"अरे भाई मंगरु! सुनने में आया है कि तूने अपनी फसल लगी खेत गिरवी रख.. गिरवी रखी कि बेच ही दी ? ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी..? एक बार तुमने मुझसे बात करनी भी उचित नहीं समझी?"
"थोड़ी राहत तो दे मेरे दोस्त सोहन ! एक ही सांस में कितनी सवाल कर गया.. वक़्त ने इतना भी समय नहीं दिया या यूँ कहें मौका ही नहीं दिया कि तुम्हारे पास आकर सलाह कर सकूँ... आनन-फानन में सब करना पड़ा । बेटा को दुबई भेजने के लिए दलाल मिला। दलाल लाने वाले मेरे सगे थे । वे ही खेत के ग्राहक भी लाये..। कहीं भी शक के अंदेशा की गुंजाइश ही नहीं थी..!"
"सुन मेरे दोस्त! बहुत पुरानी बात है... एक वैद्य, अपने सहयोगी के संग एक गाँव से होकर गुजर रहा था। गाँव में चारों ओर हरियाली फैली हुई थी.. करेले की लत्तर करैले से भरी, नींबू का पेड़ नींबू से भरा.. देखकर दोनों बहुत खुश हुए.. वैद्य को अपने लिए निवास स्थल की जरूरत थी वो अपने सहयोगी से बोला कि "यहीं इसी गाँव में हम ठहर जाते हैं।"
"मुझे नहीं लगता कि यहाँ के लोगों को किसी वैद्य की जरूरत होती होगी, यहाँ स्वस्थ्य रहने का समुचित साधन मौजूद है।"
"मत भूलो! किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं। जहाँ दिन होता है वहीं रात भी होती है। जितने स्वास्थ्यप्रद चीजें होती हैं उनके अंदर हानिकारक चीजें भी मौजूद हैं।" कहानी सुनाकर सोहन ने मंगरु से कहा,"मेरी बात तुम्हारे समझ में कुछ आई क्या?"
"ओह्ह! तुम्हारी बातों से सहमत हूँ। अब क्या करूँ!"
"दुबई हमारे लिए विदेश होने के कारण लालच में फँसने का जाल और जो वो तुम्हारे सगे हैं , तुम्हें ज्यादा पैसे के लालच में फँसा मृगतृष्णा में उलझा डाला।"