Sunday 29 October 2017

समाज के कोढ़(02)


रविवार 04 नवम्बर 2017 (देवदीवाली)

अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच का दो दिवसीय 29 वां लघुकथा सम्मेलन होने जा रहा है ... ज्यों लघुकथा सम्मेलन का दिन करीब आता जा रहा है , त्यों त्यों एक नई लघुकथा जन्म ले रही है

एक महोदय ने आयोजनकर्त्ताओं में से किसी एक को फोन किया

-हैलो!"
-मैं xyz बोल रहा हूँ।"
-जी पहचान रहा हूँ बोला जाए कैसे हैं?"
-मैं तो ठीक हूँ... सुनिए न ! लघुकथा सम्मेलन में सम्मान देने की भी बात होगी ?"
-जी बिल्कुल होगी"
-लिस्ट तैयार हो गया क्या?"
-हाँ ! हाँ... लिस्ट बिलकुल तैयार है"
-आप बता सकते हैं क्या कि उस लिस्ट में मेरा नाम है कि नहीं
-क्या गज़ब की बात करते हैं!? आपने लघुकथा कब लिखी!? मेरी जानकारी में तो आप अबतक एक भी लघुकथा लिखने का प्रयास भी नहीं किये हैं..."
-उससे क्या होता है... आपलोगों से सवाल करने कौन आएगा..."
-हमारा ज़मीर..."
-अजी समय से लाभ उठाना चाहिए... जितना खर्च करने के लिए बोलिये , मैं तैयार हूँ..."
-लानत है जी ऐसे पैसों पर... पैसों से लेखन करवाये 2000 लोग भी जमा हो तो उसमें आपका नाम नहीं आएगा"
-आप भी कैसी बात कर रहे हैं.... सरकारी सम्मान पाए लोगों में भी हमारे जैसे लोग आराम से मिलेंगे..."


Friday 27 October 2017

"समाज का कोढ़"


"सुना है लघुकथा सम्मेलन होने जा रहा है..."
"आपने सही सुना है"
"आपकी संस्था लघुकथाकारों को सम्मानित भी कर रही है... कितना खर्च आता होगा... ? मेरी भी इच्छा है कुछ लोगों को सम्मान पत्र दिलवाने का ?"
"मेरा जितना सामर्थ्य है उतना रकम मैं आयोजनकर्ता को दे देता हूँ । उसके आगे का सारा निर्णय आयोजन कर्ता करते हैं ।"
"ऐसा कीजिये न कि इस बार मुझे सम्मान पत्र दिलवा दीजिये"
"अरे ऐसा कैसे हो सकता है? आपने लघुकथा क्षेत्र में क्या काम किया है?"
"लेखन से प्रसिद्धि पाया हूँ... दूरदर्शन रेडियो में पाठ किया हूँ... पेपर में छपता हूँ... अन्य राज्यों में सम्मान पत्र पा चुका हूँ...।"
"लघुकथा के उत्थान व प्रचार-प्रसार के लिए क्या इतना ही काफी है, केवल अपना स्वार्थ साध लेना? पहचान और पैसे के बल पर न? हड्डी पर झपटे को जाल में फंसा लेना... किसी के मजबूरियों का फायदा उठाना आपको खूब आता है... कोई बता रहा था कि आप अपनी लघुकथा लिखवाने के लिए भी पैसे खर्च करते हैं क्यों कि किसी को भेजी गई लघुकथा आधी है या पूरी, आप समझ नहीं पाते हैं..."

