Sunday 26 June 2016

सुप्रभात मंच




** सुप्रभात मंच** बिहार शाखा का गठन
सम्मानित मित्रो,
अत्यंत हर्ष के साथ सूचित किया जाता है कि आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी की अध्यक्षता में सुप्रभात मंच की साहित्यिक प्रतिच्छाया संस्था का गठन बिहार में कर दिया गया है । पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी सदस्यों की घोषणा अति शीघ्र कर दी जायेगी ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि विभारानी श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में यह संस्था हिन्दी साहित्य के प्रति निष्ठा से कर्तव्य का पालन करेगी ।
***** सुरेशपाल वर्मा जसाला



आदरणीय सुरेश पाल वर्मा जसाला जी द्वारा रजिस्टर्ड NGO सुप्रभात मंच

सुप्रभात मंच की सीहित्यिक प्रतिच्छाया संस्था दिल्ली के

बिहार शाखा का गठन
एवं
हाइकु गोष्ठी का आयोजन



Chief guest :- Dr. Satish Raj Pushkarna ji
President :- Vibha Rani Shrivastava
Vice President :- Smt Sangeeta Govil ji and Dr. Moni Tripathy ji
Chief Secretary :- Smt Poonam Anand ji
Secretary :- Dr. Pushpa Jamuar ji , Smt Kiran Singh ji , Smt Saumya Tiwari ji and Smt Binashree Hembrom ji
Treasurer :- Smt Ekta Kumari
Vice Treasurer :- Smt Maniben Diwedi and Alka JI
Advertisements :- Dr. Virendra Bhardwaj and Osama JI
Anchoring :- Smt Binashree Hembrom


आज बीज पड़ा
अंकुर , वृक्ष , फूल-फल समय पे निर्भर
समाज से लिया कर्जा
समाज को लौटाने की एक कोशिश

जमीं से जुड़ जायेंगे
तभी तो 
नभ तक उड़ पायेंगे






Sunday 19 June 2016

पिता









कड़क छवि ...... अनुशासन .... कायदे कानून ..... केयरिंग ..... हम छोटे भाई बहन को ..... बड़े भैया में देखने को मिले ..... यानि पिता का जो रोल हम सुनते पढ़ते आये वो रोल तो बड़े भैया निभाये ..... इसलिए शायद पिता की कमी हमें आज भी महसूस नहीं होती ...... 

हमारे पिता (मेरे पिता + मेरे पति के पिता) बेहद सरल इंसा थे ..... दोनों घरों में मुझे माँ की भूमिका मुख्य दिखी ..... 


एक बार मेरे पति बोले कि .... * राहुल का बाहर जाना , मुझे शायद इसलिए नहीं खला कि ...... या तो मैं उसे सोया नजर आया या वो मुझे सोया नजर आया * ..... या कभी जगे में भेंट हो गई तो जितनी बात होती थी , उतनी बात आज भी फोन पर हो जाती है ...... कैसे हो ..... पढ़ाई कैसी चल रही है .... कोई जरूरत हो तो बताना ..... 


शायद इसलिए मेरे विचार ये बने कि बच्चों का भविष्य माँ के हाथों से सुघड़ होता है ..... पिता बस प्यार प्यार प्यार प्यार .................. बाँटते हैं ......




नीम बरगद पहाड़ नारियल ..... पिता को क्या परिभाषित किया जा सकता है .....




बेटी होना इक कर्ज

कुछ हिसाब एक जन्म में चुकता नहीं हो सकता है .... समय रहते या तो बुद्धि काम नहीं करती या हौसला में कमी हो जाती है .... समय रहते बुद्धि काम करती या समाज से लड़ने का हौसला होता तो ..... आज समाज से बहुत सी कुरितीयों का समूल नाश हो गया होता .... जिन कुरितीयों को सहना स्त्री भाग्य का लिखा मान लेती है .....
बेटी के बाप की गलती ना भी हो तो वो दामाद के पैर पकड़ माफ़ी मांगता है ताकि बेटी खुशहाल जिंदगी जिए ..... वैसी परिस्थितियों में बेटी तब क्या सोचती होगी ?
बेटी होना एक कर्ज है जो इक जन्म में अदा नहीं होता .......

Wednesday 15 June 2016

वर्ण पिरामिड

वर्ण-पिरामिड सप्ताहाँक - 56 = ( सम्मान्य प्रमुख :: डी डी एम त्रिपाठी जी {भाई बड़े मणि } )
संचालन : आदरणीय श्री सुरेश पाल वर्मा जसाला जी
और समूह के सभी सदस्यगण
शीर्षक = बेहाल / परेशान / दुखी
चै
डूबा
डहार
लू कासार
टूटे ज्यूँ तट
तलमलाहट
काकतालीय दुःख {1}
हो
चूनी
कुपंथी
छीने चुन्नी
स्त्री परेशानी
समाज बेहाल
देख दुष्कर्मी चाल {2}
 

वर्ण-पिरामिड सप्ताहाँक - 48 = ( सम्मान्य प्रमुख :: कुसुम वियोगी जी )
शीर्षक = जयहिंद
>>>>
1
है
भीती
अधीती
जयहिंद
हिम ताज है
तोड़ न सका है
जयचंद संघाती
>>>>>
2
भू
गीती
चुनौती
अग्रवर्ती
नेक-नीयती
जुडाये अकृती
जयहिंद उदोती
>>>> हिन्द की जितनी जय की जाये ..... कम ही होगा
जय हिन्द

Thursday 9 June 2016

पेड़ अधिक आबादी कम , इन बातों में कितना दम ?



