वैलेन्टाइन डे बीत गया .... वसन्त आ गया .....
प्यार का मौसम .....
देशी हो या विदेशी ..... प्यार सब करते हैं .....
प्यार पहचान लेना ....
प्यार समझ लेना ....
प्यार पा लेना ....
क्या सच में सहज होता है .... ??
नौवें-दसवें
कक्षा में रही होगी वो पुष्पा .... !! एक दिन किताब-कौपी ,बक्सा-पेटी ,पलंग-विस्तर सब को उलट-पलट
कर युद्ध-स्तर पर खोज़-अभियान चला तब उसे पता चला कि कोई उसे चाहता था ....
जिस घर
में वो रहती थी उस घर के सामने और दाहिने तरफ पक्की सड़क थी .... दोनों तरफ के सड़क जहाँ
कॉर्नर बनाते थे वहीं पर एक तरफ के घर में वो रहती थी दूसरी तरफ एक डॉ.दंपति रहते थे .... उन के साथ डॉ.साहब का छोटा भाई रहने आया था .... पुष्पा सुबह से रात तक जब भी घर से
बाहर होती ,उसे सामने पाती .... सुबह ब्रश करते करते बाहर आती तो भी सामने वो बारामदे
में खड़ा होता .... स्कूल जाने के लिए घर से निकलती तो भी वो उसके पीछे-पीछे स्कूल तक जाता .... दोपहर में लंच के लिए स्कूल से निकलती ,तो वो स्कूल के गेट पर खड़ा मिलता .... घर आती खाना
खाती .... स्कूल के लिए जाती , स्कूल में शाम में छुट्टी होती तो गेट पर होता ,घर तक पीछे-पीछे
आता .... शाम में घर से बाहर निकलती तो वो अपने घर के गेट पर या बारामदे में होता .... किसी के साथ भी होता तो उसका चेहरा पुष्पा की तरफ ही होता .... रात में खाना खाने बाद भी
पुष्पा अपने परिवार वालों के साथ बाहर निकलती तो वो बाहर ही होता .... बाज़ार जाती
किसी काम से तो वो भी एक दूरी पर उसे जरूर देखती .... कभी परिवार वालों के साथ सिनेमा
देखने सिनेमा हॉल जाती तो इंटरवल में देखती कि वो भी हॉल में कहीं न कहीं वो है .....
एक बार पुष्पा को बुखार लग गया कुछ दिन तक वो बाहर नहीं निकल सकी .... तो उसकी सखियाँ
उससे मिलने ,उसके घर आईं .... वे बताई कि पुष्पा के स्कूल नहीं जाने की वजह से कुछ लड़के उन्हें
छेड़ते हैं .... पुष्पा को कोई लड़का छेड़ने का हिम्मत नहीं कर पाते थे क्यूँ कि उसके बड़े भाइयों
का दबदबा था .... जब पुष्पा की तबीयत ठीक हो गई और वो स्कूल अपनी सहेलियों के साथ
जाने लगी तो फिर पहले की तरह कुछ लड़के ,लड़कियों को छेड़ने के नियत से सामने से आते नज़र
आए लेकिन चुकि पुष्पा सब लड़कियों के पीछे चल रही थी इसलिए उन लड़कों को दूर से वो दिखाई
नहीं दी .... सब लड़के साईकिल पर थे .... लड़के ,सब लड़कियों के चारों तरफ गोल घेरा बना
हँस-हँस के परेशान किया करते थे .... उस दिन भी उन लड़कों का वही इरादा रहा होगा .... लेकिन पुष्पा पर नज़र पड़ते ही सब भाग गए .... लेकिन एक दूरी बना कर वो डॉ.साहब का भाई
अपना नित का रूटीन फॉलो करता रहा .... कुछ दिनों-महीनों में पुष्पा की नज़र भी उसे
ढूँढने लगी ....
कभी-कभी
ऐसा हुआ कि पुष्पा किसी वजह से ,सुबह से रात तक घर से बाहर नहीं निकल पाई ,तो दूसरे दिन
उसके बाहर आने पर ,वो लड़का अपने चेहरे पर गहरी उदासी लिए , हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाता और सामने
पड़े गमले को उठा कर ज़ोर से पटक देता .... दो-चार बार ऐसा होने पर पुष्पा को मज़ा आने
लगा .... वो जानबूझ कर बाहर नहीं आती और छुप कर उस लड़के को परेशान होता देखती
...............,लड़का बैचैनी से टहलता नज़र आता .... साईकिल से पुष्पा के घर के सामने वाले सड़क पर चक्कर लगाता
, साईकिल की घंटी बेवजह बजाता .... लड़का अपने घर के ग्राउंड-गेट
के ग्रिल को ज़ोर-ज़ोर से बजाता .... रात होने पर टॉर्च को जलाता-बुझाता .... पुष्पा
को खिलखिला कर हँसने का मन करता .... लेकिन मुस्कुराते हुये वो सो जाती .... न जाने वो
लड़का सोता या रोता ..... खाना खाता या खाना खाता भी नहीं .... पुष्पा को कुछ पता नहीं चलता .... पुष्पा उस लड़के को जान बुझ कर तंग कर रही है , ये
लड़के को भी कभी नहीं पता चला होगा .... जिस दिन भी ऐसा पुष्पा करती , दूसरे दिन उसके
दीदार होने पर , वो लड़का उठा-पटक .... धूम-धड़ाम जरूर करता .... कभी गमला फूटता .... कभी मेज़-कुर्सी ज़ोर से पटकता .... कभी तो साईकिल ही .... एक आदत बन जाती है न ....
लेकिन पुष्पा और उस लड़के के बीच में , एक शब्द भी बात , कभी
भी नहीं हुई .... लड़के का नाम तक नहीं जान पाई .... क्यूँ वो घर को छोड़ कर चला गया , कहाँ गया ,पुष्पा
को कभी भी पता नहीं चला .... आज भी उसे एक सवाल के जबाब का इंतजार है कि अगर वो प्यार
करता था तो कभी लिख कर , बोल कर प्यार का इजहार क्यूँ नहीं उससे किया .... लेकिन
करता भी तो वो कैसे .... पुष्पा कभी अकेली कहाँ होती थी ....
घर वाले जो ढूंढ रहे थे ,
वो
मिलता भी तो कैसे ,
कोई निशानी ..... ??
प्यार का एक रंग ............