[30/05, 8:21 am] विभा रानी श्रीवास्तव: प्रियंका श्रीवास्तव की रचना के शुरू में ही लेखकीय प्रवेश है।
[30/05, 8:40 am] सिद्धेश्वर : 🔷 आज अधिकांश लघुकथाएं, लघुकथा के मानक पर खरी नहीं उतर रही। हम लोग प्रोत्साहित करने के लिए प्रकाशित कर देते हैं, किन्तु उन्हें लघुकथा लिखना सीखना चाहिए।
[30/05, 8:49 am] विभा रानी श्रीवास्तव : प्रकाशित हो जाने के बाद लेखक कैसे समझे कि उसे सीखना बाकी है?
[30/05, 8:53 am] सिद्धेश्वर: जिस तरह स्पंदन में कई लघुकथाएं भी लघुकथा के पैमाने पर खड़ी नहीं उतरती। और तो और अन्य कई द्वारा संपादित लघुकथा पुस्तकों में कई लघुकथाएं लघु कहानी के रूप में प्रस्तुत हुई है। आपका सुझाव बेहतर है और मैं कोशिश करूंगा कि ऐसी लघुकथाएं जल्द प्रकाशित ना हो। दैनिक हिंदुस्तान तो फुर्सत पेज पर लघुकथा को लघु कहानी के नाम पर प्रकाशित किया है। लघुकथा में पहले से अधिक कूड़ा करकट आ गया है। हम लोगों को बहुत मेहनत करने की जरूरत है।🙏🙏
[30/05, 8:59 am] विभा रानी श्रीवास्तव: स्पंदन में छपने के बाद भी सदस्यों की लेखनी का रगड़ना चलता रहता है उन्हें पता है कि यहाँ छप जाना प्रमाण नहीं मिल रहा कि वे सिद्ध हो गये••• यहाँ इसलिए छप गये क्योंकि पत्रिका उनके छपने के लिए ही है•••
[30/05, 9:05 am] सिद्धेश्वर: जी। मैं आपकी इन बातों से सहमत हूं l
[30/05, 9:14 am] राजेन्द्र पुरोहित: स्वीकारोक्ति है या विवशता? या दोनों? 🙏
[30/05, 9:28 am] विभा रानी श्रीवास्तव: 🤔क्या मेरी ❓
[30/05, 9:30 am] राजेन्द्र पुरोहित: या दोनों की? 😢
[30/05, 9:33 am] विभा रानी श्रीवास्तव: मेरी क्या विवशता हो सकती है? क्या मेरा कहा गलत है?
[30/05, 9:54 am] राजेन्द्र पुरोहित: बिल्कुल नहीं।
परन्तु जो आपने कहा, वही आपके प्रश्न का उत्तर भी है।
सामने वाला भी यही कहेगा कि जो छप रही है, ज़रूरी नहीं कि लघुकथा हो, लेखक कलम रगड़ते रहेंगे लघुकथा के मानक तक पहुंचने के लिये। फिर प्रश्न करने का क्या प्रयोजन?
[30/05, 10:06 am] विभा रानी श्रीवास्तव: 😄काश! जो मैंने कहा सामने वाला भी कह पाता•••
काश! अन्य जगहों पर छपने के बाद, विजेता रचना होने के बाद लेखक को यह याद रह जाता कि कलम रगड़ना बाकी है•••
[30/05, 10:07 am] राजेन्द्र पुरोहित: स्पंदन तो इसके लिये कुछ करे। आप नहीं, हम सभी।
मैं भी।
सीधे PHD नहीं होगा, बारहखड़ी पर श्रम आवश्यक है।
[30/05, 10:14 am] विभा रानी श्रीवास्तव: धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा•••।।
[30/05, 9:16 am] राजेन्द्र पुरोहित: आपके दूसरे कमेंट में पहले वाले पूछे गये प्रश्न का उत्तर आ गया।
जो उत्तर आपने दिया, वही सामने वाला भी दे सकता है।
🙂🙏
[30/05, 9:34 am] विभा रानी श्रीवास्तव: 🤔क्यों नहीं दिया?
[30/05, 9:57 am] राजेन्द्र पुरोहित: यह बात सही है।
देना चाहिये था।
जो लॉजिक स्पंदन के लिये न्यायोचित ठहराया गया, वह शेष पत्रिकाओं पर लागू क्यों नहीं हो सकता?
बात केवल लॉजिक की कर रहा हूँ। स्तर, परिश्रम या ईमानदारी की नहीं।
[30/05, 10:01 am] विभा रानी श्रीवास्तव: अन्य पत्रिकाओं से लेखकीय प्रति की उम्मीद की जाती है लेखन श्रम से अर्थ पाने की आकांक्षा।
स्पंदन प्रकाशित करने के लिए कुछ लोग सदस्य बनते हैं लेखक की सदस्यता राशि तो कुछ भी छापा जाए तय है।
दोनों में क्या यह अन्तर काफी नहीं कि स्पंदन का सम्पादक सदस्यों के मर्जी से होता है
[30/05, 10:06 am] राजेन्द्र पुरोहित: यह बात सही है।
निष्कर्ष यह कि लघुकथा को उसके वांछित स्तर तक ले जाने में दोनों को बाधा है।
उनकी बाधा अलग तरह की है और हमारी बाधा अलग तरह की।
[30/05, 10:10 am] विभा रानी श्रीवास्तव: हमारी बाधा तो हम दूर करने का प्रयास करते हैं सदस्यों की रचनाओं पर विमर्श कर
क्या तुम्हारी रचना पर बात नहीं होती?
रचनाओं पर बात करने से ही तो खड़ूस हूँ वरना किसी के खेत-गहना पर कर्जदारी थोड़े न है
इस बार सीमा जी की लघुकथा प्रकाशित नहीं की जा रही। हट जाने का डर खत्म हो रहा है। उनसे बात करने का प्रयास किया गया लेकिन वे मेल का उत्तर ही नहीं दीं।
[30/05, 11:11 am] विभा रानी श्रीवास्तव: अपने वकालत की पढ़ाई का उपयोग इसी में तो कर रही हूँ। मुझे पता है अगर सामने वाले की गलती पर इशारा की तो वो मेरे जले पर नमक छिड़केगा। फिर क्या होगा•••! डम डम डिगा डिगा•••।