शीत की भोर–
पुस्तक में दबाये
गुलदाऊदी।
उलझा ऊन–
नन्हें गालों उकेरे
लाल निशान।
चारों तरफ मैरी किसमस सैंटा सांता क्लॉज का शोर मचा हुआ था..। इस अवसर पर मिलने वाले उपहारों का शैली को भी बेसब्री से प्रतीक्षा थी। कॉल बेल बजा और एक उपहार उसे घर के दरवाजे पर मिल गया। चार-पाँच साल की नन्हीं शैली खुशियों से उछलने लगी,-"मम्मा! मम्मा मैं अभी इसे खोल कर देखूँगी। सैंटा ने मेरे लिए क्या उपहार भेजा है?"
"अपने डैडी को घर आ जाने दो .. ! सैंटा का उपहार कल यानी 25 दिसम्बर को खोल कर देखना। " शैली की माँ ने समझाने की कोशिश किया।
शैली ज़िद करने लगी कि अभी उपहार मिल गया तो अभी क्यों नहीं खोल कर देख ले। माँ बेटी की बातें हो ही रही थी कि शैली के डैडी भी आ गए। वे भी अपनी बिटिया हेतु सैंटा सिद्ध होने के लिए दो-तीन पैकेट उपहारों का लेकर आये थे।
जब तक छिपाकर रखते शैली की नजर पड़ गयी। कुछ ही देर में शैली सारे उपहारों का पैकेट खोलकर बिखरा दी।
"जब तुम जानती थी कि हम उपहार रात में इसके बिस्तर पर रखेंगे, जिसे एमेजॉन पर ऑर्डर किया और कुछ लाने मैं स्वयं बाजार गया था। मेरे वापसी पर शैली को किसी अन्य कमरे में खेलने में व्यस्त रख सकती थी न तुम?" शैली के पिता शैली की माँ पर बरस पड़े।
"इसे आप बाहर नहीं ले गए। कुछ देर तक रोती रही। बहुत फुसलाने पर बाहर से अन्दर आयी। डोर बेल बजने पर यह दौड़ कर दरवाजे तक पहुँच गयी।"शैली की माँ ने कहा।
"ना काम की ना काज.., बहाने जितने बनवा लो..!" शैली के पिता बुदबुदाने लगे । शैली की माँ सुनते भड़क गयी। दोनों में गृह युद्ध हो गया और अबोला स्थिति हो गयी।
शैली के समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ तो हुआ क्या...?
रात्रि भोजन के समय भी अपने माता-पिता की चुप्पी उसे कुछ ज्यादा परेशान कर दी। शैली अपने पिता के पास जाकर बोली, -"डैडी! मुझे आपसे बात करनी है।"
परन्तु उसके पिता चुप ही रहे।
"क्या मैं आपसे घर की शान्ति की भीख मांग सकती हूँ?" शैली ने कहा।
सुन्दर।
ReplyDeleteवन्दन
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-12-20) को "नया साल मंगलमय होवे" (चर्चा अंक 3930) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत प्यारी एवं सार्थक रचना..यथार्थ का सजीव चित्रण..
ReplyDeleteजीवन्त और हृदयस्पर्शी सराहना से परे सृजन । हाइकु भी बेमिसाल और लाजवाब ।
ReplyDeleteबेमिसाल हाइकु, सुंदर और सार्थक कहानी। आपको नववर्ष 2021 की ढेरों शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteवाह!बेहतरीन सृजन विभा जी ।सही है ,बालमन यही चाहता है कि घर में हँसी -खुशी रहे ,सब समझता है वो ।
ReplyDeleteओह!माता-पिता के झगड़े में सबसे ज्यादा बच्चे ही पिसते हैं...शैली की खुशी के लिए किए उपक्रम उसे ही दुखु कर गये....।
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ ।
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