"तुम्हारा मुँह क्यों लटका हुआ है? डरो नहीं हम तुम्हारे पदोन्नति के पार्टी में ज्यादा खर्च नहीं करवाने वाले.. ज्यादा से ज्यादा एक माह के वेतन से हमारा काम चल जाएगा।"
"कैसी पार्टी.. किस बात की पार्टी.. ! सबको कम्पनी ने चार सौ-साढ़े चार सौ डॉलर बोनस दिया। यहाँ तक जो साफ-सफाई के कर्मचारी हैं उन्हें प्रत्येक माह पन्द्रह-बीस डॉलर बढ़ाया गया..। जिनकी पदोन्नति हुई उनके वेतन में एक डॉलर की बढ़ोतरी हुई क्या.. ?"
"मनुष्य के अतिरिक्त और किस-किस प्राणी में अभाव का रोना रोने आता है , किनके-किनके पास तुलना करने वाली सोच होती होगी..?
"तुम मुझ पर व्यंग्य कर रहे हो?"
"अरे नहीं! आओ तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ..
किसी देश में अकाल पड़ गया। लोग भूखे मरने लगे। एक छोटे नगर में एक धनी दयालु पुरुष था। उसने छोटे-छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक रोटी देने की घोषणा कर दी। दूसरे दिन सबेरे एक बगीचे में छोटे-छोटे बच्चे इकट्ठे हुए। उन्हें रोटियाँ बँटने लगीं.. रोटियाँ छोटी-बड़ी थीं। सभी बच्चे एक-दूसरे को धक्का देकर बड़ी ही रोटी पाने का प्रयत्न कर रहे थे। केवल एक छोटी लड़की एक ओर चुपचाप खड़ी थी। वह सबसे अन्त में आगे बढ़ी। टोकरे में सबसे छोटी अन्तिम रोटी बची थी। उसने उसे प्रसन्नता से ले लिया और वह घर चली आयी।
दूसरे दिन फिर रोटियाँ बाँटी गयीं। उस बेचारी लड़की को आज भी सबसे छोटी रोटी मिली। लड़की ने जब घर लौटकर रोटी तोड़ी तो रोटी में से एक मुहर निकली।
उसकी माता ने कहा कि – ‘मुहर उस धनी को दे आओ। इस हमारा कोई अधिकार नहीं!’ लड़की दौड़ी चली गयी मुहर देने।
धनी ने उसे देखकर पूछा – ‘तुम क्यों आयी हो?'
लड़की ने कहा – ‘मेरी रोटी में यह मुहर निकली है। आटे में गिर गयी होगी; देने आयी हूँ, आप अपनी मुहर ले लें।’
धनी ने कहा, – ‘नहीं बेटी! यह तुम्हारे सन्तोष का पुरस्कार है।’
लड़की ने सिर हिलाकर कहा – ‘पर मेरे संतोष का फल तो मुझे तभी मिल गया था, मुझे धक्के नहीं खाने पड़े।’
धनी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे अपनी धर्म-पुत्री बना लिया और उसकी माता के लिये मासिक वेतन निश्चित कर दिया। वही लड़की उस धनी की उत्तराधिकारिणी हुई।