Monday, 31 December 2018

आगुन्तक का सदा स्वागत


नव वर्ष की मंगलकामना

मत सोचा करो, कल की चिंता में मत घुला करो
वरना हृदयाघात पर अपने हाथ मत मला करो
सोलह-अठारह गुजर गया फँस उन्नीस-बीस के चाल में
उंगलियाँ ठहर गई बेकल उलझी-उलझी खिचड़ी बाल में

Sunday, 30 December 2018

"मूल्यांकन"


किश्त-मुश्त के फेर में जनाब
बही जोह हो रहा हिसाब
क्या-क्या बदल जायेगा
बदलते तिथि दिन माह के साथ
उलझे जीवन को सुलझाते
सब तो यही कहते वाह के साथ
अंत के गर्भ में आरंभ है
मोह तृष्णा नाश स्तंभ है
कल इतिहास कल रहस्य में
धन्यमन्य जुदा पारिहास्य में
जुड़ाव प्राप्य के रंग-मध्य
भ्रान्‍तचित्‍त मांगे सायुज्य

Monday, 24 December 2018

"क्रिसमस का तौहफा"



"हैलो"
    "मम्मा आपसे एक बात करनी है...!"
"हाँ! बोलो... तुम्हारी आज छुट्टी है क्या?"
       "हाँ माँ! यहाँ इस समय दस दिनों की छुट्टी होती है... आप चाची के पास ही होंगी... फोन का स्पीकर ऑन कीजिये न...!"
"फोन का स्पीकर ऑन कर दी हूँ.. बोलो क्या बोलना है...!"
   "मिंटू भैया को जन्मदिन की हार्दिक बधाई कहना था माँ! लो माँ बारह बज गए 25 दिसम्बर शुरू हो गया.. और दूसरी बात थी कि आपका-पापा का चाची और मिंटू भैया का वीजा हो गया है... आप चारों एक संग हमारे पास आ रहे हैं...।"
"क्या कह रहे हो बेटा! ऐसा कैसे हो सकता...? दुनिया क्या कहेगी...? साल भी नहीं लगा तुम्हारे चाचा को गुजरे...!"
   "दुनिया को कहने के लिए तो विदेश आना होगा चाची...! आप सुनने दुनिया के पास थोड़ी न फिर जा रही हैं... सदा के लिए आपदोनों हमारे संग रहेगी..। यह आपकी बहू का सुझाव और जिद है...!"
   "बहू को अंदाजा भी नहीं, आग के शोलों पर चलना क्या होता है...! एक अविकसित व्यस्क बेटे के साथ एक गैर चाची को अपनाना...! सोच को सादर नमन करती हूँ..!"
       "चाची! गैर और अपने की परिभाषा को हम परिभाषित करने लगेंगे तो पापा और चाचा के बचपन से लेकर अबतक के इतिहास में जाकर तौलना होगा कि कब , किस मित्र का कहाँ-कहाँ पलड़ा भारी रहा होगा... अच्छा चाची एक बात बताइये... आपकी जगह मेरी माँ होती और मेरी जगह आपके बेटे-बहू के ये विचार होते तो क्या स्थिति होती?"
"पड़ोस की हर बहू 'सांता क्लॉज' नहीं हो सकती बेटा...!"

Sunday, 23 December 2018

"मिथ्यात्व"



"क्या सुधीर तुम खुद अपनी शादी कब करोगे?" छठवीं बहन की शादी का निमंत्रण कार्ड देने आए सुधीर से संजय ने सवाल किया...।
      आठ साल पहले संजय और सुधीर एक साथ नौकरी जॉइन किया था... लगभग हम उम्र थे... संजय की शादी का दस साल गुजर चुका था तथा उसका बेटा पाँच साल का था...
   "बस इनके बाद एक और दीदी की शादी बाकी है... उनकी शादी के बाद खुद की ही शादी होनी है मित्र...। मेरी जो पत्नी आये वो मेरे घर में कोई सवाल ना करे... शांति से जीवन गुजरे।"
        "बेटे के चाह में सात बेटियों का जन्म देना.. कहाँ की बुद्धिमानी थी, आपके माता-पिता की?" संजय की पत्नी ने सवाल किया।
      "हमें सवाल करने का हक़ नहीं है नीता... वो समय ऐसा था कि सबकी सोच थी, जिनके बेटे होंगे उनका वंश चलेगा, तर्पण बेटा ही करेगा...,"
    "सुधीर जी तर्पण ही तो कर रहे हैं... आठ बच्चों को जन्म देकर परलोक सिधार गए खुद... सात बेटियों का बोझ लटका गए सबसे छोटे बेटे पर... कुछ धन भी तो नहीं छोड़े... उनकी नाक ऊँची रह गई... ऐसा सपूत पाकर...।"

Wednesday, 19 December 2018

–"आज का हामिद"–


तब हामिद क्या करता, कल्पना करना मुश्किल लगा तो सोच रही हूँ...
                ––"आज का हामिद"––
#गाँधीमैदान में ट्रेड फेयर लगा था। स्कूल के कुछ मित्रों ने वहाँ चलने की योजना बनायी। सभी बच्चे बड़े घरानों से थे लेकिन कौशल एक मजदूर का बेटा था। वो उनके साथ नहीं जाना चाहता था मगर मित्रों के भावनात्मक दबाव में आकर उनके साथ चल पड़ा।
गाँधीमैदान पहुँचकर सभी मित्र मेला घूमने लगे। एक जगह सभी चाट खाने रुके मगर गौरव ने बहाना बनाया,"यार! मेरे पेट में कुछ गड़बड़ है.. तुमलोग खा लो..।" गौरव मित्रों के साथ मेला घूमता रहा। उसके मित्र कुछ-कुछ खरीदते जा रहे थे किन्तु गौरव कई चीजें खरीदना चाहकर भी जेब में पड़े सौ रुपये के कारण मन मसोस कर रह जाता। वह सोचता क्या खरीदूँ? उसे अपने कोर्स में पढ़ी प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' याद हो आयी। उसे लगा वह गौरव नहीं हमीद है। गौरव अपनी दादी के लिए चिमटा नहीं चश्मा खरीदना चाहता था ताकि दादी अपने कार्य ठीक से कर सकें। कम दिखने की वजह से कभी रोटी जल जाती तो कभी सब्जी में नमक कम या ज्यादा हो जाता। उसके मित्र एक बड़े दूकान में कुछ ख़रीदने के लिए रुके तो वह सामने चश्मे की दूकान पर रुका,"भैया! मेरी दादी को ठीक दिखलाई नहीं देता है उनके लिए एक चश्मा चाहिए।"
"अरे! उसके लिए तो अपनी दादी को किसी डॉक्टर के पास लेकर जाओ.. डॉक्टर चेककर नम्बर लिख देगा। उस पुर्जी को लेकर नाला रोड में किसी चश्मे की दूकान से खरीदना होगा। यहाँ तो गोगल यानी धूप से बचने के चश्मे मिलते हैं।"
"नजर वाला चश्मा कितना में मिलेगा?"
"पाँच छ: सौ तो लग ही जायेगा।"
"ओह्ह! पर मैं तो बहुत ही गरीब...,"
"तुम अपनी दादी की आँखें पी.एम.सी.एच. में दिखला लो, सबसे अच्छा होगा... कुछ स्वेच्छित संस्थाएं उसमें गरीबों हेतु कैम्प लगाती हैं। आजकल राणा प्रताप भवन में कैम्प लगा हुआ है.. वहाँ अपनी दादी को ले जाओ, मुफ्त में चश्मा मिल जाएगा।" गौरव बहुत खुश हुआ।
"चलो मैं भी एक आइसक्रीम खा ही लेता हूँ...।" बीस रुपया आइसक्रीम वाले को देकर अस्सी रुपये बचाकर घर लौट आया।
"दादी!कल हमलोग राणा प्रताप भवन चलेंगे।"
"क्यों?'
"तुम्हारी आँखें दिखलाकर चश्मा लाने...।"
"अरे बेटूवा! काम तो चल ही रहा है...।"
"नहीं दादी! हमेशा अंधेरे में रहना ठीक नहीं है.. जीवन का सही आनन्द उजाले में ही है...।"

गतिशील पल में पुकारे जायें' 'मानव-जीव'


