Thursday 31 December 2020

असीम शुभकामनाएँ

 नूतन वर्ष की हार्दिक बधाई ..

दायित्व में पस्त अधिकारों की होती बेक़रारी।

हाय तौबा मचा लेते हैं खड़ा होकर किनारी।

विगत क्या आगत क्या रंगों की उलझन बड़ी,

जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी।

शून्य कोई होना नहीं चाहता

शून्य कोई पाना नहीं चाहता।

जिन्दगी कल थी उन्नीस–बीस,

कल हो जाएगी इक्कीस-बाइस।

लगे हुए हैं सब कोई बेचने में

एस्किमो को आइस।

गाँठ में जोड़ कर रखें पाई-पाई

नव वर्ष की हार्दिक बधाई।

मैं क्या हूँ

सारे फ़साद की सोर उम्मीद है।

नमी में आग का कोर उम्मीद है।

सोणी के घड़े सा हैं सहारे सारे,

ग़म की शाम में भोर उम्मीद है।

Wednesday 30 December 2020

क्या कहें

 बहुत अकुलाता है मन

हम बस एक कदम की दूरी पर है
नूतन वर्ष की प्रतीक्षा में
हम बदल पाए बेटियों की दुर्दशा
शिक्षित बहू की हत्या
मात्र पन्द्रह दिनों में...
हम मिटा पाए समाज से भ्रष्टाचार
हम मिटा लिए अशिक्षा
हम अपने राज्य से पलायन रोक लिए
हम हर घर के लिए 
चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कर लिए
तारीख और दिन बदल जाएंगे
जंग तो जारी है
तैयारी अभी अधूरी है
बहुत सी कमियों के बाद भी मुस्कुराते हुए
नूतन दिवस की शुभकामनाओं के संग
प्रतीक्षा
नए सूरज की
इन्द्रधनुष सभी के लिए

Tuesday 29 December 2020

"खुले पँख"


"मैं आज शाम से ही देख रहा हूँ.. आप बहुत गुमसुम हो अम्मी! कहिए ना क्या मामला है?"

"हाँ! बेटे मैं भी ऐसा ही महसूस कर रहा हूँ.. बेगम! बेटा सच कह रहा है। तुम्हारी उदासी पूरे घर को उदास कर रही है.. अब बताओ न।" शौकत मलिक ने अपनी बीवी से पूछा।

"कल रविवार है.. हमारे विद्यालय में बाहरी परीक्षा है। आन्तरिक(इन्टर्नल) में जिसकी नियुक्ति थी उसकी तबीयत अचानक नासाज हो गई है। उनका और प्रधानाध्यापिका दोनों का फोन था कि मैं जिम्मेदारी लेकर अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करूँ।"

"यह जिम्मेदारी आपको ही क्यों .. और शिक्षिका तो आपके विद्यालय में होंगी?" बेटे ने तर्क देते हुए पूछा।

"ज्यातर बिहारी शिक्षिका हैं। आंध्रा में बिहार निवासी दीवाली से पूर्णिमा तक पर्व में रहते कहाँ हैं।" मिसेज मलिक की उदासी और गहरी हो रही थी।

"चिंता नहीं करो, सब ठीक हो जाएगा।"बेटे ने कहा।

"हाँ! चिंता किस बात की। अपने आने में असमर्थता बता दो कि माँ का देखभाल करने वाली सहायिका रविवार की सुबह चर्च चली जाती है तुम्हारा घर में होना जरूरी है।" पति मलिक महोदय का फरमान जारी हुआ। सहमी सहायिका भी लम्बी सांस छोड़ी।

"कैसी बात कर रहे हैं पापा आप भी? अगर आपके ऑफिस में ऐसे कुछ हालात होते तो आप क्या करते?"

"मैं पुरुष हूँ पुरुषों का काम बाहर का ही होता है।"

"समय बहुत बदल चुका है। बदले समय के साथ हम भी बदल जाएं। कल माँ अपने विद्यालय जाकर जिम्मेदारी निभायेंगी। सहायिका के चर्च से लौटने तक घर और दादी को हम सम्भाल लेंगे।"

"बेटा! तुम ठीक कहते हो... घर चलाना है तो आपस में एक दूसरे की मुश्किलों को देख समझकर ही चलाना होगा.. तभी जिंदगी मज़े में बीतेगी...।"

