।। विचार -सार।। -रावत
लक्ष्य क्या है ? यदि उसमें शुभ संकल्पों की नींव न हो । पराजय फिर निश्चित है।
रावत-:- आदि शंकराचार्य की दार्शनिक शिक्षाओं में, यह कथन श्री राम की न केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक व्यक्ति के रूप में, बल्कि सर्वोच्च वास्तविकता के अवतार के रूप में गहन समझ को समाहित करता है। शंकराचार्य के अनुसार, श्री राम एक दिव्य मार्गदर्शक के रूप में सेवा करने के लिए मानव रूप में अवतरित हुए, जो पारलौकिक ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाला मार्ग बताते हैं। सर्वोच्च वास्तविकता के रूप में श्री राम का उल्लेख इस धारणा पर जोर देता है कि परमात्मा उच्च आध्यात्मिक समझ चाहने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग को रोशन करने के लिए मूर्त मानवीय अनुभव में प्रकट हो सकता है। इस संदर्भ में, श्री राम का जीवन और शिक्षाएं एक आध्यात्मिक रोडमैप बन जाती हैं, जो अस्तित्व की प्रकृति, आत्म-जागरूकता और परम सत्य की ओर यात्रा में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। आदि शंकराचार्य का दृष्टिकोण दिव्य ज्ञान की सार्वभौमिकता और मानव अनुभव के भीतर दिव्य को पहचानने में निहित परिवर्तनकारी क्षमता को रेखांकित करता है।
विलक्षण-:- अति उत्तम! जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि राम का नाम राजनीति का या धार्मिक विषय है ही नहीं।
शंकराचार्य जी ने यही तो समझाने का किया है, जिसे समझने में हिंदू जनमानस सदैव की भाँति आखिरकार असफल साबित हुआ है। हम वे हैं, जिन्होंने विश्व की ज्ञान दिया, और यह भी हम ही हैं कि मानसिक रूप से दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे हैं। यदि इसे राम से जोड़कर देखें तो समझ आ जाएगा कि हमने राम को समझने में कहाँ गलती की है।
राम एक राजकुमार हैं, किंतु सामान्य बालक की भाँति वन में जाकर शिक्षा पूरी करते हैं। शस्त्र और शास्त्र का उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करते हैं। इतने से ही नहीं, विश्वामित्र के साथ फिर वन चले जाते हैं। कुछ राक्षसों का वध करते हैं और फलस्वरुप उत्कृष्ट अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सब क्या था? चाहते तो महल में रहकर भी शिक्षा पूरी कर सकते थे। विश्वामित्र साथ जाने से इंकार कर सकते थे, लेकिन नहीं। उन्हें पता है कि यह सब तो सोने को तपाकर कुंदन बनाने की प्रक्रिया है। यदि ऐसा न होता तो अच्छे धनुर्धर तो बन जाते, लेकिन जीवन के कष्टों को इतनी सरलता से न झेल पाते। रावण जैसे अति बलशाली को हराना असंभव था। संभवतः शिव धनुष को उठाने में भी असफल हो जाते।
विभा-:-विवेकशील होने के लिए सन्तुलित होना होता है अभी तो असन्तुलन का काल है… अहं ब्रह्माऽस्मि का काल…! वरना बिना दानव के देव कब थे..! वैसे भी ईश्वर बनना आसान है इन्सान बनने से…