01.
चढ़ता वेग ऊँची पेंग ढ़लता पेग सब सावन में सपना।
टिटिहारोर कजरी प्रघोर छागल शोर सावन में सपना।
व्हाट्सएप्प सन्देश वीडियो चैट छीने जुगल किलोल,
वो झुंझलाहट कब हटेगा मेघ है अब सावन में सपना।
02.
सावन-भादो के आते ही
याद आती है
मायके की
माँ के संग-संग ही रहती
भाई-बहनों की
हरी चूड़ियों की
मेहंदी की
सजी हथेलियों में
कुछ दिनों की कहानी
सजाने वाले की कोर
सजी रहती बारहमासी रवानी
राखी की सतरंगी कनक_भवानी
बेहद खूबसूरत लगती है दुनिया
बात बस महसूस करने की
परन्तु महसूस करने नहीं देती
रोग की परेशानी आर वाली
लाइलाज रोग भ्रष्टाचार बलात्कार
तिरस्कार तमोविकार भोगाधिकार
चढ़ता वेग ऊँची पेंग ढ़लता पेग सब सावन में सपना।
टिटिहारोर कजरी प्रघोर छागल शोर सावन में सपना।
व्हाट्सएप्प सन्देश वीडियो चैट छीने जुगल किलोल,
वो झुंझलाहट कब हटेगा मेघ है अब सावन में सपना।
02.
सावन-भादो के आते ही
याद आती है
मायके की
माँ के संग-संग ही रहती
भाई-बहनों की
हरी चूड़ियों की
मेहंदी की
सजी हथेलियों में
कुछ दिनों की कहानी
सजाने वाले की कोर
सजी रहती बारहमासी रवानी
राखी की सतरंगी कनक_भवानी
बेहद खूबसूरत लगती है दुनिया
बात बस महसूस करने की
परन्तु महसूस करने नहीं देती
रोग की परेशानी आर वाली
लाइलाज रोग भ्रष्टाचार बलात्कार
तिरस्कार तमोविकार भोगाधिकार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" गुरुवार 01 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं बहना
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखें है दी।
ReplyDeleteशब्द प्रयोग सराहनीय है।
बहुत सुंदर सार्थक सृजन ।
ReplyDeleteकुछ कुछ वेदना समेटे।
बहुत सुन्दर सृजन दी जी
ReplyDeleteसादर
आपकी यह रचना अद्वितीय है...
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