Tuesday 24 June 2014

मेरे निजी विचार








धरती के कई किलोमीटर नीचे मैग्मा पाया जाता है .... 
ये मैग्मा कभी कभी धरती के ऊपरी परत को चीर कर
 धरातल पर निकल आता है , जिसे ज्वालामुखी फटना कहते हैं .... 
मैग्मा अगर काफी तरल हुआ तो आस-पास फैल कर रह जाता है …. 
अगर गाढ़ा हुआ तो जिस छेद से निकल रहा है , 
वही जमा हो जाएगा और ज्यादा निकला तो पहाड़ बन जायेगा .....







बेचारा मेघ उसके हिस्से बस गिला




तब शिखर ने बाँधा ,
नभ का साफ़ा ...
जब क्षितिज पर छाता , 
भाष्कर भष्म होता ,
लगता मानो किसी
घरनी ने घरवाले के लिए ,
चिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....
घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
जीवन की जंजाल बनी है ,
गीली जलावन ,जी जला रही है.....
लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....
किसान ,किस्मत के खेतो में ,
खाद-पानी पटा घर लौट रहा है ....
बैलों के गले में बंधी घंटी ,
हलों के साथ सुर में सुर मिला
संदेसा भेज रहे हैं .... !!
मेघ अकसर उलझन में होता है 
किस की बात सुने और माने 
वो सिकुड़ा लाज से पानी पानी 
कहीं जलावन गीली 
कहीं कच्चे मिट्‍टी-बर्तन के गिले 
साजन बिन सावन से गिला 
तो मेघ को सब कोसे 
बेचारा मेघ उसके हिस्से बस गिला
वो तो ऐसे ही है गीला गीला 
==

Saturday 21 June 2014

तांका



इस हफ्ते ये हमारी तांका प्रतियोगिता है 
और 
इस बार किसी भी रंग जैसे लाल ,नीला ,हरा या पीला आदि का नाम 
आपके तांका में आना चाहिए यानीकि 
इस बार लिखना है हमें कलर फुल तांका और 
ये थीम हमें दी है हमारे ग्रुप एडमिन 
आदरणीय योगेन्द्र वर्मा सर ने 


1

जेठ महीना
सूर्य है लाल पीला
पलाश खिला 
अमृत विष दोनों 
चटक गई धरा

==

2

खोजते सब 
गौरेया की फुदकी
मन के काले
विरुध काट डाले 
घोसला नीव नोचे

==

3

जख्म हरा है
कन्या कोख में मरी
खुद से गिला 
जग की उल्टी रीत 
हर लेती है मति

==

4

बर्फ की वर्षा
सृष्टि गई दहल
चैन ना कहीं 
श्वेत चादर ओढ
ठिठुर गई धरा

==

हाइगा 






===

हाइकु 

1

मिट्टी के कण 
चाक व अग्नि चढे़
सिंधु समेटे

(गागर में सागर)
==

2

मिलाता धुरा 
जीवन भुरभुरा
कर्म का बुरा 

=धुरा(मिट्टी)=
==

3

पड़े दरार 
मन भेद ना बने
मत भेद से ।
==

4

आस को सांस
बीजड़ा दौड़ा खेत
झड़ा दौंगरा ।

दौंगरा = पहली बारिश 


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Wednesday 18 June 2014

करुणावती







अभी मेरे हाथ आई करुणावती पत्रिका



इस पत्रिका के संपादक हैं श्री आनन्द विक्रम त्रिपाठी जी  और अतिथि सम्पादिका मैं हूँ ……
मेरे लिए भी यह एक सपने जैसी ही बात है … पत्रिका हाथ में है और आँखे नम है …

आनंद बहुत अच्छे इंसान हैं .... केवल facebook पर दिए निमंत्रण से जब वो पटना राहुल के शादी के res'party में आ गए , तो बोले कि जब मैं train में बैठा तो सोचा , ये मैं क्या कर रहा हूँ , कहाँ जा रहा हूँ ..... इतनी सच्चाई और सीधापन है इनमे कि शब्द में मैं बता पाने में असमर्थ हूँ .... आज , जब सब तरफ स्वार्थ और धोखे का साम्राज्य फैला है और लोग केवल ये सोचते हैं कि उससे इसलिए नाता तोड़ लो कि वो मेरे मन मर्जी से नहीं चल रहा है ,वहाँ आनंद जैसे लोग हैं जो ये सोचता है कि मुझ से किसी को कोई चोट ना पहुँच जाए ......