ट्रेन में दो-तीन किन्नरों ने प्रवेश किया और यात्रियों से पैसे वसूलने लगे। माँगते-माँगते वो एक बर्थ के पास आकर सब रुक गये अपने-अपने भाव मुद्राओं में ताली बजाने लगे। उस बर्थ पर पति-पत्नी और लगभग बारह/तेरह वर्ष का बच्चा भी बैठा हुआ था। किन्नरों को ताली बजाते देखकर बच्चे में भी हलचल होने लगी मानों वह भी किन्नरों की तरह ताली पीटना और लटके-झटके दिखलाना चाह रहा हो ,लेकिन किसी दबाव में (मानों उसकी माँ द्वारा बराबर दी जाने वाली हिदायतें याद हो रही हो) वह खुद पर नियंत्रण रखकर शांत रखने की कोशिश भी कर रहा हो.., लेकिन एक किन्नर को संदेह हो गया कि वह बच्चा हमारे जेंडर का है। उसने अपने अन्य साथियों से भी कहा और वो सब ताली बजा-बजा कमर लचकाने लगे। एक किन्नर जो उनके दल का मुखिया था ने उस दम्पति से कहा, "ये बच्चा हमारे बिरादरी का हमारी नई पीढ़ी है , इसे हमें दे दो।"
"माँ ने कहा,"इसे जन्म मैंने दिया है, लालन-पालन मैं कर रही हूँ, तुमलोगों को क्यों दे दूँ?"
"यही परम्परा है.. इसलिए...।"
"मैं नहीं मानती ऐसी किसी परम्परा को.. अपनी जान दे-दूँगी ,मगर अपना बच्चा किसी भी कीमत पर नहीं दूँगी.. नहीं की नहीं दूँगी...।"
सब नोक-झोंक सुनकर बच्चा घबराकर रोने लगा और अपनी माँ के पीठ से चिपक गया,"मैं अपनी माँ को छोड़कर किसी के साथ भी नहीं जाऊंगा...।"
किन्नर का दिल बच्चे एवं माँ के मध्य वात्सल्य भाव देखकर पिघल गया। माँ उन्हें सौ रुपये का नोट देना चाहा मगर वेलोग नहीं लिया.. और जाते-जाते कहते गए,"माँ इसे खूब पढ़ाना.. अब तो सरकार हमलोगों को भी नौकरी देने लगी है...।"
"हाँ! हाँ! इसे पढ़ा रही हूँ । कुशाग्र है पढ़ाई में... मेरे परिचित में कई ऐसे हैं जो बड़े ऑफिसर बन चुके हैं...।"
वे खुश होते हुए बोले,"जुग-जुग जिए तेरा लाल... काश ऐसे जन्मे सभी मानव जीव के माँ-बाप तुमलोगों जैसे पढ़े-लिखे होते...।"

Sunday, 16 December 2018

बदल जाना जाँ



शिशिर की सफेद धूप स्याह निशा में बदल चुकी थी... घर के किसी कोने में रौशनी करने से सब चूक रहे थे... अस्पताल में सबकी मुट्ठी गर्म कर घर तो आ गए थे... घर में फैले शीत-सन्नाटा को दूर कैसे किया जाए सभी उलझन में थे...
"इतनी मुर्दनी क्यों छाई है? चलो समीर अपनी माँ और अपनी चाची से बात करो और सबके लिए भोजन की व्यवस्था करो...।"
"पर दादी...?" समीर अपनी दादी की बातों पर आश्चर्य चकित होता है...
"पर क्या समीर...! तुमलोग नई सदी में जी रहे हो... दुनिया बिना शादी के संग रहने के रिश्ते को स्वीकार कर रही है... समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर रही है... तो हम अपने घर में हुए मानव जीव को स्वीकार नहीं कर सकते...?"
"दुनिया क्या कहेगी?और उनकी दुनिया में पता चला...," समीर के दादा जी की गरजती आवाज आज फुसफुसाहट में बदली हुई थी
"टी.वी. सीरियल और फिल्मों को बेचकर धन बटोरने के लिए झूठी कहानियाँ फैलाई गई है... अगर सच बात होती तो गौरी प्रसाद समाज के मुख्य धारा से कैसे जुड़ी रहती? उन्हें क्यों नहीं...,"
"तुमसे बहस में कौन जीत सकता है...!"
"प्राचीन तम को हमें दूर करना ही होगा... थर्ड जेंडर भी तभी मुख्य धारा में जुड़े रह सकते हैं... उनकी जिंदगी बदल सकती है..."
निशीथ काल मिट रहा था और नई सुबह का कलरव सबको उत्साहित कर रहा था...

Thursday, 13 December 2018

"आधे में अधूरा-पहला प्यार"


एक लंबे अर्से के बाद उषा और निशा का मिलन हुआ… नदियों का आपस में मिलना आसान है , लेकिन अलग-अलग शहरों में ब्याही एक गाँव की बेटियों का मिलना कहाँ हो पाता है.… अपने मायके से बुलावे और ससुराल से भेजे जाने के बीच तारतम्य बैठाने में समय गुजरता जाता है… मिलते ही उषा निशा के हाल-चाल पूछने के क्रम में वैवाहिक जीवन कैसा चल रहा है ? जानने की जिज्ञासा प्रकट करती है. निशा बताती है कि उसका वैवाहिक जीवन बेहद सुकून भरा है… पति , सास-ससुर सभी बेहद प्यार और सम्मान देते हैं
“और भानु”
“दिल में खुदा नाम कहाँ मिटता है!”
“अपने पति को कभी बताया?”
“मीरा की तरह जहर का प्याला पीने की साहस नहीं जुटा पाई!”
“भानु की तुलना कृष्ण से?”
“ना! ना! तुलना नहीं। ईश और मनु में क्या और कैसी तुलना! भानु को कहाँ जानकारी है मेरेे मनोभावों की।”
निशा ने जब से होश संभाला था ,तब से ही अपनी माँ की बातों से उसे पता चला था कि उसकी शादी , मामी के भतीजे भानु से होगी और तब से भानु नाम उसने दिमाग में बैठा लिया था और भानु की प्रतीक्षा करने लगी थी। लेकिन भानु और निशा का मिलना कभी हुआ है...?

Saturday, 8 December 2018

"जीवंतता"




       #स्व लेखन की पुस्तक के लोकार्पण होने पर मेरी प्रसन्नता इंद्रधनुषी हो रही थी..। सोच बनी कि घनिष्ठ मित्रों को भी एक-एक प्रति भेंट करनी चाहिए। मित्रों की सूची बनाने के क्रम में बिगत सात वर्षों से फेसबुक पर बनी मित्र महिमा जो स्थानीय ही रहती थी, मिलकर उसे पुस्तक भेंट करने के विचार से उससे मिलने चली गयी।
   उससे बातचीत करने पर पता चला यह वही है जो कक्षा अष्टम में मेरे साथ ही पढ़ती थी और अब वह एक विद्यालय में शिक्षिका है। उसे पुस्तक भेंट करते हुए मुझे जितनी प्रसन्नता हुई, उससे कई गुणा ज्यादा वह प्रसन्न हुई। किन्तु बातचीत में मुझे लगा कि वह स्वस्थ्य नहीं है। मैंने पूछ ही लिया, "क्या बात है, तुम स्वस्थ्य नहीं लग रही हो ?"
    "हाँ! अरे कोई विशेष बात नहीं है, बस साल भर से कैंसर से युद्ध चल रहा है...।"
   "क्या? कैंसर से?" मुझे बहुत डर लगा... और भावुकता में आँखें बरसने लगी। फिर भी मैंने उसे ढाढ़स बँधाते हुए कहा, "चिंता की कोई बात नहीं तुम जल्दी ठीक हो जाओगी...।"
  "देखो संगी! कैंसर सेल्स के जाल से घिर चुकी हूँ...! जान चुकी हूँ कि मेरे पास छ:-सात माह से ज्यादा समय नहीं है...। परन्तु मुझे कोई चिंता नहीं है।"
     उसका साहस देखकर मैं स्तब्ध रह गई। मुझे परेशान देखकर वह बोली, "सुनो संगी! मैंने जो कुछ सोच रखा है , वो सारे कार्य मैं इन छ: माह में पूरा कर दूँगी...। कितने महान लोग विवेकानंद , भारतेंदु आदि जैसे पैंतीस साल में ही अपने-अपने काम से नाम कर चले गये... मैं भी अपने काम से अपना पहचान लिख जाना चाहती हूँ...।"
"जिन्दगी लम्बी नहीं बड़ी चाहिए" की सोच मेरी आँखें गीली कर रही थी...।


