Sunday 17 January 2016

साझा नभ का कोना


कांच ही सही
अपना के देखते
अक्स दिखता


आज हिंदी की लोकप्रिय विधा "हाइकू"पहले जापान के प्राक्रतिक,आध्यात्मिक एवं प्रेम विषय तकही सीमित था किंतु कालान्तर में इसके स्वरुप में परिवर्तन हुआ.अब ये सामयिक विषयो पर भी लिखा जा रहा है 5-7-5वर्ण में अपनी संपूर्ण बात कह देने वाला"हाइकू "तीज की चॉद की तरह है .यह विश्व वान्ग्मय का लघुतम छन्द है.इस लघुतम छन्द में बहुत कुछ अनकहा रहा रह जाता है .लेकिन कभी कभी अनकहे लफ्ज कहे हुए लफ़्जसे ज्यादा कीमती होते है.
5-6 दिन पहले आनंद जी द्वारा प्रेषित विभारानी श्रीवास्तव जी के संपादकत्व में आई किताब "साझा नभ का कोना"पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .160पेज की इस किताब में विभिन्न रचनाकारो के हाइकू संग्रहित है.यद्यपि हमे हाइकू विधा कम पसंद है तथापि -"जीवन पथ/जब तुमको खोया /शून्य ही बचा
2-"छल कपट /कुत्सित व्यवहार/रिश्ते पाषाण
जैसे हाइकू ने मन मोहा
कुछ कमियो के बावजूद भी ये किताब पठनीय व संग्राहनीय है इसके लिये मैं विभा जी को विशेष रुप से बधाई देना चाहूंगी जिनकी कडी मेहनत ,ईमानदारी और साहित्यिक निष्ठा का प्रतिफल है "साझा नभ का कोना".साहित्य के प्रति आपका झुकाव आपकी भावनाशीलता का द्योतक है .निश्चय ही हाइकू का इतिहास आपको कभी विस्मृत नही कर पायेगा.मैं क्षमाप्रार्थिनी हूं आपके काव्य की भूमिका न लिख पाने के लिये लेकिन मैं वचनबद्ध भी हूं आपकी अगली किताब में आपके पूरे सहयोग के लिये
धन्यवाद!
साझानभ क कोना मगाने के लिये सम्पर्क करे
रत्नाप्रकशन
इलाहाबाद
7054179762
 



विश्व पुस्तक मेले में 
हिंदी युग्म प्रकाशक के स्टॉल पे "साझा नभ का कोना के साथ "
Shailesh Bharatwasiजी आभार आपका
रत्नाकर प्रकाशन इलाहाबाद

आदरणीय Nand Bhardwaj जी 

'साझा नभ का कोना' यह नाम है उस अनूठे काव्‍य-संकलन का जिसमें फेसबुक के माध्‍यम से प्रकाश में आए 25 हाइकू रचनाकारों के हाइकू संकलित हैं और इसे इलाहाबाद की वरिष्‍ठ कवयित्री विभारानी श्रीवास्‍तव ने संपादित किया है, यह संकलन अभी कुछ ही अरसा पहले दिल्‍ली के हिन्‍दी भवन में लोकार्पित हुआ था, जो आत्‍मीय मित्र अंजलि शर्मा के माध्‍यम से मुझ तक पहुंचा है, इसमें अंजलि के भी 32 हाइकू शामिल किये गये हैं। 160 पृष्‍ठ के इस संकलन में इस विधा के नये रचनाकारों को पढ़ना एक सुखद अनुभव है। सभी को शुभकामनाएं।
 — शर्मा मनीष अंजलि और विभा रानी श्रीवास्तव के साथ.



प्रियंवदा अवस्थी :-  विभा माँ के अथक संघर्ष और दृढ आत्मविश्वास को मेरा सलाम है । आदरणीय nand bharadwaj जी के हाथों में साझा नभ और उसके एक कोने में चुहल करते हम कोमल पंखों वाले उड़ान भरने को प्रयासरत पंछियों की कोशिशो पर पैनी दृष्टि के उपरांत प्रोत्साहित करती समीक्षा । मन खुश हो गया देखकर ।



हमारी पहली कोशिश थी ..... उम्मीद से निगाहें बहुत लोगों की तरफ उठी .... बहुत लोगों ने आगे बढ़ कर हौसला बढ़ाया 
हम सब आभारी हैं 



5 comments:

  1. koshishen hi kamyab hoti hai :)di evam sabhi rachna karo ko hardk badhayi aasha hai ye udan jald hi nabh e dusre kone ko bhi sajha karegi (y)

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  2. ढेरों बधाईयाँ आपको।

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  3. पूरी टीम को बधाई.....ढेरों शुभकामनाएँ

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