‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी’ के तर्ज़ पर बिहार के किसी-किसी इलाक़े {मेरे मायके में नहीं बनता है लेकिन ससुराल में बनाया जाता रहा है} में दीवाली की शाम और होली के एक दिन पहले होलिका जलाने की शाम में चावल और बड़ी-कढ़ी बनाने का रिवाज़ है। सभी के शरीर से उतरे उबटन के संग बिना नमक डाले पाँच बड़ी जलते होलिका में डाली भी जाती है। यूँ तो बड़ी-कढ़ी गर्मी-बरसात भर भी बनती रहती है, लेकिन सावन में कढ़ी का सेवन करना वर्जित माना जाता है।
कुछ वर्षों पहले एक होलिका जलने वाली शाम के नाश्ते में बड़ी ही बना देने के लिए घर में जितना बेसन था सबको घोलकर मेरी बड़ी देवरानी छानने लगी और मेरे बेटे तथा अपने बेटे को ज़िद कर नाश्ता करने के लिए बैठा दी।
(मुझे एक बेटा और देवरानी को दो बच्चे, उसका बेटा, मेरे बेटे से डेढ़ साल बड़ा तो बेटी लगभग साढ़े तेरह महीने छोटी। तीनों बच्चे एक संग पले थे। दोनों बेटों में गहरी दोस्ती रही। हमारा संयुक्त परिवार था तब सास-ससुर भी थे…। होली-छठ में सबका जुटान होना सुनिश्चित था।)
बड़ी देवरानी बड़ी छानती जा रही थी और भेजती जा रही थी… बड़ी का घोल समाप्त हो गया तो वो हाथ धोकर चौके से बाहर आ गयी और देखा कि दोनों बेटे ख़ाली तश्तरी लेकर बड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं…! बड़ी की जगह बड़ी देवरानी को देखकर दोनों के बेटे हँस पड़े।
ससुर जी, मेरे पति, दोनों देवर, देवर की बेटी, सासु जी, छोटी देवरानी, उसका बेटा और मैं तो बड़ी चखे भी नहीं हैं…
“ऐसा कैसे हो सकता है?” देवरानी लगभग चीख ही पड़ी। वो बेहद स्तब्ध थी!
“अगली बार से हमें ज़िद करके कोई ऐसी चीज खाने के लिए मजबूर नहीं कीजिएगा चाची-माँ जो हमें पसंद ना हो! हम बड़ों की बात टालकर अवज्ञा नहीं कर पाते हैं और मेरी माँ कहती हैं कि ना कहना अनाज का भी अपमान होता है! आख़िर ज़िद करने वाले बड़ों को सिखलाया कैसे जाये।”
“कढ़ी में आयरन की भरपूर मात्रा होती है.. इसके सेवन से शरीर में हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में मदद मिलती है और शरीर भी स्वस्थ रहता है.. कढ़ी बहुत लाभदायक होती है.. इसका सेवन त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करता है…,” मेरी बात पूरी भी नहीं हो सकी,
“बस! बस बस! माँ! बेसन लाने किसी को भेजो! सभी प्रतीक्षा में हैं! और आप कहती हैं ‘अप रूपी भोजन, पर रूपी शृंगार’ हमें उसका हलवा बेहद पसंद है…!”
“धत्त तेरे की। दोनों बाबूलोग मेरे उम्मीद पर पानी फेर दिए। मैं चुपके से आज कढ़ी-बड़ी बनाना सीख लेती लेकिन…,” छोटी देवरानी ने कहा।
“हा! हा! छोटी मम्मी आपका तो अभिमन्यु सा हाल हो गया…,” बड़ी देवरानी की बेटी ने कहा।
“दीदी! आप हमें कढ़ी-बड़ी बनाना बता दीजिए! मेरी बनायी कढ़ी फट जाती है तो बड़ी कड़ी रह जाती है!” छोटी देवरानी ने कहा।
“खट्टी कढ़ी पसन्द आती है देवर जी को। दही को खट्टा बनाने के लिए जमे हुए दही को कुछ घंटों के लिए कमरे के तापमान पर रख देना चाहिए। कढ़ी बनाने के लिए कमरे के तापमान पर दही का उपयोग करना चाहिए। बस उसे 3-4 घंटे पहले फ्रिज से निकाल लो ताकि यह ठंडा न हो… यदि आप ठंडे दही का उपयोग करते हैं, तो गर्म करने पर वह फट जाएगा और दानेदार हो जाएगा।
बड़ी कड़ी ना हो उसके लिए बेसन ताज़ा हो और खूब फेंटा गया हो तथा घोल ना बहुत पतला हो और ना बहुत गाढ़ा हो। घोल पूरी तरह से फेटना हो गया है या नहीं इसको जाँचने के लिए किसी गिलास या कटोरी में पानी लेकर उसमें एक बड़ी खोटने पर पता चल जाता है। अगर फेटना हो गया है तो बड़ी पानी के ऊपरी सतह पर आ जाएगी और अगर फेटना नहीं हुआ है तो पानी के निचली सतह पर रह जाएगा । घोल में नमक बड़ी छानते समय मिलाना चाहिए।
एक टोटका तुम्हें बताऊँ ‘बेसन में पानी डालने के बाद जब उँगलियों को डालकर दाहिने तरफ चलाओ तो फिर उसे वापिस उलटा बायीं ओर ना करना।”
“सब डायरी में लिख ही लेती हूँ, चक्रव्यूह भेदन के समय भूल ना जाऊँ…” खिलखिलाते हुए छोटी देवरानी ने कहा।
लिख लो बड़ी बनाने के लिए : सब जुटें तो मन से बनाना यूँ ही अच्छा बनेगा…
सामग्री
1 कप बेसन
1/4 चम्मच हल्दी
1/8 चम्मच हींग
चुटकी भर खाने वाला सोडा
स्वादानुसार नमक
आवश्यकतानुसार पानी
आवश्यकतानुसार तलने के लिए तेल
कढ़ी के लिए:
1 कप दही
1/2 कप बेसन
1/2 चम्मच हल्दी
1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर
आवश्यकतानुसार पानी
2 चम्मच तेल
स्वादानुसार नमक
1/2 चम्मच सरसों के दाने
1/2 चम्मच जीरा
दो-तेजपत्ता या 10-12 करी पत्ते
1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर
1 सूखी लाल मिर्च
-तले बड़ियों को एक बर्त्तन में रखे पानी में डालकर 5 मिनट भिगोकर पानी से बाहर निकाल देती रहना।
-कढ़ी को लगातार चलाती रहना… (उबाल आ जाने से रिश्ते फट जाते हैं…) जिससे तुम्हारे श्रम में बचत होगी..”
“दादा अक्सर कहते रहते हैं ‘गिथिन के बड़ी’ वो क्या है?”
“उसके बारे में फिर कभी…”