Wednesday, 5 December 2018

कशमकश


चित्र में ये शामिल हो सकता है: 8 लोग, Poonam Deva, Seema Rani, Rajendra Mishra, Rabbani Ali, Ranjana Singh और Shaista Anjum सहित à¤šà¤¿à¤¤à¥à¤° में ये शामिल हो सकता है: 13 लोग, Poonam Deva, वीणाश्री हेम्ब्रम, अभिलाष दत्ता, Premlata Singh, Seema Rani, Sushma Singh और Meera Prakash सहित, मुस्कुराते लोग, लोग खड़े हैं और अंदर

जो अपने वश में नहीं उसपर क्यों अफसोस करना, विपरीत परिस्थिति में धैर्य रखने के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता...
कल(04-12-2018) सुबह छोटे लाल जी मुझे फोन कर बोले कि "फूल लाने की व्यवस्था इसबार आप करा लेंगी क्या...?"
"क्यों क्या हुआ?"
"मैं कल रात में लाने गया था तो मिला नहीं , घर लौट कर आया तो गर्भवती बेटी की तबीयत खराब लगी , डॉक्टर के पास लेकर गया तो डॉक्टर बोली गर्भस्थ जीव पेट में मैला कर दिया है उसे तुरन्त निकालना होगा... अभी सुबह में ऑपरेशन से बेटा हुआ है.."
"व्यवस्था करा लेना तो आसान है, परन्तु अब इस समय करने के लिए किसे बोला जाए यह मुश्किल..." कल संस्था का वार्षिकोत्सव था । घर से निकलने का समय आया तो मेरा छोटा भाई फोन पर बोला "चार दिसम्बर ह! शुभकामनाएं देबे खातिर फोन कईनी हा!"
"काहे ? तू अ ईब अ ना का अ ?"
"अईति त जरूरए! लेकिन उ का अ ह कि काल्हे सीढ़ी से गिर गईला से कमर में चोट बा, उ तनी बी.पी. हाई बा अउरी चेस्ट पेन बा... सब टेस्ट करा के अभिये लौट रहल बानी.."
दो मिनट सोचने में लग गया कि क्या करूँ... भाई को देखने जाऊँ कि गेंदा माला लेने जाऊँ... आयोजन स्थल जाना ज्यादा जरूरी था क्यों कि मंच संचालन भी देखना था... मंच संचालन करने वाले नहीं आ पा रहे थे।
अभिलाष(संस्था का सबसे कम उम्र का सदस्य) दत्त(उप सचिव) की पहली पुस्तक का लोकार्पण था.... बेहद उत्साहित था... मेरे नहीं जाने से रंग में भंग...
भाई के पास अपने पति को भी नहीं भेज सकती थी , क्योंकि इन्हें MI की चल रही परीक्षा केंद्र पर शीघ्र पहुँचना था...
मैं संस्था आयोजन स्थल ही जाने का निर्णय ली... एक क्षण मिलता है जब हम दोराहे पर खड़े होते हैं...
 कल भाई के पास नहीं जा पाने का दर्द और उसके मन में गलती से भी उपजा भाव कि दीदी आज नहीं आ पाई का भरपाई आज उसे डॉक्टर से दिखाया जाना दूर नहीं कर पायेगा न...

 

Wednesday, 21 November 2018

"घटाटोप खामोशी"


दरवाजे की घँटी बजी ,मेरे पति दरवाजा खोल आगंतुक को ड्राइंगरूम में बैठा ही रहे थे कि मैं भी वहाँ पहुँच गई... दो मेहमान थे जिनमें एक से मैं परिचित... मैं वहाँ से हटने वाली ही थी कि अपरिचित ने कहा, "मुझे पहचानी आँटी?" और मेरे नजदीक आकर चरण-स्पर्श कर लिया.. आदतन आशीष देकर हट जाना चाहती थी... लेकिन बैठ गई...
"यह वही हैं! जो तीन साल पहले, जब गिरने से तुम्हारे पैर में चोट लगी थी तो सड़क से उठाकर घर तक अपने गाड़ी से पहुँचा गए थे। तबादला हो-होकर कई ब्रांच सैरकर वापस आ गए!" मेरे पति की आवाज थी।
"ये! ऐसा कैसे हो सकता है?"मैं स्तब्ध थी
"आप आँटी मुझे भूल गईं क्या?" वह भी आश्चर्य चकित था।
”आपकी आँटी भूली नहीं हैं... तीन साल से कर्ज उतार रही हैं... मेरा, अपना खाता तो खुलवाई ही उस बैंक में जिसमें आपलोग काम करते हैं! कई स्कीम में भी पैसा डलवाती रहती हैं... आपके साथ आये इन महोदय को वो समझ रही हैं जो इन्हें यकीन दिला चुके हैं कि ये ही सड़क से उठाकर घर पहुँचाये थे...।"
पिन भी गिरता तो शोर मचता......

Tuesday, 13 November 2018

आस्था निजी भावना


समय बदला , बदले समय के साथ बहुत कुछ बदल गया... बदलते समय के साथ, नहीं बदला है तो कुछ लोगों की ओछी मानसिकता... पर्व-त्योहार के समय कुछ ना कुछ बकवास सुनने के लिए मिल ही जाता है...
अतित की बातें हैं, घर की कोई #एक बुजुर्ग महिला छठ करती थी, जब तक उनका शरीर चलता रहता था। जब वे पूरी तरह से निर्बल हो जाती थी तो उनके बाद उस घर की जो बड़ी महिला होती थी, वह व्रत करना शुरू करती थी...

"बुजुर्ग महिला इसलिए छठ करती होगी कि वह सूर्य से गर्भवती हो जाये... ? सनकी को सवालों से घेर लेती... लेकिन... समय के साथ मैं बदल गई हूँ..."

हाँ। तब व्रती महिला सिला कपड़ा नहीं पहनती थी... गांठ लगा कर पेटीकोट का कपड़ा(लूंगी की तरह) और ब्लाउज का कपड़ा भी गांठ(कंचुकी) लगाकर...
हो सकता है , दो कारण होता होगा (मेरी सोच) रूढ़िवादी और अशुद्ध होने की भावना...
#रूढ़िवादी:- एक उम्र होने के बाद महिलाएँ सिला हुआ ब्लाउज पेटीकोट नहीं पहनती थी... तर्क के आगे उनकी सोच तब नहीं थी...
सिले कपड़े को अशुद्ध मानते थे। कारण बस यह है कि पहले के समय में सिले कपड़े नहीं होते थे...।

"तलवार उतना ही भाँजो ,जितना से दूसरे की नाक ना कटे"

Friday, 19 October 2018

"शुभोत्कर्षिणी"



दिनोदिन अलगू कमजोर होता जा रहा था, बुखार उतर नहीं रहा था... वर्षों पहले उसकी पत्नी की मौत हो गई थी... चार छोटे-छोटे बच्चें... घर की स्थिति, रोज कुआँ खोदो, रोज प्यास बुझाओ... बच्चों को पढ़ाना जरूरी समझता परन्तु आर्थिक कमी के कारण पढ़ाना कठिन था... फिर भी किसी बच्चे से मजदूरी कराने के लिए तैयार नहीं था...।
        अलगू काम पर जाने के लिए घर से ज्यों निकलने लगा कि बेहोश हो गया... पड़ोसियों की मदद से चिकित्सक के घर पर लाया गया... मुआयना कर चिकित्सक दवाई-टेस्ट की सूची थमा दी... कंगाल के हितैसी भी कंगाल ही होते हैं... चिंता की लहर दौड़ने लगी... ।
       सभी उलझन में ही थे कि लाल कमल से भरी टोकरी लेकर अलगू की बेटी चिकित्सक के सामने आ खड़ी हुई...
      "इसे लेकर मैं क्या करूँगी बेटी...? यह दुर्गा माँ के लिए होता है...।"
"जानती हूँ! आप इसमें से एक लाल कमल लेकर बोहनी समझिए डॉक्टर मैडम जी और बाबा का इलाज शुरू कीजिए... मैं मजदूरी नहीं कर सकती, व्यापार तो कर सकती हूँ...!"

