक लघुकथा। सास समझदार है।

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    1. समय के बदल जाना चाहिए वरना पछताने के अलावे कुछ हाथ नहीं आता
      हार्दिक आभार आपका

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  6. सार्थक रचना

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  7. वाह बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति आदरणीया दी

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