सिमरिया गंगा तट पर लगने वाला
विश्व प्रसिद्द राजकीय कल्पवास मेला आज से शुरू हुआ ....
धार्मिक कुंभ मेले को दुनिया में आस्था के सबसे बड़े आयोजन के रूप में देखा जाता है ....
अगर देखें तो वैदिक साहित्य में देश में
चार स्थानों पर कुंभ के आयोजन की बात कही गई है ....
प्रयाग (इलाहाबाद) , हरिद्वार , उज्जैन और नासिक .
यह तो सबको पता है कि इन स्थानों पर नियमित अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है .....
एक अन्य तर्क यह भी दिया जाता है कि
वैदिक काल में देश के 12 स्थानों पर कुंभ लगता था .....
लेकिन अब इनमें से 4 स्थानों में ही कुंभ आयोजित हो रहे हैं ....
इसी तरह बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया में आयोजित अर्द्ध कुंभ को ,
लुप्त हो चुके 8 कुंभ पर्वों को फिर से पुनर्स्थापित करने की शुरुआत बताया जा रहा है ...
''किसी भी धार्मिक ग्रंथ में इस बात का उल्लेख नहीं है कि
कुंभ मेला सिमरिया घाट पर हुआ करता था ''….
यह मेला आज से शुरू होकर १७ नवम्बर तक चलेगा .…
१८ अक्तूबर को ध्वजारोहण के साथ कार्तिक स्नान आरम्भ हो जाएगा ....
२३ अक्तूबर को प्रथम परिक्रमा सुबह आठ बजे आयोजित है ….
द्वितीय परिक्रमा १ नवम्बर और तृतीय परिक्रमा १३ नवम्बर को आयोजित किया जाएगा ……
२२ अक्टूबर से ही सिद्धाश्रम में पार्थिव पूजन कार्य क्रम भी शुरू किया जाएगा ....
१ नवम्बर को धन्वन्तरि जयंती .… २ नवम्बर को हनुमंत जयंती ....
३ नवम्बर को माँ लक्ष्मी पूजन .... ४ नवम्बर को गोवर्द्धन पूजा तथा
महाकवि कालिदास जयंती १३ से १५ तक त्रिद्विसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी .....
१५ नवम्बर को महा कवि विद्यापति स्मृति दिवस मनाया जाएगा तथा
इसी दिन महारुद्राभिषेक का कार्यक्रम भी आयोजित है ….
१६ नवम्बर को गंगा का पूजन तथा
वृहद दीप दान के बाद १७ नवम्बर को
ध्वज का विसर्जन किया जाएगा ....
जानकारी अनुसार मेला में खालासाधारी संत व
महंत और महामंडलेश्वर का पदार्पण हो चुका है ....
अच्छी जानकारी ... आस्था से जुड़े पर्व को मानना जरूरी है अपनी पहचान बनाए रखने के लिए ...
ReplyDeleteपुरानी स्वस्थ परम्परायें फिर से स्थापित हों। सुन्दर प्रयास।
ReplyDeleteपोंगापंथी पंडित हर 'पौराणिक' बात को सीधे 'वेदिक'युग से जोड़ देते हैं उनकी साजिश से बचने की बेहद ज़रूरत है। वेदों में किसी भी प्रकार के ढोंग का वर्णन नहीं है। व्यापारी गण अपने आर्थिक हितों के लिए पोंगा पंडितों से पुराण आदि की आड़ लेकर इस प्रकार की खुराफातें आयोजित कराते रहे हैं जिनमें फंस कर सर्व साधारण सदा गरीब और जाहिल बना रहे। आवश्यकता है इन लोगों का पर्दाफाश करके जनता को इनसे दूर रखने की।
ReplyDeleteमनोहारी चित्र.पुरानी परम्पराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास है ,अर्धकुम्भ.
ReplyDeleteनई पोस्ट : लुंगगोम : रहस्यमयी तिब्बती साधना
अच्छी जानकारी .... दी है आपने
ReplyDeleteबहुत बढ़िया......
ReplyDeleteशुक्रिया और आभार भी छोटी बहना
ReplyDeleteवैसे तो मैं आपके सब पोस्ट पर आने की कोशिश करती हूँ
इस बार आना तो फर्ज़ रहेगा
कार्तिक मास में यूँ भी नदी तालाब के जल में स्नान करना पूरे महीने ही चलता है , ऐसे में स्वस्थ परंपरा जीवित हो , अच्छा ही है !
ReplyDeleteसुन्दर दृश्य !
अच्छी जानकारी. पिछली बार गाँव गया था तो सुना था सिमरिया से गंगा दूर होती जा रही है.
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ReplyDeleteधन्यवाद विभा जी !
ReplyDeleteधर्मिकतापूर्ण प्रस्तुति .....कभी कभी ऐसी जानकारी भी दिल को सुकून पहुंचाती है ....
ReplyDeleteकल्पवास मेले के ऊपर सुन्दर जानकारी.. .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (21.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
ReplyDeleteसुंदर जानकारी |
सकारात्मक उर्जा से भरा |
हमारी आस्थाओं और परम्पराओं को नयी उर्जा उत्साह से रंग देते हैं
ReplyDeleteऐसे विशेष आयोजन---
बहुत सार्थक और रोचक जानकारी दी है- आपने
सुंदर चित्र संयोजन----
सादर
सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : चित्तौड़ की रानी - महारानी पद्मिनी
अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
सुन्दर प्रस्तुति, जानकारी से परिपूर्ण।
ReplyDeleteकल्पवास मेले के बारे में सुन्दर जानकारी.. .हमे तो पता ही नहीं था
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