Saturday 31 October 2020

रोमहर्षक




"यह क्या किया तूने?" अस्पताल में मिलने आयी तनुजा ने अनुजा से सवाल किया। अनुजा का पूरा शरीर पट्टी से ढ़ंका हुआ था उनRपर दिख रहे रक्त सिहरन पैदा कर रहे थे। समीप खड़ा बेटा ने बताया कि उसके घर में होती रही बातों से अवसाद में होकर पहले शरीर को घायल करने की कोशिश की फिर ढ़ेर सारे नींद की दवा खा ली.. वह तो संजोग था कि इकलौता बेटा छुट्टियों में घर आया हुआ था।

"तितलियों की बेड़ियाँ कब कटेगी दी?"

"क्या बेटे को अमरबेल बनाना चाहती हो या नट की रस्सी पर संतुलन करना सिखलाना चाह रही हो?"

"सभी सीख केवल स्त्रियों के लिए क्यों बना दी?"

"वो सृजक है.. स्त्री है तो सृष्टि है..! अब भूमि से पूछो वह क्यों नहीं नभ से हिसाब माँगती है..!"

"कोई तो सीमांत होगा न ?"

"एक बूँद शहद के लिए कितने फूलों का पराग चाहिए होता है क्या है मधुमक्खी ने बताया कभी तितली को? पागलपन छोड़ बेटे को विश्वास दिलाने की बातकर कि आगे बुरे हादसे नहीं होंगे..!" अनुजा के बेटे को गले लगाते हुए तनुजा ने कहा।


वर्ण पिरामिड



विषय : प्रदत्त चित्र 'चाय" वर्ण पिरामिड जनक आदरणीय भाई Suresh Pal Verma Jasala जी

जी!

ख़्याली

वाताली

प्रेम पगी

रची पत्राली

थामी चाय प्याली

कथा तान दे डाली। {01.}

><

 हाँ!

 डाह

उद्वाह

बदख़्वाह

 ‘चाय’ कि ‘चाह’

सोहे स्याह मोहे

सीने में दर्द तो हैं। {02.}

 











Tuesday 27 October 2020

जीवन का गणित

"तुम दोनों बेहद चिंतित दिख रहे हो क्या बात है?" बेटे-बहू से लावण्या ने पूछा।

"मेरा बहुत खास दोस्त कल भारत जा रहा है माँ..,"

"मैं समझ नहीं पा रही हूँ तो इसमें तुमलोगों के परेशान होने की क्या बात है?"

"माँ वह हमेशा के लिए भारत जा रहा है..,"

"इस भयावह काल में उसकी भी नौकरी चली गयी..!" 

"नहीं, माँ! उसे कम्पनी वाले पदोन्नति देकर भारत भेज रहे हैं..,"

 "यह तो सुनहला अवसर है उसके लिए। पुनः अपने देश में व अपनों के बीच होगा। भारत में उसका कौन-कौन हैं, कितने भाई-बहन हैं?"

"वह अबोध था तभी उसके पिता गुज़र गए.., उससे एक छोटा भाई है। उनकी माँ शिक्षिका की नौकरी कर परवरिश की।"

"क्या उसकी माँ छोटे भाई के साथ रहती हैं ?"

"दोनों भाई प्रवासी हैं।"

"तुमलोगों के पौधे से प्रेम करते हुए देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है। पौधों में फूल लगते देख तुमलोगों के आँखों की चमक देखते बनती है। जब तुमलोगों के लगाए पौधे पेड़ होंगे तो क्या तुमलोग उनकी छाया में बैठना नहीं चाहोगे या फल नहीं खाओगे?"

"मेरी माँ मेरे दोस्त की माँ के लिए बेहद हर्षित है!"



Sunday 25 October 2020

विजयोत्सव

 



आज मान्या व मेधा बेहद उत्साहित थीं। उनकी बेटी मेहा के लिए सेना सेवा कोर में स्थायी कमीशन हेतु मंजूरी पत्र उनके हाथों में था और तीनों के नेत्र संगम का दृश्य बनाने में सफल हो रहे थे।

मान्या व मेधा, पहाड़ो पर निवास करने वाले परिवार की बेटियाँ थीं। मान्या से लगभग पंद्रह महीने छोटी मेधा सगी बहन थी। दोनों बहनें सम क्षमता से सम कक्षाओं को उत्तीर्ण करती मल्टीनेशनल कम्पनी में संग-संग कार्यरत थीं। माता-पिता, परिवार–समाज को चौंकाती दोनों बहनें शादी नहीं करने का अटल फैसला सुना दी थी। कम्पनी में शनिवार व रविवार को अवकाश रहने के कारण शुक्रवार की शाम दोनों अपने माता-पिता के पास गाँव चली जातीं और सोमवार को पौ फटने के साथ अपने निवास पर वापस आ जातीं।

स्थिर जल में कंकड़ पड़ने इतना हलचल घर-परिवार-समाज में शोर मचाया, जब उनदोनों के संग एक सहमी कली नजर आने लगी। तरह-तरह के मानुष के तरह-तरह की अटकलबाज़ी लगायी जाती रही..।

सखी सुधा के बहुत वादा करने सौगन्ध खाने के बाद मान्या ने उसे बताया, "दशहरे की छुट्टी में हम दोनों बहनें घर जा रही थी। बलात्कृत रक्त से नहायी अबोध बच्ची हमें मिली। हम उसे लेकर पास के वैद्य के निवास पर गए। उस छुट्टी में हम घर नहीं जा सके।"..

Saturday 24 October 2020

चौकस


"ऐसा क्यों किया आपने? इतने आदर-मान के साथ आपकी बिटिया को बुलाने आयी को आपने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया?" श्रीमती मैत्रा ने श्रीमती सान्याल से पूछा।

     "उनके घर के पुरुषों की चर्चा सम्मानजनक नहीं होते हैं..," श्रीमती सान्याल ने कहा।

  "आप भी कानों सुनी बातों पर विश्वास करती हैं?" श्रीमती मैत्रा ने पूछा।

"एक ठग व्यापारी को सज़ा हुई। वह जेल में भी अन्य कैदियों के पैसों-सामानों की चोरी कर लेता था। उसके बारे में शिकायतें सुन-सुन तंग आकर जेलर ने उसे मुक्त कर दिया। साथ में ही दस लोगों को नियुक्त किया कि वे अलग-अलग भाषा में अलग-मोहल्ले में जाकर ठग व्यापारी के बारे में प्रचार करेंगे कि सभी सचेत रहेंगे।

   ठग व्यापारी जेल से बाहर आकर कई रिक्शा वाले, ऑटो वाले से पहुँचा देने के लिए बात किया, लेकिन मुनादी के कारण कोई उसे सवारी बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ। आखिरकार कुछ दूर पैदल बढ़ने पर उसे एक ऑटो वाला मिल गया जो उसे सवारी बना लिया। पूरा दिन ठग व्यापारी उस ऑटो पर घूमता रहा। जहाँ से गुजरता मुनादी की वजह से उतर नहीं पा रहा था।

    देर रात होने पर एक जगह ऑटो वाले ने उसे जबरदस्ती उतार दिया और उससे अपने पैसे को माँगा।

      "मुनादी सुनकर भी तुम मुझे सवारी बना घुमाते रहे.. बहरे तो नहीं लगते..,"

"बस! बस श्रीमती सान्याल। आपकी कथा से मेरे भी ज्ञानचक्षु खुल गए.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। मैं भी अपनी नतनी को नहीं जाने दूँगी..।" इतना कहते हुए श्रीमती मैत्रा तत्परता से अपने घर जाने के लिए निकल गयीं।

Saturday 17 October 2020

क्रांति

 


प्रक्षालित अंगुली पर निशान लगाए भीड़ को निहारती ईवीएम मशीन के पास खड़ी मैं बड़ी उलझन में थी..। वज्जि जातीय समीकरणों के चक्रव्यूह में फँसा अपने शक्ति, शिक्षा और संस्कृति के गौरवशाली इतिहास पर कालिख पुतवा चुका था। आज उस चक्रव्यूह को भेदने के लिए दो शिक्षित युवा में से किसी एक का चयन करना मेरे लिए चुनौती बना हुआ था..,
जवान किसान मोर्चा पार्टी के उम्मीदवार का कहना था,- "मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका आशीर्वाद और समर्थन मिलगा । आप जानती हैं कि मैं अपने पुस्तक की डेढ़ सौ मूल्य की एक हजार प्रति की विक्री से आयी राशी को अनाथालय में दे चुका हूँ । मेरा लोग साथ दे या ना दे मैं अपने सिद्धांतों पर लड़ लूँगा। और जीत लूँ या हारूँ 101 संस्कारशाला खोलना है तो खोलना है । हार गया तो धीरे-धीरे खुलेगा..! जीत गया तो एक साल के अंदर खोलूँगा पूरे बिहार में..।" पहला संस्कारशाला खुल चुका है। खोलने में पूरे देश के साहित्यकारों से सहायता मिली थी। उनके कथनानुसार विरोधी खबरें फैला रहें हैं कि उस संस्कारशाला में साहित्यिक कार्यक्रम-गोष्ठियाँ व अध्ययन उनके व्यापारिक हानी से उभरने में सहायक है..। भाई के लिए हर पल शुभकामनाओं के संग आशीर्वाद है..।. साहित्यिक-समाजिक कार्यों के लिए हमेशा साथ रहा है और आगे भी अपने सामर्थ्य भर साथ हूँ...। लेकिन राजनीत समझने में बिलकुल असमर्थ हूँ..।
दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी हैं की घोषणा,"सरकारी अस्पताल, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों की सुनता ही कौन है ... l 40 साल से रह रहे हैं फिर भी सरकार स्थाई जगह नहीं दिला पायी इन लोगों के पास आधार कार्ड है वोटर आईडी कार्ड है राशन कार्ड है मगर फिर भी स्थाई निवास का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं l कसम खायी है जब तक इस सिस्टम को बंद नहीं कर लूँगा ,तब तक मैं रुकने वाला नहीं l" अपने 'बिंग हेल्पर टीम' में कई मिशन के साथ काम करते हैं जैसे कि उनका एक हाल-फिलहाल मिशन था "कोई भूखा ना सोए" इसके साथ ही उन्होंने पिछले साल पटना में भयानक बाढ़ की स्थिति में भी लोगों की काफी मदद की जो काम बिहार सरकार को करना चाहिए था । सिर्फ यही नहीं गरीब बच्चों को पढ़ाने हेतु कंप्यूटर क्लासेस स्थापना की गयी है जिसमें निःशुल्क पढ़ाई होती है और वह खुद उसमें पढ़ाते हैं। जोरदार बारिश में भीग कोरोना जैसी गंभीर बीमारी में लोगों की सहायता करते और रात्रि में भोजन बाँटने निकलते हैं।
मतदान से जीत के बाद की स्थिति से निपटने के लिए बार-बार नोटा बटन की ओर ध्यान चला जाता है...।



Wednesday 14 October 2020

दलाल से भेंट

 कोरोना के भयावह काल से भयभीत.. दाँत-मसूड़ों में कई दिनों से हो रहे दर्द के कारण बेहद परेशानी होने के बाद भी पिता को चिकित्सक के पास ले जाने से सोहन कतरा रहा था। गन्दगी की कल्पना शायद हम बिहारियों में कुछ ज्यादा होती है..। सोहन को किसी मित्र ने बताया कि गुरुद्वारा में कैम्प लगाकर बेहद साफ-सफाई से जाँच-इलाज हो रहा है। 