इतने में उनकी नज़र पिंजरे में बंद पक्षी पर जा पड़ी जो शायद बाहर निकलने को छटपटा रहा था.. पिंजड़ा को खोलकर पक्षी को नभ में उड़ाता बेटे ने कहा,-"सबको आज़ादी मिलनी ही चाहिए।"

Monday 28 December 2020

सेतु

शीत की भोर–

पुस्तक में दबाये

गुलदाऊदी।

उलझा ऊन–

नन्हें गालों उकेरे

लाल निशान।

चारों तरफ मैरी किसमस सैंटा सांता क्लॉज का शोर मचा हुआ था..। इस अवसर पर मिलने वाले उपहारों का  शैली को भी बेसब्री से प्रतीक्षा थी। कॉल बेल बजा और एक उपहार उसे घर के दरवाजे पर मिल गया। चार-पाँच साल की नन्हीं शैली खुशियों से उछलने लगी,-"मम्मा! मम्मा मैं अभी इसे खोल कर देखूँगी। सैंटा ने मेरे लिए क्या उपहार भेजा है?"

"अपने डैडी को घर आ जाने दो .. ! सैंटा का उपहार कल यानी 25 दिसम्बर को खोल कर देखना। " शैली की माँ ने समझाने की कोशिश किया।

शैली ज़िद करने लगी कि अभी उपहार मिल गया तो अभी क्यों नहीं खोल कर देख ले। माँ बेटी की बातें हो ही रही थी कि शैली के डैडी भी आ गए। वे भी अपनी बिटिया हेतु सैंटा सिद्ध होने के लिए दो-तीन पैकेट उपहारों का लेकर आये थे।

जब तक छिपाकर रखते शैली की नजर पड़ गयी। कुछ ही देर में शैली सारे उपहारों का पैकेट खोलकर बिखरा दी।

"जब तुम जानती थी कि हम उपहार रात में इसके बिस्तर पर रखेंगे, जिसे एमेजॉन पर ऑर्डर किया और कुछ लाने मैं स्वयं बाजार गया था। मेरे वापसी पर शैली को किसी अन्य कमरे में खेलने में व्यस्त रख सकती थी न तुम?" शैली के पिता शैली की माँ पर बरस पड़े।

"इसे आप बाहर नहीं ले गए। कुछ देर तक रोती रही। बहुत फुसलाने पर बाहर से अन्दर आयी। डोर बेल बजने पर यह दौड़ कर दरवाजे तक पहुँच गयी।"शैली की माँ ने कहा।

"ना काम की ना काज.., बहाने जितने बनवा लो..!" शैली के पिता बुदबुदाने लगे । शैली की माँ सुनते भड़क गयी। दोनों में गृह युद्ध हो गया और अबोला स्थिति हो गयी।

शैली के समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ तो हुआ क्या...?

रात्रि भोजन के समय भी अपने माता-पिता की चुप्पी उसे कुछ ज्यादा परेशान कर दी। शैली अपने पिता के पास जाकर बोली, -"डैडी! मुझे आपसे बात करनी है।"

परन्तु उसके पिता चुप ही रहे।

"क्या मैं आपसे घर की शान्ति की भीख मांग सकती हूँ?" शैली ने कहा।

Friday 25 December 2020

बुद्ध

जब तक
तलाश रही सांता की
 उम्मीद की उलझन
मकड़ी जाल में
कैद रही जिन्दगी।
कोहराम हवाएँ
दुःख के बवंडर
सदमा के सैलाब
छलके आँसू
छूटी परिंदगी।
खुद को जो चाहिए
उसे पहले बाँट ली
दोगुनी मात्रा में वापिस
मिल गयी बन्दगी।

बुद्ध होना ना
तो कठिन है और
 ना नामुमकिन
बस छोटी लकीर के आगे
बड़ी लकीर खींचने के
जद्दोजहद से बच निकलो।
लकीर के फ़कीर होना
कहाँ तक सामयिक
यह तो तौल कर नाप लो।

Tuesday 22 December 2020

"बड़प्पन"



गुज़रते लम्हों ने सीखला ही दिया...
मोहब्बत जग में जाहिर की जा सकती है
गम आँसू निजी दामन में छिपाने योग्य होते हैं
समय पर ही वक़्त आता है 🤙🏼 !

