प्रकाशक का कहना है
सत्य कथन ... इस पुस्तक की सारी कथाएं जहर है स्त्रीत्व के लिए
लेखिका : न्यास योग ऊर्जा उपचारक डॉ. रीता सिंह/सहायक प्राध्यापिका
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा
समय रहते समयानुसार ही उतारते चलना, खुद के सेहत और लंबी उम्र के लिए जरूरत है ,चाहे बोझ किसी भी तरह का हो.. बोझ के घर्षण से दाग व दर्द ही मिलता है... रचनाकार से दो-चार बार आमने-सामने का मिलन था हमारा... उनकी आध्यात्मिक और संत वाणी सुनकर वो सदा सम्मानित लगी... स्नेहमयी तो कुछ ज्यादा... आध्यात्मिक यानी आत्म-उत्कर्ष , जीवन सिद्धि का मार्ग.. रामायण-गीता-महाभारत के अजीबोगरीब किस्से, जिसके उदाहरण हिस्से से वे कल्पना और सपना में जीते हैं, मुझे ऐसा लगता है।
जब रचनाकार ने अपनी पुस्तक "किस विधि मिलना होय" की चर्चा की तो मुझे लगा कि पूरी तरह आध्यात्मिक पुस्तक होगी तो मेरी रुचि की नहीं होगी... क्यों कि मुझे रामायण-महाभारत-गीता से उदाहरण लेकर बात करने वाले आज की दुनिया की समस्याओं को समझने की कोशिश में नहीं लगे, महसूस होते हैं...। परन्तु जब लेखिका ने पुस्तक मुझे दिया तो पढ़ने के लिए उत्सुकतावश पन्ने पलट लिए... पन्ना पलटते मैं भौचक्की रह गई और पढ़ती रही और स्तब्ध होती रही। एक चीज जो बहुत ज्यादा आकर्षित किया वह था डॉ. उषा किरण खान जी की लिखी भूमिका... क्या लेखन है? अरे! जब आप पुस्तक पढ़ेंगे/पढेंगी तभी समझ में आ सकेगा...!
मैं ईश विषय से भागने वाली, प्रेम विषय पर पुस्तक पढ़ रही थी..। इस विषय से भी भागती हूँ कुछ भी बोलना और लिखना अपने वश में नहीं समझती हूँ...। जितने भी सफल प्रेम के उदाहरणों को दिया जाता है वे सब जुदाई की अति सफल कहानी है.. यानी जो सच्चा प्रेम करता है वह शादी नहीं कर सकता है... प्रेम कहानी पुरातन युग से चलती जा रही है... जटिलता और जुझारूपन लिए।
बहुत पुरानी कहावत है "पाँच डेग पर पानी बदले पाँच कोस पर वाणी" इतने बदलाव में रहने के लिए समझ और समझौते की बेहद जरूरत पड़ती है। पहले जब शादी तय होती थी तो एक गाँव का दोनों परिवार नहीं होता था... विभिन्न परिवेश - विभिन्न संस्कृति.. कितना निभाये! कितना ना निभाये...!! एक तरफ कुंआ तो दूजी ओर खाई... कभी रिश्ते में तो कभी जिंदगी में... यही तो लेखिका ने पुस्तक के सारी कहानियों में बताने की कोशिश की है... प्रत्येक कथा में व्याप्त व्यथा पाठक/समाज के समक्ष एक सवाल छोड़ता है... पाठक के लिए कठिन है जबाब देना... अगर जबाब होता ही तो लेखिका जबाब के साथ कथा लेखन करती...
जब मेरी शादी 1982 में हुई थी तो मेरे करीबी रिश्तेदार के पास काफी किस्से थे देवर-भाभी के बीच पनपे प्यार के... मुझे वो अविश्वसनीय सत्यकथाएं सुनने में बहुत अटपटा लगता था । तब सीता-लक्ष्मण मेरे दिमाग में स्थायी रूप से निवास कर रहे थे... इतने वर्षों के बाद उसी विषय पर आधारित इस पुस्तक की पहली कथा पढ़कर समाज के यथार्थ पर विश्वास हो आया... (नवेली विधवा प्रेमिका/पृष्ठ संख्या 11)...
