Wednesday 31 May 2023

शुभेक्षु


"आपको सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री अनुसन्धान उपाधि प्राप्त किए इतने साल गुजर गये! अब आप नौकरी करना चाहती हैं। आपने अब तक कहीं नौकरी क्यों नहीं कीं?"

"बहुत जगहों पर आवेदन फ़ार्म भरा लेकिन साक्षात्कार के समय छँटनी हो जाती रही।"

"क्यों छँटनी हो जाती रही? आपके पास अनुभव प्रमाण पत्र भी नहीं फिर उम्मीद करती हैं कि हम आपको नौकरी पर रख लें?"

"मेरी कुरूपता सबसे बड़ी बाधा रही मेरी नौकरी में!"

"आप इतनी कुरूप हुईं कैसे?"

"उछाले गये खौलते पानी की राह में मेरा चेहरा आ गया!"

"किसने ऐसा दुःसाहस किया? आपका जीवन नरक...,"

"कोई अपना! परन्तु, इतने वर्षों तक ना जाने कितने लिजलिजे ग़लीज़ स्पर्श से बचाव का उपाय भी रहा।"

"यहाँ आपकी नौकरी पक्की की जाती है।"

Tuesday 30 May 2023

षडयंत्र


[30/05, 8:21 am] विभा रानी श्रीवास्तव: प्रियंका श्रीवास्तव की रचना के शुरू में ही लेखकीय प्रवेश है।

[30/05, 8:40 am] सिद्धेश्वर : 🔷 आज अधिकांश लघुकथाएं, लघुकथा के मानक पर खरी नहीं उतर रही। हम लोग प्रोत्साहित करने के लिए प्रकाशित कर देते हैं, किन्तु उन्हें लघुकथा लिखना सीखना चाहिए।
[30/05, 8:49 am] विभा रानी श्रीवास्तव : प्रकाशित हो जाने के बाद लेखक कैसे समझे कि उसे सीखना बाकी है?
[30/05, 8:53 am] सिद्धेश्वर: जिस तरह स्पंदन में कई लघुकथाएं भी लघुकथा के पैमाने पर खड़ी नहीं उतरती। और तो और अन्य कई द्वारा संपादित लघुकथा पुस्तकों में  कई लघुकथाएं लघु कहानी के रूप में प्रस्तुत हुई है। आपका सुझाव बेहतर है और मैं कोशिश करूंगा कि ऐसी लघुकथाएं जल्द प्रकाशित ना हो। दैनिक हिंदुस्तान तो फुर्सत पेज पर लघुकथा को लघु कहानी के नाम पर प्रकाशित किया है। लघुकथा में पहले से अधिक कूड़ा करकट आ गया है। हम लोगों को बहुत मेहनत करने की जरूरत है।🙏🙏
[30/05, 8:59 am] विभा रानी श्रीवास्तव: स्पंदन में छपने के बाद भी सदस्यों की लेखनी का रगड़ना चलता रहता है उन्हें पता है कि यहाँ छप जाना प्रमाण नहीं मिल रहा कि वे सिद्ध हो गये••• यहाँ इसलिए छप गये क्योंकि पत्रिका उनके छपने के लिए ही है•••
[30/05, 9:05 am] सिद्धेश्वर: जी। मैं आपकी इन बातों से सहमत हूं l

[30/05, 9:14 am] राजेन्द्र पुरोहित: स्वीकारोक्ति है या विवशता? या दोनों? 🙏
[30/05, 9:28 am] विभा रानी श्रीवास्तव: 🤔क्या मेरी ❓
[30/05, 9:30 am] राजेन्द्र पुरोहित: या दोनों की? 😢
[30/05, 9:33 am] विभा रानी श्रीवास्तव: मेरी क्या विवशता हो सकती है? क्या मेरा कहा गलत है?
[30/05, 9:54 am] राजेन्द्र पुरोहित: बिल्कुल नहीं।
परन्तु जो आपने कहा, वही आपके प्रश्न का उत्तर भी है।
सामने वाला भी यही कहेगा कि जो छप रही है, ज़रूरी नहीं कि लघुकथा हो, लेखक कलम रगड़ते रहेंगे लघुकथा के मानक तक पहुंचने के लिये। फिर प्रश्न करने का क्या प्रयोजन?
[30/05, 10:06 am] विभा रानी श्रीवास्तव: 😄काश! जो मैंने कहा सामने वाला भी कह पाता•••

