Thursday 30 September 2021

'त्रासदी'

01. मैं बक संग

अनिर्णीत दौड़ में

सन्धिप्रकाश

02. स्त्री के हाथों में

हारिल की लकड़ी

फौजी की चिट्ठी

03. खेमा में आये

शरणार्थी का रेला

श्वान का रोना

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ठाढ़ा सिंह चरावै गाई का

ना ऐसा हाल था

चींटी मुख में हाथी

समा जाए का काल था

गार्गी सूर्या मैत्रयी सुलभा के बाद आयी

सावित्री बाई अरुणा सुचेता दुर्गा बाई

उत्‍तमोत्‍तम ओजोन थीं

ओजोन में छेद होते ही

खूँटे के बल पर उछलने वाली

व्यथा व्यक्त करने में हो गयी असमर्थ

पल लहरों के संग ही तो बहा है सपना

योजन में कद बढ़ न सका है अपना

मीन वाले जाल में टूटे पँख कैसे मिले

उड़ने की चाह में समझौते के कैसे गिले

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कल किसी से मेरी बात हो रही थी कि उसकी स्थिति उसे बेटी होने से दोयम दर्जे की है तो उसकी सहेली को बेटी हुई तो उसके तथाकथित अपने उससे मिलने अस्पताल नहीं आये

हम इकीसवीं सदी में पहुँच गए और आज भी बेटी बचाने बेटी पढ़ाने के लिए गुहार लगा रहे हैं 

मन मछलता है तो हम लेखन कर सन्तुष्टि पा लेते हैं... समाज की दशा बदलने हेतु एक दिशा देने का प्रयास करते हैं लेकिन सुधार कितना दिखलाई दे रहा है

जब मैं सारे प्रान्त से आयी महिलाओं से मिलती हूँ और व्यथा की कथा सुनती हूँ कि आज भी बेटी जन्म लेने पर परिवार वाले कैसा व्यवहार करते हैं तो विश्वास करने का जी नहीं करता है क्योंकि हम बदली दुनिया में जी रहे हैं..

 शादी के एक महीना बीतने के बाद ही या तो बहू जला दी जाती है या कन्या तलाक की मांग कर लेती है

और दहेज लाने के लिए प्रताड़ित की जाती है या वर पक्ष को प्रताड़ित करने के लिए झूठा आरोप लगाया जाता है

बार-बार बयान बदलने वाले समाज में हम जी रहे हैं किसका पक्ष लें... आज का जब इतिहास लिखा जाएगा तो लिखने वाले का भूगोल बदल जायेगा

Friday 24 September 2021

'हाथी के दाँत'


"सावन माह में रिमझिम व तेज बरसात होती है। मगर इस बार सावन में सूखा पड़ जाने से गर्मी व उमस में निकल रहा है।"नूतन जैन ने कहा।

"खरीफ की फसल को जलता देख बारिश की कामना को लेकर जगह-जगह पर सामूहिक सहयोग से 24 घंटे की अखण्ड रामधुनी का, रात जागरण का आयोजन किया जाता, बालाजी की भव्य झांकी सजाई जाती है।"मीरा सिंह ने कहा।

"बरसात के लिए पेड़ों की अहम भूमिका होती है..सागौन,  देवदार, आम, नीम, वट वृक्ष, पीपल शीशम के पौधे हम लगा.., अरे आपकी छतरी वाली टोपी तो बहुत ही सुन्दर लग रही है आपदोनों पर जँच भी रही है। कहाँ से और कितने में लीं?" नूतन जैन ने पूछा

संगनी क्लब की ओर से आयोजित पौधा रोपण कार्यक्रम में शामिल सँगनियों चरमोत्कर्ष पर हर्षोल्लासित नूतन जैन, सीमा अग्रवाल, मीरा सिंह , सुषमा माथुर, रंजना सिन्हा इत्यादि का ध्यान बदले विषय की ओर चला गया।