Wednesday, 10 October 2018

नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं


01.
विजयोत्सव-
सिंदूर की रंगोली
कुर्ते पै सजी।
02.
शुभोत्कर्षिनी-
लाल पद्म के ढ़ेर
वैद्यों के ड्योढ़ी।



भू को-जागृति(भू पर कौन जागरण में हैं- कोजागरा)
01.
रास पूर्णिमा-
चौपड़ पर जीती
साले की घड़ी।
02.
शरद पूनो-
काव्य गोष्ठी में हुआ
खाने का श्लाघा ।
03.
रास की पूनो -
माँ के हाँथों का जादू
खीर में लोप।
04.
शरद ज्योत्स्ना-
अरिपन लगाए
लट पै चाँदी।


Tuesday, 11 September 2018

छलावा



हाँथ में बंधीं घड़ी पर सरकता समय
और कामों को निपटाते गृहधुरी से बंधी स्त्री तेज़ी से चलाती हाँथ
धड़कनों को धीमी गति से चलने को देती आदेश
और सुनती तेज़ कठोर आवाज में आदेश
"अंधेरा होने के पहले लौट आना"

दोनों तरफ से खड़ी बस
बस अपहरण की हो जैसे योजना
साँस लेना दूभर
गोधूलि के मृदुल झंकार की जगह
महसूस करते उन्नति के यांत्रिक शोर
आधे घन्टे की दूरी को डेढ़ घन्टे में तय करता ऑटो

घर से निकलते समय वक़्त का हिसाब रखती
घर लौटते समय अनुत्तीर्ण होती जोड़-घटाव में
पल-पल का रखवाला साथ नहीं होता
वो ऊपर बैठा एक पक्षीय
फैसला करने में व्यस्त होता

नवजात से ही उसे बड़े, बूढ़ों
परिवार/समाज के
सुनाते रहते हैं ,
"झुकी रहना..."

औरत के
झुके रहने से ही
बनी रहती है गृहस्थी
ड्योढ़ी के अंदर...

बने रहते हैं संबंध
पिता/भाई के नाक ऊँची रहते

समझदारी किस लिंग में ज्यादा है
समझदारी
यानी
दर्द सहन कर हँस सकने की कलाकारी
याद करती ड्योढ़ी के अंदर का
जलियांवाला कांड
और बुदबुदाती
ना जाने हमारे लिए
देश कब आज़ाद होगा

जब तक वह खुद से चाहती है
वरना झटके से हर जंजीर तोड़ उठती है

पर वक्त को कैसे बाँधे आदेश पै
अंधेरा होने से पहले लौट आना

Wednesday, 15 August 2018

"सीख"




बे-परवाही शौक है या हो आदत
कर देती स्वाभिमान को आहत
अनवधान इतने तो नहीं नादान
कैसे बना जा सकता था आखत

किसी जमाने में अंग्रेजों को काला झंडा लहरा या काली पट्टी हाथों में बाँध विरोध दर्ज किया गया होगा... देश स्वतंत्र होने के बाद पहली बार अपने ही दल के नेता को , अपने ही दल के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध का सामना  करना पड़ा... 12-08-2018 इतिहास में दर्ज हुआ होगा... रक्सौल में भाजपा के संजय जायसवाल को उनके ही कार्यकर्ताओं ने काली पट्टी -काले झंडे दिखलाकर विरोध जताया... क्रोध फूटने का आधार था ... रक्सौल की सड़कें... गड्ढे में सड़क खोजना बेहद कठिन है ,रक्सौल के हर गली में... भारत-नेपाल का कांकड़-रोही है,"रक्सौल-बीरगंज"... 11 अगस्‍त 1942 की याद दिमाग से निकल गई या जान-बूझ कर याद नहीं रखी , यही सोचती रक्सौल से बीरगंज 11 अगस्त 2018 को जाते समय ,खुद शहीद होते-होते बची... नेपाल का कानून है कि ट्रक से किसी को हल्की खरोंच भी आ जाये तो ट्रक वाले को उस व्यक्ति की हत्या कर देना है... दो सच्ची घटना से दिल दहल उठा... एक लड़का साइकिल पर सवार रक्सौल से बीरगंज जाते समय में ट्रक से टकरा गया... साइकिल सवार को बस हल्की सी खरोंच लगी वह हल्के हाथों से धूल साफ कर ही रहा था कि ट्रक वापस लौट उसे उड़ाता हुआ निकल गया... थोड़ी ही दूर आगे बढ़ने पर दूसरा लड़का मोटरसाइकिल पर सवार ट्रक से टकरा गया... मोटरसाइकिल उसके पैरों पर ही गिरने से उसके पैर की हड्डी शायद टूट गई थी, क्यों कि वह उठ नहीं पा रहा था लेकिन उसे अपने मौत की खबर थी वह चिल्ला रहा था... मुझे मत मारो, मुझे मत मारो... उसकी सुनने वाला कौन था... ट्रक वापस लौट उसे सफल कुचलता हुआ भीड़ के कब्जे में आ गया लेकिन उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सका... 
         कैसा कानून है... वहाँ के लोगों ने बताया कि किसी बस या ट्रक आदि से टकराने का नहीं क्योंकि अपंगता में उसे जीवन भर खर्च उठाना पड़ेगा , जबकि स्वर्ग भेजने पर या तो गवाही नहीं होने पर कुछ नहीं या एकबार कुछ हल्की रकम। इसलिए ये बैक गियर से बच के रहने का

Saturday, 4 August 2018

"षड़यंत्र"



        निलय की मृत्यु के पश्चात उसके बॉस ने उसकी पत्नी निम्मी के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा , "आप जब सामान्य स्थिति में आ जाएं तो निलय के स्थान पर काम कर सकती हैं और हाँ! उनकी भविष्यनिधि भी आपको दे दी जाएगी।"

                      यह बात सुनकर निम्मी के सास-ससुर , ननद-ननदोई और देवर तरह-तरह के मुँह बनाने लगे और आपस में बातचीत करते हुए कहने लगे ,"क्यों न इसे पागल घोषित करके भविष्यनिधि हथिया ली जाए और निलय के स्थान पर उसके देवर को रखवा दिया जाए।"

        बगल के कमरे में बैठी निम्मी सब सुन रही थी और यह सब सुनकर वह सावधान हो गयी और अकस्मात उसने अपनी अटैची तैयार की और घर से बाहर निकलते हुए अपने सास-श्वसुर से कहा, "मैं मायके जा रही हूँ... मुझे बुलाने मत आइएगा... मैं स्वयं ही उचित समय पर आ जाऊँगी।"

          "ये तुम कैसी बातें कर रही हो बेटी ?" श्वसुर ने पूछा
"पागल लोग कैसी बातें किया करते हैं... मैं पागल हूँ न..."  ये संवाद सुनकर सब एक दूसरे के चेहरे देखने लगे और निम्मी अपनी राह बढ़ गयी।


Saturday, 21 July 2018

चक्करव्यूह


कुछ बातें आहत करती हैं तो वही कुछ बातें आगे का राह भी प्रकाशित करती हैं... अब नजरिया अपना-अपना गिलास आधा भरा या आधा खाली...

#सवाल_बहना Kalpana Bhatt जी के

#जबाब_विभा रानी श्रीवास्तव के

01. प्रश्न :- साहित्य में ब्रह्म समाया हुआ है, फिर उसको लिखने वालों का मन छोटा क्यों?

उत्तर:- ब्रह्म तो कण-कण में समाया हुआ है... श्वेत श्याम एक दूसरे की पहचान बताते हैं...
कबीरा भांति-भांति के जीव... हर जगह तो साहित्य वंचित क्यों भला... किसका मन कब बड़ा कब छोटा-खोटा तय कहाँ होता... हम जिसे बड़े मन का मान कर चलें दूसरे उसे छोटा मान कर चलता... सोच हमारी बड़ी छोटी हुई न...

02. प्रश्न :- गलती हर इंसान से होती है फिर सिर्फ छोटा या कनिष्ठ कसूरवार क्यों?
उत्तर :- हमेशा कहती हूँ अपने मूड का स्विच दूसरों की बातों के अधीन नहीं हो... किसके क्या कहने से क्या साबित होता है इस फेर में क्यों पड़ना... किसी ने कहा कौआ कान ले गया...