 "सोच भी नहीं सकती थी कि आप! आप मेरे पीठ पीछे मेरा! मेरा शिकायत पापा से करेंगी।"

"मैं पूछ रहा हूँ न तुम चुप रहोगी कुछ देर।"

"नहीं मुझे पूछना है.. इनसे ही सीखने को मिला है मुँह पर पूछो। इतने वर्षों से महान होने का जो दिखावा कर रही थीं। मेरा शिकायत कीं तो हर्ट मैं हुई हूँ..,"

"बोलो माँ कुछ बोलो अगर तुम्हें इससे कोई शिकायत थी तो तुम इससे कह देती। इसके पीठ पीछे क्यों... ? आख़िर क्यों... ?कुछ तो बोलो...,"

"तुम सुने मैं जो कह रही थी.. तुम अब सज़ा सुना दो मुझे तुम से कुछ नहीं कहना।"

"मैंने कुछ नहीं सुना.. यह सुनी और रोते हुए मेरे पास आयी। मैंने कहा मैं माँ से बात करूँगा।"

"अगर उसने सुना तो उसी समय वह सामने आकर पूछ लेती क्या बातें हो रही हैं... इतने वर्षों से मैं महान होने का दिखावा कर रही थी। वर्षों तक दिखावा किया जा सकता है.. आख़िर क्या चाहिए था मुझे उससे?"

"इतने वर्षों में आपको पोता-पोती नहीं दे सकी।"

"तुमसे चुप रहने के लिए कहा और तुम अनर्गल बकवास किये जा रही हो। माँ तुम बताओ न क्या बात हो रही थी।"

"सुबह में रात का सारा बर्तन..,"

"माँ डिस वाश मशीन किसलिए है? सारी सुख-सुविधाओं का सामान जुटा सकते हैं... अब कोई प्रयोग ही ना करे..,"

"डिश वाश मशीन है ... जला कुकर कढाड़ी तवा बिना रगड़े और डिश भी खंगाल कर डालो तो साफ करता है.. रात का सूखा जूठा नहीं छोड़वा देता है।"

"तो तुम्हें क्या जरूरत है करने की?"

"यही तो तुम्हारे पापा भी कह रहे थे छोड़ दो बहू कर लेगी.. लेकिन मैंने ही कहा जला कुकर है बहू से साफ नहीं होगा.. और उसको समय कहाँ मिलता है.. वर्क एट होम में तो पानी नहीं पी पाती है... अभी बाहर से लौटेगी तो आराम रहेगा उसे। सुबह से शाम तक के बर्तन रगड़ने से आटा गूँथने में पीठ हाथ दर्द करने लगा था। चिन्ता करना और शिकायत करना एक ही है तो क्या बोलूँ.. बोलने के लिए क्या रह गया है.."

"वो आधी-अधूरी बात सुनी और रिश्तों में सूनापन ला दी, और मैं कान के विष के वशीभूत अशान्ति फैलाने में सफल रहा...,"

"कोई बात नहीं ! हो जाता है कभी-कभी, समय रहते दरार पाट लेनी चाहिए..।"

Sunday 20 December 2020

आज की चर्चा


क्या अब रिश्ते अकेलेपन की राह पर चल पड़े हैं!

हाँ! अब रिश्ते अकेलेपन की राह पर चल पड़े हैं।

अकेले चलना मजबूरी हो गया है या जरूरी ,

यह सबके सहनशीलता पर तय हो चला है..

चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात होती देखी है रिश्तों ने

और सीख लिया चाँद सा अकेले चलने में नहीं डरना!

सूरज से कोई आँख नहीं मिला सकता, ग्रहण के समय लोग उससे आँखें चुराते हैं। अपनी लड़ाई खुद अकेले ही तो लड़ना है, लेकिन बिंदास रहना उससे ही सीखना! आवश्यक हो गया अकेलेपन के लिए नहीं मरना।

अनेकानेक बार लगा कि अपनी मनोस्थिति व परिस्थितियों को समझने के लिए मुझे बस जागना ही होगा। अलग-अलग आध्यात्मिक कार्य जैसे कि समाज के लिए नि:स्वार्थ सेवा, ॐ का जाप या साहित्य व शास्त्रों का अध्ययन मुझे मेरी नींद से जगाने में मदद करते रहे। यही मेरे ध्यान के माध्यम थे और जागने के आधार। इस बाहरी जागरूकता के आधार से ही मैं अपनी आन्तरिक जागरूकता प्राप्त की।