काश! अन्य जगहों पर छपने के बाद, विजेता रचना होने के बाद लेखक को यह याद रह जाता कि कलम रगड़ना बाकी है•••
[30/05, 10:07 am] राजेन्द्र पुरोहित: स्पंदन तो इसके लिये कुछ करे। आप नहीं, हम सभी।
मैं भी।
सीधे PHD नहीं होगा, बारहखड़ी पर श्रम आवश्यक है।
[30/05, 10:14 am] विभा रानी श्रीवास्तव: धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा•••।।

[30/05, 9:16 am] राजेन्द्र पुरोहित: आपके दूसरे कमेंट में पहले वाले पूछे गये प्रश्न का उत्तर आ गया।
जो उत्तर आपने दिया, वही सामने वाला भी दे सकता है।
🙂🙏
[30/05, 9:34 am] विभा रानी श्रीवास्तव: 🤔क्यों नहीं दिया?
[30/05, 9:57 am] राजेन्द्र पुरोहित: यह बात सही है।
देना चाहिये था।
जो लॉजिक स्पंदन के लिये न्यायोचित ठहराया गया, वह शेष पत्रिकाओं पर लागू क्यों नहीं हो सकता?
बात केवल लॉजिक की कर रहा हूँ। स्तर, परिश्रम या ईमानदारी की नहीं।
[30/05, 10:01 am] विभा रानी श्रीवास्तव: अन्य पत्रिकाओं से लेखकीय प्रति की उम्मीद की जाती है लेखन श्रम से अर्थ पाने की आकांक्षा।

स्पंदन प्रकाशित करने के लिए कुछ लोग सदस्य बनते हैं लेखक की सदस्यता राशि तो कुछ भी छापा जाए तय है।

दोनों में क्या यह अन्तर काफी नहीं कि स्पंदन का सम्पादक सदस्यों के मर्जी से होता है
[30/05, 10:06 am] राजेन्द्र पुरोहित: यह बात सही है।
निष्कर्ष यह कि लघुकथा को उसके वांछित स्तर तक ले जाने में दोनों को बाधा है।
उनकी बाधा अलग तरह की है और हमारी बाधा अलग तरह की।
[30/05, 10:10 am] विभा रानी श्रीवास्तव: हमारी बाधा तो हम दूर करने का प्रयास करते हैं सदस्यों की रचनाओं पर विमर्श कर

क्या तुम्हारी रचना पर बात नहीं होती?

रचनाओं पर बात करने से ही तो खड़ूस हूँ वरना किसी के खेत-गहना पर कर्जदारी थोड़े न है

इस बार सीमा जी की लघुकथा प्रकाशित नहीं की जा रही। हट जाने का डर खत्म हो रहा है। उनसे बात करने का प्रयास किया गया लेकिन वे मेल का उत्तर ही नहीं दीं।

[30/05, 11:11 am] विभा रानी श्रीवास्तव: अपने वकालत की पढ़ाई का उपयोग इसी में तो कर रही हूँ। मुझे पता है अगर सामने वाले की गलती पर इशारा की तो वो मेरे जले पर नमक छिड़केगा। फिर क्या होगा•••! डम डम डिगा डिगा•••।

Monday 22 May 2023

अमर धन

"उगता नहीं तपा, तो डूबता क्या तपेगा! अपने युवराज को समझाओ पुत्र तुम्हारे कार्यालय जाने के बाद दिनभर उनके दरवाजे, खटिया पर पड़ा रहता है जिनके बाप-दादा जी हजूरी करते रहे। किसी घर का बड़ा बेटा चोरों का सरदार है। किसी घर की औरत डायन है,"

"जी उससे बात करता हूँ।"

"उसे समझाना पंक भाल पर नहीं लगाया जा सकता।"

"कहाँ खो गये पापा?" 

