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इक कहानी
चार दीप थे दोस्त
फुसफुसाते
गप्प में मशगुल
एक की इच्छा
बड़ा बनना था
मायूस रोया
ना था वो सुन्दर
छोटा दीया था
आकर्षक नहीं था
दूजे आकांक्षा
भव्य मूर्ति बनना
शोभा बढ़ाना
अमीर घर सज्जा
ना जा सका वो
आलिशान भवन
हुआ हवन
तीजे महोत्वाकांक्षा
पैसे का प्यासा
गुल्लक तो बनता
भरा रहता
खनक सुनता वो
चांदी सोने की
न यंत्रणा सहता
आकंठ डूबा
बातें सुन रहा था
चौथा दीपक
संयमी विनम्र था
हँसता हुआ
वो आया बोला
आपको बताता हूँ
राज की बात
एक छूटा तो
सब ना रूठा सोचो
साथ ईश का
हमें जगह मिली
पूजा घर में
तम हराए
उजास फैला हम
दीपो का पर्व
सब करे खरीदारी
दीवाली आई
क्यूँ बने हम
रोने वाला चिराग
राह दिखाने वाले
कुछ उदेश्य रख कर आगे पूरी मेहनत से उसे हासिल करने के लिए प्रयास करना उचित होता है ....
लेकिन यदि हम असफल हुए तो भाग्य को कोसने में कभी भी समझदारी नहीं है .... यदि हम एक जगह असफल हो भी जाते हैं तो और द्वार खुला मिलता है .... जीवन में अवसरों की कमी नहीं होती है समझो
हमेशा नहीं होता
चिराग तले अँधेरा ....
अँधेरे का रोना ,
रोना बंद ....
बहुत सुन्दर ! दिवाली की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
bahut sundar
ReplyDeletesahi kaha aapne ek dwar yadi band hota hai to dusra dwar khula mil hi jaata hai............. bahut sundar rachna.
ReplyDeleteमन में आशा भरने वाले भाव लिखे हैं ...
ReplyDeleteवैसे भी रात के बाद सुबह जरूर आती है ...
सकारात्मक भाव जगाती अति सुन्दर रचना....
ReplyDelete:-)
सादर प्रणाम |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना |सुंदर छवियाँ |अच्छा लेखन|
सुन्दर बात कही है आपने. दीवाली की अग्रिम शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteकल 31/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-31/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -37 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
सुन्दर भाव ,तम तिमिर धरा के मिट जायेंगें ,जब भोर सुहानी आएगी
ReplyDeleteसुन्दर बात कही है आपने Tai ji :))
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ..धनतेरस की शुभकामना!
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