03. प्रश्न :- हम सभी विद्यार्थी होते हैं कोई आगे कोई पीछे, फिर हम से बढ़कर कोई नहीं की भावना क्यों?

उत्तर :- रावण-कंस का उदाहरण , गीता , रामायण , महाभारत , वर्त्तमान में लिखी जा रही कहानियाँ , आस-पास के उदाहरण से लोग नहीं सीखते...

04. प्रश्न :- गुटबाजी हर जगह होती है , हमारा अपना गुट अच्छा और दूसरे का गुट बुरा क्यों?

उत्तर :- चम्मचों की संख्या किधर ज्यादा.. देखनी होगी न

05. प्रश्न :- इंसान श्रेष्ठ है क्योंकि उसे अच्छे बुरे की पहचान होती है, वह सोच सकता है, फिर दूसरों को कुचलने की ही सोच क्यों?

उत्तर :- अच्छा सोचता है अच्छाई करता है , बुरा सोचता है बुराई करता है... रही बात कुचलने की सोचना तो नियति समय किसी का बुरा होता है तभी किसी इंसान का बुरा करना फलित होता…. अरे ऊपर वाला अपना हांथ नहीं रंगता न

06. प्रश्न :- स्वस्थ वातावरण के लिए सभी दुहाई देते है फिर वातावरण को दूषित करने के लिए #ततपरता क्यों?

उत्तर :- सुअर मैला में ही बैठता है...

07. प्रश्न :- साहित्य राजनिती की #धजिया उड़ाने के लिए सक्षम होता है फिर साहित्य में भी राजनिती क्यों?

उत्तर:- जिस नीति से राज हो सके, फिर राज करना कौन नहीं चाहे... राजनीति के शिकार नीरज जी शिक्षक की नौकरी त्याग दिए… आज दुनिया भी...


Sunday, 15 July 2018

कहाँ_मिटती_भूख!




"मोटर साइकिल मिल गईल मुनिया" 
 थाने से छुड़ाये मोटरसाइकिल की सूचना पापा दे रहे थे... पापा के फोन रखते भाई को फोन लगाई " सब ठीक हो गया, अब देर रात घर नहीं लौटियेगा।"
"हाँ! सब ठीक हो गया... देर रात तब न लौटेंगे , जब मोटर साइकिल में बैटरी/इंजन और कुछ पार्ट-पुर्जा लगवा लेंगे।" फोन रख  यादों में डूबने लगी मुनिया, कुछ महीने पहले की बात है , रात ग्यारह बजे होंगे कि पापा का फोन आया उसके छोटे भैया को चाकू से गोद कर मोटर साइकिल छीन ले गये चोर... पौ फटते वह भागते हुए भाई देखने गई थी... ठीक होने के बाद छोटे भैया उस इलाके के चोरों के सरदार भाई जी को जाकर मिले और वह भाई जी ,अपने आदमियों से कह कर , रात में ही पूरी तरह सही सलामत मोटर साइकिल गाँव के स्कूल पर छोड़वा दिए... चुकिं चोरी गई मोटर-साइकिल पर एफ. आई. आर. लिखवाया गया था तो घर नहीं लाया जा सकता था । अतः गाँव के चौकीदार ने पुलिस को खबर किया पुलिस आकर मोटर साइकिल थाने ले गई...

Monday, 2 July 2018

वक़्त


अर्चना चावजी जी 
पटना पहुँचने के लिए सफर में थीं तो मैं पटना से बाहर शादी में जा रही थी...
लेकिन समय ने तय कर रखा था कि हमारी भेंट होगी...




समय संग-संग क्या-क्या तय कर रखता है
एक ही दिन

पड़ोसन सुषमा जी का अपना राज्य/शहर छोड़ दूसरे राज्य के शहर में स्थापित होने जाना...

मेरी छोटी भाभी की तबीयत खराब होना...

सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए
सोच से शेरनी होना बेहद जरूरी है...
छूटता कोई काम नहीं...
बस निश्चय ही तो करना होता है...

Saturday, 23 June 2018

रिसता कोढ़




"यह कय्या सुन रहा हूँ अरूण जी ! थर्मल पावर, NTPC को दे दिया गया ?" भूतपूर्व महाप्रबंधक ने वर्त्तमान महाप्रबंधक से बात की।
"हाँ ! आप सत्य बात सुन रहे हैं... । चार साल से बंद जर्जर थर्मल पावर के जीर्णोद्धार के लिए आपकी पदस्थापना की गई थी... कभी।"
"मैं राँची जाने के लिए पटना स्टेशन पर रेल के लिए प्रतीक्षारत था कि ऑफिस से फोन आया कि आप तुरन्त चार्ज लेने पहुँचे... मैंने कई दलील दिया
-मुझसे कई लोग सीनियर हैं उनमें से किसी को भेजा जाए
-आज शुक्रवार है शनिवार रविवार को छुट्टी है सोमवार को चार्ज ले लेता हूँ
-महीने का आखरी ही है पहली से चार्ज लेना सही रहेगा...
    लेकिन मेरी कोई दलील नहीं सुनी गई , सुनी भी कैसे जाती पहले महाप्रबंधक को उनके रिटायरमेंट के आखरी दिन रिश्वतखोरी के इल्ज़ाम में सस्पेंड कर दिया गया था... मेरा जाना और चार्ज लेना अति आवश्यक बना दिया गया..."
    "आपसे सीनियर लोगों में वह काबिलियत नहीं थी जो आपमें दिखी , ईमानदारी का नशा ... गलत बातों को नहीं होने देना... जीर्णोद्धार के लिए जो फंड सरकार से मिला था उसके पाई-पाई को जीर्णोद्धार में ही लगाने का जज़्बा...।"
   "हाँ तभी तो जीर्णोद्धार के जंग खत्म होते-होते चुनाव आ गया... और खाने-कमाने के लिए मुझे वहाँ से निकाल फेका गया... बर्फ का सिल्ली है, सरकारी फंड... बीरबल ने अकबर को एक बार बतलाया था न।"

Friday, 15 June 2018

"वक्त का गणित"


चित्र में ये शामिल हो सकता है: वृक्ष, आकाश और बाहर

कलाकारी करते समय कूँची थोड़ा आडा-तिरछा कमर की और जरा सा दूसरे जगह भी अपना रंग दिखा दी... हाथी पर चढ़े, टिकने में टक टाका टक अव्यवस्थित ऐसे कलश को देख मटका आँख मटका दिया...
       कलश को बहुत गुस्सा आया उसके नथुने फड़कने लगे... अपने गुस्से को जाहिर करने के पहले उसने दूसरे से मशवरा करना उचित समझा और सखा दीप से सलाह मांगी,
    "ऐसे हालात में मुझे क्या करना चाहिए?"
दीप ने कहा कि "क्या कुम्हार तुम्हें याद है... ?"
    थोड़ी ही देर में पाँच सुहागिनें मटका में जल भरने आईं और जल भर ज्यों टिकाने लगीं , मटका का राम-नाम सत्य हो गया...

Tuesday, 12 June 2018

"सम्मोहन"


चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बैठे हैं

सरंचना पुस्तक पढ़ने में मैं व्यस्त थी कि मोबाइल टुनटुनाया
"हेल्लो"
"क्या आप पटना से विभा जी बोल रही हैं...?"
"जी हाँ! आप कौन और कहाँ से बोल रही हैं... ? क्यों कि यह नम्बर अनजाना है मेरे लिए...!"
"मैं हाजीपुर से मीता बोल रही हूँ।"
"जी बोलिये किस बात के लिए फोन की हैं... मुझे कैसे जानती हैं यानी मेरा नम्बर आपके पास कैसे आया ?"
"एक विज्ञापन के बारे में मेरी साधना आंटी से मुझे पता चला, उसी में आपका नम्बर दिया हुआ था... फेक तो नहीं यही कन्फर्म करने के लिए मैं कॉल कर बैठी!" बेहद प्यारी मधुर आवाज और खनकती हँसी के साथ मीता बात कर रही थी...
"मुझसे बात हो रही है तो फेक नहीं , यह तो कन्फर्म हो गया... अब आप अपने बारे में बताइये... मुझे कॉल करने जा रही हैं कय्या आप अपने अभिभावक को बताई हैं... आपकी उम्र क्या है?"
"मेरी उम्र 22 साल है ! फेक का कन्फर्म करना था अतः मम्मी पापा को नहीं बता पाई हूँ...।"
"आपकी उम्र 22 साल है तो
-आपकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई होगी
-पढ़ाई पूरी नहीं हुई होगी तो शादी भी नहीं हुई होगी
-शादी नहीं हुई होगी तो अपने माँ बाप की बड़ी जिम्मेदारी हैं आप..."