"बिग बाजार से तीन सौ में।" मीरा सिंह ने कहा।

पौधा रोपण आयोजन समाप्ति के बाद घर वापसी पर मीरा सिंह को सीमा अग्रवाल ने अपने सवालों के घेरे में लिया,"इसलिए आप बिग बाजार में सदृश टोपी देखकर उछल पड़ी थीं। वो तो लेख्य मंजूषा की ओर से पुस्तक लोकार्पण में हम नालन्दा भग्नावशेष देखने गए थे, नसीम अख्तर जी के मोल भाव के बाद दुकानदार ने मछलकर सौ-सौ रुपये में हमें टोपी दिया था । उस दिन आप दुकानदार को टोपी पहना देने पर व्यंग्य कर रही थीं.. आज नूतन जैन जी को भी टोपी...,"


Wednesday 22 September 2021

अंधेर नगरी...,

                         "शनिवार रात्रि 12 बजे तक ही प्रतियोगिता हेतु रचना पोस्ट करने की अनुमति थी... रचना रविवार को पोस्ट हुई... और विजेता के लिए चयन कर ली गयी... क्या आप चकित नहीं हो गयी..?"

 "तभी मुझे लगा कि शनिवार को मैं सब रचनाएँ पढ़ी थी। पर यह मुझसे छूट कैसे गयी..! आप उन्हें लिखें दी। सर भी तो उस समूह में एडमिन है।"
 "जब रविवार को रचना दिखलायी दी तभी मुझे तो परिणाम का अंदाज़ा हो गया था..। आपके सर जी भले विधा के ज्ञाता हों लेकिन ईमान के पक्के नहीं लगते...। शनिवार की देर रात्रि की प्रस्तुति का कह देगा लोग..,"

"कितनी बार मैं शनिवार रात 11:30 के समय अपनी रचना पोस्ट की हूँ तो वह शामिल नहीं की गई है।"

"आप उनके कुनबे (लॉबी) की नहीं हैं...। ऊँची दूकान...,"



Sunday 19 September 2021

पिण्डदान


"सितम्बर की उमस भरी दोपहरी में नालन्दा के खंडहरों में पुस्तक लोकार्पण करने का निर्णय करना क्या बुद्धिमत्ता है?" सम्पादक की ओर पत्रकार का प्रश्न उछलकर आया।

"क्या करूँ..! पितृपक्ष लगभग सितम्बर में ही आता है। वैसे भी जब मन अवकाश में होता है.. शीतलता उष्णता का अनुभव कर लेता है। अगर मजबूरी में आना होता तो शायद बुद्धिमानी नहीं होती.. लेकिन हमारे पास वातानुकूलित स्थल होने बाद भी हम यहाँ आये। संस्थापक कुमारगुप्त प्रथम को विश्वास दिलाना था... स्वर्ण काल का इतिहास दोहराया तिहराया जा सकता है।"

"आपकी हैसियत एक बूँद की है और ऐसी बात...,"

"क्या बिना बूँद के... झरना, नदी या समुन्दर की कल्पना...,"


'अवमानना'


चिलचिलाती धूप और भादो की उमस भरी दोपहरी में घर-घर जाकर वैक्सीन ले लेने के लिए अनुरोध कर रहे अध्यापक अध्यापिकाएं। बहुत देर तक दरवाजा थपथपाने पर दरवाजा खोलती महिला के चेहरे पर क्रोध झुँझलाहट स्पष्टरूप से दृष्टिगोचर हो रहा था,"आप! आज क्या काम है? कुछ दिनों पहले ही तो जनगणना हुआ है..,"

"जी! मैं तो सन्देशवाहक हूँ...। आज राष्ट्रनायक का जन्मदिन है। जनमोत्स्व पर सौ फी सदी वैक्सिनेशन करवाना है..,

"अच्छा तो अब आपलोगों को इस कार्य में भी लगा दिया गया। राष्ट्रसेवक को राष्ट्रनायक कहकर ही तो अनुरोध को आदेश में परिवर्त्तित कर दिया जा रहा है..।"

"हम तो मजबूर हैं , 'नौकरी करी तो ना ना करी' के अधीन। आप अपनों के साथ वैक्सीन लेने स्थल पर जरूर जाएं..,"

"आज विश्वकर्मा पूजा है.. सौ फी सदी क्या पच्चीस फी सदी भी वैक्सिनेशन नहीं हो पायेगा।"

"हमारा वेतन कट जाएगा..."

