Wednesday, 7 May 2025

सहानुभूति के ओट में राजनीति

“दीदी अगर डाँटो नहीं तो एक बात कहूँ…” रात के ग्यारह बजे राजू ने कहा।

“डाँटने वाली बात होगी तो नहीं डाँटने की बात कैसे कह दूँ? तुमसे डरने लगूँ क्या…!”

“आप किसी से कहाँ डरती हैं? सभी को डाँटती हैं। डाँटने में तो आप सबके सामने भी नहीं चूकतीं।”

“सबके सामने डाँटने लायक बात होती ही क्यों है? क्या डरूँ कि कहीं हिन्द-पाक की लड़ाई आज से ही शुरू न हो जाए. . डाँटते समय मैं यह थोड़े देखती हूँ कि तुम बहू के ससुर हो, पोता के दादा हो, सेवानिवृत हो गए हो, उम्र हो गई है. ..। डाँट खाने वाले का ख़ेमा भी तो बन जाता है…! बहुत हमदर्द पैदा हो जाते हैं. . .! वैसे डाँट के प्रतिशत का अधिक-से-अधिक अंक अख़्तर⁩ के खाते में है : अगर किसी को दरार डालने का इरादा हो तो एक बार कोशिश ज़रूर करना चाहिए. . .! पेट्रोल डालना ही है तो अचूक वाण चलाएँ : अभी देश भी हिन्दू-मुस्लिम खेमे में बाँटा गया हुआ है-। हद है! ड्योढ़ी के बाहर साफ़ करूँ कि आस्तीनों को-!”

“सत्य कथन, डाँटने और डाँट खाने वाले के बीच जब तक कोई तीसरा माचिस पेट्रोल का प्रयोग नहीं करता है तबतक मामला उलझता नहीं है।” 

“वरवो की काकी -कनियावो की काकी की भूमिका प्रबल कभी-कभी सफल हो जाती है। चलो डाँट ही लेना, बात बता ही देता हूँ! आप जो तीन तस्वीर दी थीं, उस पर मुझे भी कहानी लिखनी है, शानदार कथानक सूझा है।”

“तुमने तो कहा था कि, “एक तस्वीर पर तो कहानी लिखी नहीं जाती है, तीन-तीन तस्वीरों पर कोई कैसे कहानी लिखेगा. . .!” चलो अच्छा है! लिख लो। कम से कम आगे से यह तो नहीं कहोगे कि खलिहर खुराफात करती है. . .! ख़ुद तो लिखना नहीं होता है, बच्चे की जान साँसत में डालती हैं. . .!”

“मूर्खों की ज़मात से आगे ग़लती नहीं होने की प्रत्याभूति /गारन्टी (Guarantee) का वारन्टी (warranty) या जमानत (सेक्योरिटी) कौन लेगा।

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