जो अपने वश में नहीं उसपर क्यों अफसोस करना, विपरीत परिस्थिति में धैर्य रखने के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता...
कल(04-12-2018) सुबह छोटे लाल जी मुझे फोन कर बोले कि "फूल लाने की व्यवस्था इसबार आप करा लेंगी क्या...?"
"क्यों क्या हुआ?"
"मैं कल रात में लाने गया था तो मिला नहीं , घर लौट कर आया तो गर्भवती बेटी की तबीयत खराब लगी , डॉक्टर के पास लेकर गया तो डॉक्टर बोली गर्भस्थ जीव पेट में मैला कर दिया है उसे तुरन्त निकालना होगा... अभी सुबह में ऑपरेशन से बेटा हुआ है.."
"व्यवस्था करा लेना तो आसान है, परन्तु अब इस समय करने के लिए किसे बोला जाए यह मुश्किल..." कल संस्था का वार्षिकोत्सव था । घर से निकलने का समय आया तो मेरा छोटा भाई फोन पर बोला "चार दिसम्बर ह! शुभकामनाएं देबे खातिर फोन कईनी हा!"
"काहे ? तू अ ईब अ ना का अ ?"
"अईति त जरूरए! लेकिन उ का अ ह कि काल्हे सीढ़ी से गिर गईला से कमर में चोट बा, उ तनी बी.पी. हाई बा अउरी चेस्ट पेन बा... सब टेस्ट करा के अभिये लौट रहल बानी.."
दो मिनट सोचने में लग गया कि क्या करूँ... भाई को देखने जाऊँ कि गेंदा माला लेने जाऊँ... आयोजन स्थल जाना ज्यादा जरूरी था क्यों कि मंच संचालन भी देखना था... मंच संचालन करने वाले नहीं आ पा रहे थे।
अभिलाष(संस्था का सबसे कम उम्र का सदस्य) दत्त(उप सचिव) की पहली पुस्तक का लोकार्पण था.... बेहद उत्साहित था... मेरे नहीं जाने से रंग में भंग...
भाई के पास अपने पति को भी नहीं भेज सकती थी , क्योंकि इन्हें MI की चल रही परीक्षा केंद्र पर शीघ्र पहुँचना था...
मैं संस्था आयोजन स्थल ही जाने का निर्णय ली... एक क्षण मिलता है जब हम दोराहे पर खड़े होते हैं...
कल भाई के पास नहीं जा पाने का दर्द और उसके मन में गलती से भी उपजा भाव कि दीदी आज नहीं आ पाई का भरपाई आज उसे डॉक्टर से दिखाया जाना दूर नहीं कर पायेगा न...