सब की शुभकामनायें बटोर रही हूँ और हिम्मत जुटा रही हूँ ... नये पुस्तक में सम्पादन के लिए ....
आभार सभी का ...
शशि शर्मा 'खुशी'
आभार सभी का ...
शशि शर्मा 'खुशी'
मेरा परम सौभाग्य कि 17 जनवरी 2016 को मुझे विश्व पुस्तक मेले में दिल्ली जाने का मौका मिला। वो भी मेरी शादी की 25 वीं वर्षगांठ पर,,, मेरे लिए इस से बेहतरीन तोहफा कोई और हो ही नहीं सकता था। मैं अपने जीवन साथी का दिल से आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने इतना अद्भुत उपहार मुझे दिया। मेरे श्रीमान कभी भीड़ का हिस्सा बनने के पक्ष में नहीं रहे। आजकल जहाँ सब लोग बेतहाशा पैसे खर्च कर पार्टी करके शादी की वर्षगांठ मनाते हैं वहीं हमारे साहब इसे फिजूलखर्ची व दिखावा मानते हैं। वैसे सबकी अपनी पसंद व अपना तरीका होता है 😊 जिसमें जिसे खुशी मिले वही सही है। ये मेरा मानना है।
खैर, इस विषय को यहीं विराम देते हुए हम फिर से पुस्तक मेले की तरफ आते हैं।
खैर, इस विषय को यहीं विराम देते हुए हम फिर से पुस्तक मेले की तरफ आते हैं।
मुझे पुस्तक मेले में ढ़ेर सारी पुस्तकें एक जगह देखकर कितना सुखद एहसास हो रहा था इसे तो मैं शब्दों में ब्यां नहीं कर पाऊंगी। लेकिन हाँ, वहीं मुझे अपनी आदरणीया व प्रिय दीदी (विभा श्रीवास्तव) द्वारा संपादित पुस्तक "साझा नभ का कोना" भी मिली, जो हायकु से संबंधित है। उसके बारे में अवश्य कुछ कहना चाहूँगी।
चुंकि मैं भी आजकल हायकु सीख रही हूँ सो मुझे इसे पढ़ने में बेहद आनंद आ रहा है। साथ ही आप सभी को बताते हुए प्रसन्नता भी हो रही है कि इसी साल के अंत में दिसंबर माह में हायकु शताब्दी वर्ष पर विभा दी के संपादन में आने वाली पुस्तक के एक कोने में मैं भी आप सभी को नजर आऊंगी।
सभी ने बहुत ही अच्छा लिखा है बेशक अब हम जो हायकु सीख रहें हैं ये उन से बेहद अलग हैं, उसके बावजूद भी ये अपनी जगह बेहद अच्छे हायकु हैं जिन्हें पढ़ना मजेदार अनुभव रहा है। विभा दीदी सहित सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ
चुंकि मैं भी आजकल हायकु सीख रही हूँ सो मुझे इसे पढ़ने में बेहद आनंद आ रहा है। साथ ही आप सभी को बताते हुए प्रसन्नता भी हो रही है कि इसी साल के अंत में दिसंबर माह में हायकु शताब्दी वर्ष पर विभा दी के संपादन में आने वाली पुस्तक के एक कोने में मैं भी आप सभी को नजर आऊंगी।
सभी ने बहुत ही अच्छा लिखा है बेशक अब हम जो हायकु सीख रहें हैं ये उन से बेहद अलग हैं, उसके बावजूद भी ये अपनी जगह बेहद अच्छे हायकु हैं जिन्हें पढ़ना मजेदार अनुभव रहा है। विभा दीदी सहित सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ
"साझा नभ का कोना" में विभा रानी श्रीवास्तव जी की रचनायें पढ़ी | आपकी रचनाओं का आंकलन कर सकूँ इतना ज्ञान कहाँ है मुझे फिर भी एक छोटी सी कोशिश करता हूँ | आपने अपनी ख्याति के अनुरूप बहुत ही नए शब्दों का प्रयोग किया है और आप टीम की कप्तान की भी हैं | आपने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है और एकदम सटीक रचनाएँ लिखी हैं | मुझे आपकी रचना :
श्रम लिखते
माँ, भू-लाल के भाल
स्वेद क्षणिका
माँ, भू-लाल के भाल