बहन की जचगी के लिए आई और बहनोई से प्रेम कर शादी कर ली... मेरे अनुभव में भी दो कहानी है... एक कहानी के पात्र पर तो कभी सवाल नहीं की क्यों कि अन्य कोई पात्र मेरे करीब नहीं था... पत्नी घर त्याग दी थी... सौत बनी बहन के साथ रहना स्वीकार नहीं की... लेकिन दूसरी कहानी के पात्र जब हमारे सामने आए तो वे दिन रात दिखते थे और पत्नी से जो बेटी थी वह शादी के योग्य थी और साली पत्नी बनी से एक बेटा था जो उम्र में बहुत छोटा था... प्रतिदिन गाड़ी निकलता पत्नी दोनों बच्चों संग पीछे की सीट पर और साली बनी पत्नी आगे की सीट पर... बहुत खुश दिखाने की कोशिश करते... मेरी मकानमालकिन अक्सर मुझसे पूछती कि तीनों की रात में कैसे सामंजस्य बैठता होगा... कौन कितनी खुश रहती होगी... । लेकिन लेखिका के कथा में छोटी सौत बनी बहन को दूध में पड़े मक्खी की तरह निकाल फेंक दिया गया है (फोन की घंटी/पृष्ठ संख्या 47) एक छेद पर कशीदाकारी की जा सकती है, लंबे चीर लगे को दो टुकड़ा करना मजबूरी हो जाती...
पूरी किताब पढ़ते समय किसी कथा पर खुद कुछ ना कर पाने की बेबसी पर खुद से नफरत होने लगेगा... किसी कथा से रोंगटे खड़े हो जाएंगे.. कभी घृणा होगी समाज में ऐसे भी परिवार है जहाँ हम जी रहे हैं पिता शादी कर लाता है और बेटा अपने दोस्तों के साथ सौतेली माँ को... (किस प्रेम की करे उपासना/ पृष्ठ संख्या 55)...
बच्ची की माँ से शादी करता है धन का लालच दिखाकर लेकिन बच्ची जब बड़ी होती है तो उसे पिता का नाम नहीं देता है उस बच्ची को प्रेमिका बनाने के लिए धन का आदि बनाता है... बच्ची के असली पिता से ही बचाव का गुहार लगाती है..(सन्तोष/पृष्ठ संख्या 63) हल्की दरार को समय पर पाट लिया जाए तो सैलाब आने से रोका जा सकता है...
डॉ. रूही चाहती है कि बच्चे जागरूक बने। स्त्री-पुरुष सम्बन्धों से ऊपर उठें और राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी निभाएं। काउंसिलिंग के लिए आये हर युवा उन्हें यह उम्मीद देकर जाते हैं। यह उम्मीद ही जीवन है।(कम्फर्टेबल नहीं हूँ/पृष्ठ संख्या 90)
लघु-मध्यम-दीर्घ कुल मिलाकर चौवालीस कथा-कहानी और 131 पृष्ठ की रश्मि प्रकाशन,(अशुद्धियों से विरक्ति है) लखनऊ से छपी "किस विधि मिलना होय" नामक पुस्तक प्रत्येक हाथों तक जरूर पहुँचनी चाहिए और आप-हम आंकलन करे अपने आस-पास के परछाईयों का.. घर के अंदर से बाहर तक के रिश्तेदार, विद्यालय , होस्टल, धर्म, जाति सबसे समाधान ढूँढ़ कर समाज की बालाओं-कन्याओं-स्त्रियों को सुरक्षित करने में सहायक हों। लेखिका को असीम शुभकामनाएं ... उम्मीद करती हूँ या छली जा रही या छलने वाले की सहायिकाओं की चेतना जगे... औरत , औरत का साथ दे और बन्द हो यह आपदा... औरत हूँ , अतः सारी कथा की व्यथा अपनी लगी... तलाश में हूँ "किस विधि मिलना होय"...की जरूरत ही ना पड़े... किसी को भी... वार्डन के मन में सूर्य की प्रथम रश्मि के सौंदर्य का भाव प्रवाहित हुआ, जब तक प्रकृति में यह प्रकाशमय सौंदर्य व्याप्त रहेगा, तबतक संस्कार की बेल सूखेगी नहीं। कुछ अँधेरे जकड़ने की कोशिश करेंगे, पर प्रकाश का ताप उस अँधेरे को निश्चित समाप्त कर देगा।(प्रेम या जाल/पृष्ठ संख्या 115)
पहली "किस विधि मिलना होय" समीक्षा पर नीलू ने रश्मि प्रकाशन की एक पुस्तक लेखिका से भेंट स्वरूप हासिल की।
आप भी अपने पुस्तकालय में पुस्तक बढ़ा सकते हैं।
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विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
सम्पादक
किताब नहीं है बे, ज़हर है
सत्य कथन ... इस पुस्तक की सारी कथाएं जहर है स्त्रीत्व के लिए
लेखिका : न्यास योग ऊर्जा उपचारक डॉ. रीता सिंह/सहायक प्राध्यापिका
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा
समय रहते समयानुसार ही उतारते चलना, खुद के सेहत और लंबी उम्र के लिए जरूरत है ,चाहे बोझ किसी भी तरह का हो.. बोझ के घर्षण से दाग व दर्द ही मिलता है... रचनाकार से दो-चार बार आमने-सामने का मिलन था हमारा... उनकी आध्यात्मिक और संत वाणी सुनकर वो सदा सम्मानित लगी... स्नेहमयी तो कुछ ज्यादा... आध्यात्मिक यानी आत्म-उत्कर्ष , जीवन सिद्धि का मार्ग.. रामायण-गीता-महाभारत के अजीबोगरीब किस्से, जिसके उदाहरण हिस्से से वे कल्पना और सपना में जीते हैं, मुझे ऐसा लगता है।
जब रचनाकार ने अपनी पुस्तक "किस विधि मिलना होय" की चर्चा की तो मुझे लगा कि पूरी तरह आध्यात्मिक पुस्तक होगी तो मेरी रुचि की नहीं होगी... क्यों कि मुझे रामायण-महाभारत-गीता से उदाहरण लेकर बात करने वाले आज की दुनिया की समस्याओं को समझने की कोशिश में नहीं लगे, महसूस होते हैं...। परन्तु जब लेखिका ने पुस्तक मुझे दिया तो पढ़ने के लिए उत्सुकतावश पन्ने पलट लिए... पन्ना पलटते मैं भौचक्की रह गई और पढ़ती रही और स्तब्ध होती रही। एक चीज जो बहुत ज्यादा आकर्षित किया वह था डॉ. उषा किरण खान जी की लिखी भूमिका... क्या लेखन है? अरे! जब आप पुस्तक पढ़ेंगे/पढेंगी तभी समझ में आ सकेगा...!
मैं ईश विषय से भागने वाली, प्रेम विषय पर पुस्तक पढ़ रही थी..। इस विषय से भी भागती हूँ कुछ भी बोलना और लिखना अपने वश में नहीं समझती हूँ...। जितने भी सफल प्रेम के उदाहरणों को दिया जाता है वे सब जुदाई की अति सफल कहानी है.. यानी जो सच्चा प्रेम करता है वह शादी नहीं कर सकता है... प्रेम कहानी पुरातन युग से चलती जा रही है... जटिलता और जुझारूपन लिए।
बहुत पुरानी कहावत है "पाँच डेग पर पानी बदले पाँच कोस पर वाणी" इतने बदलाव में रहने के लिए समझ और समझौते की बेहद जरूरत पड़ती है। पहले जब शादी तय होती थी तो एक गाँव का दोनों परिवार नहीं होता था... विभिन्न परिवेश - विभिन्न संस्कृति.. कितना निभाये! कितना ना निभाये...!! एक तरफ कुंआ तो दूजी ओर खाई... कभी रिश्ते में तो कभी जिंदगी में... यही तो लेखिका ने पुस्तक के सारी कहानियों में बताने की कोशिश की है... प्रत्येक कथा में व्याप्त व्यथा पाठक/समाज के समक्ष एक सवाल छोड़ता है... पाठक के लिए कठिन है जबाब देना... अगर जबाब होता ही तो लेखिका जबाब के साथ कथा लेखन करती...
जब मेरी शादी 1982 में हुई थी तो मेरे करीबी रिश्तेदार के पास काफी किस्से थे देवर-भाभी के बीच पनपे प्यार के... मुझे वो अविश्वसनीय सत्यकथाएं सुनने में बहुत अटपटा लगता था । तब सीता-लक्ष्मण मेरे दिमाग में स्थायी रूप से निवास कर रहे थे... इतने वर्षों के बाद उसी विषय पर आधारित इस पुस्तक की पहली कथा पढ़कर समाज के यथार्थ पर विश्वास हो आया... (नवेली विधवा प्रेमिका/पृष्ठ संख्या 11)...
बहन की जचगी के लिए आई और बहनोई से प्रेम कर शादी कर ली... मेरे अनुभव में भी दो कहानी है... एक कहानी के पात्र पर तो कभी सवाल नहीं की क्यों कि अन्य कोई पात्र मेरे करीब नहीं था... पत्नी घर त्याग दी थी... सौत बनी बहन के साथ रहना स्वीकार नहीं की... लेकिन दूसरी कहानी के पात्र जब हमारे सामने आए तो वे दिन रात दिखते थे और पत्नी से जो बेटी थी वह शादी के योग्य थी और साली पत्नी बनी से एक बेटा था जो उम्र में बहुत छोटा था... प्रतिदिन गाड़ी निकलता पत्नी दोनों बच्चों संग पीछे की सीट पर और साली बनी पत्नी आगे की सीट पर... बहुत खुश दिखाने की कोशिश करते... मेरी मकानमालकिन अक्सर मुझसे पूछती कि तीनों की रात में कैसे सामंजस्य बैठता होगा... कौन कितनी खुश रहती होगी... । लेकिन लेखिका के कथा में छोटी सौत बनी बहन को दूध में पड़े मक्खी की तरह निकाल फेंक दिया गया है (फोन की घंटी/पृष्ठ संख्या 47) एक छेद पर कशीदाकारी की जा सकती है, लंबे चीर लगे को दो टुकड़ा करना मजबूरी हो जाती...
