आज फिर मेरा दिल दहल गया
और
उस ॐ शक्ति पर एक सवाल उठ गया मेरे मन में….
जहाँ मैं रहती हूँ .... BTPS के main गेट के सामने चकिया हॉल्ट है ....
१७ - १८ साल का एक लड़का दिवाली-छठ की छुट्टी में कहीं बाहर से घर आ रहा था
ठीक गाँव के सामने गाडी धीमी होती देख ,उतावला-पन घर जल्दी पहुँचने की
ट्रेन से उतरने के क्रम में 6 इंच छोटा हो गया .... ठीक केवल गर्दन कटी
किसी के घर का दीप बुझ गया
अँधेरा दूसरे घर में है
छ महीने से लेकर ……………………………………… जिस उम्र की स्त्री हो
दहेज कोढ़ हो
दीपावली हमें जरूर मनानी चाहिए
हम तो जरूर मनायेंगे
हम तो शुतुरमुर्ग हैं
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नभ भौचक्का
तारे उदास लगे
दीप जो हँसे।
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बत्ती की सख्ती
अमा हेकड़ी भूली
अंधेर मिटा।
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दीप मंसना
तिमिर नष्ट करे
संघ ना सीखे।
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डरे ना दीप
हथेलियों की छाया
हवा जो चले।
जैसे
डरे ना बेटी
पिता कर की छाया
आतंक साया।
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मिटे न तम
भरा छल का तेल
बाती बेदम।
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रागी वैरागी भिक्षुणी तीनों होती है न स्त्री
जीते जी .... जीते
पर्स ... हर्ष .... संघर्ष
...... नारी के जिम्मे।
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वक्ती गुफ्तगू
दूर हो मुश्तवहा(संदेह)
घुन्ना से अच्छी।
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दीन के घर
तम गुल्लक फूटे
ज्योति बिखरे।
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मन के अंधे
ज्ञान-दीप से डरे
अंह में फसे।
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दीन के घर
तम गुल्लक फूटे
ज्योति बिखरे।
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मन के अंधे
ज्ञान-दीप से डरे
अंह में फसे।
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त्याग के भय
लक्ष्मी के पग पड़े
सासू के ड्योढ़ी
तब दीवाली जमे
घर आँगन सजे।
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जग का तम
समेटे पेंदी तले
दीप की आली
तारों से होड़ लेता
भास सूर्य का देता।
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