Wednesday 26 November 2014

ये ……… यूँ ही .....


एक मुक्तक

प्यार का बदला मिले सम्मान कम से कम हक़ तो होता है
मृत सम्वेदनाओं वाले पले आस्तीन में सांप शक तो होता है
अदब-तहज़ीब को भूल कर खुद को ख़ुदा से ऊपर समझे
हाय से ना डरने वाला जेब से नही दिल से रंक तो होता है

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एक क्षणिका

 मौत का आभास नहीं मुझे
लेकिन
जिन्दगी में युद्ध नही
जीने के लिए तो
जीने में मज़ा नही
उबना नही चाहते
बिना समय मारे
मरना नही चाहते।

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ताँका 

1
बेदर्दी शीत
विग्रही गिरी हारे
व्याकुल होता 
विकंपन झेलता
ओढ़े हिम की घुग्घी।

फिरोजा होती
प्रीत बरसाती स्त्री
शीत की सरि
ड्योढ़ी सजी ममता
अंक नाश समेटे।

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Tuesday 18 November 2014

ओस



1
कांच की मोती
किरणें फोड़ देती
पत्ते लटकी।
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2
कांच भी साक्ष्य
स्वप्न दुर्वाक्षि टंगा
नभ के आँसू।
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3
क्यूँ पहचाने
अपने व पराये
स्व दर्द पाये।
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4
जीवी का रोला
वल्ली खिली कलासी
पंक में पद्म ।

रोला = घमासान युद्ध
कलासी = दो पत्थर या दो लकड़ी के जोड़ के बीच का स्थान
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5
हिम का झब्बा
काढ़े शीत कशीदा
भू शादी जोड़ा।

रेशम ,कलाबत्तू के तारों का गुच्छा = झब्बा 
silk and silver or gold thread twisted together

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6
भय से पीला
सूर्य-तल्खी है झेले
नीलाभ सिन्धु ।
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7
चिप्पी ज्यूँ जोड़े
उधेड़ ही जायेंगे
दिया जो धोखा ।

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एतकाद मेहनत पर हो जाता है
वक्ती - मुसीबत हल हो जाता है
हो जाता है खुद पर अगर भरोसा
पसोपेश मुश्तबहा दूर हो जाता है 

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Tuesday 11 November 2014

चोका



विषय - सूखे गीले का गिला 

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घटा घरनी 
सूखे गीले का गिला 
कान उमेठूँ
मनुहार सुनोगे 
जाल विछाये
मनोहर दृश्य हो 
भ्रम फैलाये
श्वेत श्याम बादल 
साथ धमके 
बरसे न बरसे
दे उलझन 
दुविधा में सताए
काम बढाये
आँख मिचौली खेले 
घर बाहर 
दौड़ती गृहलक्ष्मी 
वस्त्र सुखाती 
माथापच्ची करती
रेस लगाती 
पल दुरुपयोग
क्रोध बढ़ाये 
स्वयं की आपबीती
भयावहता
मेघ पर बरसे 
दे उलाहना 
नौटंकी तुझे सूझे 
परे तू हट 
बरसो या घिसको
समझूँ तुझे 
ना उलझाओ मुझे
धनक दिखा
काम है निपटाने
सीलन है हटाने 

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Saturday 8 November 2014

शीत आगमन





1
ठूँठ का मैत्री
वल्लरी का सहारा
मर के जीया।

2
शीत में सरि
प्रीत बरसाती स्त्री
फिरोजा लगे।

3
गरीब खुशियाँ
बारम्बार जलाओ
बुझे दीप को।

4
क्षुधा साधन
ढूंढें गौ संग श्वान
मिलते शिशु।

5
आस बुनती
संस्कार सहेजती
सर्वानन्दी स्त्री।

सर्वानन्दी  = जिसको सभी विषयों में आनंद हो 

6
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी।

आलिंजर =  मिटटी का चौड़े मुंह का बर्तन = बड़ा घड़ा


Wednesday 5 November 2014

शीत आगमन




1
साँझ ले आई 
नभ- भेजा सिंधौरा
भू मांग भरी।

2
झटकी बाल
नहाई निशा ज्यूँ ही 
ओस छिटके।

3
पीड़ा मिटती
पाते ही स्नेही-स्पर्श
ओस उम्र सी ।

4
बिज्जु की लड़ी
रजतमय सजी 
नभ की ड्योढ़ी।

5
सुख के तारे
लूता-जाल से घिरे 
तम के तले।

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शीत ढिठाई 
स्वर्ण चोरी कर ले
सहमा रवि 
दहकता अंगार
हिम को रास्ता दे दे।

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लूक सहमे
सूर्य-तन में लीन
शीत का धौंस
ठिठुरी या गुलाबी
मानिनी भू रहती।

*मानिनी =गर्भवती

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चटके रिश्ते
सर्द हवा मिलते
छल – धुंध से
दिल की आग बुझी
बर्फ जमती जाती।

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दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...