शनिवार 3 अक्टूबर 2020 को जब सोहन अपने पिता के साथ गुरुद्वारा में लगे कैम्प में पहुँचा तो उसे पता चला कि केवल कोरोना का जाँच हो रहा है और बाकी बीमारियों के लिए निजी में ही जाकर दिखलाना होगा। पिता-पुत्र कोरोना के लिए जाँच करवा लेना उचित समझा। तीन दिन के बाद जाँच परिणाम मिलने की बात हुई। 

सोमवार 5 अक्टूबर 2020 सोहन के पास फोन आया कि "आपके पिता को कोरोना नहीं है। आपको अपने लिए राय लेने के लिए चिकित्सक से मिलना होगा । कल मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को चिकित्सक से मिलने का समय निर्धारित कर दिया जाए?"

"कार्यदिवस में अचानक समय निकालना कठिन होता है..," सोहन ने कहा।

"अगले मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को सुबह साढ़े आठ बजे का समय निर्धारित किया जाता है।"

"ठीक है!"

सप्ताह भर प्रतिदिन मेल से, फोन से, व्हाट्सएप्प सन्देश से याद दिलाते रहने का सिलसिला जारी रहा...'भूलिएगा नहीं चिकित्सक से राय लेने की तय दिन-तिथि। सोहन को चिकित्सक की जागरूकता पर अच्छा लग रहा था।

मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 की सुबह साढ़े सात बजे सोहन को फोन आया कि आज आपकी साढ़े आठ बजे चिकित्सक से फोन पर बातें होनी तय है उसके लिए एक फार्म भरने की आवश्यकता है। आप बताते जाएँ मैं भरकर आपको मेल कर देता हूँ। फार्म भरने के क्रम में पूछा गया,-"स्वास्थ्य बीमा के बारे में विस्तार से बताएँ..,"

"क्यों ? स्वास्थ्य बीमा से क्या करना है ? चिकित्सक का जो फीस होगा वह मैं जमा कर दूँगा..।""

"चिकित्सक से वर्चुअल गोष्ठी तभी सम्भव है जब आपका स्वास्थ्य बीमा के बारे में हमें जानकारी होगी..।"

"ताकि आपके चिकित्सक महोदय उस राशि के आगे तक मेरा दोहन कर सकें..। मैं चिकित्सक के डकैती को स्थगित करता हूँ।"



Monday 12 October 2020

सृजक




"क्या आपको अपने लिए डर नहीं लगा ?"
"क्या हमें एक पल भी डरने की अनुमति है?"

प्रसव पीड़ा से जूझती गर्भवती रूबी अपने लिए लेबर रूम में  प्रतिक्षारत रहती है तभी उसे पता चलता है कि एक और स्त्री प्रसव पीड़ा से परेशान है। क्योंकि उसकी चिकित्सक जाम में फँसे होने के कारण पहुँच नहीं पा रही है। ऐसी स्थिति में रूबी उस दूसरी स्त्री के पास जाती है और उसका सफल प्रसव करवा देती है। रूबी स्वयं चिकित्सक होती है और अनंतर वह अपने स्वस्थ्य शिशु का जन्म देती है..।
   यह सूचना वनाग्नि की तरह फैल जाती है और अस्पताल में जुटी भीड़ की ओर से तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं।
"निजी अस्पतालों में धन उगाही का एक माध्यम है , शल्य चिकित्सा से प्रसव, साधारण रोगी का वेंटिलेटर पर पहुँच जाना.., ऐसे हालात में आपका यों...," इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की महिला पत्रकार ने पूछा.. मानो उसका कोई घाव रिस रहा था।
"तो आपलोग सत्य का ज्यादा-से-ज्यादा शोर करें ताकि आवारा ढोर काबू में रहे..!"

Saturday 10 October 2020

चुनौती १०/१०/२०२०

 -ट्रिन-ट्रिन-ट्रिन-

"हैल्लो!"