आ वि त्रि से मेरी मुलाक़ात इसी ब्लॉग जगत में हुई थी … दिन महीना साल तो याद नहीं , लेकिन इतना याद है कि जब मैं इनके ब्लॉग पर पहुंची थी तो इनकी अधिकांश रचनाओं में शीर्षक नहीं थे …. मैं कमेंट की कि शीर्षक विहीन रचना मुझे ऐसी लगती है जैसे बिना बिंदी दुल्हन लगेगी ….  आ वि त्रि ने मेरी बातो का सम्मान किया और बहुत सारे रचनाओ के शीर्षक लिख दिए … मेल के बात चीत में ही ये मुझे चाची कहने लगे ,मुझे अपने लिए मैम सम्बोधन एकदम पसंद नहीं ……  दादी काकी नानी कुछ भी कह लो मैंम की गाली ना दो .…

बहुत महीनो के बाद एक दिन हम फेसबुक के भी मित्र बन गए …. ये मेरे लिखे को अपनी पत्रिका में स्थान दिये ....
फिर एक दिन अचानक वे मुझे बोले आपको इस बार के अंक में अतिथि संपादक बना दे रहा हूँ … और दूसरे दिन ये तस्वीर मुझे मिली …. हमारा जो रिश्ता है ,आभार और धन्यवाद से ऊपर है … है ना बेटे जी  ……




 तब तक मुझे लगा अतिथि हूँ ,मेरा क्या दायित्व होगा पत्रिका में …. बच्चे का प्यार है ,किसी पन्ने पर नाम लिखा होगा ……
  कुछ दिन में ही गलतफहमी दूर हो गई ,जब अगला मेल आया कि पत्रिका के लिए सामग्री भी मुझे जुटानी होगी …. अब चिंता मुझे इस बात की हुई कि मेरे कहने से कौन देगा अपनी रचना .... लेकिन ये गलतफहमी भी दूर हो गई ,जब मैं ब्लॉग और अपने फेसबूक पर पोस्ट बनाई कि मुझे रचनाएँ चाहिए तो ढेर सारी रचनाएँ मिली ,जिनमे से कुछ रचनाये अगले अंक के लिए भी संग्रहित कर ली गई है .... इस अंक के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ  ……

अतिथि शब्द के मायने बदल गए .....







त्रैमासिक पत्रिका "करुणावती साहित्य धारा " विश्व पुस्तक मेला प्रगति मैदान नई दिल्ली में "हिन्द युग्म " प्रकाशक हाल नो 18 स्टाल नो. 14 पर उपलब्ध था .....

अपने चुने नगीनों की प्रशंसा ,खुद करूँ …… या आप करेंगे .......






Friday 13 June 2014

पापा बस पापा




क्या बेटू तुम्हें लगता था पापा तुम्हें कम प्यार करते हैं 

स्पीचलेस हुये ना 


कडक छवि
जीवन ही सुधारे
भाव पिता के । 




मिली है थाती
सोचो जाँचो समझों
पिता से हमें । 

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Wednesday 11 June 2014

आओ ना ..... आओ ना मॉनसून ....










आओ ना ..... आओ ना मॉनसून ....

वसंत के मोहक
वातावरण में ,
धरती हंसती ,
खेलती जवान होती ,
ग्रीष्म की आहट के
साथ-साथ धरा का
यौवन तपना शुरू हुआ ,
जेठ का महीना
जलाता-तड़पाता
उर्वर एवं
उपजाऊ बना जाता ,
बादल आषाढ़ का
उमड़ता - घुमड़ता
प्यार जता जाता ,
प्रकृति के सारे
बंधनों को तोड़ता ,
पृथ्वी को सुहागन
बना जाता ....
नए - नए
कोपलों का
इन्तजार होता ....
मॉनसून जब
धरा का 
आलिंगन
करने आता ....
आओ ना मॉनसून 
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Tuesday 10 June 2014

हाइकु


1
तड़ तड़ाक
बची नहीं गरिमा
चोटिल आत्मा ।

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2
तड़ ताड़क
सहमा बचपन
देख माँ गाल ।

