Sunday, 20 December 2020

आज की चर्चा


क्या अब रिश्ते अकेलेपन की राह पर चल पड़े हैं!

हाँ! अब रिश्ते अकेलेपन की राह पर चल पड़े हैं।

अकेले चलना मजबूरी हो गया है या जरूरी ,

यह सबके सहनशीलता पर तय हो चला है..

चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात होती देखी है रिश्तों ने

और सीख लिया चाँद सा अकेले चलने में नहीं डरना!

सूरज से कोई आँख नहीं मिला सकता, ग्रहण के समय लोग उससे आँखें चुराते हैं। अपनी लड़ाई खुद अकेले ही तो लड़ना है, लेकिन बिंदास रहना उससे ही सीखना! आवश्यक हो गया अकेलेपन के लिए नहीं मरना।

अनेकानेक बार लगा कि अपनी मनोस्थिति व परिस्थितियों को समझने के लिए मुझे बस जागना ही होगा। अलग-अलग आध्यात्मिक कार्य जैसे कि समाज के लिए नि:स्वार्थ सेवा, ॐ का जाप या साहित्य व शास्त्रों का अध्ययन मुझे मेरी नींद से जगाने में मदद करते रहे। यही मेरे ध्यान के माध्यम थे और जागने के आधार। इस बाहरी जागरूकता के आधार से ही मैं अपनी आन्तरिक जागरूकता प्राप्त की।

10 comments:

  1. भावपूर्ण चिंतन मनन..प्रभावशाली और प्रेरक सृजन.

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  2. जीवन सौंदर्य को परिभाषित करता प्रेरणादायी लेख..।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  4. सुंदर प्रभावशाली,प्रेरणादायक लेख ।
    सादर।

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. साधु ।
    अपना रास्ता आप आपने चुन लिया और उसे अपना बना लिया । बधाई ।

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  7. ये सच है ... आज अकेलेपन में चलते हैं सब ... हालांकि सब कहते हैं जुड़ना चाहिए पर प्रयास कितना होता है ...

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  8. प्रेरणादायक, प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।

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