Monday, 26 October 2015

अथ से इति - वर्ण स्तम्भ


शरद पूर्णिमा की ज्योत्स्ना और हमारी धवल इच्छा आपके सामने


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वर्ण पिरामिड लेखन की एक पुस्तक लाने की योजना है
51 प्रतिभागियों का
ये प्रयास है लोगों को जोड़ने की
अथ से इति -- वर्ण स्तम्भ पुस्तक में
 लाखों का 416 पेज का बुक
इच्छुक मुझसे फेसबुक पर जुड़ सकते हैं



Monday, 12 October 2015

अंत हो मरने के बाद के श्राद्ध का




आज अंतिम दिन पितृपक्ष का कल से नवरात्र शुरू

जान में जान हो
जाने में राह आसान हो
जान लें जाना कहाँ है
जाने से पहले

आत्मतृप्ति के बाद आत्मा तृप्ति की जरूरत नहीं होती

 तीन में कि तेरह में

एक बार चाची(पड़ोसन) से बातचीत के दौरान पता चला इसका सही सही अर्थ

चाची बताई कि 
मिथिला में बेटियां तीन दिन में अपने माता पिता का श्राद्ध करती हैं
और बेटे तेरह दिन में

मिथिला में बेटियों का कन्यादान तिल विहीन किया जाता है इसलिए तिल भर सम्बन्ध या यूँ कहें दायित्व निभाने की जिम्मेदारी मिल जाती है

वहीं छपरा जिला में बेटियां ना तीन में ना तेरह में होती हैं

लेकिन
बेटे बहुत लायक होते हैं तो बेटियां चैन से रहती हैं
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Wednesday, 7 October 2015

प्यासी जल में सीपी



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 प्यासी जल में सीपी

भूल जाओ पुरानी बातें ....... माफ़ कर दो सबको ..... माफ़ करने वाला महान होता है ...... सबके झुके सर देखो ..... बार बार बड़े भैया बोले जा रहे थे .....

बड़े भैया की बातें जैसे पुष्पा के कान सुन ही नहीं रहे थे .....
आयोजन था पुष्पा के 25 वें शादी की सालगिरह का ...... ससुराल की तरफ से सभी जुटे थे ...... सास ससुर देवर देवरानी ननद संग उनके बच्चे ..... मायके  से आने वाले केवल उसके बड़े भैया भाभी ही थे । बुलाना वो अपने पिता को भी चाहती थी लेकिन उसके पति ने बुलाने से इंकार कर दिया था क्यों कि ..............
नासूर बनी पुरानी बात , ख़ुशी के हर नई बात पर भारी पड़ जाती है न

सास को पुष्पा कभी पसंद नहीं आई ..... पसंद तो वो किसी को नहीं करती थी .... उन्हें केवल खुद से प्यार था और बेटों को अपने वश में रखने के लिए बहुओं के खिलाफ साजिश रचा करती थी ...... बेटे भी कान के कच्चे , माँ पर आँख बन्द कर विश्वास करते थे ..... बिना सफाई का मौका दिए , बिना कोई जबाब मांगे अपनी पत्नियों की धुलाई करते
पुष्पा तब तक सब सहती रही जब तक उसका बेटा समझने लायक नहीं हुआ

फिर धीरे धीरे विरोध जताना शुरू किया  लेकिन शादी का सालगिरह क्यों मनाये खुद को समझा नहीं पा रही थी

घर छोड़ चली गई होती तब जब बार बार निकाली गई थी तो..........

बुजुर्ग से बदला कभी नहीं लिया ......लेकिन सोचती रही बुढ़ापा तब दिखलाई नहीं दिया था क्यों

??

 http://atootbandhann.blogspot.in/2015/10/blog-post_39.html



दमाद बेटी को खुश रखे
बेटा श्रवण पूत बने
??
जिस घर में बेटी हो बेटा ना हो
बेटा भ्रूण की हत्या करें
??
जिस घर में बेटा हो , बेटी ना हो
बेटी भ्रूण की हत्या करें
??
अरे नहीं रे
छोटा परिवार सुखी परिवार
हम दो हमारे एक की रीत निभायें

पहली सन्तान जो हो वो रहे बस
सारा फसाद एक घर में दोनों होना ही है
दमाद घर जमाई बन बेटे का धर्म निभाये
बेटी माँ बाप का ज्यादा ख्याल रखती हैं न

श्रवण पूत अल्पायु था कुँवारा बेचारा

सारा टँटा बहुयें से ही तो है

झगड़ा - फसाद के जड़ को ही खत्म करते हैं
बहु के अस्तित्व को ही मिटा देते हैं

बेटे के माँ बाप काशी वास करें

ना रहेगा बांस ना बजेगी बाँसुरी
ननद भौजाई भी नहीं बचेगी

ह न त



4 सितम्बर 201

Saturday, 3 October 2015

बकबक



जले दीप को
गर्म चाय प्याली को
कौतुक में स्पर्श को
धैर्य स्व माँ को
डुबो दी ऊँगली को
सीख देने शिशु को

~~~

दो कदम पीछे हट कर ज्यूँ छलांग भरते हैं

तो

अविवेकी की पहचान क्रोधी

हाँ तो

मत ललकारो उन्हें , जिनके पास कुछ खोने के नहीं होता

नहीं तो

मूलमंत्र है सम्भाल कर रखो

मानोगे नहीं ....... जिद्दी हो ...... सैद्धांतिक तो बुजुर्गों के बकबक बुढ़ापे की निशानी है ...... प्रायोगिक ही व्यावहारिक होता है ...... ये कठकरेजि जानती है

महबूब भी बहुत जिद्दी था ....... उसे लाल चीज छूने की ज़िद थी ..... जलते लैम्प लालटेन का शीशा .... बिहार में बिजली की दुश्मनी बहुत पुरानी है .....

गर्म चाय की प्याली ..... दादी गोद में बैठाये रखती

लकड़ी गोहरा की अग्नि ...... तब गैस घर में नहीं आया था ..... घर में पेड़ पौधे व गाय रखने का फायदा था

उसके लपकने पर सब खुश होते ....... लेकिन मेरी जान अटकी रहती ...... एक दिन उसकी ऊँगली जला ही दी ..... तब सब मुझे कहने लगे ....... कठकरेजि

बुजुर्गों के पास ज्ञानी बुकची होती है ..... बकबक नहीं 


प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...