Saturday 19 December 2020

जुगनू ज्योत

जुगनू की लौ/देवदीवाली–
बंसवारी मकड़ी
मेले में आयी।

"थैंक यू! थैंक यू ,सो मच सर!" होल्ली ने अपने बॉस रेड्डी को कहा।
"इट'स ओके! गॉड ब्लेस्स यू! एन्जॉय।" बॉस रेड्डी ने अपने टीम मेम्बर होल्ली से पूछा।
     होल्ली व रेड्डी जिस कम्पनी में काम कर रहे थे, उस कम्पनी से कहा गया कि सभी अपनी-अपनी दो-तीन इच्छाएँ गुप्तरूप से सूचित करेंगे। आप सभी को एक दूसरे के लिए सांता क्लॉज बनाया जाएगा। आप जिनके लिए सांता बने हैं उन्हें सूचित नहीं करेंगे लेकिन उन्हें उपहार भेज देंगे। उपहार मिलने पर पैकेट खोल कर नहीं देखेंगे। निर्धारित तिथि को सभी एक साथ वर्चुअल गोष्ठी में उपस्थित होंगे और अनुमान लगायेंगे कि आपका सांता क्लॉज कौन हैं।
और आपको एक सूची दी जाएगी जिसमें आप सभी को अपनी-अपनी पसन्द की पाँच वस्तुओं को बतानी है जिसे रेफ़ल ड्रा से निष्कर्ष निकाला जाएगा।
 होल्ली ने हैरी पॉटर के लिए अपनी इच्छा जतायी और निर्धारित तिथि पर पैकेट खोलने पर उसे हैरी पॉटर की 5 डीवीडी मिला। वह खुशी से उछल पड़ी,-"मेरे बॉस! सर आप ! सर आप।"
उससे पूछा गया कि आपने कैसे अनुमान लगाया?
"सर मुझसे फोन पर बात किये थे।"
"मैं तो सिर्फ पूछा था कि तुमने हैरी पॉटर को क्यों चुना? इसने नन्हें शिशु सा खुश होते हुए बताया कि अगर इसके सांता के द्वारा हैरी पॉटर की स्टिक-जादुई छड़ी भी दी जाती है तो इसे बेहद खुशी होगी।"
"तुम इस डीवीडी को कैसे देख पाओगी?" होल्ली की सहेली ने पूछा।
"क्यों?" रेड्डी ने पूछा।
"इसके पास मोबाइल के सिवा कोई अन्य उपकरण नहीं है। कम्पनी से मिला लैपटॉप है जिसमें डीवीडी लगाने की सुविधा नहीं है।" होल्ली की सहेली ने कहा।
"अरे! इस ज़माने में कोई टीवी नहीं रखता हो , वो भी खास कर युवा?" रेड्डी आश्चर्यचकित थे।
"आप चिन्ता नहीं करें सर! रेफ़ल ड्रा से मुझे डीवीडी प्लेयर मिल जाएगा। बच्चा बने युवा को फिर से युवा हो जाने का एहसास कराने के लिए हार्दिक आभार आपका।"


DVD-डिजिटल वीडियो डिस्क
Raffle Draw=भाग्य आज़माने वाली क्रीड़ा


 

Friday 11 December 2020

'पितृ-ऋण'

लॉकडाउन–
मौत सभा में गूँजे
प्रेम के धुन।

"बाबूजी!"

"आइये बाबूजी!"

"आ जाइए न बाबा.." मंच से बच्चों के बार-बार आवाज लगाने पर बेहद झिझके व सकुचाये नारायण गोस्वामी मंच पर पहुँच गए।

   मंच पर नारायण गोस्वामी के पाँच बच्चें जिनमें चार बेटियाँ ,  स्वीकृति, संप्रीति स्मृति, स्वाति और एक बेटा साकेत उपस्थित थे। 

"मैं बड़ी बिटिया स्वीकृति महिला महाविद्यालय में प्रख्याता हूँ।"

"मैं संप्रीति चार्टर्ड एकाउंटेंड हूँ।"

"मैं स्मृति नौसेना में हूँ।"

"मैं स्वाति बायोटेक इंजीनियर हूँ।

"मैं अपने घर में सबसे छोटा तथा सबका लाड़ला साकेत आपके शहर का सेवक हूँ जिला कलेक्टर।

  आप सबके सामने और हमारे बीच हमारे बाबूजी हैं 'श्री नारायण गोस्वामी'।"

"आपलोगों के बाबूजी क्या कार्य करते थे ? यह जानने के लिए हम सभी उत्सुक हैं।" दर्शक दीर्घा के उपस्थिति में से किसी ने कहा।

"हमारे बाबूजी कब उठते थे यह हम भाई बहनों में से किसी को नहीं पता चला। पौ फटते घर-घर जाकर दूध-अखबार बाँटते थे। दिन भर राजमिस्त्री साहब के साथ, लोहा मोड़ना, गिट्टी फोड़ना, सीमेंट बालू का सही-सही मात्रा मिलाना और शाम में पार्क के सामने ठेला पर साफ-सुथरे ढ़ंग से झाल-मुढ़ी, कचरी-पकौड़े बेचते थे।"

   दर्शक दीर्घा में सात पँक्तियों में कुर्सियाँ लगी थीं.. पाँच पँक्तियों में पाँचों बच्चों के सहकर्मी, छठवीं में इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया -प्रिंट मीडिया केे पत्रकार व रिश्तेदारों के लिए स्थान सुरक्षित था तो सातवीं पँक्ति में नारायण गोस्वामी बाबूजी के मित्रगण उपस्थित थे।

पिन भी गिरता तो शोर कर देता...।

Friday 4 December 2020

हाइकु दिवस की बधाई



असीम शुभकामनाओं के संग चतुर्थ वार्षिकोत्सव व सोलहवें हाइकु दिवस की हार्दिक बधाई

नभ में सिक्का/उछला सिक्का–
पुनः श्रम ही आया
उसके हिस्से।

5 बेहद महत्त्वपूर्ण अंक..




Wednesday 2 December 2020

पूत के पाँव...




"आज पुनः वर्चुअल कार्यक्रम में मेरे ऑफिस की ओर से स्वयं के बनाये ब्रेड से घर बनाने की प्रतियोगिता रखी गयी थी माँ। छोटे-छोटे बच्चों द्वारा किये कार्यों से मैं अचंभित रह गयी।" माया विस्फारित आँखों के संग कहा।

"इस देश में ही सम्भव है बच्चों द्वारा अचम्भित करने योग्य कार्य किया जाना। स्वालम्बी बनाने को हम अपने से दूर करना समझ रहे थे।" माया की माँ ने कहा।

"हाँ माँ! एरोन मोरेनो की ही कहानी पर कौन विश्वास करेगा। एक तरफ कम्पनी बन्द होने आर्थिक दृष्टि से कमजोर पड़ने पर कई लोगों ने आत्महत्या कर ली तो आठ वर्षीय एरोन मोरेनो ने अपनी माँ के संग परिवार का कायाकल्प बदल दिया।" माया ने कहा।

"अरे वाहः जरा विस्तार से पूरी कहानी बताओ," माया की माँ ने कहा।

"वैश्विक आपदा का शिकार एरोन मोरेनो के पिता हो गए। पिता के खोने के बाद एरोन मोरेनो की माँ इस स्थिति में नहीं थी कि वे जिस मकान में रह रहे थे उसका किराया दे सकें और भोजन की व्यवस्था कर सके। कैलिफोर्निया जैसे राज्य में रहने का भुगतान करना था । कुछ ही दिनों में एक समय ऐसा आया उस परिवार के सामने कि घर में बस बारह डॉलर थे और कुछ गमलों में नवजात पौधे। 
एरोन मोरेनो की माँ के एक परिचित ने अपने घर में बने सेड में रहने का आश्रय दे दिया। एरोन मोरेनो को Hot Cheetos with cheese खाने की इच्छा होती थी लेकिन उसके लिए वह अपनी माँ को तंग करना नहीं चाहता था इसके लिए उसने गमले में लगे पौधों को बेचना शुरू किया। 
Hot Cheetos with cheese खरीदने से ज्यादा उसे पैसे मिलने लगे तो उसने और पौधों को बेचने की व्यवस्था करता रहा और कुछ महीनों में उसे GoFundMe से उसे इकतीस हजार डॉलर लोन मिल गया।
इस श्रम से सड़क पर आया परिवार छ महीने में ही पुनः नए मकान में रहने और नयी गाड़ी में घूमने लगा।" माया ने कहा।
"इसमें सहायता एरोन मोरेनो की माँ को मिली नौकरी ने भी किया।" माया के पति ने कहा।
"उबारा तो 'एरोन मोरेनो गार्डन' ही न..!" माया ने कहा।
"अकेला चना...," मिश्रित आवाज गूँज गयी।

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...