Saturday 27 November 2021

अभिविन्यास

 "अद्धभुत, अप्रतिम रचना।

नपे तुले शब्दों में सामयिक लाजवाब रचना। दशकों पहले लिखी यह आज भी प्रासंगिक है। परिस्थितियाँ आज भी ऐसी ही हैं।

लाज़वाब.. एक कड़वी हकीकत को बयां करती सुंदर रचना।

रचना में अनकहा कितना सशक्त है। मार्मिक व सच्चाई को उजागर करती उम्दा रचना।

सशक्त, गजब, बेहतरीन, बहुत शुक्रिया, इस रचना को पढ़वाने का हृदय से आभार.. 

जैसे आदि-इत्यादि टिप्पणियों के बीच में कोई भी विधा की रचना हो तुम्हारे भाँति-भाँति के सवाल, तुम्हें ख़ुद में अटपटे नहीं लगते?"

"नहीं ! बिलकुल नहीं.. अध्येता हूँ। मेरा पूरा ध्यान विधा निर्देशानुसार अभिविन्यास पर रहता है।"

"प्रस्तुति कर्त्ता-कर्त्री रचनाकार से अकेले में विमर्श किया जा सकता है न? आँखों के किरकिरी बनने से बचना चाहिए.."

"यानि तुम्हारा गणित यह कहता है कि डरना चाहिए...। जो डर गया...,"

Friday 19 November 2021

'दुर्गन्ध से मुक्ति'

 


"जानते थे न कि बड़े भैया से गुनाह हुआ था? अपने चार मित्रों के साथ मिलकर भादो के कृष्णपक्ष सा जीवन बना दिया पड़ोस में रहने वाली काली दी का। जबकि काली दी अपने नाम के अनुरूप ही रूप पायी थीं..।"

"इस बात को गुजरे लगभग पचास साल हो गए..,"

"जानते थे न कि मझले भैया जिस दम्पत्ति पर रिश्वत लेकर नौकरी देने का आरोप लगवा रहे हैं वो दम्पत्ति उस तारीख पर उस शहर में क्या उस राज्य में नहीं थे। मझले भैया जी जान से बहन-बहनोई मानते थे उस दम्पत्ति को। बस बहनोई की तरक्की उनसे बर्दाश्त नहीं हो पायी?"

"उस बात को गुजरे सोलह साल गुजर गए। अब तो दोनों भैया भी मोक्ष पा गए।"

"आज बड़े भैया की तरह उनका भतीजा वही कृत्य दोहराकर तुझे अपना वकील बनाया है.."

"इस दोहराये इतिहास पर दीवाल चुनवाना है। सुन मेरी आत्मा! मुझे प्रायश्चित करने का मौका मिला है..।"

Wednesday 10 November 2021

जहर की गाँठ

 रक्षाबंधन, 1976

"यों तो तुम चिकना घड़ा हो गयी हो! जरा बताना, यह कहाँ का न्याय है? एक भाई के मोक्ष के कारण अन्य सारे भाइयों की कलाई सूनी रह जाए। अक्सर ऐसा हो जाता है, हमारा जो खो गया उसके विलाप में जो हमारे पास है उसको हम अनदेखा करने लग जाते हैं।" अन्तर्देशीय पर छपे शब्दों को आँसू धुंधले कर रहे थे।

रक्षाबंधन, 1977

"जिस पर पाँच रुपया या दस रुपया टाँका गया हो वही राखी मेरे लिए मंगवाना..,"

"यह तो अन्याय है। आप अभी अध्येता हैं। जो रुपया नेग में देने के लिए मिलता है, उसे भी आप अपने पास रख लेते हैं और ऊपर से..,"

"सुग्गिया! गाँठ बाँधकर रख ले.. ! जब तू बड़ी होगी और तेरी शादी होगी तो मैं ही तुझे बुलाने भेजने की जिम्मेदारी मेरी होगी। मैं पिता के संग ही रहूँगा... तब सब गाँठ खुल जायेगा।"

रक्षाबन्धन, 1982

शादी के बाद की पहली राखी.. कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं..! बहुत 

रक्षाबंधन, 1995

सुग्गिया और उसके कुछ भाई अब एक ही शहर में रहते हैं तो राखी में गुलजार रहता है।

रक्षाबंधन, 2015

सुग्गिया दूसरे राज्य में रहती है। ऐसा पहली बार हुआ है कि आज राखी के दिन ही सुग्गिया का जन्मदिन पड़ा। सुग्गिया सारे भाइयों को न्योता दिया गया था। सुग्गिया उल्लासित प्रतीक्षा करती रह गयी।

रक्षाबंधन, 2018

बहुत सालों पहले चिकना घड़ा कहने वाले सारे भाई सुग्गिया को अब पत्थर कहते हैं...। 

रक्षाबंधन, 2021

पौधे वृक्ष बनने के कगार पर पहुँच गए हैं। सुग्गिया पत्थर से मीठा स्त्रोता फूट गया है। थाली में अक्षत रोली राखी के खाली पैकेट और बुझे दीप संग पाँच-पाँच सौ के रुपये गवाही दे रहे हैं


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...