पूरी किताब पढ़ते समय किसी कथा पर खुद कुछ ना कर पाने की बेबसी पर खुद से नफरत होने लगेगा... किसी कथा से रोंगटे खड़े हो जाएंगे.. कभी घृणा होगी समाज में ऐसे भी परिवार है जहाँ हम जी रहे हैं पिता शादी कर लाता है और बेटा अपने दोस्तों के साथ सौतेली माँ को... (किस प्रेम की करे उपासना/ पृष्ठ संख्या 55)...
बच्ची की माँ से शादी करता है धन का लालच दिखाकर लेकिन बच्ची जब बड़ी होती है तो उसे पिता का नाम नहीं देता है उस बच्ची को प्रेमिका बनाने के लिए धन का आदि बनाता है... बच्ची के असली पिता से ही बचाव का गुहार लगाती है..(सन्तोष/पृष्ठ संख्या 63) हल्की दरार को समय पर पाट लिया जाए तो सैलाब आने से रोका जा सकता है...
डॉ. रूही चाहती है कि बच्चे जागरूक बने। स्त्री-पुरुष सम्बन्धों से ऊपर उठें और राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी निभाएं। काउंसिलिंग के लिए आये हर युवा उन्हें यह उम्मीद देकर जाते हैं। यह उम्मीद ही जीवन है।(कम्फर्टेबल नहीं हूँ/पृष्ठ संख्या 90)
लघु-मध्यम-दीर्घ कुल मिलाकर चौवालीस कथा-कहानी और 131 पृष्ठ की रश्मि प्रकाशन,(अशुद्धियों से विरक्ति है) लखनऊ से छपी "किस विधि मिलना होय" नामक पुस्तक प्रत्येक हाथों तक जरूर पहुँचनी चाहिए और आप-हम आंकलन करे अपने आस-पास के परछाईयों का.. घर के अंदर से बाहर तक के रिश्तेदार, विद्यालय , होस्टल, धर्म, जाति सबसे समाधान ढूँढ़ कर समाज की बालाओं-कन्याओं-स्त्रियों को सुरक्षित करने में सहायक हों। लेखिका को असीम शुभकामनाएं ... उम्मीद करती हूँ या छली जा रही या छलने वाले की सहायिकाओं की चेतना जगे... औरत , औरत का साथ दे और बन्द हो यह आपदा... औरत हूँ , अतः सारी कथा की व्यथा अपनी लगी... तलाश में हूँ "किस विधि मिलना होय"...की जरूरत ही ना पड़े... किसी को भी... वार्डन के मन में सूर्य की प्रथम रश्मि के सौंदर्य का भाव प्रवाहित हुआ, जब तक प्रकृति में यह प्रकाशमय सौंदर्य व्याप्त रहेगा, तबतक संस्कार की बेल सूखेगी नहीं। कुछ अँधेरे जकड़ने की कोशिश करेंगे, पर प्रकाश का ताप उस अँधेरे को निश्चित समाप्त कर देगा।(प्रेम या जाल/पृष्ठ संख्या 115)
पहली "किस विधि मिलना होय" समीक्षा पर नीलू ने रश्मि प्रकाशन की एक पुस्तक लेखिका से भेंट स्वरूप हासिल की।
आप भी अपने पुस्तकालय में पुस्तक बढ़ा सकते हैं।
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विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
सम्पादक
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28 -07-2019) को "वाह रे पागलपन " (चर्चा अंक- 3410) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteआपका आभार
Deleteसुन्दर समीक्षा
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका
Deleteधन्यवाद
Deleteआभार दीदी।
ReplyDeleteधत्त गुड़िया
Deleteभूगोल के ज्ञान के अनुसार 25% थल और 75% जल है धरती पर... वैसे ही ऐसे रिश्तों का संसार अदृश्य पर कई गुणा बड़ा है ...जो सामने से दीखता है, वैसा कई दफ़ा नहीं होता ..
ReplyDeleteअरे वाहः सुखद स्तब्धता
Deleteसदा खुश रहें
पुस्तक के प्रति पठन को उकसाती सुंदर रोचक समीक्षा।
ReplyDelete