"जी!जी! आप बिलकुल सही समझ रही हैं!"

- विज्ञापन देखी होंगी तो उसमें 30-40 उम्र सीमा तय है ,उसपर आपकी नजर जरूर पड़ी होगी... उस स्थिति में आपका फोन करना, आपको ही शक के दायरे में ला खड़ा किया... एक औरत होने के नाते हर लड़की के बारे में सोचना मैं अपना दायित्व बना ली हूँ... कोई बच्ची मकड़जाल में फँस ना जाये... इसलिए आपको भी कहती हूँ पहले पढ़ाई पूरी कीजिये... माँ बाप जो तय करें उसमें उनका सहयोग करें... "

"आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आप मुझे सही मार्गदर्शन दीं... आपकी बात सदा याद रखूँगी"

समाज की जो स्थिति हैं आपको दिख रही होगी... ऐसे में बिना अभिभावक की अनुमति लिए , किसी अनजाने नम्बर पर फोन करना... गम्भीरता से सोचने का समय निकालियेगा ,अगर सच में मैं फेक होती तो...?"

Tuesday, 5 June 2018

◆अपनी_बारी_खुशियों_से_यारी◆

05-06-2018

आज सुबह चार बजे आँख खुली तो कच्ची नींद जगी हूँ , ऐसा नहीं लगा... एक पल सोचने में लगा दिमागी अलार्म बजा क्यों... उठकर मोबाइल सर्च की तो पता चला देर रात सूचना आई थी संगनी क्लब में जाना है... पर्यावरण रैली में शामिल होने... साढ़े छ में पहुँचना है... रात में सोते समय दिमागी अलार्म अपना सेट हुआ... साढ़े छ में पहुँचने का मतलब पौने छ में घर छोड़ देना... दो ऑटो बदलना ,नियत स्थान पहुँचने के लिए... घर के काम क्यू में... सिंक भरा रात के झूठे बर्त्तन से, आम-लीची के दिनों में कूड़ा ,अपार्टमेंट में कूड़ा उठाने आनेवाला शहंशाह (कोई नियमित समय नहीं) सुबह का नाश्ता (गृहणी को घर से बाहर अगर जाना हो तो अतिथि भी आयेंगे) आज दही-चूड़ा से तो बिल्कुल नहीं चलेगा... कुछ स्पेशल बना देना... वो तो चना मूंग फूला/अंकुरित रहता है... आलू उबला रहता है... खीरा-आम का दिन तो फल की चिंता नहीं और तैयार चटनी आचार थोड़ा खटमिठी , तड़का , खीर ... आटा गूंधो... सारे काम निपटाते समय सोच रही थी दो बातें...
जब पापा चार बजे उठते थे तो मैं झल्ला जाती थी "ना चैन से सोते हैं ना सोने देते हैं , चार बजे से उठकर सारे घर को उठा देते हैं..." चापाकल का शोर ही इतना कर्कश लगता था...
 
जब महबूब चार बजे उठकर तैयार होता था कोचिंग और विद्यालय के लिए... "कब बड़ा हो जाएगा कब नौकरी में आ जायेगा तो तान कर लम्बी नींद खिचुंगी"...

Saturday, 26 May 2018

"उड़ान"





तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हॉल गुंजायमान हो रहा था... आज के समारोह में पढ़ी गई सारी लघुकथाओं में  सर्वोत्तम लघुकथा श्रीमती रंजना जी की घोषित की जाती है... मुख्य-अतिथि श्री महेंद्र मिश्र(वरिष्ट साहित्यकार नेपाल) जी के घोषणा के खुशियों की लाली से रंजना सिंह रक्तिम कपोल लिए , दोनों हाथ जोड़े , मंच से नीचे आकर लेख्य-मंजूषा संस्था (पटना) के अभिभावक डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी के चरण-स्पर्श कर, अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव के गले लग फफक पड़ी... विभा उनकी तरहखुशी से छलक आये आँसू को पोछते हुए एक कलम दवात का सेट पकड़ाते हुए बोली कि "याद है रंजना! कभी तुमने पूछा था , संस्था से जुड़ कर मैं क्या करूँगी दीदी...
"संस्था को श्रोता भी तो चाहिए न बहना..." दोनों एक संग खिलखिला पड़ीं...


Tuesday, 15 May 2018

एक तीर कई निशाने


"यह क्क्य्या नाटक लगा रखी हो... सुबह से बक-बक सुन पक्क गया मैं... जिन्हें अपने पति की सलामती चाहिये वे पेड़ के नजदीक जाती हैं... ई अकेली सुकुमारी हैं..." ड्राइंगरूम में रखे गमले को किक मारते हुए शुभम पत्नी मीना पर दांत पिसता हुआ झपट्टा और उसके बालों को पकड़ फर्श पर पटकने की कोशिश की... ।
    मीना सुबह से बरगद की टहनी ला देने के लिए अनुरोध पर अनुरोध कर रही थी... पिछले साल जो टहनी लगाई थी वह पेड़ होकर, उसके बाहर जाने की वजह से सूख गई थी... वट-सावित्री बरगद की पूजा कर मनाया जाता है... फर्श पर गिरती मीना के हांथ में बेना आ गया... बेना से ही अपने पति की धुनाई कर दी... घर में काम करती सहायिका मुस्कुरा बुदबुदाई "बहुते ठीक की मलकिनी जी... कुछ दिनों पहले मुझ पर हाथ डालने का भी बदला सध गया..."।
     शुभम सहायिका द्वारा यह शुभ समाचार घर-घर फैलने के डर से ज्यादा आतंकित नजर आ रहा था....

वट सावित्री-
सिर पै ठकाठक
बेना लागल
😜🤣

Sunday, 13 May 2018

माँ-सास... बहुत बारीक सा अंतर



"सयंम समझ संस्कार समय पर साथ नहीं हो!"
"तो... ?"
"मत गलथेथरी करो कि माँ का सम्मान बरक़रार है"
"कैसे...?"
"हर स्त्री को उचित मान देकर"

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लफ्ज़ और इश्क का हिस्सा
सास तथा बहू का किस्सा