स्वेद क्षणिका
और
वंश उऋणी
बीजती माता जाई
बीज संस्कारी
बीजती माता जाई
बीज संस्कारी
बहुत पसंद आई | इसके अतिरिक्त प्रार्थना, दया, स्वप्न, श्रृंगार, कलम, तृषा, शून्य, बीज, माँ , मन पखेरू, म्लान, धूप छाँव, प्रतीक्षा, बेख़ौफ़, कर्म, उड़ान, कल्पना आदि विषयों पर मुझे आपका लेखन बहुत अच्छा लगा |
हार्दिक शुभकामनाएं |
'साझा नभ का कोना' – (नव हस्ताक्षरों का हाइकु संग्रह)
– संपादक : विभा रानी श्रीवास्तव
*
परम आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी ने इस सम्पादित हाइकु संग्रह में नव हस्ताक्षरों को स्थान दिया है । मगर कुछ नाम पढ़ते ही अपनापन लगा । अच्छे और जाने-पहचाने रचनाकार भी इस संग्रह में है, हो सकता है कि उन्हों ने 'हाइकु' विधा में शुरुआत की हो ।
'हाइकु' विधा मूलत: जापानी काव्य विधा है जो हिंदुस्तान में भी काफी हद तक सफल रही, क्योंकि हमारे साहित्यकारों ने इसे पूरा सम्मान दिया । ख्यातिप्राप्त साहित्यकार श्री नन्द भारद्वाज जी ने सही कहा; 'हाइकु विधा में कुछ लोगों को लिखना बड़ा आसान लगता है, लेकिन संजीदगी से देखा जाय और अगर रचनाकार इस विधा की गम्भीरता को समझते हुए इस विधा में रचनारत हो तो यह काफी चुनौतिपूर्ण भी है ।'
– संपादक : विभा रानी श्रीवास्तव
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परम आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी ने इस सम्पादित हाइकु संग्रह में नव हस्ताक्षरों को स्थान दिया है । मगर कुछ नाम पढ़ते ही अपनापन लगा । अच्छे और जाने-पहचाने रचनाकार भी इस संग्रह में है, हो सकता है कि उन्हों ने 'हाइकु' विधा में शुरुआत की हो ।
'हाइकु' विधा मूलत: जापानी काव्य विधा है जो हिंदुस्तान में भी काफी हद तक सफल रही, क्योंकि हमारे साहित्यकारों ने इसे पूरा सम्मान दिया । ख्यातिप्राप्त साहित्यकार श्री नन्द भारद्वाज जी ने सही कहा; 'हाइकु विधा में कुछ लोगों को लिखना बड़ा आसान लगता है, लेकिन संजीदगी से देखा जाय और अगर रचनाकार इस विधा की गम्भीरता को समझते हुए इस विधा में रचनारत हो तो यह काफी चुनौतिपूर्ण भी है ।'
उनके इन शब्दों के बाद कहने को कुछ नहीं रहता फिर भी इतना ही कहूँगा कि – 'हाइकु' 5+7+5 शब्दों में आपको अपनी अभिव्यक्ति के लिए श्रेष्ठ शब्द चयन, अर्थपूर्ण संदेश, काव्यात्मकता और मौलिकता का समायोजन करने के लिए लम्बे समय का रियाज़ करना आवश्यक होता है । कई बार ऐसा होता है कि किसी भी विधा में लिखने से पहले उस विधा का अध्ययन अनिवार्य होता है । शब्द तो हमें मिल जायेंगे, अभिव्यक्ति भी शायद ईश्वर के आशीर्वाद से मिली हो मगर उनमें काव्य तत्व तब मिलता है जब हम उस विषय की गहराई तक जाएं और समझें । इतना ही नहीं, उनमें अगर काव्यात्मक लय न हों तो वो आकर्षक कागज़ी फूल साबित होंगे ।
आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी ने बड़ी मेहनत से इस संपादन किया और आशास्पद नव हस्ताक्षरों में पूर्ण भरोसा रखा । मैं उन्हें बधाई देते हुए नतमस्तक हूँ । साथ ही सभी रचनाकारों का अभिवादन करते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त करता हूँ ।