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3
तड़ तड़ाक
रिश्ता नाजुक टूटा
काँच सा कच्चा ।

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4
हर्ष अपार
घन लेकर आये
फुही बहार ।

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5
छन्न संगीत
तपान्त करे वर्षा 
गर्म तवे सी 

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6
फुही झंकार 
लगे झांझर झन 
किसान झूमे ।

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7
बीज लड़ता 
भूमि-गर्भ अंधेरा
वल्लरी देता ।

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8
उगाये मोती 
सुख नींद वो सोते
खेत जो जोती ।

=====

9
बिखरे फुही
जगत खिल उठा





बने फुलौरी ।

Saturday 7 June 2014

जानी दुश्मन जून ..... ज़िंदगी चलती रही ......


डरा सताता
जानी दुश्मन जून
गर्मी असुर ।

हाँ ..... जून का पहला हफ्ता बिता कर ही ,बाबुल का आँगन छोड़ी थी पुष्पा दुल्हन बन कर ........ भैया ने पैर पोछे(क्यूँ दस्तूर बना है) उसके ...... गाड़ी कुछ दूर आगे बढ़ी होगी कि पुष्पा को झपकी आने लगी ,सिर उसका ढुलकने वाला ही था कि दूल्हे के स्नेहिल हाथ उसके सिरहाने लग गया ......... सुकून हुआ कि वो सुरक्षित है वो निश्चिंत हो गई ...... पगली

जुलाई होगा ..... एक शाम सब एक जगह बैठे थे ,पुष्पा भी आकर एक कुर्सी पर ज्यों ही  बैठने लगी ,उसके देवर ने कुर्सी खीच दिये ,मज़ाक था वो ,दिल्लगी भाभी देवर का लेकिन दूल्हे के संभालने से पुष्पा गिरने से बच गई ,दूल्हा भाई पर चिल्ला पड़ा ,ये कैसा मज़ाक है ,चोट लग सकती थी ...... दूल्हे कि मौसी हँसते हुये बोली ,दुल्हन गिरती तो चोट तुम्हें लगती ,है ना बेटा ..... पुष्पा प्यार मे पड़ गई ....... वैसा वाला प्यार .....  होता है क्या वैसा वाला प्यार ..... बावरी

दो साल तक पुष्पा का दूल्हा राजनीति मे व्यस्त रहा .... तब तक उसके ससुराल मे सब ठीक ठाक रहा .....
.....पति के नौकरी मे आने के बाद ,सास-ननद का व्यवहार बदल गया ....... सास को नौकरानी को , बेटे के नौकरी पर जाने का डर ऐसा सताया कि कान के कच्चे बेटे को बहू के खिलाफ खड़ी कर दी .....

ज़िंदगी चलती रही ...... नौ-दस साल के बाद ......

पुष्प के छोटे देवर की शादी की बात पुष्प के ही रिश्तेदारी में चली.....
लड़की के दादा पुष्पा के पापा से मिल ,पुष्पा के ससुराल वालो के बारे मे जानकारी ले जानना चाहे कि वे अपनी पोती कि शादी ,पुष्पा के देवर से करें या ना करें
पुष्पा के पापा स्पष्ट रूप से बोले कि मैं तो अनजाने मे अपनी बेटी को धसा दिया .... आप जानबूझ कर मेरी गलती ना दोहराएँ ..... उन लोगों को , किसी को अपनी बेटी नहीं देनी चाहिए ..... लेकिन होनी तो हो कर रहता है ..... भले बाद मे अफसोस हो कि बात मान लिए होते .....

पहाड़ पिता क्यूँ विदाई की
पयोधि पीड़ा को जज़्ब कर खारा हुआ 
आत्मह्त्या के पहले
निर्झरिणी जार जार रोई जो होगी .....

उक्त दो घटना से पुष्पा इतनी प्रभावित हुई थी कि सारे आँधी तूफान से लड़ती रही अकेली ..... क्यूँ कि समय ने दूल्हे को बहुत दूर कर दिया था पुष्पा से ....... फिर वो कभी सहारे के लिए आगे नहीं आया ..... बल्कि परेशानी बढ़ाता ही रहा ........

ज़िंदगी चलती रही ......

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...