Friday 16 May 2014

संविधान


मतदान ना करना संविधान के खिलाफ है
तो बहुत प्रयास के बाद भी नाम ना जुड़ पाना
और मतदान से वंचित रह जाना
ऐसे हालातो मे संविधान क्या करती है ......
कुछ नाम इसलिए नहीं जुड़ पाये
ताकि वोगस वोट डाले जा सके ......
तब संविधान का क्या किया जाये ......
लोग जबाब ना दे पाने के हालात मे
पतली गली पकड़ लेते हैं ......
मुझे केवल लखनऊ का रिज़ल्ट जानना है ......
बाप-बेटे ने क्या बोया क्या उखाड़ा ......


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दिखता वक़्त उपजाऊ मिट्टी लाया है
जादू दिखा अनहोनी करने वाला साया है
समय का इंतजार कर रहे हैं जो बताएगा
सारांध छोड़ देने वाला सुनामी आया है

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Thursday 1 May 2014

रिश्ते सितार






धनक ओले
टिकुली टेलकम
अम्ब ललाट। 

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उत्साह तंग 
कस बल हो ढीला
जीवन जंग। 

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तड़प जिये
दहकता अंगार
चोंच लहके। 

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स्वर्ण हो गई 
रवि की आँख खुली 
निशा चादर। 

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संभल बजा 
रिश्तों की है सितार
नाजुक तार। 

या 

रिश्ते सितार
संभलकर बजा
नाजुक तार। 

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छुई मुई सी 
सरि गिरि से गिरी
वारी घूँट पी / सिन्धु में लीन। 

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श्रम है पूजा 
बदल देती भाग्य 
शोर है गूंजा। 

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अबोध श्रम
प्रताड़ित कर्म
समाज शर्म। 

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बाल श्रमिक
गाली झापड खाते
देश दुर्भाग्य। 

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सिर तेगाडी 
हरारत हारता
हँसे अभाव। 

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मरा लो मरा / दिखता मरा 
पेट पीठ सटाये
बोझ उठाये। 


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दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...