"बिक रहा है कुछ तो खरीदने में हर्ज ही क्या है... जिसे आप हड्डी कह रहे हैं , उसे मैं सहयोग समझता हूँ…"

Thursday 26 October 2017

"साजिश"



"देखो! देखो... कोई दरवाजे का ग्रिल काट रहा है... कोई तो उसे रोको ! अंदर आकर वो मुझे भी मार डालेगा..."
"आपको ऐसा क्यूँ लग रहा है ? मुझे तो कोई दिखलाई नहीं दे रहा है..."
"हाँ नाना जी , नानी जी सही बोल रही हैं! हमें कोई नहीं दिखलाई दे रहा है..."
"देखो ! देखो... बिस्तर पर आकर वो बैठ रहा है..."
                      बड़ा बेटा विदेश बस गया था और छोटा बेटा घर जमाई बन गया था... बेटी संग रहती थी लेकिन अपने बेटे के नौकरी पर जाने की इच्छा जब से वो बताई थी तभी से ऐसी बातें करने लगे थे बद्री प्रसाद..."
आज ही उनका नाती उनकी बेटी को लेने आया तो उनका कुछ ज्यादा ही बड़बड़ाना शुरू हुआ
   "देखो!देखो! कोई आया"  

Monday 16 October 2017

"समझ"


-एक्सपायरिंग डेट हो गई हैं आप अम्मा जी"
-चल इसी बात पर कुछ चटपटा बना खिला" खिलखिलाते हुए पचासी साल की सास और अड़तीस-चालीस साल की बहू चुहल कर रही थी
-आज मुझे *एक दीया शहीदों के नाम* का जलाने जाना है... काश ! आप भी..."
-पोते की शादी चैन से देख लेने दे"
-यानि अभी और भी पंद्रह-बीस साल..."
-और नहीं तो क्या... क्या कभी सबके श्राप फलित होते देखी है..."
-आपके पहले मैं या मेरे पहले आप टिकट कटवाएँगे सासु जी..."
-संग-संग चलेंगे... समय के साथ खाद-पानी-हवा का असर होता है" दोनों की उन्मुक्त हँसी गूंज गई...




Thursday 12 October 2017

स्वार्थ में रिश्ते


पिछले कई दिनों से शहर के अलग अलग जगहों पर स्वच्छता अभियान चल रहा था… आज सुबह भी मंत्री जी अपने टीम के साथ, वार्ड पार्षद के साथ भी कुछ लोग आने ही वाले थे, अखबार मीडिया की टीम , युवाओं की टोली और अनेक संगठन-संस्था के सदस्य , स्थानीय लोग अभियान स्थल पर पहुंचे और स्थल से कचरा ही गायब.. खलबली-भदगड़ मच गई
-हद है! कैसे कचरा उठ सकता है... नगर निगम वालों को कुछ तो सोचना चाहिये था... अब मंत्री जी आएंगे तो क्या होगा?
-मंत्री जी के आगमन की बात सुन, घबराहट में ऐसा हो गया होगा
-अरे फोन करो... फोन करो...
ट्रिन ट्रिन
-हेलो!
-इतनी सुबह सवेरे ?
-आपने बिना मंत्री जी के आये कचरा कैसे उठवा लिया?
-हमें भी तो जबाब देना पड़ता है!
-भेजवाईये आयोजन-स्थल पर कचरा।।
-ऐसा कैसे हो सकता है? तिहरा मेहनताना देना होगा...
-क्यों?
-कचरा उठाया मजदूर , फिर लाकर गिरायेगा , फिर उठाएगा
-वो सब हमलोग बाद में मिल बैठ सलटा लेंगे... आखिर हमलोग मित्र हैं... दांत नहीं पीसना मजबूरी थी
-आपकी खुशी में ही हमारी खुशी है...