"विभा जी आपको अपने सास बनने के अनुभव को लिखना चाहिए... जिसे पढ़कर मुझ जैसी चिंताग्रस्त कई माँ निश्चिंत होगी तो कई सास शायद अपने में सुधार कर ले..."
    मौका था माया का अपने जन्मदिन पर अपनी माँ के पास जाना... मैं भी संग गई थी... वापसी के दिन उसकी माँ कुछ उदास लगी तो मैं बोली कि "माया की खुशियों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी अब मेरी है... मेरे बेटे से भी कोई गलती होती है तो मैं माया के संग ही खड़ी मिलूंगी..." मेरे इतना कहते माया की माँ की आँखों से गंगा-जमुना...
  कहीं बहू सास की मनपसंद नहीं तो कहीं सास बहू के स्तर की नहीं... समाज में फैले इस रूप को कई बार अनुभव में देखने को मिला... खाई को पाटने की कोशिश दोनों पाटों को थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ पहल कर करनी चाहिए... लेकिन अहम इतना , "क्यों" पर अटकी रह जाती हैं दोनों की दोनों...
    माया रोये जा रही थी... सब हक्का-बक्का... हुआ क्या... उससे पूछने की कोशिश में लगे कि किसकी किस बात से वो इतनी आहत हुई... हम सब (मैं , मेरे पति , मेरा बेटा) एक दूसरे से सवाल कर रहे थे किसने क्या कहा... थोड़ी देर के बाद उसने कहा कि, "मैं जब भी किचन में जाती हूँ हाथ धोकर जाती हूँ... माँ मुझे कुछ करने नहीं दे रही हैं , तो मुझे रोना आ गया"
मैं :- पर काम क्यों करना चाह रही हो? क्यों सोचती हो कि तुम्हारी जिम्मेदारी अभी से है चौका संभालना... तुम वर्किंग-वूमेन हो । जहां रहती हो भागमभाग की जिंदगी गुजारती हो । यहाँ आठ दिन के लिए आई हो... आराम करो और सबके साथ समय अच्छे से गुजारो... तुम्हें हिचक ना हो इसके लिए ही तो खाना बनाना सिखाई सहायिका को..." जहाँ तक हाथ धोकर चौके में जाने की बात है... "सफाई के मामले में मुझे थोड़ा पागल समझते हैं लोग..."
    चौके से उठा धुंआ और दीप से उठे धुएं के कालिख में कितना अंतर... एक से दाग तो एक से नजर ना लगे के बचाव से सुंदरी का श्रृंगार... शक और गलतफहमी का धुंआ दिल में कालिख लगाए उसके पहले चिंगारी को खत्म कर देने की कोशिश सास-बहू को मिलकर करनी चाहिए... राख में भी दबी ना रह जाये चिंगारी... इसमें अहम भूमिका होती है सास के पति व बेटे और बहू के पति व ससुर की... नट की धार है... चलना कठिन नहीं तो आसान भी नहीं... 
  एक बार कल की सुबह मेरी वापसी थी बैंगलोर से पटना... मेरी यात्रा अकेले की थी... जब तक मैं रही अपने सुविधानुसार माया-महबूब घर में मेरे साथ रहे... आज की शाम माया ऑफिस से वापिस आकर अपने कमरे में सीधे चली गई... बहुत देर हो गई वो कमरे से बाहर ही नहीं आई... और इंतजार कर मैं उसके कमरे में झांकी तो वह  पीठ ऊपर किये लेटी हुई थी, चेहरा नहीं दिखा, अंदाज़ा लगा ली मैं कि वह सो रही होगी... दिनभर व्यस्त रही होगी तो थक गई होगी... व्यस्तता के कारण ही तो आज एक बार भी फोन नहीं की नहीं तो नाश्ता कर लीं , खाना क्या बनाईं , ज्यादा काम मत कीजियेगा , कहीं घूम आइयेगा , आज ऑर्डर कर दी हूँ लंच आपका , आज शाम में घूमने चलेंगे रात में डिनर कर वापस होंगे ... दिनभर में कई फोन करती। आज भी ऑफिस जाते बोल कर गई थी , शाम में जल्दी आएंगे मूवी देखेंगे , बाहर से ही डिनर कर वापस होंगे... कल माँ चली जायेगी... मगर अब तो रात बहुत हो गई उठाना चाहिए सोच उसके पास जाकर उसके पीठ पर ज्यूँ हाथ रखी वो तो रो रही थी... मैं स्तब्ध... हुआ क्या ? बहुत पूछने पर किस्सा कुछ यूँ सामने आया...
महबूब जिस कम्पनी में काम करता था उसी कम्पनी में माया के लिए नौकरी की बात चली... इंटरव्यू हुआ सलेक्शन हुआ जॉइनिंग लेटर/ऑफर लेटर आया... माया जिस कम्पनी में पहले से काम कर रही थी उस कम्पनी में बता दी कि वो रिजाइन कर रही है... इतनी प्रक्रिया के बाद खुशी-खुशी अपने ससुर को बताने के लिए फोन की कि अब वह सुकूँ वाले पल जियेगी क्यों कि दोनों के दो कम्पनी में काम करने से यह ज्यादा परेशानी होती थी कि एक की छुट्टी तो दूसरे का ऑफिस खुला... दोनों के ऑफिस जाने का समय अलग-अलग । ससुर जी समझा दिए कि एक ऑफिस में काम करने से दोनों के निजी रिश्ते प्रभावित तो होंगे ही... प्रभावित ऑफिस के कार्यों से भी होगा... समझाने के साथ आदेश भी था कि एक ऑफिस में काम मत करो...
मैं :- तुम पापा की बातों से सहमत हो?
माया :- हाँ! माँ ! महबूब भी यह सही समझ रहे हैं...
मैं :- क्या तुम्हारे पहले वाले ऑफिस में तुम्हारा रिजाइन करना स्वीकृत कर लिया है ?
माया :- अभी नहीं माँ... कर तो लेगा ही न
मैं :- नहीं करेगा! जिस कर्मचारी को पूरा खर्च कर विदेश भेज ट्रेनिंग करवाया है उस कर्मचारी को बिना मूल-सूद वसूल किये ,कभी नहीं , किसी कीमत पर भी नहीं दूसरे कम्पनी को फायदा पहुंचाने देगा...
माया :- मैं तो इस बिंदु पर सोच ही नहीं सकी ... यू आर ग्रेट माँ
मैं :- आज का जो कीमती दिन तुम गंवा दी क्या उसे वापस कर सकती हो....

माँ सी शक्ल पाई हूँ
उनकी खूबसूरती नहीं पा सकी
हर ठिठके पल में उनको याद की
वैसे हर पल में सोचती कि वे होती तो क्या करतीं
और नकल करने से निवारण होता गया
कुछ अगर कमियां रही तो
नकल तो नकल है...

रानी बेटी माया को बताई लिखने जा रही हूँ तो


मातृदिवस की बधाई

Friday, 27 April 2018

"लेखनी की आत्महत्या"




           बिहार दिवस का उल्लास चहुँ ओर बिखरा पड़ा नजर आ रहा... मैं किसी कार्य से गाँधी मैदान से गुजरते हुए कहीं जा रही थी कि मेरी दृष्टि तरुण वर्मा पर पड़ी जो एक राजनीतिक दल की सभा में भाषण सा दे रहा था। पार्टी का पट्टा भी गले में डाल रखा... तरुण वर्मा को देखकर मैं चौंक उठी... और सोचने लगी यह तो उच्चकोटी का साहित्यकार बनने का सपने सजाता... लेखनी से समाज का दिशा दशा बदल देने का डंका पीटने वाला आज और लगभग हाल के दिनों में ज्यादा राजनीतिक दल की सभा में...

स्तब्ध-आश्चर्य में डूबी मैंने यह निर्णय लिया कि इससे इस परिवर्त्तन के विषय में जानना चाहिए... मुझे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी... मुझे देखकर वह स्वत: ही मेरी ओर बढ़ आया।

     औपचारिक दुआ-सलाम के बाद मैंने पूछ लिया , "तुम तो साहित्य-सेवी हो फिर यह यह राजनीति?"

   उसने हँसते हुए कहा, "दीदी माँ! बिना राजनीति में पैठ रखे मेरी पुस्तक को पुरस्कार और मुझे सम्मान कैसे मिलेगा ?"

        मैंने पूछा "तो तुम पुरस्कार हेतु ये सब...?
   बन्धु! राजनीति में जरूरत और ख्वाहिश पासिंग बॉल है...

पढ़ा लिखा इंसान राजनीति करें तो देश के हालात के स्वरूप में बदलाव निश्चित है...
दवा बनाने वाला इलाज़ करने वाला नहीं होता... कानून बनाने वाला वकालत नहीं करता...

    तो साहित्य और राजनीति दो अलग अलग क्षेत्र हैं तो उनके दायित्व और अधिकार भी अलग अलग है..."

मेरी बातों को अधूरी छोड़कर वह पुनः राजनीतिज्ञों की भीड़ में खो गया... साँझ में डूबता रवि ना जाने कहीं उदय हो रहा होगा भी या नहीं...

   अगर स्वार्थ हित साधने हेतु साहित्यकार राजनीतिक बनेगा तो समाज देश का दिशा दशा क्या बदल पायेगा... मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ती चिंतनमग्न थी...