"अतीत में! तुम्हारे देह पर वकील का कोट और तुम्हारे मित्र की वर्दी तथा तुम्हारे स्वागत में आस-पास के कई गाँवों की उमड़ी भीड़ को देखकर लगा, पंक में पद्म खिलते हैं।"

"फूलों की गन्ध क्यारी की मिट्टी से आती ही है।"

Sunday 14 May 2023

02. तमिस्राक्षत

02. तमिस्राक्षत

"कितना सुंदर कार्यक्रम हुआ है, सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ... काश! अन्य राज्यों में भी ऐसा कार्यक्रम हो जाता...!"

"महाधिवेशन के ऐसे क्रार्यक्रम को वर्तमान और भविष्य दोनों याद रखेगा। अन्य राज्यों में सम्मेलन की व्यवस्था कौन करेगा?"

"लाखों सहयोग राशि देकर विदेशों में सहभागिता कर रहे हैं साहित्यकार। संस्था के पास करोडों में अनुदान राशि जमा हो रही है। कुछ से खर्च, कुछ से स्व का जेब गरम। क्या राज्यों के कार्यक्रम में सहयोग राशि देकर साहित्यकार सहभागिता नहीं करेंगे?"

"कार्यक्रम में दो-तीन सितारों को बुला लिया जायेगा। धन उगाही का आसान तरीका। शायद उससे आज का साहित्य भी चमक जाए...!"

"हाँ! जैसे राजनीति के कलाकार को बुलाकर...,"

Wednesday 10 May 2023

01. तमिस्राक्षत और भोर का सपना

 तमिस्राक्षत

पटना

5मई 2023

प्रिय भतीजी

सदा खिलखिलाती रहने वाली तुम्हारी लाड़ली बहन के आँखों में ज्वालामुखी का साया और चेहरे पर अलावोष्णिमा देखकर, परिस्थिति का आकलन करने से अच्छा लगा कि पूछ लिया जाए कि किस सुनामी का सामना कर लौटी है।

पूछने पर उसने बताया कि अनेको बार आने का अनुरोध किया गया था। अनेक तरह से भागीदारी का प्रस्ताव मिला था जैसे मंच संचालन कर लें, पुस्तक के विमर्श में भागीदारी कर लें, धन्यवाद ज्ञापन कर लें। लेकिन उसने सिर्फ श्रोता बनकर पुस्तक लोकार्पण के कार्यक्रम में शामिल होना स्वीकार करते हुए, बहुत विलंब से कार्यक्रम में पहुँची थी। सभी से मिलना जुलना हुआ। कार्यक्रम समाप्ती के बाद सबके संग वो भी वापिस होने लगी तो उसे अनुरोध से रोक लिया गया कि विलम्ब से आयी है, अत: थोड़ा और समय ठहरे।

समान्य बातचीत के क्रम में उससे पूछा गया कि "आप सभी जगहों पर चली जाती है! आप आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं! अकेली औरत रह जाने का मजा ही मजा है।"

घर में सभी को यथायोग्य

प्रणामाशीष

तुम्हारी बुआ

■■

भोर का सपना

हैदराबाद 

15 मई 2023

आदरणीया बुआ

आपका पत्र पाकर बेहद क्षोभ हुआ। दुनिया का कथन 'औरत ही औरत के राह में रोड़ा अटकाती है' से औरत होने के नाते मेरी सहमति नहीं होती है लेकिन

मेरी लाड़ली बहन के आँखों में ज्वालामुखी का साया और चेहरे पर अलावोष्णिमा होना स्वाभाविक था, किसी के यह कहने पर 'अकेली औरत रह जाने का मजा ही मजा है'। इसे कहते हैं किसी के पाँवों के नीचे अंगारों का दरिया बिछाना।

मेरी प्यारी बहना का ज्वालामुखी बन उसके ऊपर ही फट पड़ना चाहिए था। उसका अकेले रहने का निर्णय उसका अपना चयन है। किसी के द्वारा उसपर लादा गया मजबूरी नहीं। ये चेहरे को चमकाए रातों के घाव को क्रीम के नीचे छुपाये तितली बनी बिचरती हैं उनकी हँसी के पीछे छिपे मजबूरी को बाखूबी जानती है किटी पार्टी की जनता। ऐसी महिलाओं के लिए साहित्य किटी पार्टी ही तो है। संवेदनहीन रबड़ की गुड़िया सी सजी शीशे के पीछे से झांकती। आजकल के रोबोट उनसे बेहतर हो रहे हैं।

बहना का ख्याल रखियेगा और उससे कहियेगा कि ऐसी बातों के लिए ही इन्सानों को दो कान मिले हुए हैं। जिनका सिरा ना तो दिल की ओर जाता है और ना दिमाग की ओर। उसके इतने अपने हैं इसलिए वह बिना बाजू के पोशाक पसन्द करती है। राह में मिले छोटे-छोटे रोड़े, पहाड़ के शीर्ष पर चढ़ने के माध्यम होते है। उदाहरण यूँ ही थोड़े न बना जाता है।

सभी को यथायोग्य प्रणामाशीष

आपकी भतीजी


परिहार्य

 परिहार्य

सम्पादक :-"अ र् र् रे! अरे, देखिए! वे साहित्यकार महोदय राज्यपाल के अंगरक्षकों के द्वारा कितनी बेदर्दी से रपेटे गये! ओह्ह! घसीटाते हुए भी राज्यपाल के संग अपनी तस्वीर खिंचवा लेने की तृष्णा की डोर नहीं काट पाए।"

पत्रकार :- आप दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे और मंच पर आपकी पुस्तक का राज्यपाल के हाथों लोकार्पण हो रहा था। द्वी सम्पादक, तो दोनों की उपस्थिति होनी चाहिए थी।आपका मंच पर नहीं जाने की कोई खास वजह?"

सम्पादक :- "क्या इस लोकार्पण से पाठक की संख्या में बढ़ोतरी हो जायेगी या अधिक रॉयल्टी मिलने लगेगी!"

पत्रकार :- "किसी एक विशेष लिंग के लेखन पर पुस्तक निकालने के पीछे की मंशा क्या हो सकती है?"

सम्पादक :- आप इस पुस्तक के मेरे द्वारा लिखी गयी सम्पादकीय में पायेंगे, धर्म-जाति-लिंग के आधार पर बाँटकर लेखन से मेरी निजी सहमति नहीं है।"

पत्रकार :- धर्म-जाति-लिंग के आधार पर बाँटकर लेखन से तो समय-श्रम लगाकर समाज की बर्बादी है।"

सम्पादक :- "आपका कथन सत्य है। कागज के सृजक का बलिदान कर उनके विलीन होने का हमारा गवाह बनना त्रासदी है। इसलिए तो लेखनी की यात्रा आरम्भ ही होनी चाहिए जीवन के पक्ष से, मृत्यु के विरोध में...!"


