Thursday, 29 February 2024

वामन का चाँद छूना : २९ फरवरी २०२४

“स्तब्ध हूँ! यह पोशाक विदेशी दुल्हन का होता है जो यह सिर्फ़ एक तस्वीर खिंचवाने के लिए शौक़ से पहन ली हैं!”

“तो क्या हो गया! हिर्स में पहन ली!”

“हुआ कुछ नहीं… अभी उनके माथे से सिन्दूर पोछाए हुआ ही कितना दिन है! क्या ज़रा भी मलाल झलकता है आपको? भगवान ना करे किसी पर ऐसा दिन आए लेकिन आ गया तो थोड़ा तो लोक लिहाज़ का ख़्याल कर आज़ाद होने के दिखावे से परहेज़ किया जाना चाहिए कि नहीं?”

“किस लोक लिहाज़ की चर्चा कर रही हैं! उसी लोक लिहाज़ की जिसके कारण आप अपने को ड्योढ़ी के अन्दर क़ैद कर ली हैं! व्रत त्योहार में भी पैर हाथ नहीं रंगती हैं!”

“मैं तो किसी आयोजन में नहीं जा पाती हूँ!  हित नात वाले लगातार फोन पर खोज-ख़बर लेते हैं…! मेरी देवरानी मुझसे बहुत छोटी है वो भी मुझसे ज़्यादा दयनीय स्थिति में समय गुज़ार रही है!”

“अपने हित नात वालों के लिए उनका हद तय कर दें! आप से उम्मीद की जाती है कि अपनी देवरानी के लिए आप बड़ी बहन बन दोनों के राह के काँटें हटा सकती हैं!”


Sunday, 4 February 2024

मानी पत्थर

 “दो-चार दिनों में अपार्टमेंट निर्माता से मिलने जाना है। वो बता देगा कि कब फ्लैट हमारे हाथों में सौंपेगा! आपलोग फ्लैट देख भी लीजिएगा और वहीं से हमलोग ननद के घर रात में रुककर, दूसरे दिन वापस आएँगे..!” देवरानी ने कहा।

“तुमलोग चली जाना, मैं नहीं जा सकूँगी।” जेठानी ने कहा।

“क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” देवर ने पूछा।

“देखूँगी न! अवश्य देखूँगी जब आपलोग उस घर में व्यवस्थित हो जाएँगे। आ जाऊँगी किसी दिन आपके घर से मिलने।” भाभी ने कहा।

“इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” जेठानी के पति ने कहा।

“तब क्या अलग बात नहीं थी जब आपने फ्लैट खरीदा था। ख़रीदने के पहले कम से कम दस फ्लैट को जाँच-परखकर, मोल-भाव हुआ होगा। नहीं-नहीं पहले तो योजना बनी होगी; उसके पहले भी रक़म जमा की गयी होगी। किसी एक पड़ाव पर मेरे कानों तक बात पहुँची होती।” जेठानी ने कहा।

“लगभग बीस-पच्चीस साल पुरानी बातों का क्या बदला लेना चाह रही हो?” जेठानी के पति ने पूछा।

“बदला! किस-किस बात का बदला लूँ और क्या उस पल का बदला लिया जा सकता है? आपके संग आपसे मिले सारे रिश्तों ने मेरे सम्मुख केवल अपनी-अपनी माँग रखी। और मैं अधिकार का बिना कोंपल उगाये अपना संपूर्ण अस्तित्व कर्त्तव्यों के पीछे विलीन कर सारी उम्र ख़र्च कर गयी। आपने अपने मित्र और उनकी पत्नी के संग बड़े से फ्रेम में लगी अपनी जो तस्वीर को अलमीरा में डाल रखा है। आप दोनों मित्र एक दिन ही सेवा निवृत हुए थे। मैं अपने बुलावे का देर रात तक प्रतीक्षा करती रही…।” जेठानी ने कहा।

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...