"क्या फर्क पड़ता है...? यूँ भी सरकारी विभाग में आपके मजदूरी के बहुत भागीदार हैं...,"

Saturday 18 September 2021

दासता है

 हम 

मातृ, कन्या, बालिका, महिला, बेटी,

वृद्ध के संग हिन्दी दिवस भी मनाते हैं।

विलोपित को याद करते हैं या

सतत विलोपित में सहायक होने का त्योहार मनाते हैं

जिन शब्दों का हिन्दी तथाकथित क्लिष्ट नहीं है

उसका भी आंग्ल प्रयोग करते हैं और 

सामयिक मांग गर्व से कहते हैं।

अधिकांशतः

उपहास उड़ाने वालों को

दर्पण भेंट देना भूल जाते हैं।


हिन्दी के वासी हिन्दी की बधाई देते हैं

इक दिवस की नहीं प्यासी हिन्दी 

आंग्ल की है नहीं न्यासी हिन्दी 

हँसते, रोते हैं कभी हम उदास होते हैं

सांस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।


आंचलिक शब्द हमें रास नहीं आते हैं

हम इन्हें हिन्दी का दुश्मन तलक बताते हैं।

और अंग्रेजी हेतु सूरदास होते हैं

सांस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।


कौन कितना गलत नहीं हमें बहस करनी है।

राष्ट्रभाषा हेतु प्रवाहित समर करनी है।

निर्णीत अपने धर्म का पालन सहर्ष करते हैं,

सांस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।

Friday 10 September 2021

कृतघ्न

01. मेघ के स्पर्धा

अभिनय की मुद्रा

हवाई यात्रा

02. हौले से चढ़े

एक-एक सीढ़ियाँ

गुरु का ज्ञान

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"ओ! मिट्टी के लोदा। जितना साल वनवास भोगा गया था न उससे कुछ साल ज्यादा ही लगा था तुम्हें गढ़ने में... वनवास खत्म होते-होते दशहरा दीवाली मनी थी.. तुम से गढ़ने वाले कुम्हार पर कितने आरोप लगाए गए... शिशुपाल की सी हरकत..."

"जिसने गढ़ा था उसने मिटाने की कोशिश भी किया..,"

"धत्त! जिसकी आत्मा मर चुकी हो उसको और कोई क्या मिटा सकेगा...।"

Sunday 5 September 2021

शिक्षक दिवस की बधाई


#शिक्षक नहीं बनी... अपनी शिक्षा के लिए ऋणी हूँ...
अवसर है बाँटने का

'ज्ञान"

"पिता जी के श्राद्ध के दिवस के लिए मैं इक्कीस पण्डित को न्योता दे आया हूँ.."
"इक्कीस पण्डित से क्या होगा भैया कम से कम इक्यावन पण्डित को बुलाया जाएगा..,"
"यह तो सही नहीं है बुआ...। ग्यारह पण्डित को बुलाना सही होता..., जब एक पण्डित तीन-तीन थाली भोजन लेते हैं तो इक्यावन पण्डित के लिए कितने थाली... "
"यह हमें निर्णय करने दो। बड़ों के बीच में तुम नहीं बोलो। तुमने दुनिया देखी ही कितनी है?"
"हमें दुनिया दिखलाने वाले ने ही बतलाया है कि महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुँची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ में  नहीं आ रहा था , उसे आहार की आवश्यकता थी।

उन्होंने देवता इंद्र से पूछा कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया जा रहा है। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बतलाया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सका।

इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और उसे सोलह दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जिससे वह अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया।"
"तुम्हें सत्य बतलाया गया है। इसलिए तो मैं कह रही हूँ कि ज्यादा से ज्यादा पंडितों को बुलाया जाए..,"
"इसमें दादा को क्या मिलेगा.. दादा को तो वही मिलेगा जो उन्होंने अपने जीवन में...,"

Saturday 4 September 2021

भाग लें..!

