Sunday, 30 December 2018

"मूल्यांकन"


किश्त-मुश्त के फेर में जनाब
बही जोह हो रहा हिसाब
क्या-क्या बदल जायेगा
बदलते तिथि दिन माह के साथ
उलझे जीवन को सुलझाते
सब तो यही कहते वाह के साथ
अंत के गर्भ में आरंभ है
मोह तृष्णा नाश स्तंभ है
कल इतिहास कल रहस्य में
धन्यमन्य जुदा पारिहास्य में
जुड़ाव प्राप्य के रंग-मध्य
भ्रान्‍तचित्‍त मांगे सायुज्य

2 comments:

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“नगर के कोलाहल से दूर-बहुत दूर आकर, आपको कैसा लग रहा है?” “उन्नत पहाड़, चहुँओर फैली हरियाली, स्वच्छ हवा, उदासी, ऊब को छीजने के प्रयास में है...