नंगा से गंगा हारी

 नंगा से गंगा हारी

[08/05, 9:54 am] पूर्णिमा : एक बार पुनः सम्मेलन की कार्यसमिति और स्वागत समिति ने अपने श्रम-सामर्थ्य, सम्मेलन और साहित्य के प्रति अपनी महान निष्ठा तथा मेरे प्रति प्रेम का प्रणम्य परिचय दिया है। तभी तो सम्मेलन का सद्यः संपन्न 50 वाँ महाधिवेशन भव्य रूप में आयोजित हो सका। हम अपने सभी सहयोगी विद्वानों और प्रणम्य विदुषियों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हुए, महाधिवेशन की अपार सफलता के लिए बधाई देता हूँ! इसी माह हम एक भव्य आनन्द-उत्सव का भी आयोजन करेंगे, जिसमें हम अपने सभी सहयोगियों का अभिनन्दन करना चाहेंगे! एक बार पुनः हार्दिक बधाई !

[08/05, 10:14 am] अर्चना : खुलासा जब होगा तब सफलता का एहसास होगा...  वो आइना हम दिखाएंगे..  मेरे पास भी हर चीज का लेखा-जोखा है। पूरा रिकॉर्ड है मेरे पास, कितना सफलतापूर्वक कार्य होता है सम्मेलन में

[08/05, 10:24 am] अर्चना : अध्यक्ष जी का दुबारा जीतने के बाद बुद्धि भ्रष्ट हो गया है।

[08/05, 10:29 am] विभा रानी : किसी बात का शिकायत होना अलग बात है। अशोभनीय बात करना अलग बात है। क्या आप अपने घर की मुखिया के लिए ऐसी अशोभनीय बात कह सकती हैं?

[08/05, 10:33 am] विभा रानी : हमारे शब्द हमारे संस्कार, परवरिश, परिवेश के परिचायक होते हैं। किसी का सम्मान या किसी का अपमान हमारे शब्द कर ही नहीं सकते।

[08/05, 10:41 am] अर्चना : हम जहाँ गलत होता है उसको गलत ही कहेंगे, आप की परिभाषा के अनुसार मुझे नहीं चलना है।

[08/05, 10:47 am] विभा रानी : गलत को गलत कहना बड़े साहस की बात है। आपके साहस को सलाम करते हैं।लेकिन कोई भी बात कहने का एक ही सही तरीका होता है। शिकायत करने की भी मर्यादा होती है। बड़े-छोटे का लिहाज करना अपना संस्कार होता है। खैर! मैंने भी गलत तरीके से बात कहने का विरोध किया, नहीं तो मूक साक्षी होने से गलत बात में साथ देना हो जाता।

[08/05, 11:23 am] अर्चना : आप हमारी तुलना अपने से ना करें आप एक साहित्यकार हैं और हम गलत जहां होता है उसका आवाज उठाते हैं बस एक ही मकसद है मेरा ... थोड़ा बहुत लिख लेते हैं। आपके जैसे विद्वान तो नहीं है, लेकिन अच्छे-अच्छे विद्वान लोगों का भी छक्का छुड़ाते हैं

[08/05, 12:02 pm] विभा रानी : सच ही दुनिया कहती है,'कहीं-कहीं राय देने से अच्छा है पाँच पैसा दे देना। मिथक रावण का उदाहरण देने का कोई लाभ नहीं, वहम से हुए अहम का कोई निदान नहीं। संयम और संवेदनशीलता ना हो तो ना तो साहित्यकार और ना आदमी बनने का कोई मोल होगा।

अब मौन साधा जा सकता है, वरना कीचड़ में ढ़ेला फेकना हो जायेगा ...!

Sunday 7 May 2023

तमिस्राक्षत

 तमिस्राक्षत

प्रियतम पावेल !

मधुर याद...

राजी खुशी के साथ मन की बैचेनियों को बता रही हूँ। जबसे पता चला है कि आपका निर्णय राजनीति को छोड़ कर नौकरी सरकारी गुलामी करने का हुआ है तब से व्यथित हूँ। जनता के बीच रह कर जनता के लिए जीने का इरादा इतना कमजोर क्यों हुआ! सगुन उठाने के समय भैया से आपका सवाल था 'आपको पता है न मुझे नौकरी नहीं करनी है...? आपकी बहन के सुख सुविधा का ख्याल उसे खुद की कमाई से करनी होगी!'