 01. कर्मी बटोरे

तितली के पखौटा

भगौड़ा तम्बू

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02. बैले नृतन

फव्वारा में उछाले

कंधे से सिक्का

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गोरे जेलर ने देखा कि जिस युवक को कल फाँसी दी जाने वाली है उसके चेहरे पर मनोहारी मुस्कान फुट रही है.. और बड़ी आत्मीयता के साथ वह उसका अभिवादन कर रहा है..। जिस दिन से यह सुदर्शन कैदी जेल में आया जेलर के विचार-धारणाओं में क्रांतिकारी परिवर्त्तन होने लगे..। जेलर से रहा नहीं गया उसने पूछ लिया, “तुम इतने प्रसन्न क्यों हो ?” “मैं अगले जन्म की तैयारी में व्यस्त हूँ...!” युवक ने कहा जेलर को आशा थी कि युवक राष्ट्र पर अपने बलिदान के सौभाग्य पर प्रसन्न होगा पर विपरीत उत्तर पाकर कहा, “आज तो हँस रहे हो कल तुम्हारे यही मुस्कुराते होठ मत्यु की कालिमा से काले पड़ जायेंगे..,” फाँसी के तख्ते पर जब युवक को खड़ा किया गया और जल्लाद ने गले में रस्सी के फन्दे को डाला तो उसने मुस्कराकर पूछा- ‘क्या यह रस्सी थोड़ी मुलायम नहीं हो सकती थी? बड़ी खुरदरी और कड़ी है गर्दन में लगती है, भाई!’ युवक को मिले फाँसी के बाद जेलर ने चेहरा देखा ... युवक के चेहरे पर वही अमर मुस्कान बिखरी हुई थी..। मत्यु की कालिमा का कोई चिह्न वीर के शरीर पर नहीं था...। फाँसी के बाद शहीद का शव लेने आये बड़े भाई की रुलाई नहीं थम रही थी ...। गोरे जेलर ने उनकी पीठ को थपथपाते हुए कहा, आप रोते क्यों हैं जिस देश में ऐसे वीर पैदा होते हैं वह देश धन्य है मरेंगे तो सभी .., अमर होकर कौन आया है पर आपके भाई जैसे भाग्यवान कितने होते हैं ...?” सबने विस्मय से देखा गोरा अधिकारी स्वयं रो रहा था जैसे उसका अपना भाई दिवंगत हो गया हो ...। बड़े भाई ने शहीद के मुख पर से कम्बल हटाया तो देखा कि उनके शहीद भाई उन रोने वालों पर हँस रहे थे...। तालियों के शोर के बीच मंच से माइक पर नाट्य प्रस्तुति के संचालक बता रहे थे, "हम सभी अभी देख रहे थे वीर क्रांतिकारी शहीद कन्हाई दत्त की कथा पर नाट्य प्रस्तुति...। मैं बेहद शर्मिंदा हूँ कि मुझे वीर क्रांतिकारी शहीद कन्हाई दत्त के बारे में पहले से पता नहीं था ...। उनके रूप का अभिनय करने वाले छात्र ने ही हमें बताया और विदेशों में निवास करने वालों के संग पूरे देश में स्वतन्त्रता दिवस का अमृतोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाने के क्रम में नाट्य प्रस्तुति देने का प्रस्ताव रखा।” दर्शक दीर्घा में उपस्थित अभिनय करने वाले के माता-पिता को अपने कानों से सुनी और आँखों देखी बात पर विश्वास करने में असमर्थता हो रही थी ...। माता को निंदा रस में बड़ा मजा आता था जिसके कारण कुछ महीनों पहले तक पुत्र के चुगलखोरी की आदत के कारण रिश्तेदारों के सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा था वो आदत छूट रही थी..."