Tuesday 10 October 2017

बैसाखी


संगनी क्लब व सामयिक परिवेश क्लब के अनेक कार्यक्रमों में रत्ना पुरकायस्था(दूरदर्शन में उप निदेशक) जी से कई बार भेंट हुई... उनकी मोहक मुस्कान और दूरदर्शन आने का निमंत्रण(स्वाभाविक हर मिलने वालों से वे कहती हैं) मेरे दूरदर्शन जाने का राह खोल दिया । समीर जी से उनका फोन नम्बर ली , ले तो उनसे भी सकती थी लेकिन समीर जी सामयिक परिवेश क्लब के आयोजक थे तो उनसे ही मांगना सहज लगा।
उनसे मिलने जाने के पहले लेख्य-मंजूषा के सदस्यों से पूछी कि कोई चलना चाहेगा... एक से दो भले... बुचिया #ज्योति_स्पर्श  जी संग चलने के लिए तैयार हुईं.... हमें #अनेक_कामों के लिए एक संग निकलना ही था तो मैं उन्हें ही बोली कि रत्ना जी को फोन कर समय ले लें....
सोमवार 9 सितम्बर2017 दोपहर साढ़े बारह बजे के बाद का समय मिला... मैं और बुचिया बड़े उत्साहित रत्ना जी से मिले... पहले से कुछ लोग बैठे... हमारे रहते अनेक लोग आए-गए... सभी लोगों से बातें करने का जो स्वाभाविक(कोई अभिनय नहीं) ढ़ंग था रत्ना जी का बेहद चुम्बकीय था... बच्चों की तरह निर्मल मन ..भावुकता से भरी छलकने को तैयार आँखें... #हम_बहुत_ही_खुश_थे
मैं गई थी लेख्य-मंजूषा के सदस्यों का कार्यक्रम हो इसकी मंशा लेकर लेकिन बातों के क्रम में #हाइकु की चर्चा निकली तो वे बोली कि मैं सोच रही हूँ कि #महिला_हाइकुकार का कार्यक्रम करवाया जाए..… या तो लेख्य-मंजूषा के सदस्य हो जाएं तो ठीक नहीं तो पटना में रहने वाली हाइकुकार का नाम और फोन नम्बर मुझे व्हाट्सएप पर भेज दीजियेगा...
उसी दौरान किसी अन्य से बात करने के क्रम में उनके पति का पर्यटन विभाग में काम करने की चर्चा चली...
(दूरदर्शन जाने के लिए घर से निकलते समय मेरे पति महोदय का सवाल था #तुम्हें_दूरदर्शन_में_ऐसा_कौन_मिल_गया_या_गई_हैं_जिनसे तुम दूरदर्शन पहुंच जाओगी
-रत्ना जी
-रत्ना पुरकायस्था जी ?
-हाँ!
-उनके पति पर्यटन विभाग में काम करते हैं!
-मुझे जानकारी नहीं है और अभी लौट कर आते हैं तो बात करते हैं ... पहले ही बहुत देर हो चुकी हुँ ... आपकी बातें सुनने लगी तो आज का मौका निकल जायेगा...
ये जा... वो जा.. मैं अति उत्साहित निकल भागी)
#मैं:-आपके पति पर्यटन विभाग में काम करते हैं ? मेरे पति बता रहे थे
-आपके पति ? क्या नाम है उनका ? क्या काम करते हैं ?
-जी । डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव । चीफ इंजीनियर...
-वही जो मोकामा में कहीं...
-दो साल पहले थे बरौनी थर्मल के G.M. 31 जुलाई 2017 को पटना हेडक्वाटर से सेवा निवृत हो चुके हैं
रत्ना जी बच्चों की तरह खिलखिला पड़ीं
-अरे😂🤣 ! वे तो मेरे पति के बहुत ही अच्छे मित्र हैं । मैं भी मिली हुई हूँ । हमारे घर भी कई बार आये हैं । उनका बहुत सम्मान करते हैं मेरे पति । जबभी उनकी चर्चा करते हैं उनके व्यक्तित्व की बहुत प्रशंसा करते हैं । पर्यटन विभाग का कार्यालय पहले कंकड़बाग में था । श्रीवास्तव जी के ही सलाह और समझाने पर IEI भवन में स्थापित हुआ। etc अनेक बातें वे करती रहीं
और #मेरा_फ्यूज_उड़_चुका_था...

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...