बड़े भैया के संग पापा भी थे जो बेहद चिंतित हो गये थे। तब बड़े भैया ने उन्हें समझाते हुए कहा था," चिन्ता नहीं कीजिये, अभी बाघ के मुँह में खून नहीं लगा है। राजनीत का भूत उतर जायेगा बहुत जल्द।

क्या ऐसा ही कुछ हुआ जो आपका विचार बदल गया? अभी-अभी तो चंद दिन गुजरे.... सरस्वती पूजा को शादी हुई और प्यार दिवस पर ऐसे सौगात की उम्मीद तो न थी। वेणी, बेड़ी नहीं हो सकती...। अगर ऐसा हुआ होता तो रामायण नहीं लिखा गया होता!"

आपकी पुराने विचारों पर वापसी की प्रतीक्षा में सुख - दुःख की साझेदार

आपकी पगली

विभा रानी श्रीवास्तव, पटना

Friday 5 May 2023

निर्विष

 निर्विष

"बड़ी अम्मा! बड़ी अम्मा, आपको दादी बुला रही हैं।"
"क्यों बुला रही हैं तेरी दादी? चल भाग! मैं तेरी बड़ी अम्मा नहीं हूँ। जाकर कह दे मैं नहीं आ रही हूँ।"
"क्यों नहीं आयेंगीं जीजी। जरा अम्मा के बारे में सोचिए, कुछ दिनों के अन्तराल में उन्होंने अपने दोनों बेटों को खो दिया।"
दो बेटा, एक बेटी और पति के संग मालतीदेवी बेहद खुशहाल जीवन बिता रही थीं। लेकिन हथेली पर रखा जलता कोयला सी अनुभूति का सच सबके सामने आ रहा था, छोटा बेटा मानसिक और कद-काठी में बेहद कमजोर पनप रहा था••। समयानुसार बेटी की शादी हो गयी। बड़ा बेटा नौकरी करने लगा। उसकी भी शादी हो गई। बड़ी बहू को देवर का संग पसन्द नहीं था। ननद का मायके आना उचित नहीं लगता। अब एक ही मकान के दो हिस्सों में दो चूल्हे जलने लगे। कालान्तर में छोटे बेटे की शादी एक पैर और एक आँख वाली कन्या से हो गयी। बड़ी बहू को अपने अलग हो जाने के फैसले पर बेहद खुशी होती लेकिन कुढ़न में जलती भी रहती। छोटी बहू के बनाए खाने के प्रशंसकों की संख्या बढ़ती जा रही थी। उसके चार-छ: सहयोगियों का परिवार भी पलने लगा था। अचानक हुए दुर्घटना ने पहले छोटे बेटे को तो कुछ दिनों के बाद बड़े बेटे को अपना ग्रास बना लिया।
"हमारा दु:ख एक बराबर है जीजी। इससे साझा लड़ने के लिए हम कन्धा से कन्धा मिला लेते हैं।" 
"प्रेम के संग-साथ दबे पाँव क्रांति को आ जाना हो ही जाता है .. !" कहते हुए अनुरागी मालतीदेवी ने दोनों बहुओं को अपने अँकवार में भर लिया।

Thursday 4 May 2023

आधे अंधेरे का सच

आधे अंधेरे का सच

"दादी माँ! यह छोटी दादी क्या कर रही हैं?" दमयंती की देवरानी को गोबर से पूरे घर को घेरता देखकर उनकी पोती निधि ने पूछा।