अजी! हमारे बेटे ने कब दिशा बदल ली और सही के रेस में शामिल हो गया यह हमें पता भी नहीं चल पाया..!" माता ने पिता से कहा। "मैं तुम्हें सदा कहता था.. हमारे बच्चों का नजरिया बिगड़ने लगेगा वो सच को अनदेखा करना सीख जाएंगे.. । चुगलखोरी उसको बेसिर पैर की बातें बनाना सिखा देगी...। यह बहुत ही जोखिम भरा स्वभाव है जो बच्चे में तब ही विकसित होता है जब माता या पिता उसमें रूचि लेते हैं, क्योंकि उनके द्वारा बताई जानेवाली ख़बरों का अंदाज बहुत ही रोचक होता है। भले ही आधार ख़ुद बच्चे को भी मालूम नहीं होता..। ऐसी बातों को अहमियत न दो..। वरना हमारे बच्चों के सोचने का तरीका बेढंगा होता जाएगा और उनका भविष्य अंधकारमय होता चला जायेगा। बालमन बहुत ही उत्सुक हुआ करता है। अक्सर बच्चों की आदत होती ही है कि वे अपने तथा औरों के घर की बातें आते-जाते कान लगाकर सुनने की कोशिश करते हैं। ऐसे में हमें प्रयास करना चाहिए कि हम जब भी कोई ऐसी बात कर रहे हों तो सामान्य बनकर करें ताकि बच्चों में कान लगाने वाली आदत विकसित न हो सके। जब माता का ही अपनी भावनाओं पर कोई काबू नहीं हो और हमेशा आक्रोश में आकर बगैर कुछ सोचे समझे अडो़स -पड़ोस, नाते रिश्तेदारों की बातें बच्चों के सामने बेहिचक कर देती हो...। माता की बातें सुनकर उसके बच्चों के मन में भी संबंधित व्यक्ति के लिए बहुत ही गलत भावना पैदा होने लगती है और सामाजिक- पारिवारिक उत्सवों में बच्चे उस रिश्तेदार की बहुत सारी चुगली खुलेआम कर देते हैं.. माता पिता और वहाँ उपस्थित बाकी सब भी हक्के -बक्के से रह जाते हैं कि बच्चों के मुख से ऐसी बातें आखिर निकलीं भी तो निकली कैसे .. जो तुम्हारे कारण हमारे कन्हैया में आदत बनती रही..।" एक बार फिर पिता अपनी बात रखने का प्रयास किया। "कुछ दिनों पहले तक जो विद्यार्थी पूरे विद्यालय के लिए सिरदर्द बना हुआ था आज अपने कक्षा का सिरमौर हो गया है। संयोग देखिए इसका नाम भी कन्हैया है..," "हमें क्रांतिकारी कन्हाई लाल दत्त के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध करायी जाए.., पत्रकार दीर्घा से स्वर गूँजा। "यह अकाट्य सत्य है कि सर्वप्रथम अंग्रेजों ने बंगाल में ही अपने चरण रखे। उसी भूमि पर शक्ति अर्जित कर सारे भारतवर्ष पर शासन चलाया, उसे सुदृढ़ किया अर्थात् बंगाल से ही उनके स्वर्णिम स्वप्न साकार हुए।बंगालियों ने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शिक्षा, वेश-भूषा, रहन-सहन और उनकी संस्कृति की नकल करते हुए स्वयं में परिवर्तन किये। अंग्रेजों के सहयोगी, वफादार और नौकरियों में भद्र बंगाली पुरुष ही अधिक हुए। इसी प्रकार जब अंग्रेजी राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की इच्छा जाग्रत हुई तो यह भी सत्य है कि बंगाल के लोगों ने ही बगावत का बिगुल