Tuesday 28 August 2012

# चंदा-मामा दूर के ,पुआ पकावे गुड के #

# चंदा-मामा दूर के ,पुआ पकावे गुड के #


















चाँद        माँ मुझे उसे दिखा चुप कराती-सुलाती थी !
चाँद        जब मैं बड़ी हुई तो उसकी चाँदनी मुझे बहुत अच्छी लगने लगी थी !
चाँद        मैं अपने बेटे को उसे दिखा चुप कराती-सुलाती थी !
चाँद        वैज्ञानिको के लिए कौतुहल-खोज का विषय-वस्तु रहा है ये !
चाँद       हसीनाओं के दिल में ख़ुद के चाँद होने का गुमान होता है !
चाँद       हमेशा से ये गीत-संगीत-कविता के रचियेता का प्रिय माध्यम रहा है !
चाँद       प्रीत में प्रीतम अपनी प्रीती की तुलना उससे ही तो करता है !
चाँद       कुछ के सर पर भी बिराजमान होता है ,तो पैसे वाला समझा जाता है !
चाँद       देख-देख उसे चातक-चकोर को मदमस्त होते भी सुना है !
चाँद       समंदर के ज्वार-भाटे को उसे देख उफनते तो देखा भी है !
चाँद      अनुभव करना है ,चांदनी रातों में पैर के नस क्यों ज्यादा मोटे हो जाते हैं ?

जैसे नीले-नीले सागर का नीर या नीले-नीले अम्बर के आंसू भरे हों !
जब इन पैरो को थमने-थकने की इजाजत नहीं थी उस समय ....
तुम्हारे नज़रे इनायत होना और ये बेहतरीन तौहफा मिलना (^_^)
शुक्रगुज़ार हूँ ....
तुम यूँही कृपानिधान - विघ्नहरता तो नहीं कहलाये ....
अरे तुम्हे नहीं पता , तुम तो हर जगह व्याप्त हो ....
अभी तो इन अंगुली में भी होगे ही !
या ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तप्त,दग्ध कंदराओं में ध्यानमग्न एकांतवास लिए
अश्रुओं से नम आँखों से देख नहीं पाए ....
एक ही पैर पर ... अरे नहीं दुसरे के लिए कुछ और सोचा होगा .... (*_*)
व्हील - चेयर की व्यवस्था करनी होगी क्या ?(^_^)



भारतीय अधिकारियों की चाँद की सतह पर नज़र

बाएं पैर में कई दिनों से दर्द था .... मैं समझ रही थी कि काम ज्यादा करने से हो रहा है  ....
कल सब्जी-भाजी-दूध लेकर सड़क पार कर रही थी ,तो एक मोटर-साईकिल आकर पैर पर ठोकर मार दिया ....
Dr. से दिखलाना पड़ा .... !
उन्होंने ने कहा पैर में फाइलेरिया भी है .... (*_*)  
मुझे किसी वजह से दर्द ज्यादा हो तो मैं बोलती हूँ , गुदगुदी कर रहा है (^_^)
तो
कल से गुदगुदी कुछ ज्यादा हो रहा है (*_*)   






    

Sunday 26 August 2012

शिकायत ना थी ,ना शिकायत होगी !

                     

घर में 8-9 महीने के बीच मेरे करीबी 6 रिश्तेदारों की मौत .... 
जब जो देता है .... छप्पर फाड़ के देता है ....
ससुर जी को अन्तकाल तक पहुंचा कर ,
निम-बेहोशी और भयानक दर्द ,
तथा गले से पानी का ना उतरना ....
पति - महाशय को body ache, fever,vomiting और loose motion .....
मुझे किसी चीज से Allergy ....
सर से पैर तक खुजलाहट और फोड़ा ....
देखना है ,तुम कितना दे सकते हो ?
आज तक तुमने यही तो दिया है !
तुम्हे जिद है देने की ....
मुझे जिद है लेने की ....
तुम्हारी कोई हद नहीं ....
मेरी कोई सीमा नहीं ....
तुम परीक्षा लेते हो ?
मैं प्रतीक्षा करती-हंसती हूँ ,रोक लेते हो ?
सब बोलते , नियति हैं ,मेरी ....
सब समझते क्यों नहीं , प्रवृति है तुम्हारी ....
मेरी बैचैनी-छटपटाहट देखने की लालसा है तुम्हारी ....
थकोगे तुम ,हारोगे तुम ,झुन्झलाओगे तुम !
कल भी तुमसे शिकायत ना थी !
कल भी तुमसे शिकायत ना होगी !