"आज नागपंचमी है तो पूजा की तैयारी कर रही है तुम्हारी छोटी दादी।" दमयंती ने कहा।

"पूजा के लिए तो ड्योढ़ी पर साँप की तस्वीर बना हुआ है दादी। पूरे घर के दीवाल पर तो केवल लकीर खींच रही हैं। आपने ही बताया था कि सावन मास या यूँ कहें चौमासा में अक्सर साँप निकलते हैं...  हल-कुदाल से कार्य के दौरान साँप चोटिल हो सकते हैं...!" निधि ने कहा।

"बीच-बीच में सांप का खाका खींच रही है... ऐसा ही तुम्हारे दादा की दादी ने बताया था।" दमयंती ने कहा।

"दादा की दादी के काल में पढ़ाई कम थी न दादी। उस समय पूरे मिट्टी का दीवाल होता था। गोबर लगाना मजबूती देता होगा। अभी डिस्टेम्पर वाले दीवाल पर गोबर का घेरा?

नित्य सुबह सूरज के उगने पर नयी बातें उस पर लिखा जा सकता है... हम विज्ञान माने या..," निधि की बातें पूरी  नहीं हो पायी।

"छोटकी भाभी हमरो थोड़ा दूध दीं।" दमयंती के देवर के सहायक ने निधि पर नजर गड़ाए हुए कहा।

"दादी! कितने वर्षों से छोटे दादा के आस्तीन में पल रहे हैं ये सहायक अंकल?" निधि ने पूछा।

Wednesday 3 May 2023

वट का शास्त्र

 वट का शास्त्र

गुरु माँ

चरण वन्दन

आपके आशीष वचनों के कवच में घिरा मैं पूर्णतया सुरक्षित हूँ। मैं आपसे ज्यादातर नाराज ही रहा। मुझे लगता था कि आप मुझसे प्यार नहीं करती। सदैव अनुशासन की छड़ी मेरे सर पर लटकती रही। सबसे छोटे मामा की खुशियों का ख्याल ही रखती दिखीं। मामा, आपको माँ का दर्जा देते थे। मामा को नानी का अक्स याद नहीं था।

आपके अनुशासन ने मुझे सैन्य प्रशिक्षण तक पहुँचा दिया लेकिन विद्रोही मन से कमजोर पड़ा तन-मन सफल होने नहीं दे रहा था।

कुछ दिनों के पश्चात् सहभागियों के संग प्रशिक्षक स्तब्ध रह गए जब मैं सफल होना शुरू किया। आप भी जानना चाहेंगी ऐसा क्यों हुआ? बताता हूँ.. एक दिन मैंने देखा; चूजों के साथ पला बाज, आकाश में बहुत ऊँचे उड़ता बाज को देखकर भौंचक था। मुँडेर पर उड़ने वाले बाज नहीं होते..!

आकाश में उड़ते बाज की माता ने बिना पँख खुले बच्चे को आकाश के बहुत ऊँचाई पर ले जाकर छोड़ देने की क्रिया की होगी न...! उस सगी माँ को किसी ने सौतेली पुकारा होगा क्या...!

आपका कोख जाया।


दुर्निवार

दुर्निवार

15 जुलाई 2019 को रोपते समय हमलोग चम्पा का पौधा समझ रहे थे, क्योंकि चम्पा का पौधा ही मंगवाया गया था।  

2023 में खिला तो मौलश्री का पता चला 

 "स्तब्धता के संग सम्मोहित! कहो, कैसा लगा देख-सूंघकर प्रकृति का करिश्मा! तुमने तो अनेक बार कहा, 'काश! पपीता के पेड़ की तरह लोहे की कांटी गाड़ने जैसा कुछ यंत्रमंत्र होता•••,' कई बार माली को इसे उखाड़ फेकने का आदेश मिलता रहा। खिला तो दूर तक सुगन्ध फैला रहा है।"

"अनेक सालों से सिर्फ सेवा ही तो करवा रहा था। लगाया गया था चम्पा का पौधा। खिलने के बाद पता चला कि यह तो मौलश्री का पेड़ है। जिस पौधे से इश्क हो उसका ना खिलना कितना पीड़ादायक होता है इसकी साक्षी हो न तुम! 