बजाया, गोरी सरकार की जड़ों को समूल नष्ट करने के लिए सर्वप्रथम बंगालिगों ने ही हथियार उठाकर चलायी। सन् 1888 के 30 अगस्त कन्हाई लाल दत्त का जन्म कृष्णाष्टमी की काली अधेरी रात में अपने मामा के घर चन्दनंनगर में हुआ था, कदाचित् इसी से उनका नाम कन्हाई पड़ा हो। यद्यपि उनका आरम्भिक नाम सर्वतोष था। चन्दन नगर तब फ्रांसीसी उपनिवेश था। वास्तव में तो उनका पैत्रिक घर बंगाल के ही श्रीरामपुर में था। कन्हाई जब चार वर्ष के थे तब उनके पिता उनको लेकर बम्बई चले गये थे। पाँच वर्ष बम्बई में रहने के बाद नौ वर्ष की आयु में वह वापस चन्दन नगर आ गये थे और वही उनकी प्रारम्भिक से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा हुई। चन्दन नगर के डुप्ले कालेज से उन्होंने स्नातक की परीक्षा दी थी। उसी कालेज के एक प्राध्यापक चारु चन्द्र राय से गहनता के कारण कन्हाई को क्रान्ति पथ का परिचय प्राप्त हुआ था। चन्दन नगर में सर्वप्रथम क्रान्ति की योजना बनाने वाले थे - संध्या के सम्पादक ब्रम्हबाधव उपाध्याय। कन्हाई उनके सम्पर्क में भी अपने प्राध्यापक के माध्यम से ही आये थे। स्नातक की परीक्षा देने के उपरांत कन्हाई कलकत्ता आ गये और युगांतर कार्यालय में कार्य करने लगे। कलकत्ता की अनुशीलन समिति से जब उनका सम्पर्क हो गया तो न केवल वह उसके सदस्य बने अपितु उन्होंने अपने घर ही उसकी एक शाखा भी स्थापित की तथा बाद में अपने क्षेत्र में पाँच अन्य शाखाओं की भी स्थापना की थी। इन शाखाओं में व्यायाम तथा लाठी आदि चलाने की शिक्षा दी जाती थी। बाहर से देखकर उन्हें कोई भी विप्लवी समिति की शाखा नहीं समझ सकता था। स्वयं कन्हाई ने विप्लवी बनने की दीक्षा अमावस्या की रात्री में एक वटवृक्ष के तले ली थी। खुदीराम बोस द्वारा किये गये मुजफ्फरपुर बम काण्ड के उपरान्त अंग्रेजी राज्य की रातों की नीद हराम हो गयी थी। सारा अंग्रेजी शासन चौकन्ना हो गया था। चारो ओर संदिग्ध लोगो की खोज आरम्भ कर दी गयी थी। खूब दौड़-धूप के बाद पुलिस को पता चला कि इन क्रान्तिकारियो का अड्डा मानिकतल्ला के एक बगीचे में है। यह बगीचा अरविन्द घोष के भाई सिविल सर्जन डाक्टर वारीन्द्र घोष का था। गुप्तचर विभाग वह से क्रान्तिकारियो की गतिविधि पर दृष्टि रखने लगे। दुर्भाग्य से क्रान्तिकारी गुप्तचर विभाग की इस कारस्तानी से सर्वथा अनभिज्ञ रहे। इसका परिणाम क्रान्तिकारियों के लिए भारी संकटकारी साबित हुआ। गुप्तचर विभाग को इससे सफलता मिली और उसने देश के सर्वप्रथम बम षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दिया। इसमें बगीचे के मालिक वारींद्र घोष उनके भाई अरविन्द घोष , नलिनी कन्हाई लाल दत्त समेत लगभग 35 देशभक्त लोगो को बन्दी बनाने में पुलिस सफल हो गयी। इन सब बन्दियो को अलीपुर कारागार में रखा गया था और वही पर इन क्रान्तिकारियो पर अभियोग चलाया गया। इसी