Tuesday, 13 March 2018

"तमाचा"

 **
एक दिन मैं हाथों में तख्ती लिए हर उम्र के लोगों के पंक्ति के सामने से गुजर रही थी। युवाओं की संख्या ज्यादा थी, "तीन तलाक हमारा हक़ है बिल वापस लो" तख्ती पर लिखे थे, तुम्हारी कौम क्यों नहीं चाहती कि औरतें सुखी हो?"
"उन्हें दुख क्या है?"
"तुम युवा हो हज के लिए जा रहे हो क्या झटके से तलाक देने को सही ठहरा रहे हो?"
"व्हाट्सएप्प पर नहीं देना चाहिए!"असहनीय मुस्कान थी इरफान के चेहरे पर,इरफान मेरे घर बिजली बिल देने आया था बातों के क्रम में वो बताया कि अपनी माँ को लेकर हज कराने जा रहा है क्यों कि औरत हज करने पति बेटा या किसी पुरुष के साथ जाएगी तभी फलित है...
"क्रोध में दिया तलाक सही है?"
"…"
"तुम्हारी सोच पर अफसोस हुआ... समय बदल रहा है... ऐसा ना हो कि स्त्रियाँ शादी से ही इंकार करने लगे।"
"मछली हर धर्म की फंस जाती है आँटी!"

Friday, 19 January 2018

ठगी


यूँ तो लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर श्वेत मोती , रंगीन मोती की माला , लकड़ी के समान , चाभी रिंग , मूर्ति पत्थरों पर , चावल पर नाम लिखने वालों की एक सी भीड़ होती है... कांचीपुरम का समुंद्री तट यहाँ बसा पुराना शिव मंदिर सैलानियों के लिए मनमोहक स्थल... पूरे देश से जुटी अभियंताओं (इंजीनियर'स) की पत्नियों को घेर रखी थी छोटी-छोटी बच्चियाँ... सभी बच्चियों के दोनों हाथों गले में दर्जनों तरह-तरह की मालाएँ... मोतियों की ... स्टोन की ... उसी तरह की उनकी बातें... मानों कुशल व्यापारी हों... उनके घेरे के शोर में चलना कठिन हो रखा था....
-दूसरे जगहों पर सौ-सवा सौ से कम में नहीं मिलेगी आँटी जी मैं नब्बे इच में दे रही हूँ...
-सुबे से घूम रही रात हो रही इक भी खरीद लो बहुत तेज़ भूख लगी है...
-दुआओं का असर होगा आपलोग आख़री उम्मीद हो...
दस मिनट के शोर में मोल तोल(बार्गेनिंग) के बाद 10-10₹ में पटा और श्रीमती की मंडली 10-10 माला खरीद कर गाड़ी में बैठीं
एक ने पूछा क्या करेंगी इतनी मालाएँ
-अरे सौ रुपये की ही तो ली है... किसी को देने लेने में काम आ जायेंगे
-दस रुपये की माला पहनेगा कौन
-कन्याओं को पूजन में देने के काम आ जाएंगी..
-काम वाली को देने से बाहर का तौहफा हो जाएगा
-हाँ! उन्हें दाम भी कहाँ पता होगा
-इतना सस्ता मिलता भी कहाँ
-अभी अंधेरा घिर जाने से और समय समाप्त होने से उनकी बिक्री कहाँ होने वाली थी
-लाचारी खरीदी गई?
-मुझे तो सन्तोष है कि मैंने बच्चियों के हौसले को बढ़ावा दिया... भीख तो नहीं मांग रही सब...
-फिर मोल तोल क्यों... यही मालाएँ मॉल में होती तो...
-आपने नहीं एक भी...
-कल शायद बची मालायें सौ में दो बेच लें बच्चियां... मेरे सामने तो मॉल में टँगी मालाओं पर टँगी स्लिप घूम रही थी...

क्षणिका


01.
मेरा है , मेरा है , सब मेरा है
इसको निकालो उसको बसाओ
धरा रहा सब धरा पै बंद हुई पलकें
अनेकानेक कहानियाँ इति हुई
लील जाती रश्मियाँ पत्तों पै बूँदें
तब भी न क्षणभंगुर संसार झलके
02.
माया लोभ मोह छोह लीला
उजड़ा बियावान में जा मिला
दम्भ आवरण सीरत के मूरत
अब खंडहर देख रोना आया
लीपते पोतते घर तो सँवरता
चमकाते रहे क्षणभंगुर सुरत

Tuesday, 16 January 2018

मुक्तक


01.
हद की सीमांत ना करो सवाल उठ जाएगा
गिले शिकवे लाँछनों के अट्टाल उठ जाएगा
लहरों से औकात तौलती स्त्री सम्भाल पर को
मौकापरस्त शिकारियों में बवाल उठ जाएगा
02.
रंगरेज के डिब्बे लुढ़के बिखरे रह गए रंग
सतरंगी भुवन बने धनक सब रह गए दंग
नभ-गर्जन भूडोल उजड़े अनेकानेक नीड़
सपने टूटे प्रेमबंध छूटे बजने से रह गए चंग
03.
मनोरथ पार लगाती लिख डालो मेरे ढ़ंग को ऊर्ध्वा कहती
बवाली तो मैं कहलाती लिख डालो मेरे रंग को हवा कहती
अंतांत रार कर्णधार एकाधिकार का शोर घमासान रहा मचा
गोदी पड़ी जीत सिखाती लिख डालो मेरे खंग को दूर्वा कहती
(खंग=कमजोर शरीर)

Sunday, 14 January 2018

समय की कोमलता


"पुराना कम्बल ही हमें देने लाती न बिटिया!"
"क्यों! ऐसा आप क्यों बोल रही हैं? दान भी दें और कुछ साल ढ़ंग का हो भी नहीं तो वैसे का क्या फायदा"
"ये हमारे पास कल रहेगा कि नहीं तुम क्या जानो!"
"क्क्क्या ?
"तुमलोगों के जाते हमसे छीन लिया जायेगा और बेच दिया जायेगा!..."
"कौन करता है ऐसा?"
"इसी आश्रम का केयर-टेकर"
"क्या आप मेरे मोबाइल के सामने इसी बात को दोहरा सकती हैं ?"
"कल से फिर... ?!"
वृद्धाश्रम में वृद्धाओं और संगठित महिला दल से वार्तालाप चल ही रही थी कि वृद्धाश्रम के केयर टेकर को कैद में लेकर युवाओं का दल अंदर आ गया... संगठित महिला दल की एक सदस्या मोबाईल से लाइव टेलीकास्ट कर रही थी... 

Monday, 1 January 2018

"सुविधा सुमार"



“देखो भाया! आप बिहारी , मैं गुजराती ... उसपर से पक्का बनिया…। पड़ोसी हैं वो अलग बात है... , लेकिन लेना-देना हमारा व्यापार है… मैंने आपकी साल भर से बंद पड़ी स्कूटी ठीक करवा देने में मदद की… बरोबर… है न?”

“बिल्कुल ठीक कहा आपने । आप बड़ा काम करवा दिए…”

“अब हिसाब बराबर करने का है”

“ले आइये ढ़ेर सारा मिठाई… मिठाई से कर्जा थोड़ा उतर जाए…”

“अरे नहीं न । मिठाई तो अलग चीज है, वो तो पड़ोसी और अतिथि के नाते खाऊँगा ही…”

“अरे! फिर?”

“मुझे साहित्य का भूख है… अपनी आँखें इतनी खराब हो गई है कि खुद से पढ़ नहीं पाता कुछ और यहाँ दूसरे हैं नहीं जिनसे चर्चा कर सकूँ। आज विभा जी ने पढ़ कर सुनाई तो बहुत आनंद आया । अब तो आप जब तक यहाँ हैं , हमारी तो रोज यहाँ ही बैठक जमेगी ।”

“मुझे भी अच्छा लगेगा आदरणीय । गुजराती होते हुए भी आपको हिन्दी साहित्य में रुचि है । आप हाइकु जानते हैं । हाइकु सुनने वाले हिन्दी में ही कम मिलते हैं ।”

“एक बात कहूँ आप बुरा नहीं मानेगीं न?”

“बिल्कुल नहीं ! बोलिये…”

“आप अभी चार पृष्ठ पढ़ कर सुनाई हैं , उनमें से एक शब्द खटक गया “ईमानदारी”… ईमानदारी हिन्दी शब्द तो नहीं … “अब चलता है” मत बोल दीजियेगा… ”

“लोगों को मिक्सचर पसंद आने लगा है।”

कंकड़ की फिरकी

 मुखबिरों को टाँके लगते हैं {स्निचेस गेट स्टिचेस} “कचरा का मीनार सज गया।” “सभी के घरों से इतना-इतना निकलता है, इसलिए तो सागर भरता जा रहा है!...