"तुम्हारे दर्द को समझती हूँ । तुम्हारे डर को भी समझ रही थी। बाँझ होने का आरोप लगाकर बिटिया से तलाक ले लेना उसके ससुराल वालों को बहुत आसान लगा। क्यों चिन्ता करती हो ! बिटिया के नए ससुराल से किलकारी के संग लोरी भी गूँजने लगेगी।"

Tuesday 2 May 2023

चक्रव्यूह

"चासी दादी! आप टूटे तारों से क्या मांग रही थीं?" आँखों को बंदकर हाथ जोड़े छुटकी को देखकर नन्हीं ने पूछा।

छुटकी मेरी छोटी बहन जिसका ब्याह मेरे देवर के संग हुआ था। चाची का चा और मौसी के सी से छुटकी मेरे बेटे की चासी हो जाने के कारण मेरी पोती नन्हीं ने उसे 'चासी दादी' का सम्बोधन दिया।

"धत्त! मांगी गयी बात भी कहीं बताई जाती है!" छुटकी ने कहा।

"क्या आप बता सकती हैं कि नभ से बिछुड़े तारों का क्या होता होगा?" नन्हीं ने पूछा

"नभ से बिछुड़ मिट्टी में मिल जाना ही नियति है.." छुटकी ने कहा

"फिर आप प्रयास करती रहती हैं कि मैं दादी-पापा के संग ना रह सकूँ...! हत्या होगी न?" नन्हीं ने कहा।

"हाँ! जी! मैं सब जानती हूँ। मुझे दादी ने सब कुछ बताया है और समझाया भी है। मुझे पता है कि मैं जन्मदात्री के लिव इन रिलेशनशिप की निशानी हूँ। दादी की बहू ने मुझे अपने पेट से जन्म नहीं दिया है। मैं कान्हा हूँ दादी-पापा के लिए। जिस तरह कंस के कहर से बचाने के लिए...!" कहकर नन्हीं मुस्कुराने लगी।

इतनी छोटी सी बच्ची के मुँह से इतना समझदारी भरा जबाब सुनकर छुटकी का चेहरा उतर गया।

जब मैं बागीचे की तरफ आ रही थी तभी मैंने सुन लिया था, छुटकी, नन्हीं से कह रही थी - "तुम्हें पता है कि तुम इनकी बेटे की बेटी नहीं हो। ये जो तुम इनको दादी बोलती हो ना ये तुम्हारे पालन-पोषण की दादी हैं।"

"समय का खेला! कच्ची उम्र में पकाना पड़ गया समझदारी की आँच पर।"

Monday 1 May 2023

गतानुगतिका

गतानुगतिका

"साहित्यिक गोष्ठी हेतु श्रेष्ठ गीतकार ने अपनी स्वीकृति दी है। आपसे सहभागिता और रात्रिभोज का अनुरोध है।"
"भला के संग रहिए खाईये बीड़ा पान बुरा संग रहिये कटाइए दोनों कान।
विद्यार्थियों से रिश्वत लेने वाले, लंगोट के ढ़ीले के संग साहित्यिक गोष्ठी! क्या हमारी प्रतिष्ठा बचेगी? कहीं निन्दनीय दुरभिसन्धि ना हो जाए•••"
"चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग। आप जिस गुरु के अनुयायी हैं उनसे लगभग चालीस साल गहरी दोस्ती चली। दोनों का एक दूसरे के निजी जिन्दगी में कोई हस्तक्षेप नहीं था, लेकिन साहित्यिक क्षेत्र में वे उनके अवलम्बन थे।"
"चलो, फिर ठीक है ! आँखों के आगे पलकों की बुराई को तजकर मिलते हैं।"

अनुभव के क्षण : हाइकु —

मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च स...