परवचन में कुशल बहुत मिलेंगे ..... मुझे मेरे जिन्दगी में ..... बहुत ऐसे मिले भी .... जिनके हाथी जैसे खाने के और दिखाने के और .... अलग अलग दांत थे ..... बिना अपनी जिन्दगी में अपनाये केवल परोपदेश देना .... गाल बजाने जैसा होता है .... केवल थ्योरी की बातें असरदार नहीं होती है .....



1982 में मेरी शादी आर्थिक रूप से समृद्ध मध्यम परिवार में इंजीनियर से हुई ..... उस समय भारत में ...... हम दो हमारे दो .....  दो बच्चे होते अच्छे ..... छोटा परिवार सुखी परिवार .... का नारा गूंज रहा था .... क्यों कि उस समय तक ..... अधिकतर लोगों को चार से छः बच्चे होते थे ..... जनसंख्या बढ़ने से बेरोजगारी बढ़ रही थी ....  बेरोजगारी का असर मंहगाई पर भी पड़ती है ... बेरोजगारी हो और मंहगाई हो तो चारों तरफ त्राही त्राही मचना स्वाभाविक था .... तभी मेरे पति का निर्णय हुआ कि हम एक बच्चे को जन्म देंगे और उसकी ही परवरिश अच्छे से कर लें ..... यही बहुत होगा .... उस समय हमारे इस निर्णय से हमारे परिवार में एक तूफ़ान सा आ गया .... सभी का कहना था कि चार छः नहीं तो दो तीन तो होना ही चाहिए ..... समृद्ध होते हुए , भगवान का अपमान है .... कम बच्चा होना .... एकलौता बच्चा के सुख दुःख में कौन साथ देगा .... { संयुक्त परिवार टूटने के कगार पर था .... कारण था सुख-दुःख में साथ ना होना ही }

बाँझ का मुंह देखना चल भी जाता है ..... एकौंझ का मुँह देखना बहुत बड़ा अपसगुण है .......

बहुत बातों को सुनते .... नजरन्दाज करते हुए .... हम अपने निर्णय पर अडिग रहे और बाद में हमारे अनुकरण में हमारे देवर ननद का भी एक एक ही बच्चा रखने का निर्णय हुआ ...
मेरी ननद को एक बेटी ही रही मुझे एक और मेरे एक देवर को एक बेटा + एक बेटी तथा एक देवर को एक ही बेटा रहा ..... 
यानि जितने हम भाई बहन थे ..... उतने की ही संख्या बरकार रही ....


आज सभी बच्चे बड़े हो चुके हैं .... उनकी परवरिश में ... हमें ... कभी किसी तरह की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा .... चाहे उच्च शिक्षा दिलानी हो या चाहे उनकी पसंद की चीजे .... कहीं भी मन नहीं मारना पड़ा ..... जिस रफ़्तार से महंगाई बढ़ी .... हर क्षेत्र में कहीं ना कहीं समझौता करना पड़ सकता था ....

कम बच्चे होने से या यूँ कहें कम आबादी होने से भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकती है .... सुरसा महंगाई को रोका जा सकता है .....


इतने सालों में मेरा अनुभव ये रहा कि पेड़ की कटाई काफ़ी तेज़ी से हुई है ..... कंक्रीट का शहर बसाने का जरिया हो या उद्योग लगाने का हो .... रोजगार बढ़ाने का साधन बना हो या फैशन के अनुसार फर्नीचर बनवाने का हो ..... उसका नतीजा ही है ... आज की गर्मी का बढ़ना ..... बारिश का नहीं होना या पहाड़ का खिसकना .... क्षति से परेशान मनु अपनी गलती मानने के लिए तैयार नहीं है ....  लेकिन मानना जरूरी है  ..... उस क्षति की पूर्ति के लिए ... हर जगह मैं और मेरे परिवार के सदस्य , हर आयोजन पर पेड़ लगा रहे हैं ...... कई शहरों में अनेकों प्रकार के पेड़ हम लगा चुके हैं ..... और .... सभी से अनुरोध करते हैं कि हर आयोजन पर पेड़ लगा कर , पर्यावरण से प्रदुषण को दूर करने में सहायक बनें .....


TAKE THE WORLD and PAINT IT GREEN!

मेरी रानी बेटी Maya Shenoy Shrivastava

पेड़ अधिक आबादी कम , इन बातों में बहुत है दम 

Tuesday 7 June 2016

साधू - बिच्छू




Fb जैसा असली दुनिया में भी ब्लॉक का आप्शन होना चाहिये था
बार बार साधू की भूमिका नहीं निभानी पड़ती किसी बिच्छू के लिए

नजरों के सामने गुलाटी मारते देखना ज्यादा दंश देता होगा न

..... दिल ब्लॉक हो तो ........




सच को ..... चाशनी में लपेटना ..... हमेशा भूल जाती हूँ ..... जबकि जलेबी पसंद है ..... लेकिन मिर्ची ज्यादा लुभाती है .....





दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...