Monday 20 August 2012

#यूँ ही कुछ बेमानी #



आकाश को कागज और
समुन्दर को स्याही बना लिया जाए और
तब कोई रचना की जाए तो भी ,
पापा - माँ की और उनलोगों  के ममता की ,
वर्णन 
नहीं किया जा सकता ..... !!

२० अगस्त मेरे लिए मनहूस :'(

आज मेरी माँ की पुण्य-तिथि है !
मेरी माँ को गुजरे 33 साल गुजर गए .... :'( 
मैं आभारी हूँ ,अपनी जन्मदात्री की .... !!
15 वर्ष तो गुजर गए ....
नकचढ़ी - मनसोख बेटी बने रहने में .... 
माँ कुछ भी सिखाना चाहती ,
उसमें मेरा टाल-मटोल होता ,
किसी दिन .... किसी दिन ,अगर चावल चुनने बोलती ,
मेरा सवाल होता *आज ही बनाना है .... ?
तब ,तभी मुझे पढ़ना होता ....
मुझे जब जो चाहिए ,तभी चाहिए होता ....
पापा का नाश्ता-खाना निकलता ,उसी में मुझे खाना होता ....
पापा के खाना खा के उठने के पहले ,मुझे उठ जाना होता ....
अलग खाने से या पापा के खाने के बाद ,
उठने से थाली हटाना होता ....
जो मुझे मंजूर नहीं होता ,भैया जो नहीं हटाता .... !!
(छोटी सी घटना :- मैं ,स्कूल के ,15 अगस्त के झंडोतोलन की हिस्सा थी .... मुझे नई ड्रेस चाहिए थी(वो तो एक बहाना था ,मुझे तो रोज नई चाहिए होता था) ....11अगस्त को स्कूल से आकर शाम में बोली मुझे नयी ड्रेस चाहिए....13अगस्त को शाम में नयी ड्रेस हाजिर .... लेकिन गड़बड़ी ये थी मुझे चुड़ीदार पैजामा चाहिए था वो सलवार था .... रोने-चिल्लाने के साथ सलवार के छोटे-छोटे टुकड़े कैंची से कर दी ....
मझले भैया के बदौलत 14अगस्त को शाम तक नई चुड़ीदार पैजामा हाजिर .... :D)
 पापा ज्यादा प्यारे लगते ,
वे अनुशासन नहीं करते ....
भैया माँ को चढ़ाते ,
*बबुआ के दूसरा के घरे जाये के बा ,
लड़की वाला कवनों गुण नइखे ,
हंसले छत उधिया जाला* .....
माँ की भृकुटी क्यों तनी रहती ,
मैं आज तक भी नहीं समझी ,
मैंने बेटी नहीं *जना है ....
लेकिन भैया के मरने के साथ ,
आपका आत्मा से मरना खला है ....
एक बेटी-एक बहन ,एक समय में 
दोनों की माँ की भूमिका अदा की है ....
एक हथेली की थपकी ,
भाई(बहुत छोटा था,रोने लगता था) जग जाए....
एक हथेली की थपकी ,माँ कुछ पल सो जाय ....
और हर रात मेरी जागते कट जाती .....
आप ये नहीं सोचीं ,बचे हम ,
चारो(भाई-बहन) को भी आपकी जरुरत होगी ....
आप ये क्यों सोची .... 
जो चला गया वो आपका था ,
जो आपका था , आपके साथ था ....
कुछ तो सोची होती .... !!
जब मेरी शादी हुई  .... ,
बिदाई के वक्त ,घर-भराई के चावल ,

आपके आँचल के मोहताज रहे ....
जब पग-फेरे के वक्त या जब-जब घर आई ,
आपके आलिंगन की मोहताज रही ....
जिन्दगी ने जो लू के थपेड़े दिए ,
आपकी ममता ,शीतल छाँव तो देती ....
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की हूँ दिमाग कहता है ,
आज तक ,आप ना होती ....
दिल करता है ....
आप होतीं ,गोद में सर रख ,
रोती-खिलखिलाती-सोती ....
आपको ,किसने हक़ दिया ,
आप मेरे गोद में ,चिरनिंद्रा में सो गईं .... :'(
माँ - मार्गदर्शिका ,सखी खो गई .... !!
आपने बीच मंझधार में छोड़ा है .... :'(


माँ ,मैं जो हूँ .... जैसी हूँ .... आपने गढ़ा है .... !!

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...