कारण इस अभियोग का नाम अलीपुर षड्यंत्र रखा गया था। कन्हाई लाल दत्त के साथ-साथ उसके प्रेरक प्रोफ़ेसर चारु चन्द्र राय भी बन्दी बनाये गये थे। सब पर अभियोग चला किन्तु चारू चन्द्र राय को फ्रांसीसी सरकार की बस्ती का नागरिक होने के कारण रिहा कर दिया गया। अलीपुर अभियोग में भी नरेन्द्र गोस्वामी नामक का एक व्यक्ति भी बन्दी बनाया गया था जिसने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया। उसके इस देशद्रोह से क्रान्तिकारियो के रहे-सहे प्रयत्नों पर पर पानी फिर जाने की आशंका होने लगी। यद्यपि नरेन्द्र के इस कुकृत्य की देशभक्त समुदाय द्वारा चारो ओर भर्त्सना होती रही किन्तु इससे अभियोग में तो किसी प्रकार की सहायता मिलने की संभावना थी ही नहीं। यहाँ तक की अभियोग के दौरान ही एक दिन भरी अदालत में किसी अभियुक्त ने उसको लात तक मार दी थी। उसका परिणाम यह हुआ कि एक तो वह इन बन्दियो के सामने आने से सदा बचता रहा और दूसरे सरकार ने भी उसके लिए सुरक्षा की व्यवस्था कर दी। उसको दो सरकारी अंगरक्षक दिए गये। अब जेल में ही कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र बसु ने इस देशद्रोही को सबक सिखाने की एक अदभुत योजना बना डाली। उन्होंने निश्चय किया कि नरेंद्र अपना ब्यान पूरा करे उससे पूर्व ही उसको इस संसार से प्रयाण कर लेना चाहिए। कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र की बुद्धि निरंतर कार्य कर रही थी। उन्होंने सबसे पहले जेल के वार्डन से घनिष्टता बढाई उन्हें बहुत हद तक प्रभावित कर लिया। उसके फलस्वरूप जेल के भीतर लाये जाने वाले कटहल- मछली के भीतर रखी दो पिस्तौल को प्राप्त करने में वो सफल हो गये। उसमें किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं हुई। वे पिस्तौल किन वाडरो द्वारा आयोजित किये गये और किसने बाहर से भेजे थी , इस तथ्य को बाह्य जगत कभी नहीं जान पाया। सितम्बर माह की तिथि निकट आ गयी जिस तिथि को नरेन्द्र को अपना वक्तव्य देना निर्धारित किया गया था। नरेन्द्र नियमित रूप से प्रतिदिन सत्येन्द्र और कन्हाई लाल के पास मिलने के लिए आता था। 31 अगस्त 1908 के दिन भी वह अपने समय पर उनके पास आया। तभी सत्येन्द्र ने अपने सिरहाने रखी पिस्तौल से नरेन्द्र पर वार किया गोली उसके पैर में लगी किन्तु वह उससे गिरा नही। सत्येन्द्र ने तभी दूसरी गोली चलाई तब तक नरेन्द्र भागने लगा था। सत्येन्द्र और कन्हाई दोनों ने उसके निकट पहुँचकर उसे गोलियों से छलनी कर दिया। कन्हाई को 10 नवम्बर 1908 को फांसी देने का दिन तय किया गया। क्रांतिकारी कन्हाई की कथा पर नाट्यप्रस्तुति की तैयारी करते समय इस चुगलखोर कन्हैया की आदतें परिवर्त्तनशील हो सकीं। अपनी अक्षम्य गलतियों के लिए आप सभी से क्षमा याचना करता हूँ।"

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...