तीन - तीन अग्रजों की दुलारी तेतरी ....
इठलाती - इतराती , तेरह बसंत देखे ,
तो जैसे एक खिलौना ,अनुज मिला ....
बड़े भैया ,भाई के साथ पिता का ,
(कन्या दान नहीं) ,कर्तव्य निभाया ....
छोटे भैया ज्यादा तंग करते ,
Rs.दो तो राखी बंधवाउंगा कहते ....
अनुज ,भाई कम ,बेटा ज्यादा लगा ,
छोटा था तो उसने माँ को खो दिया ....
मझले भैया सबसे ज्यादा प्यार करते ,
प्यार से उसे ढिबरी बुलाते ....
लेकिन 23 जुलाई को जब राखी
चार दिन बाद था ,तेतरी को
रोता -विलखता छोड़ गये ....
उस साल राखी नहीं मना ....
आज भी ढिबरी 4राखी खरीदती है ....
3 अंक अपशगुन होता है ?
नहीं ! आज भी उसे लगता है ............................................ !
और भाई भी बेकरार रहते ,वे निराश न हों ....
उनसे भी बहुत प्यार करती ,वे दुखी न हों ....
तेतरी न रही तो क्या हुआ ढिबरी तो है ....
आँखें नम रहती , होठों पर मुस्कान होते ....
बड़ा सादा त्यौहार मनता है ,उसका रक्षा बंधन ....
# (तीन बड़े भाई के बाद जो बहन पैदा हो ,उसे तेतर कहते हैं) #