"क्या कर रही थी?"

"कुछ सोच रही थी.. तुम जानना चाहेगी क्या तो सुनो! कहानी, कथा, गीत, कविता में स्त्रियों को ही महान क्यों दर्शाया जाता है और पाठक भी वैसे ही अंत पर वाहवाही करते हैं.. आखिर क्यों ?"

"लगता है , आज भी तुम कुछ ऐसी अंत वाली रचना पढ़ ली! अच्छा बताओ अंत क्या था उस रचना की?"

"पति अपने दोस्त की विधवा से सम्बंध बना लेता है और पत्नी अपने पति को माफ कर उस विधवा को ही दोषी ठहरा लेती है.. लेखक ऐसी कहानी क्यों नहीं लिखता जिसमें पत्नी के कदम बहके हों और पति माफ कर महान बन जाता है..?"

"जो कहानी तुम पढ़ना चाह रही हो वैसा समाज में खुले तौर पर होने लगा है। बस साहित्य का हिस्सा बनना बाकी है। वह भी कुछ वर्षों में होने लगेगा। अच्छा चलो तुम ऐसी लघुकथा लिख लोऔर किसी बड़े साहित्यकार को टैग कर..!"

"अरे! छोटे लोग बड़े लोग को टैग नहीं करते हैं..!"

"तुम और छोटे लोग? चीनी हो क्या? अच्छा मूंगफली का चिनिया बादाम नाम क्यों पड़ा होगा...,"
फिज़ा में मिश्रित खिलखिलाहट का शोर गूँजने लगा...

Thursday 8 October 2020

'प्रतिरोध्य'




वन, धारा, पहाड़
उबड़-खाबड़ मिलते हैं
जो हमें बेहद पसंद आते हैं।
जीवन समतल की
खोज करते हैं..,

चलो दुआ करें... ! मिट्टी को मिट्टी की समझ आये..।
मिट्टी मिट्टी में मिल जानी है.. ।
बाकी तो! शिकवा-गिला कहने-सुनने में ताउम्र गुजरी है..।


"हे पार्वत्य वासी! सुराधिप! आपने मेरा रास्ता बार-बार बदल कर मुझे मेरी सखी से विमुख कर दिया। पाक में रहते हुए मैं नापाक हो रही हूँ। हिन्द में ही मेरी संस्कृति अक्षुण्ण रह सकती है..! "

"ना कुछ मेरे समझ में आ रहा है और ना मुझे कुछ याद आ रहा है कि मुझे क्या करना है और मैंने किया क्या है..! मुझसे दूर हटो और शीघ्रता से जाने दो। मुझे मेघों को दिशा निर्देश देना है कि कहाँ सुखार करें और कहाँ धरा-गगन को एक कर दें।"

"अक्सर आप मद से मत्त हो जाते हैं और अपने अस्त्र के प्रयोग बल पर मेघों और बिजलियों को सही-सही दिशा निर्देश नहीं दे पाते हैं..।"

"मुझ पर मिथ्या आरोप ना लगाओ..!"

"मुझे यरलुंग त्संगपो व मेघना से मिलने जाना है। दो कारुण्य बाहु के मिलन का योग बना दें..!"

"पुनः सोच लो! अब ज़माना सती सुहिणी का नहीं रहा..।"

"जुनून की उद्यति मेरे वेग से भी सदैव बड़ी होती रही है सदा होती रहेगी।"

Thursday 1 October 2020

अंतरराष्ट्रीय कॉपी दिवस



अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर 

वृद्ध दिवस–
कमरों में पसरा
मकड़जाल।

जीवंत वृद्ध से मिलना कोई नहीं चाहता,
पुण्यतिथि की बेसब्री से प्रतीक्षा होती..।



'विचार लेखन' : 'मेरा हिन्दी प्रेम'

 


हिन्दी महोत्सव 2020 के अंतर्गत मातृभाषा उन्नयन संस्थान के द्वारा आज 'मेरा हिन्दी प्रेम' आयोजित प्रतियोगिता के अंतर्गत, 'स्वयं के हिन्दी भाषा से प्रेम' के बारे में लिखना है.. कहीं 'छोटा मुँह बड़ी बात करना' या स्वयं को 'अहंकारी साबित करना' ना हो जाए .. फिर भी...



हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। “यू ट्यूब” और “गूगल” ने भी हिन्दी को काफी अहमियत दिया है। लगभग सभी सोशल मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म पर हिन्दी का विकल्प अभी भी उपलब्ध है ।
'विश्व आर्थिक मंच' की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। वर्त्तमान समय में, अमेरिका में हिन्दी को द्वितीय भाषा बनायी जाए यह प्रयास किया जा रहा है। और दूसरी तरफ हिन्द में सरकारी दफ्तरों , विद्यालय-महाविद्यालयों, अनेकानेक संस्थाओं में ‘हिन्दी दिवस ‘और ‘हिन्दी दिवस पखवाड़ा’ बड़े धूम-धाम से मनाया जा है। मातृभूमि में साँस लेने वालों को राष्ट्रभाषा की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हम सब तो अपने-अपने क्षेत्रिय भाषा के लिए लड़ रहे हैं...। ... राज्यों को भाषा के आधार पर टुकड़े-टुकड़े करने के लिए तैयार हैं।
द्रष्टा और दृष्टि का विलयन होने वाले प्राचीन ग्रीकों ने चार तरह के प्यार को पहचाना है : रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। 'प्यार' ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर ही सबको अच्छा-अच्छा का अनुभव होने लगता है,प्यार शब्द में वो एहसास है जिसे हम कभी नहीं खोना चाहते हैं।
मैं हिन्दी भाषी क्षेत्र बिहार में जन्म ली हूँ। तो हिन्दी बोलना, जानना व लिखना सीखना नहीं पड़ा और स्वयं का हिन्दी के प्रति प्रेम का पता तब चला जब अहिन्दी भाषी प्रदेशों में जाना हुआ। वहाँ के निवासियों को हिन्दी बोलने के नाम पर अपने चेहरे का इतिहास-भूगोल बदलते दिखा और सोशल मिडिया पर मेरा लेखन
–आप ये ब्लॉग पर फेसबुक टाइमलाइन पर कहाँ से चुन-चुन कर हिन्दी के तो नहीं लगते शब्दों को पोस्ट करती है.. समझना-समझाना कितना कठिन हो जाता है। ..
–आपकी लिखी रचनाओं को पढ़ने के लिए शब्दकोश लेकर बैठना पड़े तो पढ़ने का उत्साह चला जाता है।
–आप क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग ना करें आपकी रचना केवल शब्दों का जमावड़ा लगता है.... इत्यादि पद्म विभूषणों से जब सुशोभित होने लगा तो मुझे लगा कि अरे ! मुझे तो हिन्दी से दिव्यप्रेम है...। अजीब सा नशे के कैद में हूँ..।
देश-विदेश में हिन्दी साहित्य की जितनी संस्था (जो मुझे सदस्य बनाये रख सकती है ) मेरे जानकारी में सहभागिता करने का प्रयास करती हूँ।
हिन्दी के लिए कोई कार्यक्रम हो उसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में ना तो जेठ की दोपहरी रोक पाती है ना भादो की बरसात। ना तीन-चार बजे रात में वर्चुअल साहित्यिक गोष्ठी में उपस्थिति दर्ज करने की बात...।
कई गोष्ठियों में युवाओं को शुद्ध हिन्दी में रचना पाठ करते देख बेहद हर्ष होता है।
समुन्द्र का जिस तरह ओर-छोर नहीं दिखलाई देता है उसी तरह हिन्दी साहित्य है...। उसमें पड़े हमारा लेखन का अस्तित्व एक बूँद ही है...।

काली घटा

“ क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा! कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनो...