नौकरी करी तो ना ,ना करी
ना करी तो नौकरी ना करी
कहने सुनाने में बहुत आसान है
लेकिन
कभी कभी बहुत महँगा हो सकता है .....
सब ख्याल रखें .....
हमारे एक बहुत करीबी ,कई दिनों से सरकारी कार्य से टूर पर थे ….
कल लौटे और कल ही शाम ६ बजे से आज सुबह ८ बजे तक ऑफिस में काम किये ….
फिर ऑफिस से घर आये और घर आते ही उनकी मौत हो गई ….
उन्हें पहले से हार्ट प्रॉब्लम पहले से था ….
तूफानी हवा - बारिश और
थकान तथा वर्क प्रेशर या
मानसिक दबाब या
सब का मिला जुला असर उनकी जान ले गई ….
वे तो मुक्त हो गए ....
पीछे छोड़ गए अपनी पत्नी को ....
इस बेदर्द समाज में ….
जहां कोई किसी की नहीं सुनता…
समझना तो दूर की बात है ….
इसलिए ना कहना सीखें ....
मार्मिक प्रस्तुति. सवाल तो लाजिमी है.
ReplyDeleteआज के हालात में वर्क प्रेसर इतना बढ़ गया है कि ऐसी दुखद स्थितियां आम हो गई हैं ...बहुत सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन सबसे जरूरी है. उसके बाद ही सब कुछ. दुःख हुआ जानकर.
ReplyDeleteअत्यंत दुखद स्थिति में जीवन से हाथ धोने वाले महानुभाव को हार्दिक श्रद्धांजली।
ReplyDeleteआपका परामर्श बेहद सटीक है कि खास तौर पर नौकरी में 'न' कहना भी आना चाहिए। इसी प्रकार का परामर्श यशवन्त को मेरठ में उसी के एक अधिकारी ने दिया था। मेरठ में ही 1973 में मुझसे हमारे चीफ एकाउंटेंट सरदार अरुण भल्ला साहब ने कहा था कि हम लोग सहयोगी हैं -अफसर या मठट नहीं। नौकरी करते हैं लेकिन दब के नहीं।
Sahmat Hun....
ReplyDeleteआज के हालात ही कुछ ऐसे हैं..
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज बुधवार (16-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 147 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteएक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
This blog is open to invited readers only
Deletehttp://guzarish.blogspot.com/
मेरे दर्द को साँझा करने के लिए धन्यवाद और आभारी भी हूँ
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत मार्मिक !
ReplyDeletelatest post महिषासुर बध (भाग २ )
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
मेरे दर्द को साँझा करने के लिए धन्यवाद और आभारी भी हूँ
Deleteहार्दिक शुभकामनायें
मेरे दर्द को साँझा करने के लिए धन्यवाद और आभारी भी हूँ
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
दुखद .. बात सही है नौकरी में भी न कहना सीखना होगा .. साथ ही मालिकान को भी समझना चाहिए की अगर किसी को काम के पैसे दे रहे तो वो उनका जरखरीद गुलाम नही हो गया .. उसके जीवन के वो हकदार नही ..मानवीय मूल्यों को समझना हम सब के लिए जरुरी है ..
ReplyDeleteसही बात ...सेहत का ख्याल भी जरूरी है|
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति !
ReplyDelete@ Raj
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण